Saturday, 22 April 2017

अपने आसपास के छोटे छोटे काम पैदल या साइकिल से करें...

अपने आसपास के छोटे छोटे काम पैदल या साइकिल से करें...

शाम हो चली है। पृथ्वी दिवस का यह संध्या काल है।पर्यावरण संरक्षण और पोषण का यह संकल्प दिन है। मुझे नहीं लगता विश्व में तेज़ी से हो रहे पर्यावरण पतिवर्तन के प्रति हम सजग और सचेत हुए हैं। कहीं कोई संचेतना सजगता और संकल्पना मुझे नज़र नहीं आती। पूरा विश्व तेज़ी से प्रदूषित होता जा रहा है ,हम में से कोई भी आज जागरूक नहीं है । अमेरिकी सिनेटर गेलार्ड नेल्सन ने भयानक तेल रिसाव से व्यथित होकर 'वर्ल्ड अर्थ  डे ' की जब संकल्पना की थी तो यह एक जागरूकता का अभियान था जो लोगो में यह संकल्प भाव जगाने के लिए था कि हम सब मिलकर पृथ्वी से प्राप्त प्रकृति , प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण का संरक्षण मानव हित और जीव हित के लिए हरसंभव करेंगें।
मुझे दुःख होता है जो कार्य हमारे अपने लिए है ,हमारे जीवन के लिए है उसके प्रति हम में संचेतना और संकल्पना नहीं है। पूरा दिन बीत रहा है कहीं से कुछ यह हलचल नहीं दिख रही कि लोग और खासकर हमारे युवा कहीं पेड़ लगाने में व्यस्त हों , स्वच्छ जल के लिए प्रयास कर रहे हों या पर्यावरण के लिए आज पैदल अथवा साइकिल से चल रहे हों।
स्वच्छता का अभियान तो जारी है  लेकिन  स्वच्छता बनी रहने का स्थायी साधन हम नहीं कर पा रहे हैं। आज ही मैंने देखा एक हराभरा पेड़ मुख्य मार्ग पर ही निर्ममता से काटा जा रहा था । लोगो में यह भाव ही नहीं है कि इस पेड़ से हमें बिना खर्च किया बहुमूल्य आक्सीजन मिल रहा है, और यह बारिश का आधार भी बना रहा है। लेकिन काटने वाला बेरहमी से चोट कर रहा था शायद उसे इस हरेभरे पेड़ से ऊर्जा नहीं ईंधन चाहिए था ताकि शाम का भोजन वह पेड़ की चिता से पका सके। जब हमारी सोच क्षीण और तात्कालिक होगी तो हम कैसे पर्यावरण को संरक्षित कर सकेंगें और पृथ्वी का घटता वैभव अपने लिए बचा सकेंगें ।
विचार कीजिये पृथ्वी दिवस पर हम क्यों नहीं एक पेड़ लगाने का संकल्प लेते हैं। लुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण के प्रति क्यों नहीं सजग होते हैं और पर्यावरण को दूषित होने से रोकने का प्रयास क्यों नहीं करते हैं?
मेरा समस्त लोगों से विशेष तौर पर  युवा वर्ग से जिन्हें इस विश्व के साथ लंबा सफ़र तय करना है उनसे कहना हैै वे संकल्पित होकर इस महत्वपूर्ण दिवस पर अपने दफ्तर तेल रहित वाहन से जाने का दृढ़ प्रयास करें , अपने आसपास के वातावरण को साफ़ और स्वच्छ रखें। इसके साथ ही यह तय करें कि अपने आसपास के काम जैसे सब्ज़ी लाना, दूध लाना, दवाई लाना, किराने का सामान लाना इसके लिए हम हमेशा ही कार , बाइक आदि का प्रयोग नहीं करते हुए पैदल अथवा साइकिल से जाया करें । विश्व पृथ्वी दिवस पर यदि हम यह संकल्प करते हैं तो पर्यावरण में आ रहे बदलाव को रोकने में कामयाब हो सकेंगें।  यह पर्यावरण और हमारी सेहत के लिए भी अच्छा होगा।

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Thursday, 20 April 2017

VIP कल्चर

दरअसल खास होने के कोई मायने नहीं है और सेवाधारी तो खास कैसे हो सकते हैं । सरकार में सभी सेवक ही तो हैं चुने हुए प्रतिनिधि भी और व्यवस्थाओं के स्थायी जन भी ।सभी का कार्य राष्ट्र , समाज और जन का संरक्षण और विकास है। फिर किसी को यह दम्भ क्यों हो कि वह ख़ास है ? जब पर्सन से मन खास नहीं हुआ तो हमने उसमे इम्पोर्टेन्ट लगा दिया और उसे और ख़ास करते हुए वेरी लगाकर आम जनसेवक वीआइपी बन गए। अब इस कल्चर को समाप्त करने की व्यव्स्थात्मक पहल  स्वागतमय और अतुल्य है। 
इस वैचारिक पहल और  समदृष्टि के लिए कार्यपालिका और न्यायपालिका की प्रशंसा की जाना चाहिए।
डॉ भय्यू महाराज

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Friday, 7 April 2017

आज विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विशेष



स्वास्थ्य सेवाओं को मौलिक अधिकार के अंतर्गत लाने की आवश्यकता 

आबादी के हिसाब से दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश भारत में स्वास्थ्य सेवाएं आजादी के इतने सालों बाद भी लचर अवस्था में है और देश की बहुसंख्यक आबादी आर्थिक विपन्नता  कारण समुचित स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं ले पाती।  फलस्वरूप देश के हज़ारों,लाखों गरीब त्वरित एवं उचित चिकित्सीय  सेवाओं के अभाव में असामयिक मृत्यु को  प्राप्त करते हैं।  ऐसा नहीं की हमारे देश में विश्व स्तरीय चिकित्सीय सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं।  विगत वर्षों में निजी क्षेत्रों में देश में स्वास्थ्य सेवाओं का तीव्र गति से विकास हुआ है जिसके फलस्वरूप भारत स्वास्थ्य पर्यटन  के क्षेत्र विश्व पटल पर एक अग्रणी  देश के रूप  स्थापित हो चूका है। पर इन सबके बावजूद भी भारत सेहत पर सबसे कम खर्च करने वाले देशों की सूची में अग्रणी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार  जहाँ  प्रति एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर होने चाहिए, भारत इस अनुपात को हासिल करने में बहुत पीछे है।  उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश भर में चौदह लाख लाख डॉक्टरों की कमी है। विशेषज्ञ डॉक्टरों के मामले में तो स्थिति और भी बदतर है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार सर्जरी, स्त्री रोग और शिशु रोग जैसे चिकित्सा के बुनियादी क्षेत्रों में 50 फीसदी डॉक्टरों की कमी है।
इसके इतर अत्यधिक मँहगी चिकित्सा के कारण हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाएं गरीबों की पहुँच से काफी दूर हो गयी हैं। हमें इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है तथा शिक्षा, भोजन, आवास की तरह स्वास्थ्य सेवाओं को  भी जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं एवं मौलिक अधिकारों के अंतर्गत लाना होगा जिससे कि भारत का कोई भी नागरिक स्वास्थ्य सेवाओं से अछूता ना रहे।

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