जवाहर लाल नेहरू एवं जाधवपुर विश्वविद्यालयों जैसे देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में जिस तरह पिछले कुछ दिनों से राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को प्रश्रय दिया गया उससे ना सिर्फ देश के भीतर अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि यह हमारे देश की एकता एवं अखंडता की जड़ों को भी खोखला करेगा, जो कि अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। और इन सबसे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है हमारे इन प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों के कुछ छात्र समूहों का इन तथाकथित अलगाववादियों की व्यूहरचना में फँस कर, इन देशद्रोहियों को `मौन समर्थन' देना।
यदि ऐसा नहीं था तो क्यों नहीं इन छात्रों एवं छात्र नेताओं ने जब तथाकथित अलगाववाद समर्थक कश्मीरी छात्र जेएनयु परिसर में देश के खिलाफ एवं अफजल गुरु जैसे देशद्रोहियों के समर्थन में नारा लगा रहे थे, उन्हें इस तरह राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को करने से रोका। अपराधियों, देशद्रोहियों को राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में साथ देना, अपनी मौन स्वीकृति देना, कानून की नज़र में उतना ही दंडनीय है जितना कि स्वयं अपराध करना एवं देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होना। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता राष्ट्र-हित बड़ी नहीं हो सकती और हमारे ऐसे राजनेता जो अभियव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देशद्रोहियों के सुर में सुर मिला रहे हैं और अपने तुक्ष्ण राजनैतिक स्वार्थ के लिए उन छात्र नेताओं एवं छात्रों के पक्ष में अपना बयान दे रहे हैं, वो हमारे देश की स्वतंत्रता, इसकी एकता एवं अखंडता के लिए, इन अलगाववादियों से भी अधिक खतरनाक हैं।
मैं अपने सम्मानीय मीडिया के साथियों से निवेदन करता हूँ कि ऐसे स्वार्थी राजनीतिज्ञों, जिनके बयानों से ना सिर्फ विघटनकारी तत्वों को बल मिलता हैं बल्कि देश की एकता एवं अखंडता को नुक्सान पहुँचता है, को समाचारों में को महत्व ना देकर राष्ट्र हित में इन्हें बहिष्कृत करें। जेएनयु एवं जाधवपुर विश्विद्यालय जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान देश के नागरिकों के टैक्स से चलता है और इन शिक्षा के मंदिरों में देशद्रोही गतिविधियाँ कतई बर्दास्त नहीं की जा सकती। देश में असहिष्णुता की बात करने वाले इन राजनेताओं ने जिस तरह से पिछले कुछ दिनों से देश के खिलाफ नारा लगाने वालों के पक्ष में अपना बयान देकर देश की सहिष्णुता की सीमा को उसकी पराकाष्ठा तक पहुंचा दिया है, अब वे देश के सहिष्णुता की और अधिक परीक्षा ना लें। यह दुर्भाग्य है कि इन नेताओं को शहीद हनुमनथप्पा जैसे देश के वीर जवानों की शहादत, देश के किसानों की आत्महत्या, बाछड़ा समाज की गुलामी एवं शहीद परिवारों का दर्द उतना मर्माहत नहीं करती जितना की कन्हैया जैसे छात्र नेताओं का देशद्रोहियों का साथ देने के लिए उसका जेल जाना। देश का यह दुर्भाग्य है कि अफजल गुरु के फांसी को शहादत दिवस के रूप में मानाने वालों को देश की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर शहीदों की शहादत मर्माहत नहीं करती। देशविरोधी हरकतें करने वालों जेएनयू छात्रों का ध्यान देश के शहीद लांसनायक हनुमनथप्पा की ९ वीर सपूतों पर नहीं गया जिन्होंने सियाचिन में अपने प्राणों की आहूति दे दी। जेएयू के इन तथाकथित पढ़े-लिखे बुद्धिजीवियों में से किसी ने भी, इतनी ज़हमत नहीं उठाई कि ये उन १० शहीदों की शान में दो शब्द कह सकें। शहीदों ने देश और देशद्रोह करने वालों जेएनयू छात्रों के लिए भी 35 फुट ऊंची बर्फ की दीवार का बोझ 6 दिनों तक अपने शरीर पर झेला लेकिन इन लोगों ने ये कहकर इनकी शहादत का मज़ाक उड़ा दिया कि कश्मीर भारत का हिस्सा है ही नहीं।
देश के यह वीर भारत माता की जय का नारा लगते हुए शहीद हुए और जेएनयू जैसे प्रतिष्ठति शिक्षण संस्थानों का एक छात्र समूह एवं उनका नेता पाकिस्तान जिंदाबाद एवं भारत की बर्बादी के नारे लगाने वालों की जमात में सम्मिलित होकर मूक दर्शक बने रहे और इससे बड़ी शर्मिंदगी क्या हो सकती है हमारे लिए |
जो लोग जेएनयू में हुई शर्मशार घटना को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ से जोड़ रहे हैं वह असल में मेरी नज़रों में सिर्फ और सिर्फ देशद्रोह है और हमारे देश की सरकार को ऐसे विघटनकारी तत्वों पर कानून के दायरे में कार्रवाई करता अत्यावश्यक है ।
यदि ऐसा नहीं था तो क्यों नहीं इन छात्रों एवं छात्र नेताओं ने जब तथाकथित अलगाववाद समर्थक कश्मीरी छात्र जेएनयु परिसर में देश के खिलाफ एवं अफजल गुरु जैसे देशद्रोहियों के समर्थन में नारा लगा रहे थे, उन्हें इस तरह राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को करने से रोका। अपराधियों, देशद्रोहियों को राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में साथ देना, अपनी मौन स्वीकृति देना, कानून की नज़र में उतना ही दंडनीय है जितना कि स्वयं अपराध करना एवं देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होना। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता राष्ट्र-हित बड़ी नहीं हो सकती और हमारे ऐसे राजनेता जो अभियव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देशद्रोहियों के सुर में सुर मिला रहे हैं और अपने तुक्ष्ण राजनैतिक स्वार्थ के लिए उन छात्र नेताओं एवं छात्रों के पक्ष में अपना बयान दे रहे हैं, वो हमारे देश की स्वतंत्रता, इसकी एकता एवं अखंडता के लिए, इन अलगाववादियों से भी अधिक खतरनाक हैं।
मैं अपने सम्मानीय मीडिया के साथियों से निवेदन करता हूँ कि ऐसे स्वार्थी राजनीतिज्ञों, जिनके बयानों से ना सिर्फ विघटनकारी तत्वों को बल मिलता हैं बल्कि देश की एकता एवं अखंडता को नुक्सान पहुँचता है, को समाचारों में को महत्व ना देकर राष्ट्र हित में इन्हें बहिष्कृत करें। जेएनयु एवं जाधवपुर विश्विद्यालय जैसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान देश के नागरिकों के टैक्स से चलता है और इन शिक्षा के मंदिरों में देशद्रोही गतिविधियाँ कतई बर्दास्त नहीं की जा सकती। देश में असहिष्णुता की बात करने वाले इन राजनेताओं ने जिस तरह से पिछले कुछ दिनों से देश के खिलाफ नारा लगाने वालों के पक्ष में अपना बयान देकर देश की सहिष्णुता की सीमा को उसकी पराकाष्ठा तक पहुंचा दिया है, अब वे देश के सहिष्णुता की और अधिक परीक्षा ना लें। यह दुर्भाग्य है कि इन नेताओं को शहीद हनुमनथप्पा जैसे देश के वीर जवानों की शहादत, देश के किसानों की आत्महत्या, बाछड़ा समाज की गुलामी एवं शहीद परिवारों का दर्द उतना मर्माहत नहीं करती जितना की कन्हैया जैसे छात्र नेताओं का देशद्रोहियों का साथ देने के लिए उसका जेल जाना। देश का यह दुर्भाग्य है कि अफजल गुरु के फांसी को शहादत दिवस के रूप में मानाने वालों को देश की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर शहीदों की शहादत मर्माहत नहीं करती। देशविरोधी हरकतें करने वालों जेएनयू छात्रों का ध्यान देश के शहीद लांसनायक हनुमनथप्पा की ९ वीर सपूतों पर नहीं गया जिन्होंने सियाचिन में अपने प्राणों की आहूति दे दी। जेएयू के इन तथाकथित पढ़े-लिखे बुद्धिजीवियों में से किसी ने भी, इतनी ज़हमत नहीं उठाई कि ये उन १० शहीदों की शान में दो शब्द कह सकें। शहीदों ने देश और देशद्रोह करने वालों जेएनयू छात्रों के लिए भी 35 फुट ऊंची बर्फ की दीवार का बोझ 6 दिनों तक अपने शरीर पर झेला लेकिन इन लोगों ने ये कहकर इनकी शहादत का मज़ाक उड़ा दिया कि कश्मीर भारत का हिस्सा है ही नहीं।
देश के यह वीर भारत माता की जय का नारा लगते हुए शहीद हुए और जेएनयू जैसे प्रतिष्ठति शिक्षण संस्थानों का एक छात्र समूह एवं उनका नेता पाकिस्तान जिंदाबाद एवं भारत की बर्बादी के नारे लगाने वालों की जमात में सम्मिलित होकर मूक दर्शक बने रहे और इससे बड़ी शर्मिंदगी क्या हो सकती है हमारे लिए |
जो लोग जेएनयू में हुई शर्मशार घटना को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ से जोड़ रहे हैं वह असल में मेरी नज़रों में सिर्फ और सिर्फ देशद्रोह है और हमारे देश की सरकार को ऐसे विघटनकारी तत्वों पर कानून के दायरे में कार्रवाई करता अत्यावश्यक है ।
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