मित्रों, किसी कार्य
को करने की अगर हमारे दिल से इच्छा हो तो इसका अर्थ है कि हम वह कार्य करने
के लिये हम प्रेरित हुये हैं और जिस कार्य के लिये हम प्रेरित हुए हैं वह
हम अच्छी तरह कर सकते हैं। प्रेरणा हम किसी से भी ले सकते हैं चाहे वो बड़ा
हो या छोटा, मनुष्य हो या कोई प्राणी। जैसे चीटी दीवार पर चढाती है और
बार-बार गिरती है लेकीन आखिर वो उसकी मंजिल तक पहुँच ही जाती है, वैसे ही
छोटा बच्चा उठता है, गिरता है फिर उठता है और गिरता है लेकीन वह जब तक उठ कर खड़ा नहीं हो जाता तब तक अपना लक्ष्य नहीं छोड़ता।
हमारे जीवन में भी कई प्रेरणास्थान हैं जिन्हें देखकर या उनके कार्यो को
देखकर हमें प्रेरणा मिलाती है। स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांधी, चाणक्य
की तरह हमारे देश में ऐसे असंख्य महापुरुष, ग्यानी हुए हैं जिनसे हम
प्रेरित होते हैं। पर यह हम पर निर्भर करता है कि हम प्रेरणा सकारात्मक
लेते हैं या नकारात्मक।
तो चलिए इस सन्दर्भ में मैं आप सबको एक कथा सुनाता हूँ। कथा कुछ इस तरह है -- एक आदमी के दो बेटे थे। वो दोनों बड़े हुये तो उसमें एक बड़ा व्यवसायिक बना और दूसरा शराबी। एक दिन उसके दोस्त ने उस शराबी से पूछा कि तुम ऐसे किस वजह से बने ? तो उसने कहा कि बचपन से ही मैंने मेरे पिताजी को शराब पीते देखा, जुआ खेलते देखा। मेरे सामने हमेशा वो ऐसे आते रहे। मैंने उनके गलत आदर्श देखे और मैं उनके जैसा बना।
उसी दोस्त ने दुसरे व्यवसायिक हुये बेटे से पूछा कि तुम्हारे उद्योगपति बनने का श्रेय किस को जाता है, तो उसने कहां की “मेरे पिताजी को मैंने बचपन से ही हर रोज शराब पीकर जुआ खेलते हुये देखा। उनको देख कर मुझे लगा कि मुझे अपने पिताजी की तरह नहीं बल्कि एक अच्छा इंसान बनना है। तदनुसार मैंने अपने जीवन के उद्देश्य निर्धारित किये और फिर इन उद्देश्यों को पूरा लिए अपने कर्तव्यपथ पर चलता रहा।
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मित्रों, इस कथा का सार यह है कि जीवन में हम क्या लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं, यह स्वयं पर निर्भर करता है। हमारे आसपास जो भी घटनाएँ घटित होती हैं उससे हम सीख लेकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं तहत स्वयं एवं समाज के समक्ष एक अच्छे नागरिक बनने का दृश्टान्त स्थापित कर सकते हैं। यदि हमें अपने जीवन में सफलता पानी है तो उसके लिये हमें जीवन में बड़ा लक्ष्य रखना होंगा।
तो चलिए इस सन्दर्भ में मैं आप सबको एक कथा सुनाता हूँ। कथा कुछ इस तरह है -- एक आदमी के दो बेटे थे। वो दोनों बड़े हुये तो उसमें एक बड़ा व्यवसायिक बना और दूसरा शराबी। एक दिन उसके दोस्त ने उस शराबी से पूछा कि तुम ऐसे किस वजह से बने ? तो उसने कहा कि बचपन से ही मैंने मेरे पिताजी को शराब पीते देखा, जुआ खेलते देखा। मेरे सामने हमेशा वो ऐसे आते रहे। मैंने उनके गलत आदर्श देखे और मैं उनके जैसा बना।
उसी दोस्त ने दुसरे व्यवसायिक हुये बेटे से पूछा कि तुम्हारे उद्योगपति बनने का श्रेय किस को जाता है, तो उसने कहां की “मेरे पिताजी को मैंने बचपन से ही हर रोज शराब पीकर जुआ खेलते हुये देखा। उनको देख कर मुझे लगा कि मुझे अपने पिताजी की तरह नहीं बल्कि एक अच्छा इंसान बनना है। तदनुसार मैंने अपने जीवन के उद्देश्य निर्धारित किये और फिर इन उद्देश्यों को पूरा लिए अपने कर्तव्यपथ पर चलता रहा।
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मित्रों, इस कथा का सार यह है कि जीवन में हम क्या लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं, यह स्वयं पर निर्भर करता है। हमारे आसपास जो भी घटनाएँ घटित होती हैं उससे हम सीख लेकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं तहत स्वयं एवं समाज के समक्ष एक अच्छे नागरिक बनने का दृश्टान्त स्थापित कर सकते हैं। यदि हमें अपने जीवन में सफलता पानी है तो उसके लिये हमें जीवन में बड़ा लक्ष्य रखना होंगा।
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