किसी नगर में एक विद्वान साधु रहता था। लोग उसके पास
अपनी समस्याएं लेकर आते और वहां से प्रसन्न होकर लौटते। एक दिन एक सेठ साधु
के पास आया और बोला,'महाराज, मेरे पास सब कुछ है, फिर भी मन शांत नहीं
रहता। मैं क्या करूं?' साधु कुछ न बोला और उठ कर चल दिया। सेठ भी पीछे-पीछे
चल पड़ा। आश्रम के एक खाली कोने में जाकर साधु ने वहां आग जलाई और
धीरे-धीरे कर उस आग में एक-एक लकड़ी डालता रहा। हर लकड़ी के साथ आग की लौ
तेज होती रही। कुछ देर बाद वह वहां से उठकर वापस अपनी जगह आकर चुपचाप बैठ
गया। सेठ भी साधु के पास आकर बैठ गया।
लेकिन जब साधु ने उससे कुछ भी न कहा तो सेठ हैरान होकर बोला,'महाराज, आपने मेरी समस्या का समाधान तो किया नहीं।' सेठ की बात सुनकर साधु मुस्कराते हुए बोला,'मैं इतनी देर से तुम्हारी समस्या का समाधान ही बता रहा था। शायद तुम समझे नहीं। देखो, हर व्यक्ति के अंदर आग होती है। उसमें प्यार की आहुति डालें तो वह मन को शांति और आनंद देती है। यदि उसमें दिन-रात काम, क्रोध, लोभ, मोह और मद की लकड़ियां डाली जाती रहें तो वह मन में अशांति उत्पन्न करती हैं, आग को और भड़काती हैं।
जब तक तुम अशांति फैलाने वाले इन तत्वों को आग में डालना बंद नहीं करोगे, तब तक तुम्हारा मन शांत नहीं होगा।' यह सुनकर सेठ की आंखें खुल गईं। वह प्रसन्न मन से साधु को नमस्कार कर अपने घर लौट आया। उसने भविष्य में अपने अंदर की आग में प्यार, करुणा और परोपकार की आहुति डालने का संकल्प कर लिया।
लेकिन जब साधु ने उससे कुछ भी न कहा तो सेठ हैरान होकर बोला,'महाराज, आपने मेरी समस्या का समाधान तो किया नहीं।' सेठ की बात सुनकर साधु मुस्कराते हुए बोला,'मैं इतनी देर से तुम्हारी समस्या का समाधान ही बता रहा था। शायद तुम समझे नहीं। देखो, हर व्यक्ति के अंदर आग होती है। उसमें प्यार की आहुति डालें तो वह मन को शांति और आनंद देती है। यदि उसमें दिन-रात काम, क्रोध, लोभ, मोह और मद की लकड़ियां डाली जाती रहें तो वह मन में अशांति उत्पन्न करती हैं, आग को और भड़काती हैं।
जब तक तुम अशांति फैलाने वाले इन तत्वों को आग में डालना बंद नहीं करोगे, तब तक तुम्हारा मन शांत नहीं होगा।' यह सुनकर सेठ की आंखें खुल गईं। वह प्रसन्न मन से साधु को नमस्कार कर अपने घर लौट आया। उसने भविष्य में अपने अंदर की आग में प्यार, करुणा और परोपकार की आहुति डालने का संकल्प कर लिया।
0 comments:
Post a Comment