मित्रों, क्रोध, गुस्सा, आवेश, प्रज्जवलन जैसे शब्दों से आप क्या अनुमान लगाते हैं। ये बहुत साफ है कि ऐसे शब्द हमारे मन की उस अवस्था को बताते हैं, जहां हम आपा खो चुके होते हैं। हमारी बुद्धि-विवेक का ह्रास हो जाता है और हम मन के पूरी तरह नियंत्रण में आ जाते हैं। ऐसे में अक्सर आपा खो बैठने की हालत हो जाती है और अंतिम रूप से पश्चाताप के अलावे कुछ भी हाथ नहीं लगता है।निश्चित रूप से यह एक दयनीय अवस्था होती है, जहां हम दूसरे को दुःख तो पहुंचाते ही हैं लेकिन इससे बुरी बात ये है कि इसमें अंतिम रूप से हमारा ही नुकसान होता है। व्यवहारिक जीवन में इससे बड़ा दुःख और कुछ नहीं हो सकता कि क्रोध की अवस्था में हम दूसरे को दुःख पहुंचाना चाहते हैं किंतु इसमें हमारा बहुत अधिक बिगड़ जाता है।
तो चलिए आज मैं आप सबको क्रोध से जुडी एक कथा सुनाता हूँ कि किस तरह क्रोध की अग्नि हमारे बुद्धि, विवेक को भष्म करता है। कथा कुछ इस तरह है ---एक राजा था। उसे पक्षी पालने का बड़ा शौक था। उसने एक सुंदर चकोर पक्षी को पाला। एक बार की बात है, राजा वन में शिकार के लिए गया। वहां राजा रास्ता भटक गया। उसे बहुत प्यास लगी। राजा को दूर चट्टान से पानी रिसता दिखाई दिया।
राजा ने उस रिसते हुए पानी के नीचे एक प्याला रख दिया। चकोर पक्षी भी राजा के साथ था। जब प्याला पानी से भरने वाला था, चकोर पक्षी ने अपने पंखों से उस प्याले को गिरा दिया। राजा को गुस्सा आया लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
राजा ने फिर से प्याले को चट्टान से रिसते पानी के नीचे रखा। इस बार भी जब पहले बार की तरह प्याला भरने वाला था। चकोर पक्षी ने पंख से प्याला गिरा दिया। राजा ने उस सुंदर चकोर पक्षी को पकड़कर गुस्से में उसकी गरदन मरोड़ दी। चकोर स्वर्ग चला गया। राजा प्यासा था। राजा ने इस बार थोड़ी ऊंचाई पर प्याला पानी भरने के लिए रखने वाला ही था कि...राजा ने देखा एक मरा हुआ सांप चट्टान पर पड़ा है। जहरीले सांप के मुंह से रिसता पानी नीचे आ रहा था जिससे वह अपने प्याला भर रहा था। सुंदर चकोर पक्षी को यह बात मालूम थी इसलिए उसने राजा को वह पानी नहीं पीने दिया। राजा को अपने किए पर बहुत पछताबा हुआ।
मित्रों, आप सबको इस कथा को सुनाने का तात्पर्य यह है कि किस तरह क्रोध हमारे बुद्धि एवं विवेक को नष्ट कर देता है। क्रोध यमराज की तरह होता है। उसका फल मनुष्य को भुगतना पड़ता है। अतः क्रोध पर नियंत्रण रखते हुए मनुष्य को सही स्थिति का आकलन करना चाहिए। ताकि बाद मे पछताना न पड़े।
भगवान बुद्ध ने कहा है कि जब मैंने जाना तो मैंने पाया है कि अदभुत हैं वे लोग, जो दूसरों की भूल पर क्रोध करते हैं! क्यों? तो बुद्ध ने कहा कि अदभुत इसलिए कि भूल दूसरा करता है, दंड वह अपने को देता है। गाली मैं आपको दूं और क्रोधित आप होंगे। दंड कौन भोग रहा है? दंड आप भोग रहे हैं, गाली मैंने दी! क्रोध में जलते हम हैं, राख हम होते हैं, लेकिन ध्यान वहां नहीं होता! इसलिए धीरे-धीरे पूरी जिंदगी राख हो जाती है। और हमको भ्रम यह होता है कि हम जान गये हैं! पर सच यह है कि हम जानते नहीं।
तो चलिए आज मैं आप सबको क्रोध से जुडी एक कथा सुनाता हूँ कि किस तरह क्रोध की अग्नि हमारे बुद्धि, विवेक को भष्म करता है। कथा कुछ इस तरह है ---एक राजा था। उसे पक्षी पालने का बड़ा शौक था। उसने एक सुंदर चकोर पक्षी को पाला। एक बार की बात है, राजा वन में शिकार के लिए गया। वहां राजा रास्ता भटक गया। उसे बहुत प्यास लगी। राजा को दूर चट्टान से पानी रिसता दिखाई दिया।
राजा ने उस रिसते हुए पानी के नीचे एक प्याला रख दिया। चकोर पक्षी भी राजा के साथ था। जब प्याला पानी से भरने वाला था, चकोर पक्षी ने अपने पंखों से उस प्याले को गिरा दिया। राजा को गुस्सा आया लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
राजा ने फिर से प्याले को चट्टान से रिसते पानी के नीचे रखा। इस बार भी जब पहले बार की तरह प्याला भरने वाला था। चकोर पक्षी ने पंख से प्याला गिरा दिया। राजा ने उस सुंदर चकोर पक्षी को पकड़कर गुस्से में उसकी गरदन मरोड़ दी। चकोर स्वर्ग चला गया। राजा प्यासा था। राजा ने इस बार थोड़ी ऊंचाई पर प्याला पानी भरने के लिए रखने वाला ही था कि...राजा ने देखा एक मरा हुआ सांप चट्टान पर पड़ा है। जहरीले सांप के मुंह से रिसता पानी नीचे आ रहा था जिससे वह अपने प्याला भर रहा था। सुंदर चकोर पक्षी को यह बात मालूम थी इसलिए उसने राजा को वह पानी नहीं पीने दिया। राजा को अपने किए पर बहुत पछताबा हुआ।
मित्रों, आप सबको इस कथा को सुनाने का तात्पर्य यह है कि किस तरह क्रोध हमारे बुद्धि एवं विवेक को नष्ट कर देता है। क्रोध यमराज की तरह होता है। उसका फल मनुष्य को भुगतना पड़ता है। अतः क्रोध पर नियंत्रण रखते हुए मनुष्य को सही स्थिति का आकलन करना चाहिए। ताकि बाद मे पछताना न पड़े।
भगवान बुद्ध ने कहा है कि जब मैंने जाना तो मैंने पाया है कि अदभुत हैं वे लोग, जो दूसरों की भूल पर क्रोध करते हैं! क्यों? तो बुद्ध ने कहा कि अदभुत इसलिए कि भूल दूसरा करता है, दंड वह अपने को देता है। गाली मैं आपको दूं और क्रोधित आप होंगे। दंड कौन भोग रहा है? दंड आप भोग रहे हैं, गाली मैंने दी! क्रोध में जलते हम हैं, राख हम होते हैं, लेकिन ध्यान वहां नहीं होता! इसलिए धीरे-धीरे पूरी जिंदगी राख हो जाती है। और हमको भ्रम यह होता है कि हम जान गये हैं! पर सच यह है कि हम जानते नहीं।
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