Tuesday, 26 April 2016

भगवान किस रूप में आ जाये

एक समय की बात है किसी गाँव में एक साधु रहता था, वह भगवान का बहुत बड़ा भक्त था और निरंतर एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या किया करता था | उसका भागवान पर अटूट विश्वास था और गाँव वाले भी उसकी इज्ज़त करते थे| एक बार गाँव में बहुत भीषण बाढ़ आ गई | चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा, सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे | जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप रहे हैं तो उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी| पर साधु ने कहा- ” तुम लोग अपनी जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!” धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ता गया , और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा , इतने में वहां से एक नाव गुजरी| मल्लाह ने कहा- ” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा |” “नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है , मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा !! “, साधु ने उत्तर दिया.
नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया. कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी , साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर ईश्वर को याद करने लगा | तभी अचानक उन्हें गड़गडाहत की आवाज़ सुनाई दी, एक हेलिकोप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल ने एक रस्सी लटकाई और साधु को उसे जोर से पकड़ने का आग्रह किया|
पर साधु फिर बोला-” मैं इसे नहीं पकडूँगा, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा |” उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया | कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गयी |
मरने के बाद साधु महाराज स्वर्ग पहुचे और भगवान से बोले -. ” हे प्रभु मैंने तुम्हारी पूरी लगन के साथ आराधना की… तपस्या की पर जब मै पानी में डूब कर मर रहा था तब तुम मुझे बचाने नहीं आये, ऐसा क्यों प्रभु ?
भगवान बोले , ” हे साधु महात्मा मै तुम्हारी रक्षा करने एक नहीं बल्कि तीन बार आया , पहला, ग्रामीणों के रूप में , दूसरा नाव वाले के रूप में , और तीसरा ,हेलीकाप्टर बचाव दल के रूप में. किन्तु तुम मेरे इन अवसरों को पहचान नहीं पाए |”
मित्रों, इस जीवन में ईश्वर हमें कई अवसर देता है , इन अवसरों की प्रकृति कुछ ऐसी होती है कि वे किसी की प्रतीक्षा नहीं करते है , वे एक दौड़ते हुआ घोड़े के सामान होते हैं जो हमारे सामने से तेजी से गुजरते हैं , यदि हम उन्हें पहचान कर उनका लाभ उठा लेते है तो वे हमें हमारी मंजिल तक पंहुचा देते है, अन्यथा हमें बाद में पछताना ही पड़ता है|

Read more…

Saturday, 23 April 2016

जीवन का लक्ष्य और दिशा


मित्रों, आज मैँ आप सबको जीवन में लक्ष्य के महत्ता के बारे में बताता हूँ कि किस तरह जीवन में सफल होने के लिए लक्ष्य का निर्धारित होना आवश्यक है। कहानी कुछ इस तरह है -  रेगिस्तानी मैदान से एक साथ कई ऊंट अपने मालिक के साथ जा रहे थे। अंधेरा होता देख मालिक ने एक सराय में रुकने का आदेश दे दिया। निन्यानवे ऊंटों को जमीन में खूंटियां गाड़कर उन्हें रस्सियों से बांध दिया मगर एक ऊंट के लिए रस्सी कम थी ,काफ़ी खोजबीन की , पर व्यवस्था हो नहीं पाई। तब सराय के मालिक ने सलाह दी कि तुम खूंटी गाड़ने जैसी चोट करो और ऊंट को रस्सी से बांधने का अहसास करवाओ।
यह बात सुनकर मालिक हैरानी में पड़ गया , पर दूसरा कोई रास्ता नहीं था , इसलिए उसने वैसा ही किया।
झूठी खूंटी गाड़ी गई , चोटें की गईं। ऊंट ने चोटें सुनीं और समझ लिया कि बंध चुका है। वह बैठा और सो गया। 
सुबह निन्यानबे ऊंटों की खूटियां उखाड़ीं और रस्सियां खोलीं , सभी ऊंट उठकर चल पड़े , पर एक ऊंट बैठा रहा। मालिक को आश्चर्य हुआ - अरे , यह तो बंधा भी नहीं है , फिर भी उठ नहीं रहा है।
सराय के मालिक ने समझाया - तुम्हारे लिए वहां खूंटी का बंधन नहीं है मगर ऊंट के लिए है। जैसे रात में व्यवस्था की , वैसे ही अभी खूंटी उखाड़ने और बंधी रस्सी खोलने का अहसास करवाओ। 
मालिक ने खूंटी उखाड़ दी जो थी ही नहीं , अभिनय किया और रस्सी खोल दी जिसका कोई अस्तित्व नहीं था। इसके बाद ऊंट उठकर चल पड़ा।
मित्रों, ऐसा हम मनुष्यों के साथ भी होता है हम भी ऐसी ही खूंटियों से और रस्सियों से बंधे होते हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं होता। मनुष्य बंधता है अपने ही गलत दृष्टिकोण से , गलत सोच से , विपरीत मान्यताओं की पकड़ से। ऐसा व्यक्ति सच को झूठ और झूठ को सच मानता है। वह दोहरा जीवन जीता है। उसके आदर्श और आचरण में लंबी दूरी होती है। इसलिए जरूरी है कि मनुष्य का मन जब भी जागे , लक्ष्य का निर्धारण सबसे पहले करे।
बिना उद्देश्य मीलों तक चलना सिर्फ थकान , भटकाव और निराशा देगा , मंजिल नही।
जिंदगी को सफल बनाने का एक ही तरीका है अपना लक्ष्य निर्धारित  करें और उसी दिशा मे काम करें |

Read more…

Tuesday, 19 April 2016

मुश्किलों पर विजय

मित्रों, हम सभी को समय समय पर अवांछित मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कई लोग इन मुश्किलों के बोझ तले  इतने दब जाते हैं कि वो नैराश्य की अवस्था में पहुँच कर हतोत्साहित हो जाते हैं, और कई बार तो इन मुश्किलों एवं अपनी मानसिक यातनाओं से  मुक्ति के लिए तो आत्महत्या तक कर बैठते हैं। यह अत्यन्त दुखद स्थिति है।  हम मुश्किलों से जितना दूर भागेंगे, मुश्किलें उतना ही अधिक हमारा पिछा करेंगी। आवश्यकता है कि हम सब अपने जीवन में आए मुश्किलों का डट कर सामना करें, इसे अपने मनःस्थिति पर हावी ना होने दें और तब मुश्किलें स्वतः ही परास्त हो जाएंगी।  इसी सन्दर्भ में, मैँ आप सबको एक कथा सुनाता हूँ।  कथा कुछ इस तरह है ---  दो व्यक्ति राम और श्याम शहर से कमाकर पैसे लेकर घर लौट रहे थे। अपनी मेहनत से राम ने खूब पैसे कमाए थे, जबकि श्याम कम ही कमा पाया था। श्याम के मन में खोट आ गया। वह सोचने लगा कि किसी तरह राम  का पैसा हड़पने को मिल जाए, तो खूब ऐश से जिंदगी गुजरेगी। रास्ते में एक उथला कुआं पड़ा, तो श्याम ने राम को उसमें धक्का दे दिया। राम गढ्डे से बाहर आने का प्रयत्न करने लगा। 
श्याम ने सोचा कि यह ऊपर आ गया, तो मुश्किल हो जाएगी। इसलिए श्याम साथ लिए फावड़े से मिट्टी खोद-खोदकर कुएं में डालने लगा। लेकिन जब राम के ऊपर मिट्टी पड़ती, तो वह अपने पैरों से मिट्टी को नीचे दबा देता और उसके ऊपर चढ़ जाता। मिट्टी डालने के उपक्रम में श्याम इतना थक गया था कि उसके पसीने छूटने लगे। लेकिन तब तक वह कुएं में काफी मिट्टी डाल चुका था और राम उन मिट्टियों पर चढ़ कर  ऊपर आ गया।
मित्रों, इस कथा का सार यह है कि जीवन में कई ऐसे क्षण आते हैं, जब बहुत सारी मुश्किलें एक साथ हमारे जीवन में मिट्टी की तरह आ पड़ती हैं। जो व्यक्ति इन मुश्किलों पर विजय प्राप्त कर आगे बढ़ता जाता है उसी की जीत होती है और वही  जीवन में हर बुलंदियों को छूता है

Read more…

Saturday, 16 April 2016

अपने विश्वास को कभी कमजोर मत होने दें

मित्रों, विश्वास वो ताकत है जो आपको सम्बल देता है बड़ी से बड़ी कठिनाइयों को झेलने का, तूफानों। विपदाओं से जूझने का।  आज जो में आप सबको कहानी सुना रहा हूँ वह एक ऐसे आदमी की है जो एक लम्बी हवाई यात्रा करके आ रहा था। हवाई यात्रा ठीक ठाक चल रही थी तभी एक उदघोष हुआ कि कृपया अपनी सीट बेल्ट बांध लें क्योंकि कुछ समस्या आ सकती है। तभी एक और उदघोष हुआ कि , " मौसम खराब होने के कारण कुछ गड़बड़ी होने की 
सम्भावना है अतः हम आपको पेय पदार्थ नहीं दे पाएंगे। कृपया अपनी सीट बेल्ट्स कस कर बांध लें। "
जब उस व्यक्ति ने अपने चारों ओर अन्य यात्रियों की ओर देखा तो पाया कि वे किसी अनिष्ट की आशंका से थोड़े भयभीत लग रहे थे। कुछ समय के पश्चात फिर एक उदघोष हुआ, " क्षमा करें, आगे मौसम ख़राब है अतः हम आपको भोजन की सेवा नहीं दे सकेंगे। कृप्या अपनी सीट बेल्ट बांध लें ।"
और फिर एक तूफ़ान सा आ गया। बिजली कड़कने और गरजने की आवाजें हवाई जहाज़ के अन्दर तक सुनायी देने लगीं। बाहर का ख़राब मौसम और तूफ़ान भी भीतर से दिखाई दे रहा था।
हवाई जहाज़ एक छोटे खिलौने की तरह उछलने लगा। कभी तो जहाज़ हवा के साथ सीधा चलता था और कभी एकदम गिरने लगता था जैसे कि ध्वस्त हो जायेगा।                      
वह व्यक्ति बोला की अब वह भी अत्यंत भयभीत हो रहा था और सोंच रहा था कि यह जहाज़ इस तूफ़ान से सुरक्षित निकल पायेगा अथवा नहीं। फिर जब उसने अपने चारों ओर अन्य यात्रियों की ओर देखा तो उसने पाया कि सब ओर भय और असुरक्षा का सा माहौल बन चुका था। तभी उसने देखा कि एक सीट पर एक छोटी सी लड़की सीट पर पैर ऊपर करके आराम से बैठी एक पुस्तक पढ़ने में डूबी हुयी थी। उसके चेहरे पर चिंता की कोई शिकन तक नहीं थी। वह कभी-कभी कुछ क्षड़ो के लिए अपनी ऑंखें बंद करती और फिर आराम से पढने लग जाती थी। जब सभी यात्री भयाक्रांत हो रहे थे, जहाज़ उछल रहा था तब भी यह 
लड़की भय एवं चिन्ता से कोसों दूर थी  और आराम से पढ़ रही थी।
उस व्यक्ति को अपनी आँखों पर विश्वास न हुआ और जब वह जहाज़ अन्ततः सुरक्षित उतर गया। वह व्यक्ति सीधे उस लड़की के पास गया और उसने उससे पूँछा, कि इतनी खतरनाक परिस्तिथियों में भी वह बिलकुल नहीं डरी और एकदम शान्त किस प्रकार बनी हुयी थी। इस पर उस लड़की ने उत्तर दिया,  
" सर मेरे पिताजी इस विमान के चालक थे और वो मुझे घर ले जा रहे थे। " इस कहानी का सार यह है कि हमें अपने अंदर के विश्वास को कभी कमजोर नहीं होने देना चाहिए। 

Read more…

Saturday, 9 April 2016

अपने शब्दों का चयन सोच समझ कर करें

मित्रों एक जुमला प्रचलित है कि  ” मुंह से निकले शब्द वापिस नहीं लिए जा सकते ठीक वैसे ही जैसे धनुष से निकला हुआ तीर कभी वापिस नहीं आता ” इसलिए हमे बड़ी सावधानी से अपने शब्दों का चुनाव करना चाहिए। बडबोलापन दोस्तों के बीच आपको जरूर लोकप्रियता दिला सकता है लेकिन कभी कभी ये नुकसानदेह होता है क्योकि पहली बार हमसे मिलने के बाद जो छवि किसी इन्सान के लिए बनती है उसमें उस से हुई हमारी बातचीत का ही शत प्रतिशत योगदान होता है। तो चलिए इस सन्दर्भ में मैँ आप सबको एक कहानी सुनाता हूँ। 

कहानी कुछ इस तरह है  -- एक आदमी ने अपने पडोसी को बहुत बुरा भला कहा जबकि बाद में उसे अपनी गलती का अहसास हुआ तो वो पश्चाताप करने चर्च गया।  वंहा जाकर पादरी के सामने ये कॉन्फेशन दिया तो पादरी ने उस से एक पंखो से भरा थैला दिया और उस से कहा कि जाकर किसी खुली जगह में बिखेर तो।  तो पादरी के कहने पर उस आदमी ने यही किया और जब लौटकर आया तो पादरी ने उसे कहा कि क्या तुम अब जाकर उन पंखो को वापिस इसी थैले में भरके ला सकते हो, तो उस आदमी ने वंहा जाकर बहुत कोशिश  की मगर नहीं कर पाया, क्योंकि सारे पंख हवा की वजह से इधर उधर बिखर गये थे तो मायूस होकर वह आदमी खाली थैला लिए लौटा तो पादरी ने समझाया जिस तरह तुम पंखो को वापिस नहीं समेट सकते उसी तरह तुम लाख पश्चाताप कर लो लेकिन अपने बोले हुए शब्द वापिस नहीं ले सकते | मनुष्य के जीवन में भी ये बात लागु होती हैं।  इसलिए  हमें शब्दों के चुनाव में हमेशा सावधानी बरतनी चलिए क्योकि कई बार कोई अच्छा अवसर भी इसी आदत से हमारे हाथ से निकल जाता है |

Read more…

Monday, 4 April 2016

Tame you temper



 

Friends, each of us in our lives passes through turbulent times and bad patches of life. Driven by adverse circumstances around us most of the time we loose our temper knowing well that it would do no good to us. Most of us do not have control on our bad tempers. But have we ever imagined how dangerous these bad tempers are? They are as deadly as any  disease. But solution to bad temper lies within us. We must learn to be calm and composed even if things in lives not going our ways. We must now allow ourselves to fall in the deadly trap of tempers, else we will be ruining our own lives.

 Here I am citing you story of a little boy who had a bad temper. His father gave him a bag of nails and told him that every time he lost his temper, he must hammer a nail into the back of the fence.
The first day, the boy had driven 37 nails into the fence. Over the next few weeks, as he learned to control his anger, the number of nails hammered daily gradually dwindled down. He discovered it was easier to hold his temper than to drive those nails into the fence.
Finally the day came when the boy didn’t lose his temper at all. He told his father about it and the father suggested that the boy now pull out one nail for each day that he was able to hold his temper. The days passed and the boy was finally able to tell his father that all the nails were gone.
The father took his son by the hand and led him to the fence. He said, “You have done well, my son, but look at the holes in the fence. The fence will never be the same. When you say things in anger, they leave a scar just like this one.
You can put a knife in a man and draw it out. It won’t matter how many times you say I’m sorry, the wound is still there. A verbal wound is as bad as a physical one.

Read more…

Total Pageviews