Saturday, 9 April 2016

अपने शब्दों का चयन सोच समझ कर करें

मित्रों एक जुमला प्रचलित है कि  ” मुंह से निकले शब्द वापिस नहीं लिए जा सकते ठीक वैसे ही जैसे धनुष से निकला हुआ तीर कभी वापिस नहीं आता ” इसलिए हमे बड़ी सावधानी से अपने शब्दों का चुनाव करना चाहिए। बडबोलापन दोस्तों के बीच आपको जरूर लोकप्रियता दिला सकता है लेकिन कभी कभी ये नुकसानदेह होता है क्योकि पहली बार हमसे मिलने के बाद जो छवि किसी इन्सान के लिए बनती है उसमें उस से हुई हमारी बातचीत का ही शत प्रतिशत योगदान होता है। तो चलिए इस सन्दर्भ में मैँ आप सबको एक कहानी सुनाता हूँ। 

कहानी कुछ इस तरह है  -- एक आदमी ने अपने पडोसी को बहुत बुरा भला कहा जबकि बाद में उसे अपनी गलती का अहसास हुआ तो वो पश्चाताप करने चर्च गया।  वंहा जाकर पादरी के सामने ये कॉन्फेशन दिया तो पादरी ने उस से एक पंखो से भरा थैला दिया और उस से कहा कि जाकर किसी खुली जगह में बिखेर तो।  तो पादरी के कहने पर उस आदमी ने यही किया और जब लौटकर आया तो पादरी ने उसे कहा कि क्या तुम अब जाकर उन पंखो को वापिस इसी थैले में भरके ला सकते हो, तो उस आदमी ने वंहा जाकर बहुत कोशिश  की मगर नहीं कर पाया, क्योंकि सारे पंख हवा की वजह से इधर उधर बिखर गये थे तो मायूस होकर वह आदमी खाली थैला लिए लौटा तो पादरी ने समझाया जिस तरह तुम पंखो को वापिस नहीं समेट सकते उसी तरह तुम लाख पश्चाताप कर लो लेकिन अपने बोले हुए शब्द वापिस नहीं ले सकते | मनुष्य के जीवन में भी ये बात लागु होती हैं।  इसलिए  हमें शब्दों के चुनाव में हमेशा सावधानी बरतनी चलिए क्योकि कई बार कोई अच्छा अवसर भी इसी आदत से हमारे हाथ से निकल जाता है |

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