Monday, 28 September 2015

How would you like to be remembered ?


About a hundred years ago, a man looked at the morning newspaper and to his surprise and horror, read his name in the obituary column. The news papers had reported the death of the wrong person by mistake. His first response was shock. Am I here or there? When he regained his composure, his second thought was to find out what people had said about him.

The obituary read, "Dynamite King Dies." And also "He was the merchant of death." This man was the inventor of dynamite and when he read the words "merchant of death," he asked himself a question, "Is this how I am going to be remembered?" He got in touch with his feelings and decided that this was not the way he wanted to be remembered. From that day on, he started working toward peace.

His name was Alfred Nobel and he is remembered today by the great Nobel Prize. Just as Alfred Nobel got in touch with his feelings and redefined his values, we should step back and do the same. 

What is your legacy?
How would you like to be remembered?
Will you be spoken well of?
Will you be remembered with love and respect?
Will you be missed?

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Sunday, 27 September 2015

भारतीय समाज का सत्य ?

हम अक्सर दोहरा जीवन जीते हैं- हमारे कथन और कर्म दोनों में स्पष्ट अंतर दिखाई देता है, इसका कारण भी बहुत हद तक समझ में आता है और वो- पश्चिम की तथाकथित आधुनिकता पर किया गया हमारा अन्धविश्वास, या कहें इस मानसकिता के चलते जाने की वाली हमारी अपनी सभ्यता और संस्कृति की तर्कहीन उपेक्षा है
हमारी संस्कृति में धर्म का वास्तविक अर्थ हमारे आज की अलग-अलग सम्प्रदाय एवं जातिगत परिभाषाओं से बहुत अलग है, झूठे कर्मकाण्ड,आडम्बर,कुरीतियाँ,कुप्रथाएं हमारे धर्म का असल मर्म न होकर महज एक भ्रम हैं.
जिस प्रकार जर्मनी उनके अनुशासन के लिए जाना जाता है, जापान उनके अदद परिश्रम और लगन की प्रवृत्ति के चलते प्रसिद्द है, ठीक उसी तरह हमारे सम्पदा हमारा मनोविज्ञान,दर्शन,आध्यात्म और हमारी कृषि क्षमता है. लेकिन हम दिनोदिन इन्हीं से दूर होते जा रहे हैं.
हमारा धर्म कुछ सामाजिक कलंको के चलते यशहीन होता जा रहा है, हमारी कृषि रासायनिक कृषि के तथाकथित आधुनिक उपक्रमों के चलते विनाश की ओर जा रही है, हमारा आध्यात्म एक फैशन के अलावा कुछ रहा ही नहीं, कोई इसका मर्म समझना ही नहीं चाहता. हम पर व्यवहार से अधिक व्यापारिक मानसिकता हावी होती जा रही है- ऐसा नहीं है कि हम इसका नुकसान नहीं झेल रहे हैं बल्कि हम ऐसी हानि कि तरफ जा रहे हैं कि जहाँ प्रायश्चित के लिए भी कोई स्थान नहीं होगा.

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Saturday, 26 September 2015

कौन किसका मालिक



एक दिन एक सूफ़ी  संत 'शेख़ फरीद' अपने शिष्यों के साथ बैठे थे.तभी एक आदमी वहां से एक गाय को ज़बरदस्ती खींचता हुआ निकला .यह देखकर फरीद ने अपने शिष्यों से पूछा ," तुम्हारे विचार में कौन किससे बंधा है ?" उसके शिष्यों ने जवाब दिया कि स्पष्टतया गाय ही उस आदमी से बंधी है . फरीद ने फिर पूछा ,"अच्छा यह बताओ ,कौन किसका मालिक है ?" सब शिष्य इस अजीब से प्रश्न पर हंसने लगे और बोले कि वेह आदमी ही मालिक था और कौन ? गाय तो पशु है ,वह मनुष्य कि स्वामिनी कैसे हो सकती है ?"

" अच्छा , यह बताओ कि अग़र रस्सी को तोड़ दिया जाय तो क्या होगा " फरीद ने पूछा .
शिष्यों ने उत्तर दिया ," तब तो गाय भागने की कोशिश करेगी ."  ............... "और फिर उस आदमी का क्या होगा ?" फरीद ने पूछा 

"स्पष्ट रूप से तब तो यह आदमी गाय का पीछा करेगा , गाय के पीछे -पीछे भागेगा ." तुरंत जवाब आया .
जैसे ही शिष्यों ने यह जवाब दिया , वे समझ गए कि कौन किससे बंधा है ?

आज यदि हम सोचें कि आज के परपेक्ष्य में हम लोग कार ,स्कूटर,बाइक,लैपटॉप ,कम्पूटर ,डीवीडी ,मोबाईल ,एक्स्बौक्स ,पीएस३,टीवी इत्यादि भोग विलास की वस्तुओं के मालिक हैं या यह भोग विलास की वस्तुएं हमारी मालिक हैं ? हम इन वस्तुओं का उपयोग अपने लाभ के लिए ही कर रहे हैं या इन वस्तुओं के कारण हमारा नुकसान हो रहा है ?कहीं ऐसा तो नहीं कि हम इन वस्तुओं के इतने अधिक आदी हो चुके हैं कि हम अपने कर्तव्यों का निर्वाह ठीक से नहीं कर पा रहे ? 
हमें यह समझना होगा कि हमें इन भोग विलास के साधनों का उपयोग अपने गुलाम के रूप में करना है , और किसी भी कीमत पर इनका गुलाम नहीं बनना.

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Monday, 21 September 2015

About Hope and Strength


The war was going. Men were fighting. Women were carrying food to soldiers day and night, nursing the injured. In the village only old people and children remained.
One old man took an old plough and started sharpening it, mending it while singing something. His wife said to him with annoyance:
– You have a stone heart! Your sons joined a deadly battle, the village is in mourning. Your comrades are thinking about the fate of the village, and you, knowing this, are mending the plough and singing a song! If someone would ask, whom are you trying for, what would you say? Tomorrow the enemy will come here, they will kill you and us too, and they will take your plough.
– Woman, what are you talking? They will kill us, but not the plough. I’m building – not destroying. The world is resting on this plough: if we survive, we will need the plough, and if we die, maybe the love for labour will awaken in those who will take it. Maybe even I will be blessed. We don’t know, what is what in this world.

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Monday, 14 September 2015

हम समय समय पर अपना आत्म निरिक्षण करें 

एक छोटा सा लड़का जो कि लगभग ११-१२ वर्ष का रहा होगा ,एक दवाई कि दुकान में गया और उसके मालिक से एक फ़ोन मिलाने कि आज्ञा ली.फिर उसने एक बड़ा सा बक्सा खिसकाया और उस पर चढ़ गया जिससे कि वह ऊपर रखे हुए फ़ोन तक पहुँच सके।  दुकान का मालिक चुपचाप उस लड़के कि बातचीत सुनने लगा। .बालक ने एक महिला को फ़ोन मिलाया और बोला -  " क्या आप मुझे अपना बगीचा और लॉन काटने का काम दे सकती हैं ?"
इस पर वह महिला फ़ोन के दूसरी ओर से बोली ," मेरे लॉन कि  कटाई का काम पहले से कोई कर रहा है . बालक , " किन्तु ,मैं आपके लॉन कि कटाई का काम उससे आधे दाम पर करने के लिए तैयार हूँ ."
महिला , " जो लड़का मेरे लॉन की कटाई का काम कर रहा है , मैं उसके काम से पूरी तरह संतुष्ट हूँ . "
 इस पर वह  बालक ओर अधिक निश्चय पूर्वक बोला , " मैं आप के लॉन के  चारों  ओर का रास्ता भी साफ़ कर दिया करूँगा  और और आपके  घर के बाहर    के शीशे  भी साफ़ कर दिया करूंगा ." महिला बोली ," नहीं , मुझे किसी की  आवश्यकता नहीं है ,धन्यवाद ," यह सुन कर वह  बालक मुस्कुराया,  उसने फोन रख दिया ."
दुकान का मालिक जो कि उस लड़के कि बातचीत  सुन रहा था , उसकी ओर आया ओर बोला ,"बेटा ,मुझे तुम्हारा आत्मविश्वास और सकारात्मक दृष्टिकोण देख कर बहुत  अच्चा लगा।  मुझे तुम्हें नौकरी पर रख कर वास्तव में ख़ुशी होगी। क्या तुम मेरे लिए काम करना पसंद करोगे ? इस पर वह  बालक बोला, "धन्यवाद, पर मैं कोई नौकरी नहीं करना चाहता ." 
दुकान का मालिक बोला," लेकिन , बेटा तुम तो अभी-अभी फोन पर नौकरी के लिए गिडगिडा रहे थे ." इस पर बालक बोला," नहीं महोदय , मैं तो केवल  अपनी कार्यकुशलता का परीक्षण  कर रहा था,. दरअसल , जिस महिला को मैंने फोन किया था मैं उसी के लिए कार्य करता हूँ  ."
वह आगे बोला," और उससे बात करने के पश्चात  यह जान कर मुझे बहुत अधिक आत्मसंतोष मिल रहा है कि वह महिला मेरे कार्य से पूर्ण रूप से संतुष्ट है  ."
उस  छोटे से बालक की कहानी से हम सभी को समय समय पर अपना आत्म निरीक्षण करने की प्रेरणा लेनी चाहिए।

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Saturday, 12 September 2015

Face Difficulties Positively


This parable is told of a farmer who owned an old mule. The mule fell into the farmer’s well. The farmer heard the mule praying or whatever mules do when they fall into wells.
 After carefully assessing the situation, the farmer sympathized with the mule, but decided that neither the mule nor the well was worth the trouble of saving. Instead, he called his neighbors together, told them what had happened, and enlisted them to help haul dirt to bury the old mule in the well and put him out of his misery.
Initially the old mule was hysterical! But as the farmer and his neighbors continued shoveling and the dirt hit his back, a thought struck him. It suddenly dawned on him that every time a shovel load of dirt landed on his back, HE WOULD SHAKE IT OFF AND STEP UP!
This he did, blow after blow. “Shake it off and step up… shake it off and step up… shake it off and step up!” He repeated to encourage himself. No matter how painful the blows, or how distressing the situation seemed, the old mule fought panic and just kept right on SHAKING IT OFF AND STEPPING UP!
It wasn’t long before the old mule, battered and exhausted, stepped triumphantly over the wall of that well! What seemed like it would bury him actually helped him … all because of the manner in which he handled his adversity.
THAT’S LIFE! If we face our problems and respond to them positively, and refuse to give in to panic, bitterness, or self-pity.

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Monday, 7 September 2015

सफलता प्राप्त करने के लिए दृढ संकल्प, लगन, कड़ी मेहनत आवश्यक है

बहुत दिनों की बात है हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी गाँव में एक बूढा रहता था, जो महामूर्ख के नाम से चर्चित था। उसके घर के सामने दो बड़े पहाड़ थे, जिससे आने जाने में असुविधा होती थी। पहाड़ के दूसरी ओर पहुँचने में कई दिन लग जाते।

एक दिन उसने अपने दोनो बेटों को बुलाया और उनके हाथों में फावड़ा थमाकर दृढ़ता से दोनो पहाड़ों को काट कर उनके बीच रास्ता बनाना शुरू कर दिया। यह देखकर कसबे के लोगों नं मजाक उड़ाना शुरू कर दिया- तुम सचमुच महामूर्ख हो। इतने बड़े बड़े पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाना तुम बाप बेटों के बस से बाहर है।

बूढ़े ने उत्तर दिया- मेरी मृत्यु के बाद मेरे बेटे यह कार्य जारी रखेंगे। बेटों के बाद पोते और पोतों के बाद परपोते। इस तरह पीढ़ी दर पीढी पहाड़ काटने का सिलसिला जारी रहेगा। हालाँकि पहाड़ बड़े हैं लेकिन हमारे हौसलों और मनोबल से अधिक बड़े तो नहीं हो सकते। हम निरन्तर खोदते हुए एक न एक दिन रास्ता बना ही लेंगे। आने वाली पीढ़ियाँ आराम से उस रास्ते से पहाड़ के उस पार जा सकेंगी।

उस बूढ़े की बात सुनकर लोग दंग रह गए कि जिसे वे महामूर्ख समझते थे उसने सफलता के मूलमन्त्र का रहस्य समझा दिया। गाँव वाले भी उत्साहित होकर पहाड़ काट कर रास्ता बनाने के उसके काम में जुट गए। कहना न होगा कि कुछ महीनों के परिश्रम के बाद वहाँ एक सुंदर सड़क बन गई और दूसरे शहर तक जाने का मार्ग सुगम हो गया। इसके लिये बूढ़े को भी दूसरी पीढ़ी प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी।

 इस कथा का सार यह है कि दृढ़ संकल्प, लगन, और कड़ी मेहनत के साथ-साथ सकारात्मक सोच रहे तो सफलता जल्दी ही प्राप्त हो जाती है।

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