Tuesday, 28 February 2017

जीवन के कठिन समय को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखिये

जीवन के कठिन समय को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखिये

एक बार एक व्यक्ति को बगीचे में टहलते हुए किसी टहनी से लटकता हुआ एक तितली का कोकून दिखाई दिया, अब प्रतिदिन वह व्यक्ति उसे देखने लगा , एक दिन उसने गौर किया कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया है| उस दिन वो वहीं बैठ गया और घंटो उसे देखता रहा| उसने देखा कि तितली उस खोल से बाहर निकलने की बार बार कोशिश कर रही है , पर बहुत देर तक प्रयास करने के बाद भी वह उस कोकून के छेद से बाहर नहीं निकल पायी और कुछ देर में वह बिलकुल शांत हो गई मानो उसने हार मान ली हो|

यह देख उस व्यक्ति ने निश्चय किया कि वह उस तितली की मदद करेगा, उसने एक कैंची ली और कोकून के छेद को इतना बड़ा कर दिया कि तितली आसानी से बाहर निकल सके और यही हुआ, वह तितली बिना किसी और संघर्ष के आसानी से बाहर निकल आई, पर उसका शरीर सूजा हुआ था,और पंख सूखे हुए थे|

वह व्यक्ति अब उत्साह में तितली को यह सोच कर देखता रहा कि वह किसी भी समय अपने पंख फैला कर उड़ने लगेगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ| इसके उलट बेचारी तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और उसे अपनी बाकी की ज़िन्दगी इधर-उधर घिसटते हुए बितानी पड़ी|

वह व्यक्ति दया और करुणा की जल्दबाजी में ये नहीं समझ पाया कि असल में कोकून से निकलने की प्रक्रिया को प्रकृति ने इतना कठिन इसलिए बनाया है ताकि ऐसा करने से तितली के शरीर में मौजूद तरल उसके पंखों में पहुच सके और वो छेद से बाहर निकलते ही उड़ सके|

वास्तव में कभी-कभी हमारे जीवन में संघर्ष ही वो चीज होती जिसकी हमें सचमुच आवश्यकता होती है. यदि हम बिना किसी संघर्ष के सब कुछ पाने लगे तो हम भी एक अपंग के सामान हो जायेंगे| बिना परिश्रम और संघर्ष के हम कभी उतने मजबूत नहीं बन सकते जितनी हमारी क्षमता है, इसलिए जीवन में आने वाले कठिन समय को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखिये वो आपको कुछ ऐसा सीखा जायंगे जो आपकी ज़िन्दगी की उड़ान को संभव बना पायेंगे|

#motivationalstory #bhaiyyumaharaj

Read more…

Tuesday, 21 February 2017

*भाव वृत्ति मातृभाषा की ऐसी त्रिवेणी है जिसमें दया, आनंद,सरस्वती याने ज्ञान निहित है*

*भाव वृत्ति मातृभाषा की ऐसी त्रिवेणी है जिसमें दया, आनंद,सरस्वती याने ज्ञान निहित है*
हर भाषा पर भाव का प्रभाव है और उससे निर्मित संकेतों से ही भाषा का प्रादुर्भाव है लेकिन जहाँ भाषा नहीं है या मौनवृत्त है वहां भी भाव प्रकटीकरण अपने आप में सर्वोच्च एवं सम्पूर्ण मातृभाषा है और दया, आनंद ,सरस्वती इसके मातृत्व गुण है।
उत्त्पति से मुक्ति तक जितनी भाव मुद्राएं होती है वह माँ से उत्सर्जित प्रथम मातृ भाषा है । यही भाव मुद्राएं व्यक्ति के प्रथम सँस्कार है जो भाव भाषा के रूप में माँ से प्राप्य है इसलिए यही  मातृ भाषा है। माँ ही सबसे पहले भावज्ञान देती है यही भावज्ञान माँ से मिली विद्या सरस्वती है और यही भाव भाषा में तब्दील होकर संस्कारों के भाव बन जाते हैं । माँ जन्म ही नहीं , उत्त्पति ही नहीं परंतु उत्पत्ति के साथ संस्कारों के बीज से पुरुषार्थ निर्माण की स्वाभाविक भाव क्रिया से कर्मयोगी बनाकर ऐसा भाव देती है वो शरीर क्या जो अस्तित्व न जाने, वो आत्मा क्या जो विरक्ति न जाने उसे माँ कहते हैं और उस भाव को ही मातृ भाषा कहते हैं।
माँ की ममता और माँ की वात्सल्यता दया का भाव देती है और इस भाव से जो आनंद की अनुभूति होती है वह सरस्वती रूपी ज्ञान का उत्सर्जन करती है और तब दयानंद सरस्वती जैसे युग पुरुष का उद्भव होता है। जो दया ,आनंद और ज्ञान के पुरुषार्थ से आर्य समाज और आर्यावर्त याने भारत राष्ट्र को मज़बूत करने और राष्ट्र के लिए आर्यभाषा का प्रसार करते हैं । यह सब मातृशक्ति , मातृ भाव और मातृ भाषा से निर्मित पुरुषार्थ का दर्शन है।
अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस की शुभकामनायें प्रेषित करते हुए युगपुरुष दयानंद सरस्वती जी का वंदन करता हूँ जिनकी अप्रतिम सामर्थ्य शक्ति से हिंदी भाषा को नव स्थान मिला और समाज को विभिन्न कुरीतियों से से सचेत कर नव समाज और नवविचार का प्रस्फुटन किया।
*डॉ भय्यू महाराज*

Read more…

*भाव वृत्ति मातृभाषा की ऐसी त्रिवेणी है जिसमें दया, आनंद और ज्ञान निहित है*

*भाव वृत्ति मातृभाषा की ऐसी त्रिवेणी है जिसमें दया, आनंद और ज्ञान निहित  है*
हर भाषा पर भाव का प्रभाव है और उससे निर्मित संकेतों से ही भाषा का प्रादुर्भाव है लेकिन जहाँ भाषा नहीं है या मौनवृत्त है वहां भी भाव प्रकटीकरण अपने आप में सर्वोच्च एवं सम्पूर्ण मातृभाषा है और दया, आनंद और ज्ञान इसके मातृत्व गुण है।
उत्त्पति से मुक्ति तक जितनी भाव मुद्राएं होती है वह माँ से उत्सर्जित प्रथम मातृ भाषा है । यही भाव मुद्राएं व्यक्ति के प्रथम सँस्कार है जो भाव भाषा के रूप में माँ से प्राप्य है इसलिए यही  मातृ भाषा है। माँ ही सबसे पहले भावज्ञान देती है यही भावज्ञान माँ से मिली विद्या सरस्वती है और यही भाव भाषा में तब्दील होकर संस्कारों के भाव बन जाते हैं । माँ जन्म ही नहीं , उत्त्पति ही नहीं परंतु उत्पत्ति के साथ संस्कारों के बीज से पुरुषार्थ निर्माण की स्वाभाविक भाव क्रिया से कर्मयोगी बनाकर ऐसा भाव देती है वो शरीर क्या जो अस्तित्व न जाने, वो आत्मा क्या जो विरक्ति न जाने उसे माँ कहते हैं और उस भाव को ही मातृ भाषा कहते हैं।
माँ की ममता और माँ की वात्सल्यता दया का भाव देती है और इस भाव से जो आनंद की अनुभूति होती है वह  ज्ञान का उत्सर्जन करती है औरतब राष्ट्र में युग पुरुषों का उद्भव होता है। जो दया ,आनंद और ज्ञान के पुरुषार्थ से  भारत राष्ट्र को मज़बूत करने और राष्ट्र के लिए मातृभाषा से राष्ट्र भाषा तक का प्रसार करते हैं । यह सब मातृशक्ति , मातृ भाव और मातृ भाषा से निर्मित पुरुषार्थ का दर्शन है।
अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस की शुभकामनायें प्रेषित करते हुए भावाभिव्यक्ति से भाषा की निर्मति तक माँ के योग को प्रणाम करता हूँ।
*डॉ भय्यू महाराज*

Read more…

Monday, 20 February 2017

अटल इरादों से जय भवानी



संवेदनाएं अंतर्मन को प्रदर्शित कर किसी भी शासक की शासन शैली को परिलक्षित करती है और यही अंतर्मन की संवेदनशीलता भावनाओं के स्वरुप में उत्सर्जित होकर कविताओं का सृजन करती है . आज २० फरवरी के दिन हमारे देश कि दो महान हस्तियों का स्मरण हो रहा है जिन्होंने अपनी संवेदनशीलता से सृजनात्मक और रचनात्मकता का निर्माण अपनी निष्ठ्कर्म शैली से किया है . मैं याद कर रहा हूँ देश के गौरवशाली पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी जी को और अपने ही प्रदेश मध्यप्रदेश की सौंधी माटी से उपजे और कालांतर में अपनी काव्य शैली से प्रतिष्ठित हुए महान कवि भवानी दादा मिश्र जी को . भवानी दादा की आज पुण्यतिथि है. जबकि अटल बिहारी वाजपेयी जी को इसलिए याद कर रहे है की वे संकल्पित भाव से आज ही अमृतसर से नेक इरादों की बस सरहद पार लाहौर ले गए थे .
वास्तव में........ " मन बुध्दि को कवितायें 
संवेदनशील बनायें,
बनाकर चले चलते चले ,
प्रगतिपथ पर ऐसे चले ,
जैसे जीवन नव ज्योत जलें ,
यही भाव रखे जो कवि कहलाये,
प्रखर भाव सातों रूप ,
तब कविता बन जाएँ " 
भवानी दादा अपनी बोली के कवि थे लेकिन विचार धारा से गांघी वादी थे , और अटल बिहारी वाजपयी जी सिध्दांतों से राष्ट्रवादी हैं और मन की अंतर् संवेदनाओं से भरपूर कवि हैं . संवेदनशीलता के इस अंतर्मन के कवि ह्रदय की भावनाएं जब जागृत होती है तो यह उनके राजकाज में भी दिखाई देती है और तब देश का प्रधान संवेदानाओं की बस भरकर सरहद लाँघ जाते हैं इस संकल्पित भाव से कि आओ तुम भी आगे आओ कुछ हम समझे कुछ तुम समझों . लेकिन जहाँ संवेदनाएं नहीं होती उस सरहद पर गिद्धों को निमंत्रण देने के लिए कारगिल हो जाता है तब नेक इरादों की बस को पंचर कर बुरे इरादे के लोग बदले में हमें कारगिल देते हैं . भारत और पाकिस्तान के मध्य यही संवेदनाओं का अंतर् है . अटलजी ने अपने नेक इरादों को कायम रख राष्ट्रभाव से फिर संवेदनाओं की रक्षा करते हुए हमारे सैन्य बल के साथ, अटल इरादों से कारगिल को विजय दिवस में परिवर्तित किया . यह महानता हमारे देश के कवि , शासक और बौध्दिक् वर्ग में है जो कहीं और एक साथ नहीं देखने को मिलती . 
दरअसल जब इरादे अटल हों तब जय भवानी होना ही है . कल ही हमने जय भवानी के उद्घोष से राष्ट्रवादी छत्रपति शिवाजी का स्मरण किया आज अटल बिहारी वाजपेयी जी की राष्ट्रवादी संवेदनाओं को स्मरण करते हुए आदरणीय कवि भवानी दादा मिश्र के गांधीवादी मूल्यों में सृजित अटल इरादों की कविताओं का भी स्मरण करते हुए उन्हें नमन करते हैं .और यह याद करते हैं कि एक भुजा आज़ाद हुई , एक पंख फडफडाया ,और आज ही मिजोरम , अरुणांचल प्रदेश केंद्र शासित से अपने अस्तित्व में आया . यही है अटल इरादों से जय भवानी !
डॉ भय्यू महाराज

Read more…

और शिवाजी भी वासुदेव की तरह अपने कृष्ण संभाजी को जेल से बाहर ले आये*

छत्रपति शिवाजी महाराज न केवल एक महान योध्दा थे वे सफल रणनीतिकार , युध्द संचालक, गौरील्ला - छापामार युध्द के प्रणेता , हिन्दू धर्म के प्रसारक ,सर्व धर्म के संरक्षक और गहन कूटनीतिज्ञ भी थे। यही वजह थी कि मात्र 17 वर्ष की कच्ची उम्र में ही वे चाकन से लेकर नीरा तक के वृहद भू भाग के अधिपति बन गए उन्होंने अपनी पराक्रम शैली से अनेक दुर्गों पर कब्ज़ा किया ,अपनी  विशाल सेना का गठन मावल युवकों का साथ लेकर किया और मराठा साम्राज्य की अतुलनीय नीव रखकर मुगलो और अंग्रेजों को घुटनो पर ला खड़ा किया ।

 मुगलों से लोहा लेते हुए छत्रपति शिवाजी ने साम्राज्यवादी औरंगजेब को संधि वार्ता  के लिए मज़बूर भी किया ।औरंगजेब जब शिवाजी की वृहद सेना से नहीं निपट सका तब उसने शिवाजी को अपने 9 साल के पुत्र संभाजी के साथ आगरा बुलाया लेकिन वहां औरंगजेब ने शिवाजी का तिरस्कार कर दरबार में उन्हे पीछे खड़ा किया स्वाभिमानी छत्रपति मराठा थे वे इसे कैसे सहन कर सकते थे उन्होंने वहीं उन पर हमला कर दिया । आखिर मुगल सम्राट का दरबार था ,मुगल सेना थी शिवाजी  को उनके मासूम पुत्र संभाजी समेत बंदी बना लिया गया। शिवाजी तो निडर और बेहतर रणनीतिकार थे उन्होंने बीमारी का बहाना बनाकर औरंगजेब को इसलिए राजी कर लिया कि बन्दीगृह में उनके लिए दवा- दुआ, संत फ़क़ीर आदि को मिलने आने दिया जाए। औरंगजेब मान गया  और बन्दीगृह में उनके लिए ये सब आवाजाही शुरू हो गयी। कुछ दिनों तक के सामान्य सिलसिले के बाद एक दिन अपने पुत्र संभाजी को  फल की टोकरी में छिपाकर और सेवाधारी के रूप में भेष बदलकर उसी तरह बाहर आ गए जैसे वासुदेव अपने नौनिहाल श्रीकृष्ण को टोकरी में रखकर मथुरा में कंस के कारावास से बाहर आ गए थे। 

यह अज़ीब संयोग है कि छत्रपति शिवाजी ने मथुरा से कोई 40 मील नज़दीक आगरा में अपनी कुशाग्र बुध्दि और चातुर्यता से वही लीला की जो युगों पूर्व  भगवान् श्रीकृष्ण के अवतरित होने के समय हुई थी। छत्रपति शिवाजी ने इसके बाद मुगलों के महाविनाश का व्यूह रचा और हिन्दुस्तान से उनकी चूल्हें  हिला दी। मराठा साम्राज्य छत्रपति शिवाजी की ऐसी देन है जो मुगलों को खदेड़ने में कामयाब हुआ ।
छत्रपति शिवाजी महाराज  आज भी हमें गौरवशाली और स्वाभिमानी जीवन ,सफलता के लिए सजगता और चपलता के साथ योजनाबध्द प्रयास करने की प्रेरणा देते हैं ।
*डॉ भय्यू महाराज*

Read more…

Saturday, 18 February 2017

परतन्त्रता सबसे बड़ा अभिशाप है

परतन्त्रता सबसे बड़ा अभिशाप है
एक सन्त के आश्रम में एक शिष्य कहीं से एक तोता ले आया और उसे पिंजरे में रख लिया। सन्त ने कई बार शिष्य से कहा कि “इसे यों कैद न करो। परतन्त्रता संसार का सबसे बड़ा अभिशाप है।”
किन्तु शिष्य अपने बालसुलभ कौतूहल को न रोक सका और उसे अर्थात् पिंजरे में बन्द किये रहा।
तब सन्त ने सोचा कि “तोता को ही स्वतंत्र होने का पाठ पढ़ाना चाहिए”
उन्होंने पिंजरा अपनी कुटी में मँगवा लिया और तोते को नित्य ही सिखाने लगे- ‘पिंजरा छोड़ दो, उड़ जाओ।’
कुछ दिन में तोते को वाक्य भली भाँति रट गया। तब एक दिन सफाई करते समय भूल से पिंजरा खुला रह गया। सन्त कुटी में आये तो देखा कि तोता बाहर निकल आया है और बड़े आराम से घूम रहा है साथ ही ऊँचे स्वर में कह भी रहा है- “पिंजरा छोड़ दो, उड़ जाओ।”
सन्त को आता देख वह पुनः पिंजरे के अन्दर चला गया और अपना पाठ बड़े जोर-जोर से दुहराने लगा। सन्त को यह देखकर बहुत ही आश्चर्य हुआ। साथ ही दुःख भी। वे सोचते रहे “इसने केवल शब्द को ही याद किया! यदि यह इसका अर्थ भी जानता होता- तो यह इस समय इस पिंजरे से स्वतंत्र हो गया होता!
मित्रों, ठीक इसी तरह - हम सब भी ज्ञान की बड़ी-बड़ी बातें सीखते और करते तो हैं किन्तु उनका मर्म नहीं समझ पाते और उचित समय तथा अवसर प्राप्त होने पर भी उसका लाभ नहीं उठा पाते और जहाँ के तहाँ रह जाते हैं।

Read more…

Monday, 6 February 2017

We must shun our negativity

There was a hunter who bought a bird dog, the only one of its kind in the world. That could walk on water. He couldn’t believe his eyes when he saw this miracle. At the same time, he was very pleased that he could show off his new acquisition to this friends. He invited a friend to go duck hunting. After some time, they shot a few ducks and the man ordered his dog to run and fetch the birds. All day-long, the dog ran on water and kept fetching the birds. The owner was expecting a comment for a compliment about his amazing dog, but never got one.
As they were returning home, he asked his friends if he had noticed anything unusual about his dog. The friend replied, Yes, in fact, I did notice something unusual. Your dog can’t swim.’.
Moral of this story is that --  some people always look at the negative side and never try to look at the brighter side of anything. So friends, we must shun our negativity and develop positive thoughts in ourselves.

Read more…

Thursday, 2 February 2017

"अफवाह का असर


बहुत समय पहले की बात है किसी जंगल में एक गधा बरगद के पेड़ के नीचे लेट कर आराम कर रहा था . लेटे-लेटे उसके मन में बुरे ख़याल आने लगे , उसने सोचा ,” यदि धरती फट गयी तो मेरा क्या होगा ?” अभी उसने ऐसा सोचा ही था कि उसे एक जोर के धमाके की आवाज़ आयी. वह भयभीत हो उठा और चीखने लगाभागो-भागो धरती फट रही है , अपनी जान बचाओ…..”  और ऐसा कहते हुए वह पागलों की तरह एक दिशा में भागने लगा.
    उसे इस कदर भागता देखते हुए एक अन्य गधे ने उससे पूछा , ” अरे क्या हुआ भाई , तुम इस तरह बदहवास भागे क्यों जा रहे हो ?”
अरे तुम भी भागोअपनी जान बचाओ, धरती फट रही है…”, ऐसा चीखते हुए वह भागता रहा .
यह सुन कर दूसरा गधा  भी डर गया और उसके साथ भागने लगा.  अब तो वह दोनों एक साथ चिल्ला रहे थे- ” भागो-भागो धरती फट रही हैभागो-भागो ….”
देखते-देखते सैकड़ों गधे इस बात को दोहराते हुए उसी दिशा में भागने लगे |
 गधों को इस तरह भागता देख , अन्य जानवर भी डर गए. धरती फटने की खबर जंगल में लगी आग की तरह फैलने लगी , और जल्द ही सबको पता चल गया की धरती फट रही है. चारो तरफ जानवरों की चीख-पुकार मच गयी , सांप, बिच्छु , सीयार , लोमड , हाथी , घोड़े ..सभी उस झुण्ड में शामिल हो  भागने लगे.
जंगल में फैले इसे हो-हल्ले को सुन अपनी गुफा में विश्राम कर रहा जंगल का रजा शेर बाहर निकला , उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ  कि सारे जानवर एक ही दिशा में भागे जा रहे हैं.वह उछल कर सबके सामने आया और गूंजती हुई दहाड़ के साथ बोला , ” ये क्या पागलपन है ? कहाँ भागे जा रहे हो तुम सब ??”
महाराज , धरती फट रही है !! , आप भी अपनी जान बचाइए. “, झुण्ड में आगे खड़ा बन्दर बोला|
   किसने कहा ये सब ?” , शेर ने प्रश्न किया
सब  एक दूसरे का मुंह देखने लगे , फिर बन्दर बोला ,” मुझे तो ये बात चीते ने बतायी थी.”
 चीते ने कहा , ” मैंने तो ये पक्षियों से सुना था .” और ऐसे करते करते  पता चला कि ये बात सबसे पहले गधे ने बताई थी.
गधे को महाराज के सामने बुलाया गया .
तुम्हे कैसे पता चला कि धरती फट रही है ?”, शेर ने गुस्से से पूछा.
मममम मैंने अपने कानो से धरती के फटने की आवाज़ सुनी महाराज !!”, गधे ने डरते हुए उत्तर दियाठीक है चलो , मुझे उस जगह ले चलो और दिखाओ कि धरती फट रही है.”, ऐसा कहते हुए शेर गधे को उस तरफ ढकेलता हुआ ले जाने लगा. बाकी जानवर भी उनके पीछे हो लिए और डर-डर कर उस और बढ़ने लगे .बरगद के पास पहुच कर गधा बोला ,” हुजूर , मैं यहीं सो रहा था कि तभी जोर से धरती फटने की आवाज़ आई, मैंने खुद उडती हुई धूल देखी और भागने लगा

शेर ने आस पास जा कर देखा और सारा मामला समझ गया . उसने सभी को संबोधित करते हुए बोला ,”  ये गधा महामूर्ख है , दरअसल पास ही  नारियल का एक ऊँचा पेड़ है , और तेज हवा चलने से उस पर लगा एक बड़ा सा नारियल नीचे पत्थर पर गिर पड़ा , पत्थर सरकने से आस-पास धूल उड़ने लगी और ये गधा ना जाने कैसे इसे धरती फटने की बात समझ बैठा |
  शेर ने बोलना जारी रखा ,” पर भाइयों ये तो गधा है , पर क्या आपके पास भी अपना दिमाग नहीं है , जाइए ,अपने घर जाइये और आइन्दा से किसी अफवाह पर यकीन करने से पहले दस बार सोचियेगा |
    
   हमारे जीवन में भी कई बार ऐसा होता है | इस लिए कभी भी सुनी सुनाई बातों पर आँख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए हर तथ्य का विश्लेषण करके ही विश्वास करना चाहिए |

Read more…

Total Pageviews