Saturday, 25 March 2017
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पेड़ की छाँव में ग्लैमरस महाराज की धुनी
Friday, 24 March 2017
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लोक के लिए तंत्र का स्वस्थ और स्वच्छ होना ही सुशासन है --डॉ भय्यू महाराज
Wednesday, 22 March 2017
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जल को व्यर्थ ना गवाएँ
> आँकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नही मिल रहा है। भारत में यदि हम जल संकट की बात करें तो हमें पता चलता है कि महाराष्ट्र सहित देश में ऐसे कई राज्य हैं जहाँ आज भी कितने ही लोग साफ़ पानी के अभाव में या फिर रोग जनित गन्दे पानी से दम तोड़ रहे हैं। राजस्थान, जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी इलाकों में पानी मनुष्य की जान से भी ज़्यादा कीमती है। पीने का पानी इन इलाकों में बड़ी कठिनाई से मिलता है। कई-कई किलोमीटर चल कर इन प्रदेशों की महिलाएँ पीने का पानी लाती हैं। यहाँ तक की इनकी ज़िंदगी का एक अहम समय पानी की जद्दोजहद में ही बीत जाता है। पानीजन्य रोगों से विश्व में हर वर्ष 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है, वहीँ दूसरी तरफ पिछले 50 वषों में पानी के लिए 37 भीषण हत्याकांड हुए हैं। यदि जल संकट इसी तरह जारी रहा तो इस शंका पर कोई शक नहीं होना चाहिए कि कहीं अगला विश्व युद्ध पानी के कारण ना हो जाए।
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> मित्रों, जल की इस विकट समस्या को देखते हुए समय रहते हम सबको वर्षा का जल अधिक से अधिक बचाने के लिए प्रयास करने होंगे । बारिश की एक-एक बूँद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। हम तो अपने स्तर देश में, ख़ास कर महाराष्ट्र जैसे सुख पीड़ित राज्य में जल संरक्षण अनेको सार्थक प्रयास कर रहे हैं, पर इस मुहीम में देश के हर कर्तव्यनिष्ठ आदमी का जुड़ना आवश्यक है।
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> आज यानी 22 मार्च को पुरे विश्व में जल संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज का दिन है जीवनदायनी जल को बचाने के संकल्प का दिन। जल के महत्व को जानने का दिन और जल के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन। प्रकृति जीवनदायी संपदा जल हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, हम भी इस चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चक्र को गतिमान रखना हमारी ज़िम्मेदारी है, चक्र के थमने का अर्थ है, हमारे जीवन का थम जाना। प्रकृति के ख़ज़ाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित न होने दें और जल को व्यर्थ न गँवाएँ -- आइये हम सब इस बात का शपथ लें ।
#Savewater #waterconservation
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Sunday, 19 March 2017
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तुष्टि नहीं ये पुष्टि , संतुष्टि का राजयोग है
तुष्टि नहीं ये पुष्टि , संतुष्टि का राजयोग है
डॉ भय्यू महाराज
पाँच राज्यो के चुनाव के चुनाव परिणाम राष्ट्र में राजनैतिक दृष्टिकोण में बदलाव के शुभ सूचक है। आप सोचते होंगें राज्यो में किस राजनैतिक दल ने कितनी और कैसी विजय प्राप्त की है लेकिन मेरा सोचना है यह लोकतंत्र की राजनैतिक दृष्टि की महाविजय है ,यह राजनेताओं के दृष्टि परिवर्तन की विजय है ,यह लोकशक्ति के दूरदृष्टि की विजय है फिर चाहे परिणाम उप्र के हो , उत्तराखंड के हों ,गोवा के हों , पंजाब के हों या फिर मणिपुर के । यह राष्ट्रतंत्र के लोक की परिवर्तनीय दृष्टि है।
इस दृष्टि में किस तरह का राजयोग बना है यह जानने के लिए परिणामों का नहीं इसके अंतर में निहित उन हालतो को समझना होगा जो सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीति के दूषित कारक बन गए । कोई भी राज राज्य और प्रजा के योग से बनता है जो इसे समझ लेता है उसका राजयोग निर्मित हो जाता है। लेकिन दूषित राजनीति के बढ़ते प्रवाह में राज्य और प्रजा दोनों बह गए और राजनीति में तुष्टिकरण की रीति प्रविष्ट हो गयी । राजनीतिज्ञ राज्य को भूल गए और प्रजा याने इंसान को राजनैतिक अस्त्र की तरह इस्तेमाल करने लगे । ऐसे में इंसान वर्ग , जाति और धर्म में कुटिलता से विभक्त हो गया और राजनीति इसके आसपास केंद्रित हो गई ।
सत्ता प्राप्ति के योग इंसान की जरुरत और उसके विकास की अवधारणा से नहीं उसके वर्गीकृत होने ,उसके जातिगत होने और उसके धर्माधारित होने की तुष्टि पर निर्मित होने लगे हैं। इस दूषित राजनीति का फैलाव अब भी बहुत ज्यादा है पर मुझे लगता है इस बार तुष्टि पर पुष्टि और संतुष्टि ने बढ़ चढ़कर राजनैतिक हल्ला बोला है । यह परिवर्तन राजनेताओं में भी है और लोगों में भी । राजनीति इस समय सही राह पर है । इस समय लोगों ने विकास की अवधारणा को साथ लिया उन्होंने तुष्टि करने वाले प्रलोभनों को छोड़ा और इस बात की पुष्टि की कि कौन राष्ट्र, समाज और मानव के लिए लोकहितकारी और राज्यहितकारी है। यह सोच सही दृष्टिकोण है और जिस राजनेता ने इसे समझ लिया उसने ही लोकतंत्र को संतुष्ट करने के नीतिगत प्रयास करना शुरू किये जहाँ जिस पर लोगों को संतुष्टि हुई वहाँ वह विजयी हो गया। यह अच्छा संकेत है ।
उम्मीद, राजनेता इस सोच को बनाये रख राष्ट्र राज्य समाज और मानव के लिए विकासोन्मुख कार्य करने की परिवर्तनीय शैली को बनाये रखेंगे और आशा अनुरूप कार्य करने में सक्षम होंगें ।
Saturday, 18 March 2017
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समय के महत्व को समझें
Tuesday, 14 March 2017
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सदगुण ही संत की पहचान
संत तुकाराम संतो के शिरोमणि है, सामाजिक क्रांति का बिगुल फुकने वाले, साहित्य को समाज सुधार का एक बेहतरीन औजार बनाने वाले संत तुकाराम सहिष्णुता की परिकाष्ठा थे|
संत तुकाराम का अभंग वाड्मय अत्यंत आत्मपरक होने के कारण उसमें उनके पारमार्थिक जीवन का संपूर्ण दर्शन होता है। कौटुंबिक आपत्तियों से त्रस्त एक सामान्य व्यक्ति किस प्रकार आत्मसाक्षात्कारी संत बन सका, इसका स्पष्ट रूप तुकाराम के अभंगों में दिखलाई पड़ता है। उनमें उनके आध्यात्मिक
चरित्र की साकार रूप में तीन अवस्थाएँ दिखलाई पड़ती हैं। प्रथम साधक अवस्था में तुकाराम मन में किए किसी निश्चयानुसार संसार से निवृत तथा परमार्थ की ओर प्रवृत दिखलाई पड़ते हैं। दूसरी अवस्था में ईश्वर साक्षात्कार के प्रयत्न को असफल होते देखकर तुकाराम अत्यधिक निराशा की स्थिति में जीवन यापन करने लगे। उनके द्वारा अनुभूत इस चरम नैराश्य का जो सविस्तार चित्रण अंभंग वाणी में हुआ हैं उसकी हृदयवेधकतामराठी भाषा में सर्वथा अद्वितीय है। किंकर्तव्यमूढ़ता के अंधकार में तुकाराम जी की आत्मा को तड़पानेवाली घोर तमस्विनी का शीघ्र ही अंत हुआ और आत्म साक्षात्कार के सूर्य से आलोकित तुकाराम ब्रह्मानंद में विभोर हो गए। उनके आध्यात्मिक जीवनपथ की यह अंतिम एवं चिरवांछित सफलता की अवस्था थी।
इस प्रकार ईश्वरप्राप्ति की साधना पूर्ण होने के उपरांत तुकाराम के मुख से जो उपदेशवाणी प्रकट हुई वह अत्यंत महत्त्वपूर्ण और अर्थपूर्ण है। स्वभावत: स्पष्टवादी होने के कारण इनकी वाणी में जो कठोरता दिखलाई पड़ती है, उसके पीछे इनका प्रमुख उद्देश्य समाज से दुष्टों का निर्दलन कर धर्म का संरक्षण करना ही था। इन्होने सदैव सत्य का ही अवलंबन किया और किसी की प्रसन्नता और अप्रसन्नता की ओर ध्यान न देते हुए धर्मसंरंक्षण के साथ साथ पाखंडखंडन का कार्य निरंतर चलाया। दाभिक संत, अनुभवशून्य पोथीपंडित, दुराचारी धर्मगुरु इत्यादि समाजकंटकों की उन्होंने अत्यंत तीव्र आलोचना की है।
तुकाराम केवल वारकरी संप्रदाय के ही शिखर नहीं वरन दुनियाभर के साहित्य में भी उनकी जगह असाधारण है। उनके 'अभंग' अंग्रेज़ी भाषा में भी अनुवादित हुए हैं। उनका काव्य और साहित्य यानी रत्नों का ख़ज़ाना है। यही वजह है कि आज 400 साल बाद भी वे आम आदमी के मन में सीधे उतरते हैं। दुनियादारी निभाते हुए एक आम आदमी संत कैसे बन गया, साथ ही किसी भी जाति या धर्म में जन्म लेकर उत्कट भक्ति और सदाचार के बल पर आत्मविकास साधा जा सकता है। यह विश्वास आम इंसान के मन में निर्माण करने वाले थे- संत तुकाराम यानी तुकोबा। अपने विचारों, अपने आचरण और अपनी वाणी से अर्थपूर्ण तालमेल साधते अपनी ज़िंदगी को परिपूर्ण करने वाले तुकोबा जनसामान्य को हमेशा किस प्रकार जीना चाहिए, इसकी सही प्रेरणा प्रदान करते हैं।
संत तुकाराम महाराज (१६०८-१६५०),सत्रहवीं शताब्दी के मौलिक व प्रेरणास्पद व्यक्तित्व के धनी एक महान संत कवि थे जो भारत में लंबे समय तक चले भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख स्तंभ थे। आज उनकी जयंती पर शत् -शत् नमन |
Monday, 13 March 2017
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होली की मंगलकामनाएँ
होली की मंगलकामनाएँ
आत्मीय परिजन,
आशा है, आप सभी परम पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से सकुशल होंगे ।।
आसुरी प्रवृत्तियों पर विजय पाने एवं नये उल्लास के साथ स्नेह -सौजन्य की मधुरता का वातावरण बनाने वाला फाल्गुन- पूर्णिमा पर्व आ पहुँचा है ।। इस पावन अवसर पर आप सबको अनेकानेक बधाइयाँ -- मनोकामनाएँ ।।
पर्व एवं त्यौहार किसी भी राष्ट्र की जीवनी शक्ति के परिचायक होते हैं ।। इसी क्रम में #होली का त्यौहार आनन्दोत्सव एवं हर्षोत्सव के पर्व के रूप में सर्वोपरि है ।।
स्वस्थ एवं ईर्ष्या- द्वेष से मुक्त व्यक्तिगत जीवन, समता, एकता एवं भाईचारे से युक्त सामाजिक व्यवस्था और आनन्द एवं उल्लास से भरा- पूरा जन- जीवन सदैव बना रहे, यही इसका मूल प्रयोजन है ।। इस पावन अवसर पर यदि हम संकल्पित होकर अपने सभी द्वेष- दुर्भाव एवं बेर-वैमनस्य को यज्ञाग्नि में होकर सभी सम्पर्क में आये परिजनों के बीच प्रेम- आत्मीयता का विस्तार करते चलें, तो हमारा पूर्ण विश्वास है कि जीवन का प्रवाह हमारे लिए सहज हो जायेगा और हम सबके लौकिक एवं पारलौकिक जीवन के उत्तरोत्तर विकास में यह सहायक सिद्ध होगा ।।
इस #होलिका पर्व के आगमन पर हमारी स्नेहपूर्ण शुभकामनाएँ ।।
Friday, 10 March 2017
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शिक्षा और सेवा की महानायिका सावित्रीबाई फुले
Thursday, 9 March 2017
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देश में गुर्दा रोग एवं रोगियों की संख्या चिंताजनक
देश भर मे,गुर्दे के जानलेवा रोगों की संख्या चिंताजनक ढंग से बढ रही है। अगर आपको मधुमेह,हाइपरटेंशन या यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन(यूटीआई) है,तो गुर्दे के ख़राब होने का खतरा बढ़ जाता है। आंकड़े बताते हैं कि अधिकतर गुर्दा रोगी अस्पताल तब पहुंचते हैं जब उनका गुर्दा लगभग 50 प्रतिशत खराब हो चुका होता है। भारत मे,लगभग 16 प्रतिशत लोग गुर्दे की खतरनाक बीमारियों से पीड़ित हैं।
चिकित्सकों का मानना है कि लोगों को गुर्दे के रोग से बचने के लिए उसी प्रकार जांच करानी चाहिए जिस प्रकार वे मूत्र,रक्त,पेट के अल्ट्रासाउंड आदि के मामले मे करते हैं ताकि शुरूआती दौर मे ही पता लगाया जा सके। डायबिटीज और हाइपरटेंशन के रोगियों को गुर्दे की नियमित जांच करानी चाहिए क्योंकि ऐसे लोगों मे गुर्दे की जानलेवा बीमारी की संभावना 50 प्रतिशत ज्यादा होती है।
गुर्दे को किसी भी प्रकार के नुकसान का प्रभाव हृदय पर भी पड़ता है क्योंकि बेकार पदार्थों को बाहर निकालने के अलावा,गुर्दा शरीर मे हीमोग्लोबिन तथा रक्तचाप सामान्य बनाए रखने का काम भी करता है। गुर्दे के प्रति सतर्क रहना इसलिए भी जरूरी है कि इससे जुड़े रोगों के इलाज यानी,डायलिसिस अथवा प्रत्यारोपण पर बहुत ज्यादा खर्च आता है जिसे वहन कर सकने मे 80 प्रतिशत रोगी अक्षम होते हैं।
डायलिसिस जीवन भर की बाध्यता बन जाती है और प्रति डायलिसिस लगभग 18 से 20 हजार रूपए प्रतिमाह का खर्च(गैर-सरकारी मामलों मे) आता है। गुर्दा प्रत्यारोपण पर 5 से 8 लाख रूपए तक का खर्च आता है। यह एक बेहतर विकल्प तो है लेकिन गुर्दा दान करने वाला ढूंढना मुश्किल होता है।
आज विश्व गुर्दा दिवस पर आवश्यकता है कि हम सब गुर्दा बिमारियों को बढ़ावा देने कारणों के प्रति सचेत रहें और दूसरों को भी सचेत रहने की सलाह दें
Wednesday, 8 March 2017
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International women’s day.
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