Monday, 29 June 2015

मन की शांति

किसी नगर में एक विद्वान साधु रहता था। लोग उसके पास अपनी समस्याएं लेकर आते और वहां से प्रसन्न होकर लौटते। एक दिन एक सेठ साधु के पास आया और बोला,'महाराज, मेरे पास सब कुछ है, फिर भी मन शांत नहीं रहता। मैं क्या करूं?' साधु कुछ न बोला और उठ कर चल दिया। सेठ भी पीछे-पीछे चल पड़ा। आश्रम के एक खाली कोने में जाकर साधु ने वहां आग जलाई और धीरे-धीरे कर उस आग में एक-एक लकड़ी डालता रहा। हर लकड़ी के साथ आग की लौ तेज होती रही। कुछ देर बाद वह वहां से उठकर वापस अपनी जगह आकर चुपचाप बैठ गया। सेठ भी साधु के पास आकर बैठ गया।

लेकिन जब साधु ने उससे कुछ भी न कहा तो सेठ हैरान होकर बोला,'महाराज, आपने मेरी समस्या का समाधान तो किया नहीं।' सेठ की बात सुनकर साधु मुस्कराते हुए बोला,'मैं इतनी देर से तुम्हारी समस्या का समाधान ही बता रहा था। शायद तुम समझे नहीं। देखो, हर व्यक्ति के अंदर आग होती है। उसमें प्यार की आहुति डालें तो वह मन को शांति और आनंद देती है। यदि उसमें दिन-रात काम, क्रोध, लोभ, मोह और मद की लकड़ियां डाली जाती रहें तो वह मन में अशांति उत्पन्न करती हैं, आग को और भड़काती हैं।

जब तक तुम अशांति फैलाने वाले इन तत्वों को आग में डालना बंद नहीं करोगे, तब तक तुम्हारा मन शांत नहीं होगा।' यह सुनकर सेठ की आंखें खुल गईं। वह प्रसन्न मन से साधु को नमस्कार कर अपने घर लौट आया। उसने भविष्य में अपने अंदर की आग में प्यार, करुणा और परोपकार की आहुति डालने का संकल्प कर लिया।

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Saturday, 27 June 2015

स्वस्थ जीवन शैली अपनाएं; मधुमेह को दूर भगाएं


विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, समूची दुनिया की छ: प्रतिशत आबादी मधुमेह से पीड़ित है। भारत को विश्व की मधाुमेह राजधानी कहा जाता है। इस समय भारत में लगभग पांच करोड़ मधुमेह रोगी हैं।  रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 के अंत तक यह बढ़कर सात करोड़ हो जाने की आशंका है अर्थात तब हर पांचवां मधुमेह रोगी भारतीय होगा। मधुमेह वृध्दि की दर चिंताजनक है। विश्व भर में इस रोग के निवारण में प्रति वर्ष 250से 400 मिलियन डॉलर खर्च हो जाता है। हर साल लगभग 50लाख लोग नेत्रों की ज्योति खो देते हैं और दस लाख लोग अपने पैर गंवा बैठते है। मधुमेह के कारण प्रति मिनट छ: मौते होती हैं और गुर्दे नाकाम होने का यह प्रमुख कारण है। आज विश्व के लगभग 95 प्रतिशत रोगी टाईप 2 मधुमेह से पीड़ित है।
अनुवांशिक कारणों के आलावा अनियमित जीवन शैली, तनाव, शारीरिक व्यायाम का ना होना इस बीमारी का  मुख्य कारण है।  इस  गंभीर बीमारी के प्रति लोगों में चेतना जागृत करने के लिए प्रत्येक  वर्ष 27 जून को विश्व मधुमेह जागृति दिवस मनाया जाता है. अतः इस  बीमारी से बचने के लिए  आवश्यक है कि हम सब स्वस्थ जीवन-शैली अपनाएं, स्वास्थ्यवर्ध्दक पोषक आहार लें एवं आहार में वसायुक्त पदार्थों और शक्कर की मात्रा कम लेने का प्रयास करें।  इसके अलावा प्रति वर्ष एक बार रक्त परीक्षण एवं अन्य जांच भी करवानी चाहिए।
और जो मधुमेह से पीड़ित हैं वो व्यायाम, संतुलित आहार व प्राकृतिक उपचार से ही इस बीमारी पर नियंत्रित पा सकते हैं।

ध्यान रहे कि संतुलित आहार विहार और स्वस्थ जीवन शैली अपनाकर जीवन पर्यंत निरोग रहा जा सकता है। अत:बाल्यावस्था से ही इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। रोगग्रस्त होने के बाद रोगमुक्ति हेतु प्रयास करने से कहीं बेहतर है कि निरोगी काया के लिए स्वाभाविक रूप से सदैव सजग रहा जाये।

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Friday, 26 June 2015

मादक पदार्थों का सेवन, दुरूपयोग को रोकना आवश्यक

मादक पदार्थों के नशे की लत आज के युवाओं में तेजी से फ़ैल रही है और इसका सेवन हमारे समाज के लिए  अभिशाप बन गया है।  बड़े   तो   बड़े यहाँ तक कि स्कूली छात्र - छात्रों एवं छोटे छोटे बच्चे भी नशे के  आदि हो चुके हैं।  कई बार फैशन की खातिर दोस्तों के उकसावे पर लिए गए ये मादक पदार्थ अक्सर जानलेवा होते हैं। कुछ बच्चे तो फेविकोल, तरल इरेज़र, पेट्रोल कि गंध और स्वाद से आकर्षित होते हैं और कई बार कम उम्र के बच्चे आयोडेक्स, वोलिनी जैसी दवाओं को सूंघकर इसका आनंद उठाते हैं।


आज देश में शराब का सेवन करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है, साथ ही बढ़ रही है मद्यपान के कारण मौत से जूझने वालों की संख्या। 15 से 20 प्रतिशत भारतीय आज शराब पी रहे हैं। 20 साल पहले जहाँ 300 लोगों में से एक व्यक्ति शराब का सेवन करता था, वहीं आज 20 में से एक व्यक्ति शराबखोर है। परंतु महिलाओं में इस प्रवृत्ति का आना समस्या की गंभीरता दर्शाता है। पिछले दो दशकों में मद्यपान करने वाली महिलाओं की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। विशेष कर उच्च तथा उच्च मध्यम वर्ग की महिलाओं में यह एक फैशन के रूप में आरंभ होता है और फिर धीरे-धीरे आदत में शुमार होता चला जाता है। महिलाओं में मद्यपान की बढ़ती प्रवृत्ति के संबंध में किए गए सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि क़रीब 40 प्रतिशत महिलाएँ इसकी गिरफ्त में आ चुकी हैं, कि हमारे समाज के लिए अति घातक है । नशा का सेवन हमारे अर्थ व्यवस्था को नुक्सान पहुँचा रहा है।

मादक पदार्थों के उत्पादन, तस्करी एवं सेवन के दुष्परिणामों से लोगों को अवगत कराने के लिए प्रति वर्ष 26 जून को 'अंतर्राष्ट्रीय नशा व मादक पदार्थ निषेध दिवस' मनाया जाता है। लोगो को  कुव्यशन से दूर करने के लिए और समाज से मादक पदार्थों के बढ़ते उपयोग को ख़त्म करने के लिए हमारे ट्रस्ट के द्वारा भी नशामुक्ति  अभियान चलाया जा  रहा है।  आज अंतर्राष्ट्रीय नशा व मादक पदार्थ निषेध दिवस' पर में सभी देशवासियोँ से, विशेषकर हमारे युवा साथियों से  मादक पदार्थों के सेवन और उसके  अवैध तस्करी को रोकने हेतु एकजुट होकर संगठित प्रयास करने का आग्रह करता हूँ, क्योंकि मादक पदार्थों का सेवन ना  सिर्फ हमारे अकाल  मृत्यु का कारण बनता है, परिवारों को तोड़ता है बल्कि हमारी  अर्थव्यवस्था को भी नुक्सान पहुँचाता है।  इसके साथ ही मादक  पदार्थों के  तस्करी से  हमारे देश में  आतंकवाद एवं अपराधों को भी बढ़ावा मिल  रहा है।

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Monday, 8 June 2015

IT IS LITTLE THINGS THAT MAKE A BIG DIFFERENCE


There was a man taking a morning walk at or the beach. He saw that along with the morning tide came hundreds of starfish and when the tide receded, they were left behind and with the morning sun rays, they would die. The tide was fresh and the starfish were alive. The man took a few steps, picked one and threw it into the water. 
He did that repeatedly. Right behind him there was another person who couldn't understand what this man was doing. He caught up with him and asked, "What are you doing? There are hundreds of starfish. How many can you help? What difference does it make?" This man did not reply, took two more steps, picked up another one, threw it into the water, and said, "It makes a difference to this one."


MORAL OF THE STORY:

What difference are we making? Big or small, it does not matter. If everyone made a small difference, we'd end up with a big difference, wouldn't we?

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Monday, 1 June 2015

मानवता के आदर्शों की रक्षा

एक नाविक अपनी नौका लेकर समुद्री यात्रा पर निकला। मौसम सुहावना था और उसके बीच लहरों का संगीत अलग ही आनंद प्रदान कर रहा था। उसकी नौका समुद्र के बीचोंबीच थी कि अचानक समुद्र में तेज लहरें उठने लगी। यह देख नाविक चिंतित हो उठा। उसने दूरबीन से आसपास नजर दौड़ाई तो उसे दक्षिण दिशा में थोड़ी दूरी पर एक द्वीप दिखाई दिया। उसने अपनी नौका की दिशा तुरंत उसी ओर मोड़ दी।हालांकि समुद्री तूफान प्रबल था और उस नाविक को अपनी नौका दक्षिण दिशा की ओर ले जाने में काफी मुश्किल हो रही थी।
ऐसे में मन ही मन वह उस घड़ी को कोसने लगा, जब उसने समुद्री यात्रा पर निकलने की ठानी थी। खैर, वह किसी तरह नौका को उस द्वीप तक ले जाने में कामयाब रहा। उसने लंगर के सहारे नौका को द्वीप के किनारे पर टिकाया और उससे उतरकर बाहर आ गया। वह बहुत थक चुका था।वहां पर एक ऊंची, अविचलित चट्टान खड़ी थी, जिसकी स्वच्छता को देखकर उसके मन को थोड़ी शांति मिली। थोड़ी देर वहीं सुस्ताने के बाद वह आगे बढ़ा और एक टेकरी पर खड़ा होकर चारों ओर दृष्टिपात करने लगा।
उसने देखा कि समुद्र की उत्ताल तरंगें उस चट्टान पर निरंतर आघात कर रही हैं, तो भी चट्टान के मन में न तो कोई रोष है और न ही विद्वेष। संघर्षपूर्ण जीवन पाकर भी उसे कोई ऊब और उत्तेजना नहीं है। यह देखकर नाविक का हृदय उस चट्टान के प्रति श्रद्धा से भर गया।उसने चट्टान से पूछा - 'तुम पर लगातार आघात हो रहे हैं, फिर भी क्या तुम्हें कभी निराशा नहीं होती?" तब चट्टान की आत्मा धीरे से बोली - 'तात, निराशा कई बार हमें अपने कर्तव्य-पालन से रोक देती है। यदि हम निराश हो गए होते तो एक क्षण ही सही, दूर से आए अतिथियों को विश्राम देने, उनका स्वागत करने से वंचित रह जाते।"
यह सुनकर नाविक का मन एक अनूठी प्रेरणा से भर गया। वह मन ही मन सोचने लगा - 'जीवन में चाहे कितने ही संघर्ष क्यों न आएं, अब मैं भी चट्टान की तरह ही जिऊंगा, ताकि हमारी न सही, भावी पीढ़ी और मानवता के आदर्शों की रक्षा तो हो सके।

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