Saturday, 25 July 2015

जाति से नहीं कर्म से होती है पहचान

एक दिन राजकुमार अभय कुमार को जंगल में नवजात शिशु मिला। वह राजकुमार उसे अपने घर ले आया और उसका नाम जीवक रख लिया। अभय कुमार ने बच्चे को खूब पढ़ाया-लिखाया। जब जीवक बड़ा हुआ तो उसने अभय कुमार से पूछा, 'मेरे माता-पिता कौन हैं?' अभय कुमार ने उस जीवक से कुछ भी छिपाना ठीक न समझते हुए उसे सारी बात बता दी। लेकिन यह सुनकर जीवक बोला, 'मैं आत्महीनता का भार लेकर कहां जाऊं।'

इस बात पर अभय कुमार ने कहा, तुम तक्षशिला विद्या अध्ययन करने जाओ। जीवक विद्या अध्ययन के लिए चल पड़ा। विद्यालय में प्रवेश करते समय वहां के आचार्य ने जीवक से पूछा, 'बेटा! तुम्हारे माता-पिता का क्या नाम है? तुम्हारा कुल क्या है ? तुम्हारा गोत्र क्या है ?' इस सभी प्रश्नों के उत्तर जीवक ने सही-सही दिए। इस बात से प्रसन्न होकर आचार्य ने जीवक को विद्यालय में प्रवेश दे दिया। जीवक ने वहां कठोर परिश्रम करते हुए आयुर्वेदाचार्य की उपाधि ली। उसके आचार्य चाहते थे कि जीवक मगध जाकर वहां लोगों का उपचार करे। जब यह बात जीवक को पता चली तो उसने आचार्य से कहा, मैं जहां भी जाउंगा तो लोग मेरे माता-पिता और कुल-गोत्र के बारे में पूछेंगे। मैं यहीं रहना चाहता हूं।

किन आचार्य बोले, 'तुम्हारी प्रतिभा और ज्ञान ही तुम्हारा कुल और गोत्र है। तुम जहां भी जाओगे वहां तुम्हें सम्मान मिलेगा। तुम लोगों की सेवा करोगे। इसी से तुम्हारी पहचान बनेगी। क्योंकि कर्म से ही मनुष्य की पहचान होती है, कुल और गोत्र से नहीं।' इस तरह का आत्मविश्वास फिर से जाग गया और वह आर्युवेदाचार्य के रूप में पूरे मगध राज्य में प्रसिद्ध हो गया।

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