Saturday, 24 September 2016

Do Hard Works to Pursue Your Dreams

Friends you can have liberty of dreaming big things in your life, only when you pursue your dreams in letter and spirit and put up hard works to achieve or fulfill your dreams. Merely day dreaming will do no good and you will end up as a looser. Here is a story of a lazy day dreamer and his tattered dreams.
Long time ago there lived a priest who was extremely lazy and poor at the same time. He did not want to do any hard work but used to dream of being rich one day. He got his food by begging for alms. One morning he got a pot of milk as part of the alms. He was extremely delighted and went home with the pot of milk. He boiled the milk, drank some of it and put the remaining milk in a pot. He added slight curds in the pot for converting the milk to curd. He then lay down to sleep.
Soon he started imagining about the pot of curd while he lay asleep. He dreamed that if he could become rich somehow all his miseries would be gone. His thoughts turned to the pot of milk he had set to form curd. He dreamed on; “By morning the pot of milk would set, it would be converted to curd. I would churn the curd and make butter from it. I would heat the butter and make ghee out of it. I will then go to that market and sell that ghee, and make some money. With that money I will buy a hen. The hen will lay may eggs which will hatch and there will be many chicken. These chicken will in turn lay hundreds of eggs and I will soon have a poultry farm of my own.” He kept on imagining.
“I will sell all the hens of my poultry and buy some cows, and open a milk dairy. All the town people will buy milk from me. I will be very rich and soon I shall buy jewels. The king will buy all the jewels from me. I will be so rich that I will be able to marry an exceptionally beautiful girl from a rich family. Soon I will have a handsome son. If he does any mischief I will be very angry and to teach him a lesson, I will hit him with a big stick.”During this dream, he involuntarily picked up the stick next to his bed and thinking that he was beating his son, raised the stick and hit the pot. The pot of milk broke and he awoke from his day dream.
So the moral of this story is that there is no substitute for hard work. Dreams cannot be fulfilled without hard work.

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Monday, 19 September 2016

विश्व को आतंकवाद से मुक्त करने के लिए आध्यात्मिक, वैचारिक क्रांति आवश्यक


उरी में हुए आतंकी घटना में 18 भारतीय सेना के जवानों की शहादत ने एक बार पुनः पुरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस घटना से पुरे देश में आक्रोश व्याप्त है। पर इस तरह की घटनाएं देश में पहली बार नहीं हुई है। आतंकियों द्वारा इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने के बाद हमने हर बार इसकी तीव्रतम भर्त्सना की है, पाकिस्तान से इन आतंकियों के विरुद्ध कार्रवाई करने की माँग की पर हमारा पडोसी है कि हर बार हमारी मांगों को अनसुना करता रहा है। अब समय आ गया है हम सब आतंक के विरुद्ध अंतिम लड़ाई लड़ें और आतंकवाद को पनाह देने वाले देशों को सामाजिक एवं आर्थिक रूप से बहिस्कृत करें और इन देशों को हथियारों का सप्लाई करना बंद कर दें।
सिर्फ भारत ही नहीं, विश्व का कमोवेश अधिकांश देशों के साथ साथ विकसित देश चाहे वह ब्रिटेन हो, फ्रांस, अमेरिका या फिर मध्य पूर्व खाड़ी का देश, आतंकवाद की घटनाओं से अछूता नहीं है, । धर्म एवं जेहाद के नाम पर विश्व को आतंकित करना बंद होना चाहिए। अगर हम वैश्विक स्तर पर इस्लामिक आतंकवाद के पैदा होने और पनपने के कारणों की विवेचना करें तो हममें से कुछ लोग मानते हैं जेहादी आतंक गरीबी की वजह से फलता-फूलता है, किन्तु यह पूर्ण यथार्थ नहीं हो सकता।
इन धर्म एवं जिहाद के नाम पर आतंक फ़ैलाने वाले के कारण, पुरे विश्व में मुस्लिम समुदाय की छवि धूमिल हो रही है। आवश्यकता है हमारा मुस्लिम समाज चाहे वह दुनिया के किसी भी देश में हो, इन धर्म एवं जेहाद के नाम पर आतंक फैलाने वाले के विरुद्ध एक जुट हो। मैं समझता हूँ पुरे विश्व में अन्याय एवं आतंक को ख़त्म करने के लिए आध्यात्म सबसे बड़ा अस्त्र साबित हो सकता है। आज आवश्यकता है कि हम पुरे विश्व में इस तरह की कुत्सित मानसिकता से ग्रसित लोगों के मन में पल रहे धार्मिक कट्टरता, निर्दयता, हिंसा की भावना को आध्यात्म के माध्यम से नष्ट करें। जब तक यह कार्य नहीं किया जाएगा तब तक आतंकवाद का सिलसिला थमने वाला नहीं है। मात्र सेना, पुलिस और क़ानून की मदद से आतंकवाद को रोकना असंभव है। हमें सम्पूर्ण विश्व को आतंक से मुक्त करने के लिए आध्यात्मिक एवं वैचारिक क्रांति फैलानी होगी और इस तरह के क्रांति का प्रसार करने के लिए हर बुद्धिजीवियों, संतों, आध्यात्मिक गुरुओं को आगे आना होगा। हमारा ट्रस्ट और मैं स्वयं अपने स्तर पर समाज में आध्यात्मिक क्रांति का प्रसार करने में संलग्न हूँ। हमारे ट्रस्ट द्वारा स्थापित कारगिल स्मारक, भारत माता मंदिर, वंदे मातरम् फाउंडेशन, मानवता सेवा सम्मान पुरस्कार समाज में आध्यात्मिकता, सकारात्मकता, एकता फ़ैलाने का एक सार्थक प्रयास है।

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Saturday, 10 September 2016

Never to Give Up


One day a farmer’s donkey fell down into a well. The animal cried piteously for hours as the farmer tried to figure out what to do. Finally he decided the animal was old and the well needed to be covered up anyway it just wasn’t worth it to retrieve the donkey. He invited all his neighbors to come over and help him. They all grabbed a shovel and begin to shovel dirt into the well. At first, the donkey realized what was happening and cried horribly. Then, to everyone’s amazement he quieted down. A few shovel loads later, the farmer finally looked down the well and was astonished at what he saw. With every shovel of dirt that fell on his back, the donkey was doing some thing amazing. He would shake it off and take a step up. As the farmer’s neighbors continued to shovel dirt on top of the animal, he would shake it off and take a step up.
Pretty soon, everyone was amazed as the donkey stepped up over the edge of the well and totted off!.
Friends, life is going to shovel dirt on you, all kinds of dirt. The trick is to not to get bogged down by it. We can get out of the deepest wells by not stopping and by never giving up. So whenever, you are besieged by troubles, shake it off and take a step up.

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Thursday, 8 September 2016

सूर्योदय परिवार द्वारा समाज में साक्षरता बढ़ाने के लिए सार्थक प्रयास

दुनिया में शिक्षा और ज्ञान बेहतर जीवन जीने के लिए ज़रूरी माध्यम है।जीवन में शिक्षा एवं साक्षरता का बहुत महत्व है।  साक्षरता का तात्‍पर्य सिर्फ़ पढ़ना-लिखना ही नहीं बल्कि यह सम्मान, अवसर और विकास से जुड़ा विषय है। वर्तमान में भारत में साक्षरता दर वर्ष 2011 के जनगणना के अनुसार 75.06% है, जो  विश्व की साक्षरता दर 84% से कम है।  यद्द्यपि हमारे देश में केंद्र एवं राज्य स्तर सरकारों द्वारा साक्षरता की दर को बढ़ाने के लिए पिछले कुछ वर्षों में काफी सराहनीय प्रयास किये गए हैं, पर सच यह है कि भारत में अभी भी संसार की सबसे अधिक अनपढ़ जनसंख्या निवास करती है| हमें इस `कलंक' को सामूहिक प्रयास से ख़त्म करना होगा।  इसके लिए आवश्यक है पुरुषों  के साथ-साथ महिलाओं में साक्षरता की दर को तीव्र गति से बढ़ाना। 
हमारे देश में जहाँ पुरुषों की साक्षरता दर 82.14 है वहीं महिलाओं में इसका प्रतिशत मात्र 65.46 प्रतिशत है।  महिलाओं में कम साक्षरता का कारण अधिक आबादी और परिवार नियोजन की जानकारी की कमी है। मुझे यह कहते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि हमारा ट्रस्ट एवं सूर्योदय परिवार समाज में, विशेष कर गरीबों, पारितज्य। महिलाओं एवं समाज के सबसे नीचे तबकों में साक्षरता को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न स्तरों पर कार्य कर रहा है। आज हमारा ट्रस्ट अपने उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से  मध्य प्रदेश  एवं महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में विद्यालयों की स्थापना कर  हज़ारों गरीब तबकों, सूखा एवं आत्महत्या ग्रस्त किसानों, कैदियों, पारधी समाज एवं अनाथ बच्चों को शिक्षित कर ना सिर्फ उन्हें संस्कारित कर रहा है बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से आत्म निर्भर भी बना चूका है।  इसके आलावा छात्रवृति योजना के माध्यम से भी लाखों गरीब परिवारों के बच्चों को  आर्थिक सहायता प्रदान कर, स्टेशनरी, मुफ्त किताबों का वितरण कर उन्हें अपनी स्कूली शिक्षाओं को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।      

आज विश्व साक्षरता दिवस पर में प्रत्येक देशवासियों से अपील करता हूँ कि वो अपने पुत्रों के साथ अपनी पुत्रियों को आवश्यक रूप से ना सिर्फ साक्षर बनाएं बल्कि उसे शिक्षा प्राप्त कर आत्मनिर्भर बनने का  प्रचुर अवसर दें और उसके सपनों एवं महत्वकाँछों को साकार करने में पूर्ण सहयोग दें।

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Saturday, 3 September 2016

अहंकार छोड़िये और सीखना शुरू कीजिए


धरती पर जन्म लेने के साथ ही सीखने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है ज्यों हम बड़े होते जाते हैं, सीखने की प्रक्रिया भी विस्तार लेती जाती है, जल्द ही हम उठना, बैठना, बोलना, चलना सीख लेते हैं। इस बड़े होने की प्रक्रिया के साथ ही कभी-कभी हमारा अहंकार हमसे अधिक बड़ा हो जाता है और तब हम सीखना छोड़कर गलतियां करने लगते हैं।  आज इसी विषय पर मैं आप सबको एक कथा सुनाता हूँ।  

एक बार की बात है रूस के ऑस्पेंस्की नाम के महान विचारक एक बार संत गुरजियफ से मिलने उनके घर गए। दोनों में विभिन्न् विषयों पर चर्चा होने लगी। ऑस्पेंस्की ने संत गुरजियफ से कहा, यूं तो मैंने गहन अध्ययन और अनुभव के द्वारा काफी ज्ञान अर्जित किया है, किन्तु मैं कुछ और भी जानना चाहता हूं। आप मेरी कुछ मदद कर सकते हैं? गुरजियफ को मालूम था कि ऑस्पेंस्की अपने विषय के प्रकांड विद्वान हैं, जिसका उन्हें थोड़ा घमंड भी है अतः सीधी बात करने से कोई काम नहीं बनेगा। इसलिए उन्होंने कुछ देर सोचने के बाद एक कोरा कागज उठाया और उसे ऑस्पेंस्की की ओर बढ़ाते हुए बोले- ''यह अच्छी बात है कि तुम कुछ सीखना चाहते हो। लेकिन मैं कैसे समझूं कि तुमने अब तक क्या-क्या सीख लिया है और क्या-क्या नहीं सीखा है। अतः तुम ऐसा करो कि जो कुछ भी जानते हो और जो नहीं जानते हो, उन दोनों के बारे में इस कागज पर लिख दो। जो तुम पहले से ही जानते हो उसके बारे में तो चर्चा करना व्यर्थ है और जो तुम नहीं जानते, उस पर ही चर्चा करना ठीक रहेगा।''

बात एकदम सरल थी, लेकिन ऑस्पेंस्की के लिए कुछ मुश्किल। उनका ज्ञानी होने का अभिमान धूल-धूसरित हो गया। ऑस्पेंस्की आत्मा और परमात्मा जैसे विषय के बारे में तो बहुत जानते थे, लेकिन तत्व-स्वरूप और भेद-अभेद के बारे में उन्होंने सोचा तक नहीं था। गुरजियफ की बात सुनकर वे सोच में पड़ गए। काफी देर सोचने के बाद भी जब उन्हें कुछ समझ में नहीं आया तो उन्होंने वह कोरा कागज ज्यों का त्यों गुरजियफ को थमा दिया और बोले- श्रीमान मैं तो कुछ भी नहीं जानता। आज आपने मेरी आंखे खोल दीं। ऑस्पेंस्की के विनम्रतापूर्वक कहे गए इन शब्दों से गुरजियफ बेहद प्रभावति हुए और बोले - ''ठीक है, अब तुमने जानने योग्य पहली बात जान ली है कि तुम कुछ नहीं जानते। यही ज्ञान की प्रथम सीढ़ी है। अब तुम्हें कुछ सिखाया और बताया जा सकता है। अर्थात खाली बर्तन को भरा जा सकता है, किन्तु अहंकार से भरे बर्तन में बूंदभर ज्ञान भरना संभव नहीं। अगर हम खुद को ज्ञान को ग्रहण करने के लिए तैयार रखें तो ज्ञानार्जन के लिये सुपात्र बन सकेंगे। ज्ञानी बनने के लिए जरूरी है कि मनुष्य ज्ञान को पा लेने का संकल्प ले और वह केवल एक गुरू से ही स्वयं को न बांधे बल्कि उसे जहां कहीं भी अच्छी बात पता चले, उसे ग्रहण करें।''

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