Tuesday, 30 August 2016

Good works done with honest intention never go in vain

A poor boy used to sell goods from door to door to meet his academic expenses and schooling. One day, this young boy while selling goods, felt hungry but had no money to buy any food. He decided to ask for something to eat when he knocked on the front door of the next house. A beautiful young woman opened the door, and the boy lost his nerve. He simply asked for a drink of water, too embarrassed to ask for food. The youngwoman brought him a glass of milk, which the boy greedily drank.
The boy asked her how much he owed, but she simply smiled and said her mother had taught her to be kind to others and never expect anything in return. The young boy left the woman's home with a full tummy and a heart full of renewed strength to push on with his education and continue working hard. Just when he was ready to quit, the woman had instilled in him new found faith and fortitude.
Years later, in a big city, renowned surgeon Dr. Howard Kelly was called to consult on a woman who was suffering from a rare disease. When the woman told him the name of the small town where she lived, Dr. Kelly felt a faint memory arise in his mind, and then suddenly recognition dawned on him. She was the woman who had given him the glass of milk many years ago.
The doctor went on to provide the woman with the very best care and made sure she received special attention. In fact, it was his skills as a doctor that saved her life. After a long and difficult hospitalization, the woman was finally ready for discharge home. The woman was worried it would take her years to settle her account with the hospital. Her serious illness and long hospital stay had produced a substantial bill. However, when she received the bill, she found that Dr. Kelly had paid the entire bill himself and written a small note for her.
The note simply stated: Paid in full with a glass of milk. Moral of the story: Any work done with good and honest intention and without any expectation never goes in vain. You are always rewarded for your noble and good works. So keep doing good works without any grain of expectation.

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Monday, 29 August 2016

पितृ पक्ष' में पितरों का तर्पण सर्वकल्याणकारी

अपने पूर्वजों, पितरों के प्रति श्रद्धा भावना रखते हुए 'पितृ पक्ष' के दौरान श्राद्ध कर्म एवं तर्पण करना नितान्त आवश्यक है। हिन्दू शास्त्रों में देवों को प्रसन्न करने से पहले, पितरों को प्रसन्न किया जाता है क्योंकि देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है। हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के सोलह दिन निर्धारित किए गए हैं ताकि हम अपने पूर्वजों को याद करें और उनका तर्पण कर उन्हें शांति और तृप्ति प्रदान करें, जिससे कि उनका आशीर्वाद हमें सदैव मिलता रहे, हमारा हर कार्य निर्विघ्न संपन्न होता रहे और हम सुख, शांति एवं समृद्धि के साथ अपना जीवन यापन कर सकें । जिन माता, पिता, दादा, दादी, प्रपितामह, मातामही एवं अन्य बुजुर्गों के लाड, प्यार, श्रम से कमाएं धन एवं इज्जत के सहारे हम और आप सुखपूर्वक रहते हैं, तो हमारा परम कर्तव्य बनता है कि हमारे इन परिवारों के बुजुर्गों, जिनका शरीर पंच तत्व में विलीन हो गया है, उन्हें पितृ पक्ष के दौरान तर्पण देकर, उनके नाम से दान दक्षिणा कर तथा उनके नाम से पर्यावरण संरक्षण हेतु पौधा रोपण कर उनके प्रति अपने अटूट श्रद्धा को अर्पित करें तथा पितृलोक में उन्हें प्रसन्न रख कर उनका यथेष्ठ आशिर्वाद प्राप्त करें।
यदि हम अपने पूर्वजों के प्रति चाहे वो हमारे अपने माता, पिता, पितामह और प्रपितामह, मातामही या प्रमातामह हों, किसी भी तरह का असम्मान प्रकट करते हैं, उनकी इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य करते हैं, तो हमें अपने पितरों के कोप का भाजन बनना पड़ता है और हमें पितृ दोष की अति कठोर पीड़ा झेलनी पड़ती है। पर हममें से अधिक लोग कामकाजी, नौकरीपेशा एवं अपने व्यावसायिक कार्यों में व्यस्त होने के कारण, अपने पितरों को पितृ पक्ष के दौरान तर्पण नहीं अर्पित कर पाते और इसका परिणाम हमें आनेवाले समय में ना चाहते हुए भी भुगतना पड़ता है। अतः पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों को तर्पण देना हिन्दू वंश में जन्म लेने वाले हर व्यक्ति का परम एवं पुनीत कर्तव्य है।
प्रत्येक वर्ष पितृ पक्ष के दौरान हमारे इंदौर स्थित 'सूर्योदय आश्रम' पर विद्वान् पंडितों के वैदिक पद्धति से कराये गए मंत्रोच्चार के बीच सैकड़ों धर्मावलंबियों के पूर्वजों की स्मृति में तर्पण कराया जाता है। इस पितृ पक्ष पर भी सूर्योदय परिवार द्वारा आगामी 16 सितम्बर से 30 सितम्बर के बीच पर्यावरण संरक्षण एवं उसके शुद्धिकरण हेतु 11,000 फलदार एवं औषधीय पौधों को रोपित करने का संकल्प लिया गया है। आप सभी महानुभाव पितृ पक्ष के अवसर पर आयोजित इस पुनीत कार्य में सहभागी होकर अपने पितरों के नाम पौधा रोपित कर सकते हैं, उन्हें तर्पण दे सकते हैं एवं उनके नाम पर दान कर पूण्य प्राप्त कर सकते हैं।

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Monday, 8 August 2016

मुसीबतों का डट कर सामना करने वाले कभी नहीं हारते


मित्रों, मुसीबतें हमारी ज़िंदगी की एक सच्चाई है। कोई इस बात को समझ लेता है तो कोई पूरी ज़िंदगी इसका रोना रोता है। ज़िंदगी के हर मोड़ पर हमारा सामना मुसीबतों से होता है. इसके बिना ज़िंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती।
अक्सर हमारे सामने मुसीबतें आती हैं तो हम उनके सामने पस्त हो जाते हैं। उस समय हमें कुछ समझ नहीं आता की क्या सही है और क्या गलत। हर व्यक्ति का परिस्थितियों को देखने का दृष्टिकोण अलग अलग होता है। कई बार हमारी ज़िंदगी में मुसीबतों का पहाड़ टूट पढ़ता है। उस कठिन समय मे कुछ लोग टूट जाते है तो कुछ संभाल जाते है। आज मैं आप सबको ऐसे ही एक बुलंद होंसलों की प्रेरक कथा सुनाता हूँ।

नेपोलियन अक्सर जोखिम भरे काम किया करते थे। एक बार उन्होने आलपास पर्वत को पार करने का ऐलान किया और अपनी सेना के साथ चल पढे। सामने एक विशाल और गगनचुम्बी पहाड़ खड़ा था जिसपर चढ़ाई करने असंभव था। उसकी सेना में अचानक हलचल की स्थिति पैदा हो गई। फिर भी उसने अपनी सेना को चढ़ाई का आदेश दिया। पास मे ही एक बुजुर्ग औरत खड़ी थी। उसने जैसे ही यह सुना वो उसके पास आकर बोले की क्यों मरना चाहते हो।
यहाँ जितने भी लोग आये हैं वो मुहं की खाकर यहीं रह गये। अगर अपनी ज़िंदगी से प्यार है तो वापस चले जाओ। उस औरत की यह बात सुनकर नेपोलियन नाराज़ होने की बजाये प्रेरित हो गया और झट से हीरों का हार उतारकर उस बुजुर्ग महिला को पहना दिया और फिर बोले; आपने मेरा उत्साह दोगुना कर दिया और मुझे प्रेरित किया है। लेकिन अगर मैं जिंदा बचा तो आप मेरी जय-जयकार करना। उस औरत ने नेपोलियन की बात सुनकर कहा- तुम पहले इंसान हो जो मेरी बात सुनकर हताश और निराश नहीं हुए। ‘ जो करने या मरने ‘ और मुसीबतों का सामना करने का इरादा रखते है, वह लोग कभी नही हारते।

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Monday, 1 August 2016

सबसे दरिद्र मनुष्य

बहुत समय पहले की बात है गुरु शांतानदं अपने शिष्यों के साथ अपने आश्रम में किसी विषय पर कोई खास चर्चा कर रहे थे | तभी एक भिखारी वंहा से होता हुआ  गुजरा तो शिष्य को उसे देखकर थोडा आश्चर्य हुआ | उसने गुरूजी से पूछा कि गुरूजी राज्य में चारो ओर खुशहाली और समृद्धि का माहौल है फिर भी राज्य में ये भिखारी कैसे क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि यह किसी दूसरे राज्य से यंहा आया होगा | अगर इसी राज्य का  है तो यंहा का यह सबसे दरिद्र मनुष्य होगा |

नहीं पुत्र इस से भी दरिद्र एक व्यक्ति है लेकिन वह मैं तुम्हे अवसर आने पर ही बताऊंगा | बात सामान्य हो गयी और शिष्य भूल भी गया | इस घटना के कुछ ही दिनों बाद एक दिन दोनों गुरु और शिष्य कंही जा रहे थे तो उन्होंने क्या देखा कि दूर से उसी राज्य के राजा विजय सिंह अपनी सेना के साथ उसी रास्ते पर आ रहे थे |
 
गुरु ने अपने शिष्य से कहा वत्स उस दिन जो हम लोगो ने बात को बीचे में छोड़ दिया था वो मैं आज पूरी करूँगा और तुम्हें बताऊंगा कि राज्य का सबसे दरिद्र व्यक्ति कौन है | इतने में राजा की सवारी एकदम नजदीक आ गयी |  ऋषि को देखकर राजा अपनी सवारी से उतरा और ऋषि को नमन करते हुए बोला गुरु जी मैं पडोसी राज्य को जीतने के लिए जा रहा हूँ कृपया मुझे विजयी होने का आशीर्वाद दें | इस पर ऋषि बोले राजन  तुम्हें इस राज्य में किसी भी चीज़ की कमी नहीं है चारो तरफ सुखी और समृद्धि का माहौल है उसके बाद भी तुम राज्य की लालसा में हो चलो कोई बात नहीं मैं तुम्हे विजयी होने का आशीर्वाद देता हूँ और ऋषि ने एक सिक्का राजा की हथेली में रख दिया और कहा मुझे तुम सबसे अधिक दरिद्र लगे इस लिए मैंने ये तुम्हें दिया है |

ऋषि की बात सुनकर राजा को अपराधबोध हुआ और उसे सत्य की अनुभूति हुई कि निश्चित ही ऋषि सही कह रहे हैं और उसने युद्ध का विचार त्याग दिया और इस भूल के लिए ऋषि से क्षमा माँगी | शिष्य भी ये सब देख रहा था और उसने गुरु से कहा गुरुदेव आज मुझे आपकी बात का अर्थ समझ में आ गया है |  
ऋषि मुस्कुराकर चल दिए |

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