Wednesday, 21 June 2017

योग मन को शांति एवं शरीर को फुर्ती प्रदान करने वाली क्रिया है

योग मन को शांति एवं शरीर को फुर्ती प्रदान करने वाली क्रिया हैं, जिससे शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखा जा सकता हैं | आज वर्ष के सबसे बड़े दिन को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता हैं | हमें भारतीयता पर गर्व होना चाहिए, क्योंकि योग मूलतः भारत की ही देन हैं | भारत में ही अध्यात्म की राह पर चलकर योग द्वारा शारीरिक और मानसिक विकारों से मुक्ति प्राप्त करने हेतु मार्गदर्शन प्रदान किया गया तथा हमारे भारत के ही माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा योग दिवस की पहल की गई जिसे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाने लगा और आज पूरा विश्व तीसरा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मना रहा है |
योग का अर्थ होता है, जोड़ना एवं समाधी, जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते हैं, तब तक समाधी तक नही पंहुचा जा सकता है और समाधी तक पहुँचने पर ही परमात्मा से मिलन संभव हैं |
प्राचीन काल में गुरुओं द्वारा योग की कई पद्धातियाँ स्वयं के अनुभवों से शुरू की गई , जिनका उपयोग आज भी मन के विकारों एवं शारीरिक कष्टों से मुक्ति पाने के लिए किया जा रहा हैं।
नागपंथ वैष्णव , शैवपंथ और शाक्त ने अपने - अपने तरीके से योग का महत्व बताया एवं इसका विस्तार दिया
यस्माद्द्ते न सिध्यति यज्ञों विपश्चितश्चन | सा धीनां योग मिन्वति ||

अर्थात योग के बिना विद्वान् का भी कोई यज्ञकर्म सिद्ध नहीं होता | वह योग क्या हैं। .. ? योग चित्तवृतियों का निरोध हैं, वह कर्तव्य कर्ममात्र में व्याप्त हैं।
योग भारतभूमि की 5000 वर्ष पुरानी धरोहर हैं। भगवान शंकर से योग के बाद, ऋषि मुनियों से लेकर गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी सभी द्वारा अध्यात्म के मार्ग पर चलकर योग अपनाया गया

आज के व्यवस्थता भरे समय में जब व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक विकारों से जूझ रहा हैं , तो उसे योग के सही एवं नियमित अभ्यास से दूर किया जा सकता हैं। योग मानव को निरोग्य जीवन एवं मानसिक शांति के लिए अपनाना चाहिए ....
आज योग का महत्व बढ़ गया है, इसके बढ़ने का कारण व्यवस्थता और मन की व्यग्रता है, मनुष्य को योग की ज्यादा आवश्यकता है, जब मन और शरीर अत्यधिक तनावपूर्ण, वायु प्रदुषण तथा दौडभाग के जीवन से रोगग्रस्त हो चूका हैं, जिससे मानव का मन एवं मस्तिष्क संतुलित नही हो पा रहा हैं। योग, मानव को निरोग्य जीवन एवं मानसिक शांति के लिए अपनाना चाहिए...

मनुष्य अपने जीवन में आगे स्वस्थ होकर योग के माध्यम से ही बढ़ सकता हैं। इसीलिए योग के महत्त्व को समझना होगा।
मनुष्य किसी की ओर केवल तभी आकर्षित होता हैं जब उसे उससे लाभ मिले , जिस तरह से हम योग की ओर आकर्षित हो रहे उससे यह स्पष्ट हैं की योग के कई फायदे हैं।
योग सभी के लिए आवश्यक है चाहे स्त्री हो पुरुष , बच्चे हो या बूढ़े। योग से मन में सकारात्मक विचारों का प्रवाह एवं आध्यात्मिक बल प्राप्त होता हैं , और सफलता के लिए सकारात्मक विचारों का होना आवश्यक हैं जिससे मन में शांति, चिंता से दूरी, प्रसन्नता तथा उत्साह का प्रवाह होता है।
तनाव ही कई बीमारियों की जड़ है , तनाव से मुक्ति के लिए भी योग कारगर साबित हो रहा हैं। आध्यात्मिक एवं बौद्धिक क्षमता में विकास, मानसिक क्षमताओं का विकास, शरीर को सेहतमंद बनाना, थकान मिटाना , तथा प्रत्येक प्रकार के शारीरिक कष्टों से निदान , यह सिर्फ योग द्वारा ही संभव हैं। विज्ञान द्वारा भी योग को चिकित्सीय पद्धति के रूप में अपनाया गया हैं।
मेरा आप सभी से अनुरोध हैं, कि इस अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर स्वस्थ जीवन शैली और बेहतर जीवन जीने के लिए योग अपनाएँ।
हमें बच्चो को भी योग के महत्व एवं उनसे जुड़े लाभ बताकर नियमित अभ्यास करवाना चाहिए , क्योंकि योग शरीर एवं मस्तिष्क को एक साथ संतुलित करके प्रकृति से जुड़ने का स्वस्थ, लाभदायक एवं सुरक्षित माध्यम हैं। यह हमारे पूर्वजों से प्राप्त अमूल्य उपहार हैं।
योग के कई आसन होते हैं , जिनका सुरक्षित एवं निरंतर अभ्यास लाभप्रद हैं, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर बिमारियों से राहत प्रदान करता हैं।
योग के कई लाभ हैं जिनकी गणना नहीं की जा सकती हैं , यह शरीर को तंदरुस्ती, तनाव से मुक्ति , नकारात्मक विचारों से मुक्ति, मानसिक शुद्धता एवं शांति के साथ साथ समझ विकसित कर प्रकृति से जोड़ता हैं।
"स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है"
आइए इस अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर प्रण ले - योग अपनाएं , निरोग्य और खुशहाल राष्ट्र बनायें।

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Saturday, 17 June 2017

आज साबरमती आश्रम के स्थापना के 100 वर्ष पुरे होने पर आश्रम से प्राप्त मानवता, सामाजिकता, और देश निर्माण पर चर्चा करते है –

जब हम जीवन में तेजी से आगे बढ़तें हैं तो हमारे अनुभवों में भी वृद्धि होती है, यह वृद्धि या तो सुख की होती है या दुःख की, जब हम आगे बढ़तें हैं तो हमारे मस्तिष्क में स्वयं और समाज के लिए विचार भी विकसित होते है, ठीक अनुभव की तरह या तो सुविचार या फिर कुविचार, इन्हीं विचारों का विकास यदि सही तरीके से किया जाए तो एक सभ्य समाज का निर्माण होता है और सभ्य समाज ही राष्ट्र की प्रगति का प्रतीक है |
प्राचीन काल में विचारों की शुद्धता के लिए बचपन से ही बच्चों को आश्रम पहुँचाया जाता था ताकि बच्चो में मौलिक शिक्षा, शास्त्रों एवं अस्त्रों की शिक्षा के साथ साथ आत्मनिर्भर बनाना एवं प्रत्येक परिस्थिति में सकारात्मक विचार धारण करना एवं स्वयं सारे कार्यों को करना सिखाया जाता था, ताकि बच्चे आश्रम अवधि समाप्त होने के पश्चात सभ्य एवं सुसंस्कृत समाज निर्माण में योगदान दे सके | 
राष्ट्र हित, मानव हित, शिक्षा, चिकित्सा, आत्मीयता तथा भक्ति के उद्देश्य से आश्रम की स्थापना की जाती थी और अब फिर से आश्रम व्यवस्था को मुख्य धारा में लाने की कोशिश हो रही है जो प्रशंसनीय हैं |
आश्रम भारतवर्ष का आधार रहा है , आश्रमों में सदाचार, शिष्टाचार तथा जीवन जीने की सकारात्मक सोच विकसित की जाती है| 
प्रभु श्रीरामचन्द्र जी ने आश्रम में ही गुरु विशिष्ट से धर्म के मार्ग पर मर्यादाओं के साथ चलने की शिक्षा ली , एवं मर्यादापुरुषोत्तम कहलाएँ , लेकिन जब प्रभु रामचंद्र जी 14 वर्ष के वनवास पर गये तब आश्रम की गरिमा एवं नियम को तोड़कर रावण ने सीता का अपहरण किया जो राक्षसों के वंश के विनाश का कारण बना |
आश्रम के अपने नियम एवं अपनी गरिमा होती है, जो चरित्र का निर्माण करती है, तथा आश्रम की गरिमा एवं नियमों को तोड़कर किया गया कार्य विनाश लेकर आता है |
आश्रमों में किये गए कार्यो से ही समाजिक परिवर्तन लाया जाता है , जैसे सबरी के आश्रम में ही श्रीराम जी के पधारने पर कवी कहतें है ..
जाती-पांति कुल धर्म बड़ाई | धन बल परिजन गुण चतुराई ||
भगती हीन नर सोहई कैसा | बिनु जल बारिद देंखीअ जैसा ||
मतलब जाति-पांति, कुल बड़ाई, धर्म, दहन, बल, कुटुंब, गुण और चतुरता इन सबके होने पर भी इंसान भक्ति न करे तो वह ऐसा लगता है, जैसे जलहीन बादल दिखाई देते है |
आश्रमों का हमारे लिए बहुत महत्त्व है , ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में ही रामायण लिखी गई जो हमें जीवन की परिस्थितियों से अवगत कराती है और विचारों में सकारात्मकता लाती है | वेद व्यास के आश्रम से ही भरत वंश का नाम बढ़ा |
आश्रमों में ही भारतवर्ष का इतिहास निहित है , जहाँ कई रचनाएँ, ग्रन्थ, वेद, तथा काव्यों का निर्माण किया गया है , मानवता का विकास किया गया तथा राष्ट्र के प्रति सहयोग एवं जागरूकता फैलाई गयी है | 
ऐसा ही एक है, साबरमती आश्रम, जिसकी स्थापना आज ही के दिन 100 साल पहले महात्मा गांधी द्वारा विभिन्न धर्मो में एकता स्थापित करने, चरखा, कड़ी एवं ग्रामोधोग द्वारा जनता की आर्थिक स्थिति सुधारने और अहिंसात्मक सहयोग तथा सत्याग्रह के द्वारा जनता के मन में स्वतंत्रता की भावना जाग्रत करने के लिए की गई | साबरमती आश्रम राष्ट्रीय धरोहर हैं, जहाँ जन कल्याण एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कई कार्य किये गए | 
आश्रमों का अस्तित्व वहां किये गए या प्रचलित कार्यो से होता है | ऐसे ही सूर्योदय आश्रम द्वारा अध्यात्म की शिक्षा, मानवता की शिक्षा ( प्रत्येक जीवों से लगाव ), कृषि सम्बंधित शिक्षा, पर्यावरण सम्बंधित शिक्षा तथा राष्ट्र चेतना के प्रति शिक्षित किया जा रहा है | 
हमें आपसे अनुरोध है की आइये एक बार हमारे कार्यों को देखकर हमें प्रोत्साहित करे और हमारा साथ दे |
विकास और भारत माता की ओर हमारा दायित्व और उस पर अमल करते हुए आगे बढ़कर देश को खुशहाल बनाने का लक्ष्य पूरा करने में आप सभी का सहयोग चाहता हूँ ....

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