Monday, 9 May 2016

जरुरी नहीं जो दिख रहा है, वही सच हो !

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मित्रों, अक्सरहाँ  हम में से अधिकांश किसी बात की तह में गए बिना,  सामने वाले की परिस्थितियों को जाने बिना, जल्दबाज़ी में गलत निर्णय ले लेते हैं, यहाँ तक कि उस व्यक्ति से अपना सम्बन्ध विच्छेदन भी कर लेते हैं। पर जब हमें वास्तविकता से सामना होता है तो हमें पाश्चाताप के शिवा कुछ भी नहीं मिलता।  कई बार हम स्वयं ही किसी की सुनी सुनाई बातों पर या किसी भी ग़लतफ़हमी, निर्मूल शकाओं के कारण अपने आपस के मधुर सम्बन्धों में खटास उत्पन्न कर लेते हैं।  अतः जरुरी नहीं कि कई बार जो हम देखते हैं या हमें दिखाया जाता है, वही सच हो ? अतः आवश्यक है कि भावावेश में आकर हम कोई ऐसा निर्णय ना लें जिससे कि हमारे आपसी मधुर रिश्तों में दरार उत्पन्न हो।   तो चलिए आज में आप सबको इसी सन्दर्भ में एक कथा सुनाता हूँ।  कथा कुछ इस तरह है --        किसी शहर में एक जौहरी रहता था। उसका भरा-पूरा परिवार था। एक दिन अचानक दिल का दौरा पड़ने के कारण उसका निधन हो गया। उसके निधन के बाद परिवार संकट में पड़ गया। हालांकि पत्नी ने बुरे दिनो के लिए कुछ रूपये-पैसे बचा कर रखे थे। पर भला वे कितने दिन तक चलते? इसलिए उनके खाने के लाले पड़ गए।  जौहरी की पत्नी के पास एक नीलम का हार था। उसने अपने बेटे को वह हार देकर कहा- 'बेटा, इसे अपने चाचा की दुकान पर ले जाओ। कहना इसे बेचकर रुपये दे दें, जिससे परिवार का खर्चा चल सके।' 

बेटे ने हार को एक थैले में रखा और उसे लेकर चाचा के पास जा पहुंचा। हार को देखकर चाचा चाैंक उठे। वे उसे कुछ रूपये देते हुए बोले, 'बेटा, यह पैसे तुम रख लो। और जहां तक हार की बात है, इसे तुम वापस लेते जाओ। मां से कहना कि अभी बाजार बहुत मंदा है।' फिर वे थोड़ा रुककर बोले, 'कल से तुम दुकान पर आ जाना। कुछ काम धंधा सीखोगे और दो-चार रूपये की आमदनी भी हो जाएगी।' 

चाचाजी की बात सभी को अच्छी लगी। अगले दिन से लड़का दुकान पर जाने लगा और चाचा के साथ रह जौहरी का काम सीखने लगा। देखते देखते काफी समय बीत गया। एक दिन वह लड़का हीरे-जवाहरात का बड़ा पारखी बन गया। एक दिन मौका देखकर चाचा ने उससे कहा, 'बेटा तुम्हें ध्यान होगा कि एक दिन तुम एक नीलम का हार बेचने के लिए लाए थे। उसे अपनी मां से लेकर आना, आजकल बाजार बहुत तेज है, उसके अच्छे दाम मिल जाएंगे।'
लड़का जब शाम को अपने घर पहुंचा, तो उसमें मां से वह हार मांगा। मां ने जब नीलम का हार लड़के के हाथ में रखा, तो वह आश्चर्यचकित रह गया। वह हार नकली था। लेकिन इस बात ने उसे सोच में डाल दिया। अगर यह हार नकली है, तो उस समय उसे चाचाजी ने यह बात क्यों नहीं बताई थी, जब वह उसे बेचने के लिए चाचाजी के पास लेकर गया था?

चाचाजी ने जब उसकी बात सुनी, तो वे बोले, 'बेटा, जब तुम पहली बार हार लेकर थे, तब मैंने जानबूझकर इसे नकली नहीं बताया था। क्योंकि उस समय तुम्हारे परिवार के बुरे दिन चल रहे थे। उस समय तुम हमारी बात पर  विश्वास नहीं करते। तुम्हें लगता कि हमारे बुरे दिन चल रहे हैं, तो चाचा भी हमें ठगने की सोच रहे हैं। इससे तुम्हारी नजर में हम अनावश्यक रूप से बुरे बन जाते और हमारे सम्बंध खराब हो जाते। इसीलिए मैंने उस दिन मंदी का बहाना करके हार बेचने से मना कर दिया था। आज जब तुम्हें स्वयं रत्नों की परख हो गयी है, तो तुम्हें स्वयं ही पता चल गया कि हार सचमुच नकली है।'

मित्रों, ऐसा अक्सर हमारे साथ भी होता है। हम किसी भी घटना अथवा बात की गहराई को समझ नहीं पाते और लोगों के साथ अपने सम्बंध खराब कर लेते हैं, जबकि उसके पीछे की वजह दूसरी होती है। इसीलिए जब भी कभी ऐसा अवसर आए, जिससे आपके रिश्ते प्रभावित हो रहे हों, वहां तत्काल कोई निर्णय न लें। क्योंकि हीरे की परख के लिए अनुभव का ज्ञान जरूरी होता है। हो सकता है कि बिना ज्ञान/अनुभव के आप कोई गलत निर्णय ले बैठें और उसकी वजह से आपको ताउम्र पछताना पड़ जाए।

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Monday, 2 May 2016

विनम्रता ही मनुष्य को महान बनाती है



मित्रों, विनम्रता हमारी जिन्दगी में हमारे स्वाभाव के लिए वो बेहतरीन तोहफा है, जिसे अपनाकर हम सामने वाले के साथ-साथ अपने मन पर भी एक सकारात्मक असर डालते हैं।  तो आज विनम्रता से जुडी एक शिक्षाप्रद कथा आप सबको सुनाता हूँ –

कथा कुछ इस तरह है -- एक संत अपनी तीर्थ यात्रा पर थे और उन्होंने वृन्दावन जाने का सोचा लेकिन पहुँचने से पहले ही जब वो कुछ मील की दूरी पर थे तो रात हो गयी।  उन्होंने अपने मन में ये ख्याल किया कि चलो क्यों ना आज पास के ही एक गाँव में रात्रि विश्राम कर लूँ और फिर सुबह जल्दी उठकर अपनी यात्रा प्रारम्भ कर लूंगा |  उनका (संत)  का एक नियम था कि वो केवल उसी घर का जल और अन्न ग्रहण करते थे जिनके घर में लोगो का आचार, विहार और विचार पवित्र हो।  उन्होंने इस बारे में पूछताछ की तो उन्हें किसी ने बताया की ब्रज के पास ये जो सीमावर्ती गाँव है, वंहा लोग सभी वैष्णव हैं और सब के सब कृष्ण के परम भक्त हैं |
संत उस गाँव में गये और एक व्यक्ति के घर का द्वार खटखटाया और उनसे कहा कि ” भाई मैं थोडा विश्राम करना चाहता हूँ तो क्या मैं आपके घर रात बिता सकता हूँ और मैं केवल उसी के घर का भोजन और पानी ग्रहण करता हूँ जिसके घर का आचार विचार शुद्ध हो | इस पर उस व्यक्ति ने कहा महाराज क्षमा करें मैं तो निरा अधम हूँ लेकिन मेरे अलावा हर कोई जो इस गाँव में रहता है बहुत ही पवित्र विचारों वाले हैं लेकिन फिर भी अगर आप मेरे घर में कदम रखकर मेरे घर को पवित्र करते हैं तो मैं अपने घर को और अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली मानूंगा |
संत कुछ नहीं बोले और आगे बढ़ गये और फिर आगे जाकर उन्होंने एक और व्यक्ति से रात बिताने के लिए विनती कि तो उसने भी वही जवाब दिया जो पहले व्यक्ति ने दिया था और इस तरह संत  जिसके भी घर गये और सबसे यही बात कही और सभी ने एक ही जवाब दिया।  इस पर संत को स्वयं पर लज्जा महसूस हुई कि वो एक संत होकर इतनी छोटी सोच रखते हैं जबकि एक आम आदमी जो गृहस्थ है, वो अपने परिवार के जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी कितना उत्तम आचरण लिए हुए है कि खुद को सबसे छोटा बता रहा है।  अपनी भूल समझकर वो एक व्यक्ति के पास गये और उससे कहा  क्षमा कीजिये अधम आप नहीं अधम तो मैं हूँ जो जिन्दगी का एक छोटा सा सार भी नहीं समझ सकता, इसलिए मैं आपके घर रात बिताना चाहता हूँ।  मैं समझ गया हूँ कि आप सब लोग सच्चे विनम्र है और साथ ही सच्चे वैष्णव भी और मैं आपके घर का खाना और पानी ग्रहण करके खुद को पवित्र करना चाहूँगा |

मित्रों यह कथा जीवन में विनम्रता की सच्ची पहचान बताती है खुद को छोटा समझना और दूसरों से अपनी तुलना नहीं करना ही आपको असल जिन्दगी में महान आचरण वाला बनाता है।  इस कथा का सार यह है कि विनम्रता, सच्चचरित्रता  मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है।  आपकी विनम्रता ही आपको महान बनाती है। 

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