एक पेड़ जितना ज्यादा बड़ा होता है, वह उतना ही अधिक झुका हुआ होता है; यानि वह उतना ही विनम्र और दूसरों को फल देने वाला होता है| यही बात समाज के उस वर्ग के साथ भी लागू होती है, जिसे आज की तथाकथित युवा तथा उच्च शिक्षा प्राप्त पीढ़ी बूढ़ा कहकर वृद्धाश्रम में छोड़ देती है। वह लोग भूल जाते हैं कि अनुभव का कोई दूसरा विकल्प दुनिया में नहीं है। यह दुर्भाग्य है कि जिस घर को बनाने में एक व्यक्ति अपनी पूरी जिंदगी लगा देता है, वृद्ध होने के बाद उसे उसी घर में एक तुच्छ वस्तु समझ लिया जाता है।
आज का वृद्ध समाज अत्यधिक कुंठा ग्रस्त है और सामान्यत: इस बात से सर्बाधिक दु:खी है कि जीवन का विशद अनुभव होने के बावजूद कोई उनकी राय न तो लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व ही देता है। इस प्रकार अपने को समाज में एक तरह से निष्प्रयोज्य समझे जाने के कारण हमारे वृद्धजन सर्वाधिक दुखी रहते हैं । हमारे वृद्धों, बुजुर्गों को इस दुःख और संत्रास से छुटकारा दिलाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है ।
वृद्धों के कल्याण के लिए इस प्रकार के कार्यक्रमों को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए, जो उनमें जीवन के प्रति उत्साह उत्पन्न करें । इसके लिए उनकी रुचि के अनुसार विशेष प्रकार की योजनाएं भी लागू की जा सकती हैं। आज अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर हम अपने बड़ों, बुजुर्गों के प्रति आदर एवं सम्मान बनाए रखने का प्रण लेते हुए ना सिर्फ उन्हें अपने परिवार में सर्वोच्च स्थान दें बल्कि उनके सुख दुःख का सतत चिंतन करते हुए उनके अधिकारों की रक्षा करने का सामूहिक संकल्प लें।
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