Monday, 31 August 2015

जब गुस्सा आए तो विवेक से कार्य लें


जापान के किसी गांव में एक समुराई बूढ़ा योद्धा रहता था। उसके पास कई समुराई युद्धकला सीखने आते थे। एक बार एक विदेशी योद्धा उसे पराजित करने के लिए आया। वह साहसी था। उसके बारे में यहां तक कहा जाता था कि वह जहां भी जाता विजय होकर ही वापस अपने देश लौटता था।
जब विदेशी समुराई ने युद्ध करने की इच्छा जताई तो बूढ़े समुराई के शिष्यों ने मुकाबला न करने की प्रार्थना की। लेकिन बूढ़े समुराई ने उनकी नहीं मानीं और नियत समय पर युद्ध शुरू हुआ।
विदेशी समुराई, उस बूढ़े समुराई को अपमानित करने लगा। उसने, उन्हें गुस्सा दिलाने के सारे प्रयत्न किए लेकिन घंटों बाद भी उन्हें गुस्सा नहीं आया। यह देखकर विदेशी समुराई ने पैरों से धूल उड़ाकर जमीन पर थूक दिया। इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी बूढ़े समुराई ने कुछ न कहा। अब उस विदेशी योद्धा को अपनी पराजय का अहसास हुआ और वह अपनी हार मानते हुए चला गया।
यह देखकर बूढ़े समुराई के शिष्य हैरान थे उन्होंने पूछा, आपका इतना अपमान हुआ फिर भी आप चुप रहे। तब उनके गुरु ने कहा, यदि कोई तुम्हें तोहफा दे और तुम उसे स्वीकार न करो तो वह किसका होगा?
शिष्यों ने कहा, 'तोहफा देने वालों का ही होगा।' गुरु बोले, 'मैनें भी उसकी गालियों को स्वीकार नहीं किया। तो वह उसके पास ही गईं।'
इस कथा का सार यह है कि अमूमन हम व्यवहार में कुछ अप्रिय प्रसंगों का सामना करते हैं। ऐसे में अवाश्यक प्रतिक्रिया से बचकर हम अपनी ऊर्जा और समय को बचा सकते हैं। विवेक के प्रयोग से हम विरोधियों को भी सकारात्मक संदेश दे सकते हैं।

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Saturday, 29 August 2015

प्यारी बहन हेतु एक छोटी से भेंट

बात उन दिनों की है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे और फिरंगी उनके पीछे लगे थे। 
फिरंगियों से बचने के लिए शरण लेने हेतु आजाद एक तूफानी रात को एक घर में जा पहुंचे जहां एक विधवा अपनी बेटी के साथ रहती थी। हट्टे-कट्टे आजाद को डाकू समझ कर पहले तो वृद्धा ने शरण देने से इनकार कर दिया लेकिन जब आजाद ने अपना परिचय दिया तो उसने उन्हें ससम्मान अपने घर में शरण दे दी। बातचीत से आजाद को आभास हुआ कि गरीबी के कारण विधवा की बेटी की शादी में कठिनाई आ रही है। आजाद महिला को कहा, 'मेरे सिर पर पांच हजार रुपए का इनाम है, आप फिरंगियों को मेरी सूचना देकर मेरी गिरफ़्तारी पर पांच हजार रुपए का इनाम पा सकती हैं जिससे आप अपनी बेटी का विवाह सम्पन्न करवा सकती हैं।
यह सुन विधवा रो पड़ी व कहा- “भैया! तुम देश की आजादी हेतु अपनी जान हथेली पर रखे घूमते हो और न जाने कितनी बहू-बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है। मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती।” यह कहते हुए उसने एक रक्षा-सूत्र आजाद के हाथों में बाँध कर देश-सेवा का वचन लिया। सुबह जब विधवा की आँखें खुली तो आजाद जा चुके थे और तकिए के नीचे 5000 रूपये पड़े थे। उसके साथ एक पर्ची पर लिखा था- “अपनी प्यारी बहन हेतु एक छोटी सी भेंट- आजाद।”

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Monday, 24 August 2015

अमृतत्व की किरण


एक राजा था। वह एक दिन अपने वज़ीर से नाराज हो गया और उसे एक बहुत बड़ी मीनार के ऊपर कैद कर दिया। एक प्रकार से यह अत्यन्त कष्टप्रद मृत्युदण्ड ही था। न तो उसे कोई भोजन पहुंचा सकता था और न उस गगनचुम्बी मीनार से कूदकर उसके भागने की कोई संभावना थी।

जिस समय उसे पकड़कर मीनार पर ले जाया रहा था, लोगों ने देखा कि वह जरा भी चिंतित और दुखी नहीं है, उल्टे सदा की भांति आनंदित और प्रसन्न है। उसकी पत्नी ने रोते हुए उसे विदा दी और पूछा, "तुम इतने प्रसन्न क्यों हो?"

उसने कहा, "यदि रेशम का एक बहुत पतला सूत भी मेरे पास पहुंचाया जा सकता तो मैं स्वतंत्र हो जाऊंगा। क्या इतना-सा काम भी तुम नहीं कर सकोगी?"

उसकी पत्नी ने बहुत सोचा, लेकिन इतनी ऊंची मीनार पर रेशम कापतला धागा पहुंचाने का कोई उपाय उसकी समझ में न आया। तब उसने एक फकीर से पूछा। फकीर ने कहा, "भृंग नाम के कीड़े को पकड़ो। उसके पैर में रेशम के धागे को बांध दो और उसकी मूंछों के बालों पर शहद की एक बूंद रखकर उसका मुंह चोटी की ओर करके मीनार पर छोड़ दो।"

उसी रात को ऐसा किया गया। वह कीड़ा सामने मधु की गंध पाकर, उसे पाने के लोभ में, धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगा और आखिर उसने अपनी यात्रा पूरी कर ली। रेशम के धागे का एक छोर कैदी के हाथ में पहुंच गया।

रेशम का यह पतला धागा उसकी मुक्ति और जीवन बन गया। उससे फिर सूत का धागा बांधकर ऊपर पहुंचाया गया, फिर सूत के धागे से डोरी और डोरी से मोटा रस्सा। उस रस्से के सहारे वह कैद से बाहर हो गया। सूर्य तक पहुंचने के लिए प्रकाश की एक किरण बहुत है। वह किरण किसी को पहुंचानी भी नहीं है। वह तो हर एक के पास मौजूद है।

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Monday, 17 August 2015

मुफ्त में मिले वस्तु को हेय दृष्टि से नहीं देखें

 एक समय की बात है। एक शहर में एक धनी आदमी रहता था। उसकी लंबी-चौड़ी खेती-बाड़ी थी और वह कई तरह के व्यापार करता था। 
बड़े विशाल क्षेत्र में उसके बगीचे फैले हुए थे, जहां पर भांति-भांति के फल लगते थे। उसके कई बगीचों में अनार के पेड़ बहुतायत में थे, जो दक्ष मालियों की देख-रेख में दिन दूनी और रात चौगुनी गति से फल-फूल रहे थे। उस व्यक्ति के पास अपार संपदा थी, किंतु उसका हृदय संकुचित न होकर अति विशाल था।
शिशिर ऋतु आते ही वह अनारों को चांदी के थालों में सजाकर अपने द्वार पर रख दिया करता था। उन थालों पर लिखा होता था ‘आप कम से कम एक तो ले ही लें। मैं आपका स्वागत करता हूं।’
लोग इधर-उधर से देखते हुए निकलते, किंतु कोई भी व्यक्ति फल को हाथ तक नहीं लगाता था। तब उस आदमी ने गंभीरतापूर्वक इस पर विचार किया और किसी निष्कर्ष पर पहुंचा। अगली शिशिर ऋतु में उसने अपने घर के द्वार पर उन चांदी के थालों में एक भी अनार नहीं रखा, बल्कि उन थालों पर उसने बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा ‘हमारे पास अन्य सभी स्थानों से कहीं अच्छे अनार मिलेंगे, किंतु उनका मूल्य भी दूसरे के अनारों की अपेक्षा अधिक लगेगा।’और तब उसने पाया कि न केवल पास-पड़ोस के, बल्कि दूरस्थ स्थानों के नागरिक भी उन्हें खरीदने के लिए टूट पड़े।
कथा का संकेत यह है कि भावना से दी जाने वाली अच्छी वस्तुओं को हेय दृष्टि से देखने की मानसिकता गलत है। सभी सस्ती या नि:शुल्क वस्तुएं या सेवाएं निकृष्ट नहीं होतीं। वस्तुत: आवश्यकता वह दृष्टि विकसित करने की है, जो भावना और व्यापार में फर्क कर सके और वस्तुओं की गुणवत्ता का ठीक-ठाक निर्धारण कर सके।

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Thursday, 13 August 2015

Be an organ donor : Save precious lives


According to available statistic, more than 5 lakhs of the Indians are dying every year just because of the failure of their major functioning organs anytime. They still want to live their life  but just because of the natural calamities they are unable to do so. The organ transplantation cannot only save a life but  can also play a major role by increasing the period of living a life more than expectations.


 The donor of the organs plays a role of God in the life of organ transplanted person. One organ donor can save more than 8 lives in his life by donating his well function organs.  Unfortunately on account of lack of awareness and misplaced religious faiths have emerged a major irritants in organ transplantation in our country.

Organ Donation Day  which is being  celebrated in India today (13th of August) aims at motivating normal human beings to donate the organs as well as to understand the value of organ donation in the life of an individual. Let’s promote the importance of organ donation in the society and help save precious lives.

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Wednesday, 12 August 2015

युवा देश की उन्नति में भागीदार बनें

आज अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस पर देश एवं विश्व के सभी युवाओं को उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएँ। किसी भी देश का भविष्य, उसका विकास, सांस्कृतिक एवं चारित्रिक उत्थान वहाँ के युवाओं पर निर्भर होता है। जहाँ तक हमारे देश का प्रश्न है पूरे विश्व में भारत को युवाओं का देश कहा जाता है, जहाँ 35 वर्ष की आयु तक के 65 करोड़ युवा हैं।अर्थात हमारे देश में अथाह श्रमशक्ति उपलब्ध है।आवश्यकता है आज हमारे देश की युवा शक्ति को उचित मार्ग दर्शन देकर उन्हें देश की उन्नति में भागीदार बनाने की, उनमे अच्छे संस्कार, उचित शिक्षा एवं प्रोद्यौगिक विशेषज्ञ बनाने की,  उन्हें बुरी आदतों जैसे  नशा, जुआ, हिंसा, इत्यादि दुर्गुणों से बचाने की।


क्योंकि चरित्र निर्माण ही देश की,समाज की, उन्नति के लिए परम आवश्यक है। दुश्चरित्र युवा न तो अपना भला कर सकता है, न समाज का और न ही अपने देश का। देश के निर्माण के लिए, देश की उन्नति के लिए, देश को विश्व के विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में खड़ा करने के लिए युवा वर्ग को ही मेधावी,   श्रमशील, देश भक्त और समाज सेवा की भावना से ओत प्रोत होना होगा।

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Wednesday, 5 August 2015

माँ का दूध अमृत समान है

नवजात शिशुओं के लिए माँ का दूध अमृत के समान है। माँ का दूध शिशुओं को कुपोषण व अतिसार जैसी बीमारियों से बचाता है। रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति नए जन्मे हुए बच्चे में नहीं होती है। यह शक्ति माँ के दूध से शिशु को हासिल होती है क्योंकि माँ के दूध में `लेक्टोफोर्मिन' नामक तत्त्व होता है, जो बच्चे की आंत में लौह तत्त्व को बांध लेता है और लौह तत्त्व के अभाव में शिशु की आंत में रोगाणु पनप नहीं पाते। माँ का दूध जिन बच्चों को बचपन में पर्याप्त रूप से पीने को नहीं मिलता, उनमें बचपन में शुरू होने वाली मधुमेह की बीमारी अधिक होती है। बुद्धि का विकास उन बच्चों में दूध पीने वाले बच्चों की अपेक्षाकृत कम होता है।
माताओं में स्तनपान के प्रति चेतना जागृत करने,  उन्हें शिशुओं को जन्म से छ: माह तक  मात्र  अपना दूध पिलाने के लिए पुरे देश में अगस्त के प्रथम सप्ताह को स्तनपान सप्ताह के रूप में मनाया जा रहा है  क्योंकि स्तनपान को बढ़ावा देकर ना सिर्फ शिशु मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है बल्कि यह उनके संरक्षण और संवर्धन का भी कार्य करता है। आश्वस्त हूँ कि हमारी मातृशक्ति अपने शिष्यों के दीर्घ एवं स्वस्थ्य  जीवन के लिए स्तनपान को अधिक से अधिक संख्या  अपनाएंगी।

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Monday, 3 August 2015

दुखियों की सेवा ही गुरु की सच्ची सेवा है

एक बार एक अनुभवी हकीम गुरु गोविंद सिंह के दर्शन के लिए आनंदपुर आया। जब वह गुरु गोविंद से मिलकर वापस लौटने लगा तो उन्होंने उसे गुरु मंत्र देते हुए कहा, 'जाओ, तुम दीन-दुखियों की मन लगाकर सेवा करो।' हकीम अपने घर लौटकर समर्पण भाव से हकीमी करने लगा। जब भी कोई बीमार आदमी उसके पास आता, वह सेवा समझकर बड़े प्रेम से उसका उपचार करता। एक दिन सुबह के समय हकीम इबादत में लीन था, तभी गुरु गोविंद सिंह उसके घर आ पहुंचे।

हकीम को इबादत में तल्लीन देख वे उसके पास बैठ गए। हकीम को गुरु गोविंद सिंह के आने का पता ही नहीं चला। तभी किसी ने बाहर से आवाज लगाई-'हकीम जी, मेरे पड़ोसी की तबीयत बहुत खराब है। उसे बचा लीजिए।' आवाज सुनकर जब हकीम ने आंखें खोलीं तो गुरु गोविंद सिंह को पास बैठा पाया। वह असमंजस में पड़ गया कि उस आदमी के साथ जाए या इतनी दूर से आए गुरुजी की सेवा करे। हकीम ने उस आदमी के साथ जाने का निश्चय किया और रोगी का समुचित इलाज करने के बाद वापस लौटा।

लौटने पर उसने देखा कि गुरु गोविंद सिंह अभी तक उसके इंतजार में बैठे थे। गुरुजी को इतना इंतजार कराने के लिए उसे बड़ा अपराधबोध हुआ। वह उनके पैरों में गिर कर क्षमा मांगने लगा। गुरुजी ने हकीम को गले से लगा लिया और बोले-'मैं तुम्हारे कर्तव्य पालन और सच्चे सेवा भाव से बहुत प्रसन्न हूं। मेरे यहां होने के बावजूद तुम मरीज की सेवा करने गए। सच बात यह है कि दुखियों की सेवा ही गुरु को सच्ची सेवा देती है। तुमने अपना कर्तव्य निभाकर मुझे ऐसी ही खुशी प्रदान की है।'

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