आज (22 मार्च) सम्पूर्ण विश्व में जलसंरक्षण दिवस के
रूप में मनाया
जाता है ।
आज जल की
महत्ता को समझते
हुए जल को
बचाने के संकल्प
का दिन, जल
संरक्षण के प्रति
सचेत होने का
दिन है ।
आँकड़े बताते हैं कि
विश्व के 1.5 अरब
लोगों को पीने
का शुद्ध पानी
नही मिल रहा
है।
एक तथ्य के अनुसार,
1 लीटर गाय का
दूध प्राप्त करने
के लिए हमें
800 लीटर पानी खर्च
करना पड़ता है,
एक किलो गेहूँ
उगाने के लिए
1 हजार लीटर और
एक किलो चावल
उगाने के लिए
4 हजार लीटर पानी
की आवश्यकता होती
है। इस प्रकार
भारत में 83 प्रतिशत
पानी खेती और
सिंचाई के लिए
उपयोग किया जाता
है। जल
से जुड़े यदि
कुछ और आंकड़ों
पर गौर करें
तो हमें ज्ञात
होता है कि
पिछले 50 वर्षों में पानी
के लिए 37 भीषण
हत्याकांड हुए हैं,
प्रत्येक वर्ष पानीजन्य
रोगों से विश्व
में 22 लाख लोगों
की मौत हो
जाती है और
हमारे देश में
ग्रामीण नारियों को पानी
के लिए औसतन
चार मील पैदल
चलना पड़ता है
।
एक समय ऐसा
था जब हमारे
देश की गोदी
में हज़ारों नदियाँ
खेलती थी, आज
वे नदियाँ हज़ारों
में से केवल
सैकड़ों में ही
बची हैं। कहाँ
गई वे नदियाँ,
कोई नहीं बता
सकता। नदियों की
बात छोड़ दें
आज हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब
आज गायब हो
गए हैं, यह अलग बात
है कि हमारी
सरकारें जल संकट
के मद्देनज़र
इनके रख-रखाव
और संरक्षण के
प्रति सचेत हो
गई हैं।
प्रकृति जीवनदायी संपदा जल
हमें एक चक्र
के रूप में
प्रदान करती है,
हम भी इस
चक्र का एक
महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चक्र
को गतिमान रखना
हमारी ज़िम्मेदारी है,
चक्र के थमने
का अर्थ है,
हमारे जीवन का
थम जाना। प्रकृति
के ख़ज़ाने से
हम जितना पानी
लेते हैं, उसे
वापस भी हमें
ही लौटाना है।
हम स्वयं पानी
का निर्माण नहीं
कर सकते अतः
प्राकृतिक संसाधनों को दूषित
न होने दें
और पानी को
व्यर्थ न गँवाएँ
यह प्रण लेना
आज के दिन
बहुत आवश्यक है।
समय आ गया
है जब हम
वर्षा का पानी
अधिक से अधिक
बचाने की कोशिश
करें। बारिश कीएक-एक बूँदकीमती है। इन्हें
सहेजना बहुत ही
आवश्यक है। यदि
अभी पानी नहीं
सहेजा गया, तो
संभव है पानी
केवल हमारी आँखों
में ही बच
पाएगा।
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