मित्रों परेशानियाँ, दुःख एवं दर्द हर किसी के जीवन में आती है, पर महत्वपूर्ण यह है कि हम इन परेशानियों, दुःख के क्षणों का किस मनःस्थिति से सामना करते हैं। जहाँ हमारी नकारात्मक प्रवृत्ति हमारे दुखों, तकलीफों को बढ़ाती है, वहीँ दूसरी तरफ हमारा सकारात्मक सोच ना सिर्फ हमारे परेशानियों को झेलने का सम्बल प्रदान करता है बल्कि हमें इन पर विजय पाने में हमारी सहायता करता है। हमारी आज की कथा इन बातों पर और अधिक प्रकाश डालेगी।
एक बार एक परेशान और निराश व्यक्ति अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला – “गुरूजी मैं जिंदगी से बहुत परेशान हूँ| मेरी जिंदगी में परेशानियों और तनाव के सिवाय कुछ भी नहीं है| कृपया मुझे सही राह दिखाइये|” गुरु ने एक गिलास में पानी भरा और उसमें मुट्ठी भर नमक डाल दिया| फिर गुरु ने उस व्यक्ति से पानी पीने को कहा|उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया|गुरु :- इस पानी का स्वाद कैसा है ??“बहुत ही ख़राब है” उस ब्यक्ति ने कहा|फिर गुरु उस व्यक्ति को पास के तालाब के पास ले गए| गुरु ने उस तालाब में भी मुठ्ठी भर नमक डाल दिया फिर उस व्यक्ति से कहा – इस तालाब का पानी पीकर बताओ की कैसा है ?उस व्यक्ति ने तालाब का पानी पिया और बोला – गुरूजी यह तो बहुत ही मीठा है|गुरु ने कहा – “बेटा जीवन के दुःख भी इस मुठ्ठी भर नमक के समान ही है| जीवन में दुखों की मात्रा वही रहती है – न ज्यादा न कम| लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि हम दुखों का कितना स्वाद लेते हैं | यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी सोच एंव ज्ञान को गिलास की तरह सीमित रखकर रोज खारा पानी पीते है या फिर तालाब की तरह बनकर मीठा पानी पीते हैं |”
मित्रों इस कथा का सारांश यह है कि -- एक मुट्ठी भर नमक, एक गिलास में भरे मीठे पानी को खारा बना सकता है लेकिन वही मुट्ठी भर नमक अगर तालाब या झील में डाल दिया जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा| इसी तरह अगर हमारे भीतर सकारात्मक उर्जा का स्तर ऊँचा है तो छोटी-छोटी परेशानियों एंव समस्याओं से हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा|”
एक बार एक परेशान और निराश व्यक्ति अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला – “गुरूजी मैं जिंदगी से बहुत परेशान हूँ| मेरी जिंदगी में परेशानियों और तनाव के सिवाय कुछ भी नहीं है| कृपया मुझे सही राह दिखाइये|” गुरु ने एक गिलास में पानी भरा और उसमें मुट्ठी भर नमक डाल दिया| फिर गुरु ने उस व्यक्ति से पानी पीने को कहा|उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया|गुरु :- इस पानी का स्वाद कैसा है ??“बहुत ही ख़राब है” उस ब्यक्ति ने कहा|फिर गुरु उस व्यक्ति को पास के तालाब के पास ले गए| गुरु ने उस तालाब में भी मुठ्ठी भर नमक डाल दिया फिर उस व्यक्ति से कहा – इस तालाब का पानी पीकर बताओ की कैसा है ?उस व्यक्ति ने तालाब का पानी पिया और बोला – गुरूजी यह तो बहुत ही मीठा है|गुरु ने कहा – “बेटा जीवन के दुःख भी इस मुठ्ठी भर नमक के समान ही है| जीवन में दुखों की मात्रा वही रहती है – न ज्यादा न कम| लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि हम दुखों का कितना स्वाद लेते हैं | यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी सोच एंव ज्ञान को गिलास की तरह सीमित रखकर रोज खारा पानी पीते है या फिर तालाब की तरह बनकर मीठा पानी पीते हैं |”
मित्रों इस कथा का सारांश यह है कि -- एक मुट्ठी भर नमक, एक गिलास में भरे मीठे पानी को खारा बना सकता है लेकिन वही मुट्ठी भर नमक अगर तालाब या झील में डाल दिया जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा| इसी तरह अगर हमारे भीतर सकारात्मक उर्जा का स्तर ऊँचा है तो छोटी-छोटी परेशानियों एंव समस्याओं से हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा|”
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