Wednesday, 21 June 2017

योग मन को शांति एवं शरीर को फुर्ती प्रदान करने वाली क्रिया है

योग मन को शांति एवं शरीर को फुर्ती प्रदान करने वाली क्रिया हैं, जिससे शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखा जा सकता हैं | आज वर्ष के सबसे बड़े दिन को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता हैं | हमें भारतीयता पर गर्व होना चाहिए, क्योंकि योग मूलतः भारत की ही देन हैं | भारत में ही अध्यात्म की राह पर चलकर योग द्वारा शारीरिक और मानसिक विकारों से मुक्ति प्राप्त करने हेतु मार्गदर्शन प्रदान किया गया तथा हमारे भारत के ही माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा योग दिवस की पहल की गई जिसे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाने लगा और आज पूरा विश्व तीसरा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मना रहा है |
योग का अर्थ होता है, जोड़ना एवं समाधी, जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते हैं, तब तक समाधी तक नही पंहुचा जा सकता है और समाधी तक पहुँचने पर ही परमात्मा से मिलन संभव हैं |
प्राचीन काल में गुरुओं द्वारा योग की कई पद्धातियाँ स्वयं के अनुभवों से शुरू की गई , जिनका उपयोग आज भी मन के विकारों एवं शारीरिक कष्टों से मुक्ति पाने के लिए किया जा रहा हैं।
नागपंथ वैष्णव , शैवपंथ और शाक्त ने अपने - अपने तरीके से योग का महत्व बताया एवं इसका विस्तार दिया
यस्माद्द्ते न सिध्यति यज्ञों विपश्चितश्चन | सा धीनां योग मिन्वति ||

अर्थात योग के बिना विद्वान् का भी कोई यज्ञकर्म सिद्ध नहीं होता | वह योग क्या हैं। .. ? योग चित्तवृतियों का निरोध हैं, वह कर्तव्य कर्ममात्र में व्याप्त हैं।
योग भारतभूमि की 5000 वर्ष पुरानी धरोहर हैं। भगवान शंकर से योग के बाद, ऋषि मुनियों से लेकर गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी सभी द्वारा अध्यात्म के मार्ग पर चलकर योग अपनाया गया

आज के व्यवस्थता भरे समय में जब व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक विकारों से जूझ रहा हैं , तो उसे योग के सही एवं नियमित अभ्यास से दूर किया जा सकता हैं। योग मानव को निरोग्य जीवन एवं मानसिक शांति के लिए अपनाना चाहिए ....
आज योग का महत्व बढ़ गया है, इसके बढ़ने का कारण व्यवस्थता और मन की व्यग्रता है, मनुष्य को योग की ज्यादा आवश्यकता है, जब मन और शरीर अत्यधिक तनावपूर्ण, वायु प्रदुषण तथा दौडभाग के जीवन से रोगग्रस्त हो चूका हैं, जिससे मानव का मन एवं मस्तिष्क संतुलित नही हो पा रहा हैं। योग, मानव को निरोग्य जीवन एवं मानसिक शांति के लिए अपनाना चाहिए...

मनुष्य अपने जीवन में आगे स्वस्थ होकर योग के माध्यम से ही बढ़ सकता हैं। इसीलिए योग के महत्त्व को समझना होगा।
मनुष्य किसी की ओर केवल तभी आकर्षित होता हैं जब उसे उससे लाभ मिले , जिस तरह से हम योग की ओर आकर्षित हो रहे उससे यह स्पष्ट हैं की योग के कई फायदे हैं।
योग सभी के लिए आवश्यक है चाहे स्त्री हो पुरुष , बच्चे हो या बूढ़े। योग से मन में सकारात्मक विचारों का प्रवाह एवं आध्यात्मिक बल प्राप्त होता हैं , और सफलता के लिए सकारात्मक विचारों का होना आवश्यक हैं जिससे मन में शांति, चिंता से दूरी, प्रसन्नता तथा उत्साह का प्रवाह होता है।
तनाव ही कई बीमारियों की जड़ है , तनाव से मुक्ति के लिए भी योग कारगर साबित हो रहा हैं। आध्यात्मिक एवं बौद्धिक क्षमता में विकास, मानसिक क्षमताओं का विकास, शरीर को सेहतमंद बनाना, थकान मिटाना , तथा प्रत्येक प्रकार के शारीरिक कष्टों से निदान , यह सिर्फ योग द्वारा ही संभव हैं। विज्ञान द्वारा भी योग को चिकित्सीय पद्धति के रूप में अपनाया गया हैं।
मेरा आप सभी से अनुरोध हैं, कि इस अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर स्वस्थ जीवन शैली और बेहतर जीवन जीने के लिए योग अपनाएँ।
हमें बच्चो को भी योग के महत्व एवं उनसे जुड़े लाभ बताकर नियमित अभ्यास करवाना चाहिए , क्योंकि योग शरीर एवं मस्तिष्क को एक साथ संतुलित करके प्रकृति से जुड़ने का स्वस्थ, लाभदायक एवं सुरक्षित माध्यम हैं। यह हमारे पूर्वजों से प्राप्त अमूल्य उपहार हैं।
योग के कई आसन होते हैं , जिनका सुरक्षित एवं निरंतर अभ्यास लाभप्रद हैं, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर बिमारियों से राहत प्रदान करता हैं।
योग के कई लाभ हैं जिनकी गणना नहीं की जा सकती हैं , यह शरीर को तंदरुस्ती, तनाव से मुक्ति , नकारात्मक विचारों से मुक्ति, मानसिक शुद्धता एवं शांति के साथ साथ समझ विकसित कर प्रकृति से जोड़ता हैं।
"स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है"
आइए इस अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर प्रण ले - योग अपनाएं , निरोग्य और खुशहाल राष्ट्र बनायें।

Read more…

Saturday, 17 June 2017

आज साबरमती आश्रम के स्थापना के 100 वर्ष पुरे होने पर आश्रम से प्राप्त मानवता, सामाजिकता, और देश निर्माण पर चर्चा करते है –

जब हम जीवन में तेजी से आगे बढ़तें हैं तो हमारे अनुभवों में भी वृद्धि होती है, यह वृद्धि या तो सुख की होती है या दुःख की, जब हम आगे बढ़तें हैं तो हमारे मस्तिष्क में स्वयं और समाज के लिए विचार भी विकसित होते है, ठीक अनुभव की तरह या तो सुविचार या फिर कुविचार, इन्हीं विचारों का विकास यदि सही तरीके से किया जाए तो एक सभ्य समाज का निर्माण होता है और सभ्य समाज ही राष्ट्र की प्रगति का प्रतीक है |
प्राचीन काल में विचारों की शुद्धता के लिए बचपन से ही बच्चों को आश्रम पहुँचाया जाता था ताकि बच्चो में मौलिक शिक्षा, शास्त्रों एवं अस्त्रों की शिक्षा के साथ साथ आत्मनिर्भर बनाना एवं प्रत्येक परिस्थिति में सकारात्मक विचार धारण करना एवं स्वयं सारे कार्यों को करना सिखाया जाता था, ताकि बच्चे आश्रम अवधि समाप्त होने के पश्चात सभ्य एवं सुसंस्कृत समाज निर्माण में योगदान दे सके | 
राष्ट्र हित, मानव हित, शिक्षा, चिकित्सा, आत्मीयता तथा भक्ति के उद्देश्य से आश्रम की स्थापना की जाती थी और अब फिर से आश्रम व्यवस्था को मुख्य धारा में लाने की कोशिश हो रही है जो प्रशंसनीय हैं |
आश्रम भारतवर्ष का आधार रहा है , आश्रमों में सदाचार, शिष्टाचार तथा जीवन जीने की सकारात्मक सोच विकसित की जाती है| 
प्रभु श्रीरामचन्द्र जी ने आश्रम में ही गुरु विशिष्ट से धर्म के मार्ग पर मर्यादाओं के साथ चलने की शिक्षा ली , एवं मर्यादापुरुषोत्तम कहलाएँ , लेकिन जब प्रभु रामचंद्र जी 14 वर्ष के वनवास पर गये तब आश्रम की गरिमा एवं नियम को तोड़कर रावण ने सीता का अपहरण किया जो राक्षसों के वंश के विनाश का कारण बना |
आश्रम के अपने नियम एवं अपनी गरिमा होती है, जो चरित्र का निर्माण करती है, तथा आश्रम की गरिमा एवं नियमों को तोड़कर किया गया कार्य विनाश लेकर आता है |
आश्रमों में किये गए कार्यो से ही समाजिक परिवर्तन लाया जाता है , जैसे सबरी के आश्रम में ही श्रीराम जी के पधारने पर कवी कहतें है ..
जाती-पांति कुल धर्म बड़ाई | धन बल परिजन गुण चतुराई ||
भगती हीन नर सोहई कैसा | बिनु जल बारिद देंखीअ जैसा ||
मतलब जाति-पांति, कुल बड़ाई, धर्म, दहन, बल, कुटुंब, गुण और चतुरता इन सबके होने पर भी इंसान भक्ति न करे तो वह ऐसा लगता है, जैसे जलहीन बादल दिखाई देते है |
आश्रमों का हमारे लिए बहुत महत्त्व है , ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में ही रामायण लिखी गई जो हमें जीवन की परिस्थितियों से अवगत कराती है और विचारों में सकारात्मकता लाती है | वेद व्यास के आश्रम से ही भरत वंश का नाम बढ़ा |
आश्रमों में ही भारतवर्ष का इतिहास निहित है , जहाँ कई रचनाएँ, ग्रन्थ, वेद, तथा काव्यों का निर्माण किया गया है , मानवता का विकास किया गया तथा राष्ट्र के प्रति सहयोग एवं जागरूकता फैलाई गयी है | 
ऐसा ही एक है, साबरमती आश्रम, जिसकी स्थापना आज ही के दिन 100 साल पहले महात्मा गांधी द्वारा विभिन्न धर्मो में एकता स्थापित करने, चरखा, कड़ी एवं ग्रामोधोग द्वारा जनता की आर्थिक स्थिति सुधारने और अहिंसात्मक सहयोग तथा सत्याग्रह के द्वारा जनता के मन में स्वतंत्रता की भावना जाग्रत करने के लिए की गई | साबरमती आश्रम राष्ट्रीय धरोहर हैं, जहाँ जन कल्याण एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कई कार्य किये गए | 
आश्रमों का अस्तित्व वहां किये गए या प्रचलित कार्यो से होता है | ऐसे ही सूर्योदय आश्रम द्वारा अध्यात्म की शिक्षा, मानवता की शिक्षा ( प्रत्येक जीवों से लगाव ), कृषि सम्बंधित शिक्षा, पर्यावरण सम्बंधित शिक्षा तथा राष्ट्र चेतना के प्रति शिक्षित किया जा रहा है | 
हमें आपसे अनुरोध है की आइये एक बार हमारे कार्यों को देखकर हमें प्रोत्साहित करे और हमारा साथ दे |
विकास और भारत माता की ओर हमारा दायित्व और उस पर अमल करते हुए आगे बढ़कर देश को खुशहाल बनाने का लक्ष्य पूरा करने में आप सभी का सहयोग चाहता हूँ ....

Read more…

Wednesday, 31 May 2017

आज “विश्व तम्बाकू निषेध दिवस” है, सूर्योदय परिवार की ओर से यह अनुरोध है की धूम्रपान त्यागने का संकल्प ले..

आज “विश्व तम्बाकू निषेध दिवस” है, सूर्योदय परिवार की ओर से यह अनुरोध है की धूम्रपान त्यागने का संकल्प ले..

पूरे विश्व के लोगों को तम्बाकू जैसे जानलेवा पदार्थो से दूर रखने के उद्देश्य से पूरे  विश्व में 31 मई “विश्व तम्बाकू निषेध दिवस” के रूप में मनाया जाता है..
तम्बाकू एक ऐसा धीमा जहर है जो सेवन करने के बाद व्यक्ति को धीरे-धीरे मौत के मुंह में लेकर जाता है, लोग जाने अनजाने में, दिखावे में, शौक में सेवन प्रारंभ कर देते है पर बाद में यही शौक मजबूरी में बदल जाते है और व्यक्ति इनके आदि हो जाते है ...
जिन घरों में धूम्रपान होता है, उस घर के बच्चे न चाहते हुए भी धूम्रपान का शिकार हो जाते है .... आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की एक व्यस्क 1 मिनट में 16 बार सांस लेते है ,पर वहीँ बच्चो में यह गति अधिक होती है , बच्चे 1 मिनट में 20या कभी इससे भी अधिक बार सांस लेते है , इससे यह साफ़ है की जिन घरों में धूम्रपान का धूआँ उठता है ,वहां के बच्चो का शरीरिक एवं मानसिक विकास ज़हरीले धुंए का शिकार हो जाता है .
धूम्रपान के कई प्रकार है – बीडी, सिगरेट , तम्बाकू आदि ... भारत में तम्बाकू का ज्यादा उपयोग गरीब एवं कम शिक्षित व्यक्ति द्वारा किया जाता है , पर शिक्षित एवं उच्च वर्ग भी धूम्रपान का बहुत बड़े स्तर पर शिकार है ...
युवा एवं शिक्षित वर्ग बेचैनी दूर करने का सहारा तम्बाकू को बनाते हैं ..फिर नशे की गिरफ्त में आकर अपनी अनमोल जिंदगी काल के हाथ में सौप देते हैं ..
यह जानना बहुत आवश्यक है, कि देश में हर साल धूम्रपान के 11लाख नए मरीज पैदा हो रहे है . एम्स के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ आलोक ठक्कर को कहते सुना था की तम्बाकू सेवन करने वाले 80% लोगों में कैंसर होने की संभावनाएं है , जबकि हर साल लगभग 40 हजार लोगों की कैंसर से मौत होती है, और यह आंकड़ा प्रत्येक वर्ष बढता जा रहा है ....
चिकित्सीय पत्रिका “द लैनसैट” में प्रकाशित ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिजीज, के अनुसार वर्ष 2015 में विश्व में हुई 64लाख लोगों की मौत में 11 फीसदी से अधिक लोगों की मौत का कारण धूम्रपान था और इनमे से 52.2 फीसदी लोगों की मौत चीन, भारत,अमेरिका और रूस में हुई है ..
भारत में सरकार ने धूम्रपान रोकने के लिए कई सकारात्मक कदम उठाये हैं ..जिसमें सार्वजानिक स्थलों पर धूम्रपान पुरे देश में प्रतिबंधित है .. पर अभी तक अक्षरसः पालन कहीं हो पाया हैं .
नशा करके आप अपने परिवार और बच्चों को धोखा देतें है ..नशा आपके दृढ़ निश्चय से छूट सकता है ..धूम्रपान छोड़ने की शुरुआत आज और इस्सी पल से लागू होनी चाहिए ...ज्यादातर लोग ज़िन्दगी भर नशा करतें हैं और सिर्फ इसलिए नहीं छोड़ पाते क्योंकि नशा छोड़ना कल पर डाल देतें है और फिर वो कल कभी नहीं आ पाता ...
धुम्रपान छोड़ना शायद आसान न हो पर इसके त्याग से बेचैनी, अनिद्रा और मानसिक तनाव से धीरे धीरे आप मुक्त होंगे ..
नशा छोड़ने के कई तरीके हैं , लेकिन हर तरीके में आपको दृढ़ संकल्प और संयम की आवश्यकता हैं ..

#WorldNoTobaccoDay

Read more…

Saturday, 22 April 2017

अपने आसपास के छोटे छोटे काम पैदल या साइकिल से करें...

अपने आसपास के छोटे छोटे काम पैदल या साइकिल से करें...

शाम हो चली है। पृथ्वी दिवस का यह संध्या काल है।पर्यावरण संरक्षण और पोषण का यह संकल्प दिन है। मुझे नहीं लगता विश्व में तेज़ी से हो रहे पर्यावरण पतिवर्तन के प्रति हम सजग और सचेत हुए हैं। कहीं कोई संचेतना सजगता और संकल्पना मुझे नज़र नहीं आती। पूरा विश्व तेज़ी से प्रदूषित होता जा रहा है ,हम में से कोई भी आज जागरूक नहीं है । अमेरिकी सिनेटर गेलार्ड नेल्सन ने भयानक तेल रिसाव से व्यथित होकर 'वर्ल्ड अर्थ  डे ' की जब संकल्पना की थी तो यह एक जागरूकता का अभियान था जो लोगो में यह संकल्प भाव जगाने के लिए था कि हम सब मिलकर पृथ्वी से प्राप्त प्रकृति , प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण का संरक्षण मानव हित और जीव हित के लिए हरसंभव करेंगें।
मुझे दुःख होता है जो कार्य हमारे अपने लिए है ,हमारे जीवन के लिए है उसके प्रति हम में संचेतना और संकल्पना नहीं है। पूरा दिन बीत रहा है कहीं से कुछ यह हलचल नहीं दिख रही कि लोग और खासकर हमारे युवा कहीं पेड़ लगाने में व्यस्त हों , स्वच्छ जल के लिए प्रयास कर रहे हों या पर्यावरण के लिए आज पैदल अथवा साइकिल से चल रहे हों।
स्वच्छता का अभियान तो जारी है  लेकिन  स्वच्छता बनी रहने का स्थायी साधन हम नहीं कर पा रहे हैं। आज ही मैंने देखा एक हराभरा पेड़ मुख्य मार्ग पर ही निर्ममता से काटा जा रहा था । लोगो में यह भाव ही नहीं है कि इस पेड़ से हमें बिना खर्च किया बहुमूल्य आक्सीजन मिल रहा है, और यह बारिश का आधार भी बना रहा है। लेकिन काटने वाला बेरहमी से चोट कर रहा था शायद उसे इस हरेभरे पेड़ से ऊर्जा नहीं ईंधन चाहिए था ताकि शाम का भोजन वह पेड़ की चिता से पका सके। जब हमारी सोच क्षीण और तात्कालिक होगी तो हम कैसे पर्यावरण को संरक्षित कर सकेंगें और पृथ्वी का घटता वैभव अपने लिए बचा सकेंगें ।
विचार कीजिये पृथ्वी दिवस पर हम क्यों नहीं एक पेड़ लगाने का संकल्प लेते हैं। लुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण के प्रति क्यों नहीं सजग होते हैं और पर्यावरण को दूषित होने से रोकने का प्रयास क्यों नहीं करते हैं?
मेरा समस्त लोगों से विशेष तौर पर  युवा वर्ग से जिन्हें इस विश्व के साथ लंबा सफ़र तय करना है उनसे कहना हैै वे संकल्पित होकर इस महत्वपूर्ण दिवस पर अपने दफ्तर तेल रहित वाहन से जाने का दृढ़ प्रयास करें , अपने आसपास के वातावरण को साफ़ और स्वच्छ रखें। इसके साथ ही यह तय करें कि अपने आसपास के काम जैसे सब्ज़ी लाना, दूध लाना, दवाई लाना, किराने का सामान लाना इसके लिए हम हमेशा ही कार , बाइक आदि का प्रयोग नहीं करते हुए पैदल अथवा साइकिल से जाया करें । विश्व पृथ्वी दिवस पर यदि हम यह संकल्प करते हैं तो पर्यावरण में आ रहे बदलाव को रोकने में कामयाब हो सकेंगें।  यह पर्यावरण और हमारी सेहत के लिए भी अच्छा होगा।

Read more…

Thursday, 20 April 2017

VIP कल्चर

दरअसल खास होने के कोई मायने नहीं है और सेवाधारी तो खास कैसे हो सकते हैं । सरकार में सभी सेवक ही तो हैं चुने हुए प्रतिनिधि भी और व्यवस्थाओं के स्थायी जन भी ।सभी का कार्य राष्ट्र , समाज और जन का संरक्षण और विकास है। फिर किसी को यह दम्भ क्यों हो कि वह ख़ास है ? जब पर्सन से मन खास नहीं हुआ तो हमने उसमे इम्पोर्टेन्ट लगा दिया और उसे और ख़ास करते हुए वेरी लगाकर आम जनसेवक वीआइपी बन गए। अब इस कल्चर को समाप्त करने की व्यव्स्थात्मक पहल  स्वागतमय और अतुल्य है। 
इस वैचारिक पहल और  समदृष्टि के लिए कार्यपालिका और न्यायपालिका की प्रशंसा की जाना चाहिए।
डॉ भय्यू महाराज

Read more…

Friday, 7 April 2017

आज विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विशेष



स्वास्थ्य सेवाओं को मौलिक अधिकार के अंतर्गत लाने की आवश्यकता 

आबादी के हिसाब से दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश भारत में स्वास्थ्य सेवाएं आजादी के इतने सालों बाद भी लचर अवस्था में है और देश की बहुसंख्यक आबादी आर्थिक विपन्नता  कारण समुचित स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं ले पाती।  फलस्वरूप देश के हज़ारों,लाखों गरीब त्वरित एवं उचित चिकित्सीय  सेवाओं के अभाव में असामयिक मृत्यु को  प्राप्त करते हैं।  ऐसा नहीं की हमारे देश में विश्व स्तरीय चिकित्सीय सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं।  विगत वर्षों में निजी क्षेत्रों में देश में स्वास्थ्य सेवाओं का तीव्र गति से विकास हुआ है जिसके फलस्वरूप भारत स्वास्थ्य पर्यटन  के क्षेत्र विश्व पटल पर एक अग्रणी  देश के रूप  स्थापित हो चूका है। पर इन सबके बावजूद भी भारत सेहत पर सबसे कम खर्च करने वाले देशों की सूची में अग्रणी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार  जहाँ  प्रति एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर होने चाहिए, भारत इस अनुपात को हासिल करने में बहुत पीछे है।  उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश भर में चौदह लाख लाख डॉक्टरों की कमी है। विशेषज्ञ डॉक्टरों के मामले में तो स्थिति और भी बदतर है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार सर्जरी, स्त्री रोग और शिशु रोग जैसे चिकित्सा के बुनियादी क्षेत्रों में 50 फीसदी डॉक्टरों की कमी है।
इसके इतर अत्यधिक मँहगी चिकित्सा के कारण हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाएं गरीबों की पहुँच से काफी दूर हो गयी हैं। हमें इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है तथा शिक्षा, भोजन, आवास की तरह स्वास्थ्य सेवाओं को  भी जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं एवं मौलिक अधिकारों के अंतर्गत लाना होगा जिससे कि भारत का कोई भी नागरिक स्वास्थ्य सेवाओं से अछूता ना रहे।

Read more…

Saturday, 25 March 2017

पेड़ की छाँव में ग्लैमरस महाराज की धुनी

सब जानते है प.पू. डॉ. भय्यूजी महाराज आध्यात्मिक दुनिया के ग्लैमरस महाराज हैं उनके आसपास का वलय वीआइपी और नामचीन लोगो का रहता है वे खुद भी रहन-सहन और लाबोलिबास से मॉडल संत हैं ।इन सबके बावजूद आज उन्होंने अपने सूर्योदय आश्रम से नई पहल नई शुरुआत की। वे आश्रम के मुख्यद्वार पर स्थित औदुम्बर के वृक्ष के नीचे पंचगव्य से लिपे चबूतरे पर बेहद संजीदा होकर बैठ गए उन्होंने वहीँ लोगो को मार्गदर्शन देना शरू कर दिया। यह बहुत ही अदभुत दृश्य था । इसलिए भी की स्वयं भय्यू जी महाराज को सब ग्लेमर्स के अदभुत महाराज की तरह जानते हैं जो अपने शौक और रहन-सहन में सबसे आगे और गाँव-गाँव की धूल फांक कर सोशल काम करने में सबसे आगे हैं।

यह इसलिए भी मौज़ है कि भय्यू जी महाराज कभी फैशन की दुनिया में मॉडल रहे हैं और आज भी कद काठी और दिखावे में किसी सितारे से कम नहीं है।
औदुम्बर में भय्यूजी महाराज के इष्ट देव भगवान् दत्तात्रय बसते हैं उनकी आराधना स्थल का इससे अच्छा कोई  स्थान नहीं हो सकता और जो लोग भय्यू जी महाराज के आराधक हैं उनके लिए भी इस स्थान से बेहतर और दिव्य कोई और स्थान नहीं हो सकता। 
आज़ दर्शन और मार्गदर्शन के लिए औदुम्बर का चबूतरा गुरुगादी की तरह स्थापित हो गया और स्थान की अलौकिकता अपने आप में बढ़ गयी। 
आज ही बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज़ हुसैन भी उनसे मिले । 

गर्मी के इस तपते मौसम में कोई ऐसा संत किसी पेड़ के नीचे अपनी धुनी रमा ले जो किसी ग्लैमर से कम नहीं हो तो मैं मानता हूँ इसे एस्प दिव्यता , अलौकिकता ,आराधना या उपासना चाहे जो कहे यह प्रण और संकल्पशीलता का बिरला उदहारण है जो आज किसी और संत अथवा गुरु में देखने को नहीं मिलता । प.पू.डॉ. भय्यूजी महाराज ने बहुत से मिथक तोड़े हैं उनमे से यह एक गुरुगादी का अभिनव उदाहरण उनके लिए भी है जो कभी अपने पंचसितारा अहमियत और चोले से नीचे नहीं उतरते।
सुरेन्द्र बंसल

Read more…

Friday, 24 March 2017

लोक के लिए तंत्र का स्वस्थ और स्वच्छ होना ही सुशासन है --डॉ भय्यू महाराज

लोकतंत्र का सही अर्थ तंत्र में शासन में  लोक का साफ प्रतिबिम्ब दिखना है । लोकतंत्र का यह प्रतिबिम्ब कैसा होना चाहिए? तंत्र की ऐसी छबि जिसमें नागरिकों की हिस्सेदारी, सहभागिता , सामूहिकता परिलक्षित होती हो वही शासन लोकतान्त्रिक शासन होता है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था भर का होना लोकतंत्र नहीं है उसका सही दर्शन उसके कार्यप्रणाली से दिखना और महसूस होना लोकतंत्र है।

कहने को हम आज विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देशों में हैं लेकिन क्या हमारी व्यवस्थाएं लोकतंत्र की निर्धारित परम्पराओं के अनुकूल है ? क्या हमारे तंत्र में लोक की हिस्सेदारी के माकूल इंतज़ाम है ? क्या हमारी नीतियां राष्ट्र को संचालित करने की है या वाक़ई लोकहितकारी राष्ट्र निर्माण पर अवलंबित है ।

 आज लोकतंत्र सरकार को स्थायी बनाने का साधन बन गया है । सरकारें लोकतंत्र का दुरूपयोग कर रही है । इसलिए भी कि नीतियां लोक हित में नहीं सरकार के बने रहने की कुटिल चालों में केंद्रित हो गयी  है । जो सरकार अपने बने रहने की नीतियों पर चलती है वे लोकतंत्र की मर्यादाओं को लांछित कर राजतन्त्र के लिए काम करती है। राजतन्त्र का अर्थ ही राज में बने रहने के तंत्र को निर्मित करना है। ऐसी सरकारें लोकतंत्र का सिर्फ  भ्रम देती है और उनके काम लोकतंत्र के विपरीत भावनाओं से क्रियाशील होते है।

हम कुछ समय से लोकतंत्र की आड़ में राजतन्त्र की व्यवस्थाओं से चल रहे है। वर्ग भेद,  जाति भेद ,समुदाय भेद, धर्म भेद और वर्ण भेद  आधारित राजनीति जब तक होगी सही मायने में लोकतंत्र  संचालित नहीं होगा । राजनीति की सैध्दांतिक जरुरत लोकनीति ही होना जरुरी है ।और लोकनीति ऐसी सामूहिक सम्मति है जिससे लोकतंत्र की बनावट होती है ।
लेकिन जिस तंत्र में लोकनीति की प्राथमिकता नहीं होगी वहां राजनीति तंत्र को दूषित कर निरंकुश व्यवस्थाओं से संचालित होने लगती है। लोकतंत्र की यह वर्तमान स्थिति बढ़ते हुए निरंकुशता की और जा रही है। दरअसल ऐसे में हम सुशासन का स्वप्न साकार नहीं कर सकते । 

सुशासन लोकतंत्र का उन्नत स्वरुप है। हम तंत्र में स्वस्थ  और स्वच्छता के बिना सुशासन की कल्पना नहीं कर सकते । सु का अर्थ ही शुभ से है और जिस शासन में सब कुछ शुभ हो तब ही सुशासन की स्थापना हो सकती है। सुशासन की कल्पना उस नियत मार्ग की जोर बढ़ना है जिसका अंत सुराज की स्थापना में है। यह बहुत ही श्रेष्ठ सोच है कि वर्तमान सरकारें सुशासन के लिए संकल्पित दिख रही है लेकिन तंत्र  का  स्वस्थ और  स्वच्छता याने मज़बूती के बिना सुशासन की कल्पना साकार नहीं हो सकती । तंत्र के भीतर की व्याप्त गन्दगी को निकाल कर स्वस्थ वातावरण का निर्माण और तदनुरूप सञ्चालन से ही सुशासन की व्यवस्था स्थापित हो सकती है , जिसमे नीति लोक के अनुरूप सामुदायिकता से तैयार हो और जिसमें मतान्तर नहीं एकमत हो और खास यह कि तंत्र का आतंक भी न हो। जहाँ तंत्र लोक को आतंकित करता है वहां न लोकतंत्र होता है और न ही सुशासन ।

Read more…

Wednesday, 22 March 2017

जल को व्यर्थ ना गवाएँ


> आँकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नही मिल रहा है। भारत में यदि हम जल संकट  की बात करें तो हमें पता चलता है कि  महाराष्ट्र सहित देश में ऐसे कई राज्य हैं जहाँ आज भी कितने ही लोग साफ़ पानी के अभाव में या फिर रोग जनित गन्दे पानी से दम तोड़ रहे हैं। राजस्थान, जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी इलाकों में पानी  मनुष्य की जान से भी ज़्यादा कीमती है। पीने का पानी इन इलाकों में बड़ी कठिनाई से मिलता है। कई-कई किलोमीटर चल कर इन प्रदेशों की महिलाएँ पीने का पानी लाती हैं। यहाँ तक की इनकी ज़िंदगी का एक अहम समय पानी की जद्दोजहद में ही बीत जाता है। पानीजन्य रोगों से विश्व में हर वर्ष 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है, वहीँ दूसरी तरफ पिछले 50 वषों में पानी के लिए 37 भीषण हत्याकांड हुए हैं। यदि जल संकट इसी तरह जारी रहा तो इस शंका पर कोई शक नहीं होना चाहिए कि कहीं अगला विश्व युद्ध पानी  के कारण ना हो जाए। 
>
>  मित्रों, जल की इस विकट समस्या को देखते हुए समय रहते हम सबको वर्षा का जल अधिक से अधिक बचाने के लिए प्रयास करने  होंगे । बारिश की एक-एक बूँद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। हम तो अपने स्तर देश में, ख़ास कर महाराष्ट्र जैसे सुख पीड़ित राज्य में जल संरक्षण अनेको सार्थक प्रयास कर रहे हैं, पर इस मुहीम में देश के हर कर्तव्यनिष्ठ आदमी का जुड़ना आवश्यक है। 
>
> आज यानी 22 मार्च को पुरे विश्व में जल संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज का दिन है जीवनदायनी जल को बचाने के संकल्प का दिन। जल के महत्व को जानने का दिन और जल के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन।  प्रकृति जीवनदायी संपदा जल हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, हम भी इस चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चक्र को गतिमान रखना हमारी ज़िम्मेदारी है, चक्र के थमने का अर्थ है, हमारे जीवन का थम जाना। प्रकृति के ख़ज़ाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित न होने दें और जल को व्यर्थ न गँवाएँ  -- आइये हम सब इस बात का शपथ लें ।

#Savewater #waterconservation
#water

:- Dr. BHAIYYUMAHARAJ

plz contact for details:- 
Inspired by Shri. Bhaiyyuji Maharaj
Suryoday Ashram, Indore (MP)
BH - 16, Pandit Dindayal Upadhya Nagar, Indore.
 - 0731- 2577786, 2570067 Fax:- 0731- 4032477.
Email:-
(Official) bhaiyyu_maharaj@yahoo.com,suryoday77@gmail.com
Facebook / Blog / Twitter :- bhaiyyumaharaj
website:- bhaiyyumaharaj.com

Read more…

Sunday, 19 March 2017

तुष्टि नहीं ये पुष्टि , संतुष्टि का राजयोग है

तुष्टि नहीं ये पुष्टि , संतुष्टि का राजयोग है
डॉ भय्यू महाराज

पाँच राज्यो के चुनाव के चुनाव परिणाम राष्ट्र में राजनैतिक दृष्टिकोण में बदलाव के शुभ सूचक है। आप सोचते होंगें राज्यो में किस राजनैतिक दल ने कितनी और कैसी विजय प्राप्त की है लेकिन मेरा सोचना है यह लोकतंत्र की राजनैतिक दृष्टि की महाविजय है ,यह राजनेताओं के दृष्टि परिवर्तन की विजय है ,यह लोकशक्ति के दूरदृष्टि की विजय है फिर चाहे परिणाम उप्र के हो , उत्तराखंड के हों ,गोवा के हों , पंजाब के हों या फिर मणिपुर के । यह राष्ट्रतंत्र के लोक की परिवर्तनीय दृष्टि है।
इस दृष्टि में किस तरह का राजयोग बना है यह जानने के लिए परिणामों का नहीं इसके अंतर में निहित उन हालतो को समझना होगा जो सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीति के दूषित कारक बन गए । कोई भी राज राज्य और प्रजा के योग से बनता है जो इसे समझ लेता है उसका राजयोग निर्मित हो जाता है। लेकिन दूषित राजनीति के बढ़ते प्रवाह में राज्य और प्रजा दोनों बह गए और राजनीति में तुष्टिकरण की रीति प्रविष्ट हो गयी । राजनीतिज्ञ राज्य को भूल गए और प्रजा याने इंसान को राजनैतिक अस्त्र की तरह इस्तेमाल करने लगे । ऐसे में इंसान वर्ग , जाति और धर्म में कुटिलता से विभक्त हो गया और राजनीति इसके आसपास केंद्रित हो गई ।

सत्ता प्राप्ति के योग  इंसान की जरुरत और उसके विकास की अवधारणा से नहीं उसके वर्गीकृत होने ,उसके जातिगत होने और उसके धर्माधारित होने की तुष्टि पर निर्मित होने लगे हैं। इस दूषित राजनीति का फैलाव अब भी बहुत ज्यादा है पर मुझे लगता है इस बार तुष्टि पर पुष्टि और संतुष्टि ने बढ़ चढ़कर राजनैतिक हल्ला बोला है । यह परिवर्तन राजनेताओं में भी है और लोगों में भी । राजनीति इस समय सही राह पर है । इस समय लोगों ने विकास की अवधारणा को साथ लिया उन्होंने तुष्टि करने वाले प्रलोभनों को छोड़ा और इस बात की पुष्टि की कि कौन राष्ट्र, समाज और मानव के  लिए लोकहितकारी और राज्यहितकारी है। यह सोच सही दृष्टिकोण है और जिस राजनेता ने इसे समझ लिया  उसने ही लोकतंत्र को संतुष्ट करने के नीतिगत    प्रयास करना शुरू किये जहाँ जिस पर लोगों को संतुष्टि हुई वहाँ वह विजयी हो गया। यह अच्छा संकेत है ।

उम्मीद, राजनेता इस सोच को बनाये रख राष्ट्र राज्य समाज और मानव के लिए विकासोन्मुख कार्य करने की परिवर्तनीय शैली को बनाये रखेंगे और आशा अनुरूप कार्य करने में सक्षम होंगें ।

Read more…

Saturday, 18 March 2017

समय के महत्व को समझें

मित्रों, समय का हम सबके जीवन में बहुत महत्व है पर हम में से अधिकांश समय की महत्ता पर ध्यान नहीं देते और चाहे अनचाहे में हमें समय के नुकसान की भरपाई भरनी पड़ती है। समय के महत्ता के सन्दर्भ में आप सबको एक कथा सुनाता हूँ  - कथा कुछ इस  तरह है - अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन ने एक बार कुछ मेहमानों को दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया। भोजन के बाद उन्हें सैनिक कमांडरों की एक आवश्यक बैठक में भाग लेना था। उनका नौकर जानता था कि जॉर्ज साहब समय की नियमितता को कितनी दृढ़ता से निबाहते हैं। इसलिए ठीक समय पर उन्हें सूचना दी गई कि भोजन लग चुका है, पर अभी तक मेहमान नहीं आए हैं। वह भोजन कक्ष आए और उन्होंने कहा, ‘बाकी प्लेटें उठा लो, हम अकेले ही भोजन करेंगे’। ‘उन्होंने मेहमानों के आने की प्रतीक्षा किए बगैर भोजन करना शुरू कर दिया।’ जब वे आधा भोजन कर चुके तब मेहमान पहुंचे। मेहमानों की प्लेट लगाई गई।

पर वाशिंगटन ने अपना भोजन समाप्त किया और निश्चित समय पर विदा लेकर उस बैठक में शामिल होने चले गए। सैनिक कमांडरों की बैठक में पहुंचने पर पता चला कि अमेरिका के एक भाग में भयंकर विद्रोह हो गया है। उनके समय पर पहुंच जाने के कारण तत्काल आवश्यक आदेश जारी किए गए और सभी पहलुओं पर विचार करते हुए हालात संभालने के उपाय किए गए। इस तरह एक बहुत बड़ी जन-धन की हानि होने से बचना संभव हो सका। इस बात का पता कुछ समय बाद उन मेहमानों को चला तो उन्हें आत्मग्लानि हुई। उन्होंने अनुभव किया कि प्रत्येक काम को निश्चित समय पर करने से भयंकर हानियों को रोका जा सकता है और जीवन को सुचारु ढ़ंग से जिया जा सकता है। यही सोच लेकर वे फिर से राष्ट्रपति के घर गए और उनसे उस दिन हुई भूल के लिए क्षमा मांगी। राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘इसमें क्षमा जैसी कोई बात नहीं है, पर जिन्हें अपने जीवन की व्यवस्था, परिवार, समाज और देश की उन्नति का ध्यान हो, उन्हें समय का कड़ाई से पालन करना चाहिए।''

Read more…

Tuesday, 14 March 2017

सदगुण ही संत की पहचान

संत की पहचान कैसे हो सकती है ? या फिर संत किसे कहा जाता है? अन्धविश्वास से किये गए कार्य को धर्म नकारता है, उसी प्रकार किसी भी व्यक्ति को चमत्कार के आधार पर संत का दर्ज देना भी धर्म को मंजूर नहीं है. वर्तमान में धर्म क्षेत्र से बड़ी मात्र में चमत्कार की अपेक्षा की जाती है. जो चमत्कार करेगा वह संत है, या आज जनसामान्य जनता की धारणा  बन चुकी है. अगर ऐसा है तो एक जादूगर में और संत में क्या फर्क रह जाएंगा ,वास्तव में देखा जाए तो संत किसी चमत्कार तक सीमित नहीं, जिसकी  कोई सीमा नहीं है, जो अध्यात्म को धर्म के माध्यम से समाज में विकसित करते है. जो सदगुणों के परम शिखर पर विराजित होकर विरक्त भाव से जनकल्याण के लिए अलोकिक लीलाए करते है वह संत है. संत गजानन महाराज, साईं बाबा, बाबा ताजुद्दंद्दीन, स्वामी समर्थ, ऐसे संत है, जिन्होंने अध्यात्म के माध्यम से सामाजिक क्रांति का बिगुल बजाया । संत तुकाराम, नानक साहब, कबीर जी, मीराबाई, उन्होंने भक्ति के सहारे धर्म को स्थापित करने का प्रयास किया. वही विवेकानन्द , अरविन्द घोष, स्वामी दयानंद तीर्थ जैसे महापुरुषो ने अध्यात्म कि नींव  पर ज्ञानयोग का प्रकाश फैलाया।  लोकमान्य, भगतसिंग, महात्मा गाँधी जैसे महापुरुषो ने अध्यात्म के विचार पर स्वतंत्रता की नीव रखी । इन सब की संत के रूप में पहचान है. मनुष्य को मनुष्यता प्रदान करना यही एक मात्र मानव कल्याण की भावन हृदय में बसाकर उन्होंने सभी सुखो का त्याग कर एक परम्  लक्ष्य को चुना चुना जो असाधारण था।
संत तुकाराम संतो के शिरोमणि है, सामाजिक क्रांति का बिगुल फुकने वाले, साहित्य को समाज सुधार का एक बेहतरीन औजार बनाने वाले संत तुकाराम सहिष्णुता की परिकाष्ठा  थे|
 संत तुकाराम का अभंग वाड्मय अत्यंत आत्मपरक होने के कारण उसमें उनके पारमार्थिक जीवन का संपूर्ण दर्शन होता है। कौटुंबिक आपत्तियों से त्रस्त एक सामान्य व्यक्ति किस प्रकार आत्मसाक्षात्कारी संत बन सका, इसका स्पष्ट रूप तुकाराम के अभंगों में दिखलाई पड़ता है। उनमें उनके आध्यात्मिक
 चरित्र की साकार रूप में तीन अवस्थाएँ दिखलाई पड़ती हैं। प्रथम साधक अवस्था में तुकाराम मन में किए किसी निश्चयानुसार संसार से निवृत तथा परमार्थ की ओर प्रवृत दिखलाई पड़ते हैं। दूसरी अवस्था में ईश्वर साक्षात्कार के प्रयत्न को असफल होते देखकर तुकाराम अत्यधिक निराशा की स्थिति में जीवन यापन करने लगे। उनके द्वारा अनुभूत इस चरम नैराश्य का जो सविस्तार चित्रण अंभंग वाणी में हुआ हैं उसकी हृदयवेधकतामराठी भाषा में सर्वथा अद्वितीय है। किंकर्तव्यमूढ़ता के अंधकार में तुकाराम जी की आत्मा को तड़पानेवाली घोर तमस्विनी का शीघ्र ही अंत  हुआ और आत्म साक्षात्कार के सूर्य से आलोकित तुकाराम ब्रह्मानंद में विभोर हो गए। उनके आध्यात्मिक जीवनपथ की यह अंतिम एवं चिरवांछित सफलता की अवस्था थी।
इस प्रकार ईश्वरप्राप्ति की साधना पूर्ण होने के उपरांत तुकाराम के मुख से जो उपदेशवाणी प्रकट हुई वह अत्यंत महत्त्वपूर्ण और अर्थपूर्ण है। स्वभावत: स्पष्टवादी होने के कारण इनकी वाणी में जो कठोरता दिखलाई पड़ती है, उसके पीछे इनका प्रमुख उद्देश्य समाज से दुष्टों का  निर्दलन कर धर्म का संरक्षण करना ही था। इन्होने सदैव सत्य का ही अवलंबन किया और किसी की प्रसन्नता और अप्रसन्नता की ओर ध्यान न देते हुए धर्मसंरंक्षण के साथ साथ पाखंडखंडन का कार्य निरंतर चलाया। दाभिक संत, अनुभवशून्य पोथीपंडित, दुराचारी धर्मगुरु इत्यादि समाजकंटकों  की उन्होंने अत्यंत तीव्र आलोचना की है।
तुकाराम  केवल वारकरी संप्रदाय के ही शिखर नहीं वरन दुनियाभर के साहित्य में भी उनकी जगह असाधारण है। उनके 'अभंग' अंग्रेज़ी भाषा में भी अनुवादित हुए हैं। उनका काव्य और साहित्य यानी रत्नों का ख़ज़ाना है। यही वजह है कि आज 400 साल बाद भी वे आम आदमी के मन में सीधे उतरते हैं।  दुनियादारी निभाते हुए एक आम आदमी संत कैसे बन गया, साथ ही किसी भी जाति या धर्म में जन्म लेकर उत्कट भक्ति और सदाचार के बल पर आत्मविकास साधा जा सकता है। यह विश्वास आम इंसान के मन में निर्माण करने वाले थे- संत तुकाराम यानी तुकोबा। अपने विचारों, अपने आचरण और अपनी  वाणी से अर्थपूर्ण तालमेल साधते अपनी ज़िंदगी को परिपूर्ण करने वाले तुकोबा जनसामान्य को हमेशा किस प्रकार जीना चाहिए, इसकी सही प्रेरणा प्रदान करते हैं।
संत  तुकाराम महाराज (१६०८-१६५०),सत्रहवीं शताब्दी के मौलिक व प्रेरणास्पद व्यक्तित्व के धनी एक महान संत कवि थे जो भारत में लंबे समय तक चले भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख स्तंभ थे। आज उनकी जयंती पर शत् -शत् नमन |



Read more…

Monday, 13 March 2017

होली  की मंगलकामनाएँ

होली  की मंगलकामनाएँ

आत्मीय परिजन,

आशा है, आप सभी परम पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से  सकुशल होंगे ।।

आसुरी प्रवृत्तियों पर विजय पाने एवं नये उल्लास के साथ स्नेह -सौजन्य की मधुरता का वातावरण बनाने वाला फाल्गुन- पूर्णिमा पर्व आ पहुँचा है ।। इस पावन अवसर पर आप सबको अनेकानेक बधाइयाँ -- मनोकामनाएँ ।।

पर्व एवं त्यौहार किसी भी राष्ट्र की जीवनी शक्ति के परिचायक होते हैं ।। इसी क्रम में #होली का त्यौहार आनन्दोत्सव एवं हर्षोत्सव के पर्व के रूप में सर्वोपरि है ।।

 

स्वस्थ एवं ईर्ष्या- द्वेष से मुक्त व्यक्तिगत जीवन, समता, एकता एवं भाईचारे से युक्त सामाजिक व्यवस्था और आनन्द एवं उल्लास से भरा- पूरा जन- जीवन सदैव बना रहे, यही इसका मूल प्रयोजन है ।। इस पावन अवसर पर यदि हम संकल्पित होकर अपने सभी द्वेष- दुर्भाव एवं बेर-वैमनस्य को यज्ञाग्नि में होकर सभी सम्पर्क में आये परिजनों के बीच प्रेम- आत्मीयता का विस्तार करते चलें, तो हमारा पूर्ण विश्वास है कि  जीवन का  प्रवाह हमारे लिए सहज हो जायेगा और हम सबके लौकिक एवं पारलौकिक जीवन के उत्तरोत्तर विकास में यह सहायक सिद्ध होगा ।।

इस #होलिका पर्व के आगमन पर हमारी स्नेहपूर्ण शुभकामनाएँ  ।।

Read more…

Total Pageviews