Sunday, 8 March 2015

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी !!


"अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥"
रावणके युद्धमें परास्त कर उसका वध कर , प्रभु श्री रामने माता सीता को मुक्त किए और विभीषणको लंकाकी राजगद्दीपर आसीन किए | उनके भाई लक्ष्मणने उनसे लंकामें कुछ और दिवस रुकनेके लिए कहा क्योंकि लंका अत्यधिक रमणीय स्थान था |तब प्रभु श्री रामने कहा कि स्वर्णमयी और सुंदर लंका में उन्हें आकृष्ट नहीं करती और उन्हें अपने जन्मभूमि वापिस जाना है क्योंकि जननी और जन्मभूमि दोनोंका ही स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है !
पर दुर्भाग्यवश आज हमारी जननी का अस्तित्व खतरे में है, बाबजूद इसके कि वो समाज के हर क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित कर चुकी है। वो सशक्त होकर भी अबला बनी हुई है तो इसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारा समाज आज भी महिलाओं के प्रति अपने सोच को नहीं बदल पाया है। यदि हमारी जननी को पुनः समाज में उनका सर्वोच्च स्थान दिलाना है तो हम सभी को उनके प्रति सोच बदलनी होगी, उन्हें वो सम्मान एवं आदर देनी होगी जिनकी वो हकदार हैं।
आज महिला दिवस पर हम सब महिलाओं की सुरक्षा और उनके कल्याण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करने का संकल्प लें । केवल कानून हमारी महिलाओं को स्वतंत्र माहौल नहीं दे सकते। हमारे मानसिक और नैतिक विचारों और साथ ही साथ सामाजिक व्यवहारों में मौलिक सुधारों की आवश्यकता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि महिलाओं को हमेशा आदर और सम्मान दिया जाए।

0 comments:

Post a Comment

Total Pageviews