Monday, 23 February 2015

बुद्ध की सभा

महात्मा बुद्ध को एक सभा में भाषण करना था । जब समय हो गया तो महात्मा बुद्ध आए और बिना कुछ बोले ही वहाँ से चल गए । तकरीबन एक सौ पचास के करीब श्रोता थे । दूसरे दिन तकरीबन सौ लोग थे पर फिर उन्होंने ऐसा ही किया बिना बोले चले गए ।इस बार पचास कम हो गए ।

तीसरा दिन हुआ साठ के करीब लोग थे महात्मा बुद्ध आए, इधर – उधर देखा और बिना कुछ कहे वापिस चले गए । चौथा दिन हुआ तो कुछ लोग और कम हो गए तब भी नहीं बोले । जब पांचवां दिन हुआ तो देखा सिर्फ़ चौदह लोग थे । महात्मा बुद्ध उस दिन बोले और चौदोहों लोग उनके साथ हो गए ।

किसी ने महात्मा बुद्ध को पूछा आपने चार दिन कुछ नहीं बोला । इसका क्या कारण था । तब बुद्ध ने कहा मुझे भीड़ नहीं काम करने वाले चाहिए थे । यहाँ वो ही टिक सकेगा जिसमें धैर्य हो । जिसमें धैर्य था वो रह गए।

केवल भीड़ ज्यादा होने से कोई धर्म नहीं फैलता है । समझने वाले चाहिए, तमाशा देखने वाले रोज इधर – उधर ताक-झाक करते है । समझने वाला धीरज रखता है । कई लोगों को दुनिया का तमाशा अच्छा लगता है । समझने वाला शायद एक हजार में एक ही हो ऐसा ही देखा जाता है ।

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Sunday, 22 February 2015

Air pollution can spell disaster; let's work for improving air quality

Air pollution in India is quite a serious issue with the major sources being fuelwood and biomass burning, fuel adulteration, vehicle emission and traffic congestion. As far as emission of greenhouse gases are concerned, India is  third largest after China and the United States.] A 2013 study on non-smokers has found that Indians have 30% lower lung function compared to Europeans.
According to recent report, the transport sector contributes about 15 to 50 per cent of PM 2.5 emissions in cities, and is a dominant contributor to NOx emissions. The World Health Organization estimates that, of the 67 risk factors studied in its Global Burden of Disease project, outdoor air pollution was ranked 5th in mortality and 7th in health burden in India, contributing to over 6,27,000 deaths and 17.7 million healthy years of life lost in 2010.
Increasing air  pollution is a major cause of concern as it not only causes degradation of environment but also makes one's life susceptible to various ailments and diseases, thereby reducing one's life-span. On the other hand, improved air quality leads to increase in one's lifespan. This has also been substantiated by a new study which says as many as 660 million people or half of India's population could add 3.2 years to their lifespan, if air quality met the national safe standard. In other words, compliance with standards can save up to 2.1 billion life years in India.
Given the current air quality in cities of the country, It is high time a collective efforts need to be taken not only by the governments, corporates but also individuals for making air quality better  and that can be achieved not only be preserving flora and fauna but also curbing carbon emission to the environment.

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Wednesday, 18 February 2015

लोभ मनुष्य को गलत मार्ग की तरफ खींचता है

राजा सत्यप्रिय एक धर्मपरायण शासक थे। एक दिन वह सोचने लगे कि आखिर मनुष्य पाप करने को विवश क्यों होता है? यह जिज्ञासा उन्होंने अपने गुरु के सामने रखी। गुरु मुस्कराते हुए बोले, 'राजन, इसका जवाब विद्यामती ही दे सकती है।' बस, राजा विद्यामती के पास जा पहुंचे। विद्यामती अति रूपवान और गुणवान थी। राजा ने उसे अपनी जिज्ञासा बताई तो उसने कहा, 'इसका जवाब पाने के लिए आपको कुछ दिन मेरे यहां अतिथि बनकर रहना होगा।'

राजा बोले, 'मगर, मैं यहां कैसे ठहर सकता हूं। मेरी प्रजा दिन-रात मुझे अपनी समस्याएं बताती रहती है।' राजा की बात बीच में ही काटकर विद्यामती बोली, 'पर प्रश्न का उत्तर तो आपको तभी मिल पाएगा।' यह सुनकर राजा वहीं रुक गए और अपने राज्य में सूचना भिजवा दी कि वह एक आवश्यक कार्य से बाहर हैं। विद्यामती राजा की दिन-रात सेवा करती, उन्हें स्वादिष्ट भोजन खिलाती और उनसे ज्ञान-विज्ञान व वेदों आदि के बारे में बातें करती।

राजा विद्यामती पर मोहित हो गए और एक दिन उन्होंने प्रणय निवेदन कर डाला। इस पर विद्यामती बोली, 'बस महाराज, आज आपको जवाब मिल गया। अब आप जा सकते हैं।' राजा ने हैरानी से कहा, 'यह मेरा उत्तर नहीं।' इस पर विद्यामती बोली, 'महाराज पाप की जड़ लोभ है, जिसकी चपेट में आज आप भी आ गए। कहां तो आप यहां रुकने तक को राजी नहीं थे और कहां आज मुझे अपनी रानी बनाने को भी तैयार हैं। यह लोभ ही तो है, जो मनुष्य को गलत मार्ग की तरफ खींच ले जाता है। उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर देता है।' विद्यामती का जवाब सुनकर राजा लज्जित हो गए और उसे प्रणाम कर राजमहल लौट गए।

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Monday, 16 February 2015

दूसरों की निंदा करने की प्रवृत्ति से बचें।

एक विदेशी को अपराधी समझ जब राजा ने फांसी का हुक्म सुनाया तो उसने अपशब्द कहते हुए राजा के विनाश की कामना की। राजा ने अपने मंत्री से, जो कई भाषाओं का जानकार था, पूछा- यह क्या कह रहा है? मंत्री ने विदेशी की गालियां सुन ली थीं, किंतु उसने कहा - महाराज! यह आपको दुआएं देते हुए कह रहा है- आप हजार साल तक जिएं। राजा यह सुनकर बहुत खुश हुआ, लेकिन एक अन्य मंत्री ने जो पहले मंत्री से ईष्र्या रखता था, आपत्ति उठाई- महाराज! यह आपको दुआ नहीं गालियां दे रहा है।

वह दूसरा मंत्री भी बहुभाषी था। उसने पहले मंत्री की निंदा करते हुए कहा- ये मंत्री जिन्हें आप अपना विश्वासपात्र समझते हैं, असत्य बोल रहे हैं। राजा ने पहले मंत्री से बात कर सत्यता जाननी चाही, तो वह बोला- हां महाराज! यह सत्य है कि इस अपराधी ने आपको गालियां दीं और मैंने आपसे असत्य कहा। पहले मंत्री की बात सुनकर राजा ने कहा- तुमने इसे बचाने की भावना से अपने राजा से झूठ बोला।

मानव धर्म को सर्वोपरि मानकर तुमने राजधर्म को पीछे रखा। मैं तुमसे बेहद खुश हुआ। फिर राजा ने विदेशी और दूसरे मंत्री की ओर देखकर कहा- मैं तुम्हें मुक्त करता हूं। निर्दोष होने के कारण ही तुम्हें इतना क्रोध आया कि तुमने राजा को गाली दी और मंत्री महोदय तुमने सच इसलिए कहा- क्योंकि तुम पहले मंत्री से ईष्र्या रखते हो। ऐसे लोग मेरे राज्य में रहने योग्य नहीं। तुम इस राज्य से चले जाओ।

वस्तुत: दूसरों की निंदा करने की प्रवृत्ति से अन्य की हानि होने के साथ-साथ स्वयं को भी नुकसान ही होता है।

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Tuesday, 10 February 2015

अपने आप पर विश्वास करें

किसी गांव में सम्भुदयाल नामक एक ब्राह्मण रहता था। एक बार वह अपने यजमान से एक बकरा लेकर अपने घर जा रहा था। रास्ता लंबा और सुनसान था। आगे जाने पर रास्ते में उसे तीन ठग मिले। ब्राह्मण के कंधे पर बकरे को देखकर तीनों ने उसे हथियाने की योजना बनाई।
एक ने ब्राह्मण को रोककर कहा,
“पंडित जी यह आप अपने कंधे पर क्या उठा कर ले जा रहे हैं। यह क्या अनर्थ कर रहे हैं? ब्राह्मण होकर कुत्ते को कंधों पर बैठा कर ले जा रहे हैं।”
ब्राह्मण ने उसे झिड़कते हुए कहा, “अंधा हो गया है क्या? दिखाई नहीं देता यह बकरा है।”
पहले ठग ने फिर कहा, “खैर मेरा काम आपको बताना था। अगर आपको कुत्ता ही अपने कंधों पर ले जाना है तो मुझे क्या? आप जानें और आपका काम।”
थोड़ी दूर चलने के बाद ब्राह्मण को दूसरा ठग मिला। उसने ब्राह्मण को रोका और कहा, “पंडित जी क्या आपको पता नहीं कि उच्चकुल के लोगों को अपने कंधों पर कुत्ता नहीं लादना चाहिए।”
पंडित उसे भी झिड़क कर आगे बढ़ गया। आगे जाने पर उसे तीसरा ठग मिला।
उसने भी ब्राह्मण से उसके कंधे पर कुत्ता ले जाने का कारण पूछा। इस बार ब्राह्मण को विश्वास हो गया कि उसने बकरा नहीं बल्कि कुत्ते को अपने कंधे पर बैठा रखा है।
थोड़ी दूर जाकर, उसने बकरे को कंधे से उतार दिया और आगे बढ़ गया। इधर तीनों ठग ने उस बकरे को मार कर खूब दावत उड़ाई।
इसीलिए कहते हैं कि किसी झूठ को बार-बार बोलने से वह सच की तरह लगने लगता है। अतः अपने दिमाग से काम लें और अपने आप पर विश्वास करें।

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Sunday, 8 February 2015

प्रेम की पराकाष्ठा

बुद्ध का अंतिम दिन था जिस दिन वे भोजन करने इक बहुत गरीब लुहार के यहाँ गए थे। लुहार अत्यंत गरीब था उसके पास बुद्ध को खिलाने के लिए कुछ नहीं था। बरसात में लकड़ियों पर उगने वाली छतरी नुमा कुकरमुत्ते की सब्जी बड़े प्रेम से बना लाया।

जहर से ज्यादा कड़वी सब्जी खाते रहे बुद्ध, वो पूछता रहा कैसी लगी? बुद्ध मुस्काये तो उसने और सब्जी थाली में डाल दी। उसका प्रेम देख बुद्ध मुस्काते थे और पूरी सब्जी खा गए। देह में जहर फ़ैल गया।
चिकित्सक बोले आप जानते थे सब फिर भी उस लुहार को रोका क्यों नहीं?
बुद्ध मुस्काये और बोले, मौत तो एक दिन आनी ही थी, मौत के लिए प्रेम को कैसे रोक देता? मैंने प्रेम को आने दिया, प्रेम को होने दिया और मौत को स्वीकार किया। हानि कुछ ज्यादा नहीं -कल परसों में मरना ही था लेकिन प्रेम की कीमत पर जीवन को कैसे नहीं बचा सकता हूँ।

ऐसा ही होता है प्रेम!  आप प्रेमवश होकर जहर पी जाते हैं, खुद दुःख उठाते हैं लेकिन प्रेम को होने देते हैं। प्रेम को खोजने आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं होती आपको खुद के भीतर झांकना होता है। हम सभी के भीतर हमेशा प्रेम कलश भरा होता है। उसे बस प्रेम से छूने की देर होती है वो छलकने लगता है। जब भी कोई प्रेम से पुकारता है, मन को छूता है हमारा प्रेम कलश भर-भर जाता है।

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Monday, 2 February 2015

कर्त्तव्य का पाठ


तपस्वी जाजलि श्रद्धापूर्वक वानप्रस्थ धर्म का पालन करने के बाद खडे़ होकर कठोर तपस्या करने लगे। उन्हें गतिहीन देखकर पक्षियों ने उन्हें कोई वृक्ष समझ लिया और उनकी जटाओं में घोंसले बनाकर अंडे दे दिए। अंडे बढे़ और फूटे, उनसे बच्चे निकले। बच्चे बड़े हुए और उड़ने भी लगे। एक बार जब बच्चे उड़कर पूरे एक महीने तक अपने घोंसले में नहीं लौटे, तब जाजलि हिले। वह स्वयं अपनी तपस्या पर आश्चर्य करने लगे और अपने को सिद्ध समझने लगे।
उसी समय आकाशवाणी हुई, 'जाजलि, गर्व मत करो। काशी में रहने वाले व्यापारी तुलाधार के समान तुम धार्मिक नहीं हो।' आकाशवाणी सुनकर जाजलि को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह उसी समय काशी चल पड़े। उन्होंने देखा कि तुलाधार तो एक अत्यंत साधारण दुकानदार हैं। वह अपनी दुकान पर बैठकर ग्राहकों को तौल-तौलकर सौदा दे रहे थे। जाजलि को तब और भी आश्चर्य हुआ जब तुलाधार ने उन्हें उठकर प्रणाम किया, उनकी तपस्या, उनके गर्व तथा आकाशवाणी की बात भी बता दी। 
जाजलि ने पूछा, 'तुम्हें यह सब कैसे मालूम?' तुलाधार ने विनम्रतापूर्वक कहा, 'सब प्रभु की कृपा है। मैं अपने कर्त्तव्य का सावधानी से पालन करता हूं। न मद्य बेचता हूं, न और कोई निंदित पदार्थ। अपने ग्राहकों को मैं तौल में कभी ठगता नहीं। ग्राहक बूढ़ा हो या बच्चा, वह भाव जानता हो या न जानता हो, मैं उसे उचित मूल्य पर उचित वस्तु ही देता हूं। किसी पदार्थ में दूसरा कोई दूषित पदार्थ नहीं मिलाता। ग्राहक की कठिनाई का लाभ उठाकर मैं अनुचित लाभ भी उससे नहीं लेता हूं। ग्राहक की सेवा करना मेरा कर्त्तव्य है, यह बात मैं सदा स्मरण रखता हूं। 
मैं राग-द्वेष और लोभ से दूर रहता हूं। यथाशक्ति दान करता हूं और अतिथियों की सेवा करता हूं। हिंसारहित कर्म ही मुझे प्रिय है। कामना का त्याग करके संतोषपूर्वक जीता हूं।' जाजलि समझ गए कि आखिर क्यों उन्हें तुलाधार के पास भेजा गया। उन्होंने तुलाधार की बातों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प किया।

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