Saturday, 1 October 2016

अपने शब्दों का चयन सोच समझ कर करें



मित्रों, एक कहावत प्रचलित है -- ”मुंह से निकले शब्द वापस नहीं लिए जा सकते ठीक वैसे ही जैसे धनुष से निकला हुआ तीर कभी वापस नहीं आता ” .  कहने का तात्पर्य यह कि  हमें बड़ी सावधानी से अपने शब्दों का  चयन  करना चाहिए।  बडबोलापन दोस्तों के बीच आपको जरूर लोकप्रियता दिला सकता है लेकिन कभी कभी ये नुकसानदेह होता है क्योंकि पहली बार हमसे मिलने के बाद जो छवि किसी इन्सान के लिए बनती है उसमें उससे हुई हमारी बातचीत का ही शत प्रतिशत योगदान होता है। चलिए इस सन्दर्भ में मैं आप सबको एक कहानी सुनाता हूँ। 

कहानी कुछ इस तरह है - एक आदमी ने किसी बात को लेकर अपने पडोसी को बहुत बुरा भला, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का अहसास हुआ तो वह अपने गलती का पश्चाताप करने चर्च गया।  वंहा जाकर पादरी के सामने  उसने ऍनकइ गलती को स्वीकार।  उसकी बातों को सुनकर पादरी ने उसे एक पंखो से भरा थैला दिया यह कहते हुए  कि वो इस थैले को किसी खुली जगह में जाकर बिखेर दे।  पादरी के कथनानुसार उस व्यक्ति ने वैसा ही किया और जब लौटकर आया तो पादरी ने उसे कहा कि क्या तुम अब जाकर उन पंखो को  वापस इसी थैले में भरके ला सकते हो ? वो आदमी फिर उन पंखों को समेटने के लिए निकल पड़ा। उस स्थान पर जहाँ पर उसने पंखों को बिखेर था, उन पंखों को समेटने की बहुत  कोशिश की पर सफल नहीं हो पाया और मायूस होकर खाली थैला लिए पादरी के पास लौट परा।  पादरी ने उसके मन की दशा को देखते हुए उसे समझाया कि जिस तरह वो पंखों को वापस नहीं समेट सका, ठीक उसी तरह वो लाख पश्चाताप कर ले पर अपने द्वारा कहे गए शब्दों को वापस नहीं ले सकता।  मित्रों, इस कथा से अभिप्राय यह है  कि हम सभी को किसी से बात करते समय अपने द्वारा कहे गए शब्दों का चुनाव सावधानी से करनी चाहिए  क्योंकि कई बार हम अपनी शब्दों के कारण किसी को दुःख पहुंचते हैं और अपनी सफलता को असफलता में बदल देते हैं। 

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