Tuesday, 21 February 2017

*भाव वृत्ति मातृभाषा की ऐसी त्रिवेणी है जिसमें दया, आनंद,सरस्वती याने ज्ञान निहित है*

*भाव वृत्ति मातृभाषा की ऐसी त्रिवेणी है जिसमें दया, आनंद,सरस्वती याने ज्ञान निहित है*
हर भाषा पर भाव का प्रभाव है और उससे निर्मित संकेतों से ही भाषा का प्रादुर्भाव है लेकिन जहाँ भाषा नहीं है या मौनवृत्त है वहां भी भाव प्रकटीकरण अपने आप में सर्वोच्च एवं सम्पूर्ण मातृभाषा है और दया, आनंद ,सरस्वती इसके मातृत्व गुण है।
उत्त्पति से मुक्ति तक जितनी भाव मुद्राएं होती है वह माँ से उत्सर्जित प्रथम मातृ भाषा है । यही भाव मुद्राएं व्यक्ति के प्रथम सँस्कार है जो भाव भाषा के रूप में माँ से प्राप्य है इसलिए यही  मातृ भाषा है। माँ ही सबसे पहले भावज्ञान देती है यही भावज्ञान माँ से मिली विद्या सरस्वती है और यही भाव भाषा में तब्दील होकर संस्कारों के भाव बन जाते हैं । माँ जन्म ही नहीं , उत्त्पति ही नहीं परंतु उत्पत्ति के साथ संस्कारों के बीज से पुरुषार्थ निर्माण की स्वाभाविक भाव क्रिया से कर्मयोगी बनाकर ऐसा भाव देती है वो शरीर क्या जो अस्तित्व न जाने, वो आत्मा क्या जो विरक्ति न जाने उसे माँ कहते हैं और उस भाव को ही मातृ भाषा कहते हैं।
माँ की ममता और माँ की वात्सल्यता दया का भाव देती है और इस भाव से जो आनंद की अनुभूति होती है वह सरस्वती रूपी ज्ञान का उत्सर्जन करती है और तब दयानंद सरस्वती जैसे युग पुरुष का उद्भव होता है। जो दया ,आनंद और ज्ञान के पुरुषार्थ से आर्य समाज और आर्यावर्त याने भारत राष्ट्र को मज़बूत करने और राष्ट्र के लिए आर्यभाषा का प्रसार करते हैं । यह सब मातृशक्ति , मातृ भाव और मातृ भाषा से निर्मित पुरुषार्थ का दर्शन है।
अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस की शुभकामनायें प्रेषित करते हुए युगपुरुष दयानंद सरस्वती जी का वंदन करता हूँ जिनकी अप्रतिम सामर्थ्य शक्ति से हिंदी भाषा को नव स्थान मिला और समाज को विभिन्न कुरीतियों से से सचेत कर नव समाज और नवविचार का प्रस्फुटन किया।
*डॉ भय्यू महाराज*

0 comments:

Post a Comment

Total Pageviews