Saturday, 28 November 2015

देना देवत्त है

एक बार एक शिक्षक संपन्न परिवार से सम्बन्ध रखने वाले एक युवा शिष्य के साथ कहीं टहलने निकले . उन्होंने देखा की रास्ते में पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते उतरे पड़े हैं , जो संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर के थे जो अब अपना काम ख़त्म कर घर वापस जाने की तयारी कर रहा था .शिष्य को मजाक सूझा उसने शिक्षक से कहा , “ गुरु जी क्यों न हम ये जूते कहीं छिपा कर झाड़ियों के पीछे छिप जाएं ; जब वो मजदूर इन्हें यहाँ नहीं पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा आएगा !!”
शिक्षक गंभीरता से बोले , “ किसी गरीब के साथ इस तरह का भद्दा मजाक करना ठीक नहीं है . क्यों ना हम इन जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और छिप कर देखें की इसका मजदूर पर क्या प्रभाव पड़ता है !!” शिष्य ने ऐसा ही किया और दोनों पास की झाड़ियों में छुप गए .
मजदूर जल्द ही अपना काम ख़त्म कर जूतों की जगह पर आ गया . उसने जैसे ही एक पैर जूते में डाले उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ , उसने जल्दी से जूते हाथ में लिए और देखा की अन्दर कुछ सिक्के पड़े थे , उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वो सिक्के हाथ में लेकर बड़े गौर से उन्हें पलट -पलट कर देखने लगा . फिर उसने इधर -उधर देखने लगा , दूर -दूर तक कोई नज़र नहीं आया तो उसने सिक्के अपनी जेब में डाल लिए .
अब उसने दूसरा जूता उठाया , उसमे भी सिक्के पड़े थे …मजदूर भावविभोर हो गया , उसकी आँखों में आंसू आ गए , उसने हाथ जोड़ ऊपर देखते हुए कहा – “हे भगवान् , समय पर प्राप्त इस सहायता के लिए उस अनजान सहायक का लाख -लाख धन्यवाद , उसकी सहायता और दयालुता के कारण आज मेरी बीमार पत्नी को दावा और भूखें बच्चों को रोटी मिल सकेगी .”
मजदूर की बातें सुन शिष्य की आँखें भर आयीं . शिक्षक ने शिष्य से कहा – “ क्या तुम्हारी मजाक वाली बात की अपेक्षा जूते में सिक्का डालने से तुम्हे कम ख़ुशी मिली ?” शिष्य बोला , “ आपने आज मुझे जो पाठ पढाया है , उसे मैं जीवन भर नहीं भूलूंगा . आज मैं उन शब्दों का मतलब समझ गया हूँ जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाया था कि लेने की अपेक्षा देना कहीं अधिक आनंददायी है . देने का आनंद असीम है . देना देवत्त है .”

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Wednesday, 25 November 2015

छोटा सा सम्मान

हमारे जीवन के छोटे से छोटे कार्य भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि आप जब भी किसी से मिलें, पूरी उत्साह एवं गर्मजोशी से मिलें, हमेशा दूसरों की मदद करें और जो काम करें पूरी  ईमानदारी के साथ,  फिर जीवन में  मुश्किल से मुश्किल घड़ियों में भी आपके लिए नए-नए रास्ते स्वतः खुलते चले  जाएंगे। आपका व्यव्य्हार आपके जीवन में किस तरह  सक्कारात्मक बदलाव ला सकती है  इसके  लिए में आपको एक कहानी सुनाता हूँ। यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो एक फ्रीजर प्लांट में कार्य करता था। दिन का अंतिम समय था और सभी लोग घर जाने को तैयार थे। तभी प्लांट में एक तकनीकी समस्या उत्पन्न हो गयी।  प्लांट का वह कर्मचारी प्लांट में उत्पन्न तकनिकी समस्या को दूर करने में जुट गया। जब तक वह कार्य पूरा करता, तब तक अत्यधिक देर हो गयी। लाईटें बुझा दी गईं, दरवाजे सील हो गये और वह उसी प्लांट में बंद हो गया। बिना हवा व प्रकाश के पूरी रात आइस प्लांट में फंसे रहने के कारण उसकी कब्रगाह बनना तय था।
लगभग आधा घण्टे का समय बीत गया। तभी उसने किसी को दरवाजा खोलते पाया। क्या यह एक चमत्कार था? उसने देखा कि दरवाजे पर सुरक्षा टार्च लिए खड़ा है। उसने उसे बाहर निकलने में मदद की।बाहर निकल कर उस व्यक्ति ने सुरक्षा गार्ड से पूछा "आपको कैसे पता चला कि मै भीतर हूँ?" गार्ड ने उत्तर दिया- "सर, इस प्लांट में 50 लोग कार्य करते हैँ पर सिर्फ एक आप हैँ जो मुझे सुबह आने पर `हैलो' व शाम को जाते समय `बाय' कहते हैँ। आज सुबह आप ड्यूटी पर आये थे पर शाम को आप बाहर नहीं गए। इससे मुझे शंका हुई और मैं देखने चला आया।'' 
वह व्यक्ति नहीं जानता था कि उसका किसी को छोटा सा सम्मान देना कभी उसका जीवन बचाएगा।  इस कथा का सार यह है कि जब भी आप किसी से मिलें तो उसका गर्मजोशी और मुस्कुराहट के साथ सम्मान करें। हमें नहीं पता, पर हो सकता है कि ये आपके जीवन में भी चमत्कार दिखा दे।

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Thursday, 19 November 2015

विश्व शौचालय दिवस

देश को खुले में शौच से मुक्त रखने का संकल्प लें
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों के करीब 2.5 अरब (36%) लोग खुले में शौच के लिये मजबूर हैं जबकि विश्व की जनसंख्या करीब 7 अरब है। खेद की बात यह है कि ऐसे खुले में शौच के लिये मजबूर लोगों में से 63.80 करोड़ (देश की कुल जनसंख्या के 53%) लोग भारतीय हैं। स्वाधीनता के 68 वर्ष बाद भी भारत की यह स्थिति सोचनीय है क्योंकि हमारा देश इस मामले में पडोसी देशों पाकिस्तान नेपाल से भी पिछड़ा हुआ है। चीन में तो शौचालय सुविधा रहित लोगों की जनसंख्या केवल 4% ही है।
खुले में शौच निवृति की मजबूरी असुविधाजनक तो होती ही है, किसी नागरिक, विशेषकर महिलाओं की निजता (privacy) का गंभीर उल्लंघन भी करती है। ऐसे मल त्याग से भू जल के प्रदूषित होने का भी ख़तरा बना ही रहता है जो वर्षा ऋतु में और भी गंभीर हो जाता है क्योंकि मल धूप से सूखने के पहले ही पानी के साथ बह निकलता है और रोगकारक कीटाणु फैलाता है। प्रदूषित पानी के कारण उल्टी-दस्त, हैजे जैसे संक्रामक रोग फैलते हैं।
इस गंभीर समस्या निजात पाने के लिए देश में खुले में शौच को रोकना परम आवश्यक है। यद्यपि वर्तमान में भारत सरकार प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की अगुवाई में स्वछता एवं शौचालय को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर कार्य कर रही है, आवश्यकता है इस कार्य को और गति देने कि यदि हम वास्तव में देशवासियों को सन 2019 तक खुले में शौच से मुक्त करना चाहते हैं। इसके लिए सरकार साथ देश की निजी क्षेत्र की औद्योगिक, कॉर्पोरेट घरानों एवं अन्य सामर्थ्यवान व्यक्तियों को आगे आना होगा। आज विश्व शौचालय दिवस पर हम सब अपने अपने स्तर घर, समाज, शहर देश को गंदगीमुक्त एवं खुले में शौच से मुक्त रखने का संकल्प लें।

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Monday, 16 November 2015

काँच की बरनी और दो कप चाय

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी – जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , ” काँच की बरनी और दो कप चाय ” हमें याद आती है । दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं …

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची … उन्होंने छात्रों से पूछा – क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ … आवाज आई … फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे – छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे – धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ … कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले – हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे … फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई …

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया – इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ….
टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,
छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और
रेत का मतलब और भी छोटी – छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..
अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी …
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है … यदि तुम छोटी – छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा … मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक – अप करवाओ … टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ….. पहले तय करो कि क्या जरूरी है … बाकी सब तो रेत है ..
छात्र  बडे़  ध्यान  से  सुन  रहे  थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि ” चाय के दो कप ” क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया …इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

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Saturday, 14 November 2015

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

कैंसर को विश्व की सबसे भयानक बीमारी कहा जाता है, लेकिन विश्व की सबसे खतरनाक बीमारी कैंसर नहीं बल्कि तनाव या चिंता है| कैंसर के कारण हर वर्ष लाखों लोगों की मृत्यु हो जाती है लेकिन तनाव एक ऐसी बीमारी है, जो जीवित व्यक्ति को जिन्दा लाश बना देती है| ऐसा कहा जाता है कि 80% से ज्यादा बिमारियों का कारण तनाव है  व्यक्ति भले ही शारीरिक रूप से असक्षम या बीमार हो लेकिन मानसिक रूप से स्वस्थ है तो उसे कोई नहीं हरा सकता| ऐसे कई प्रेरक व्यक्तित्व हैं जिन्होंने अपने सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य एंव आत्मविश्वास की बदौलत जिंदगी को जीत लिया|विल्मा रूडोल्फ जिन्हें चार वर्ष की उम्र में पोलियो हो गया था और डॉक्टरों ने कह दिया था कि वह कभी भी चल नहीं पायेगी लेकिन वह विश्व की सबसे तेज धावक बनी| स्टीफन हाकिंग जिन्हें 21 वर्ष की उम्र में  एमीयोट्रोफिक लेटरल क्लोरोसिस रोग हो गया था और डॉक्टर ने यह कह दिया था कि हाकिंग दो वर्ष से ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाएंगे लेकिन हाकिंग ने मौत को मात दे दी | दिमाग को छोड़ कर शेष सारे शरीर के निष्क्रिय हो जाने के बावजूद उन्होंने अपना शोध जारी रखा और आज वे विश्व के महान वैज्ञानिकों में से एक है। हरफनमौला क्रिकेटर युवराज सिंह जिन्हें कैंसर हो गया था लेकिन उन्होंने जल्द ही कैंसर को मात दे दी और क्रिकेट में वापसी कर ली|
अगर स्टीफन हाकिंग, विल्मा रूडोल्फ एंव युवराज सिंह जैसे लोग इस बात के गवाह हैं कि अगर आप सकारात्मक सोचते है और स्वंय पर विश्वास रखते है तो आपके लिए “असंभव कुछ भी नहीं” 

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Monday, 9 November 2015

`समय और धैर्य' जीवन के लक्ष्यों को पाने के लिए आवश्यक


एक साधु था , वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करता था ,”जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।”
बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीँ देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे।
एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसनेँ उस साधु की आवाज सुनी , “जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।” ,और आवाज सुनते ही उसके पास चला गया।
उसने साधु से पूछा -“महाराज आप बोल रहे थे कि ‘जो चाहोगे सो पाओगे’ तो क्या आप मुझको वो दे सकते हो जो मैँ जो चाहता हूँ?”
साधु उसकी बात को सुनकर बोला – “हाँ बेटा तुम जो कुछ भी चाहता है मैँ उसे जरुर दुँगा, बस तुम्हें मेरी बात माननी होगी। लेकिन पहले ये तो बताओ कि तुम्हें आखिर चाहिये क्या?”
युवक बोला-” मेरी एक ही ख्वाहिश है मैँ हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनना चाहता हूँ। “ साधू बोला ,” कोई बात नहीँ मैँ तुम्हे एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने भी हीरे मोती बनाना चाहोगे बना पाओगे !” और ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी की हथेली पर रखते हुए कहा , ” पुत्र , मैं तुम्हे दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं, लोग इसे ‘समय’ कहते हैं, इसे तेजी से अपनी मुट्ठी में पकड़ लो और इसे कभी मत गँवाना, तुम इससे जितने चाहो उतने हीरे बना सकते हो “
युवक अभी कुछ सोच ही रहा था कि साधु  उसका दूसरी हथेली , पकड़ते हुए बोला , ” पुत्र , इसे पकड़ो , यह दुनिया का सबसे कीमती मोती है , लोग इसे “धैर्य ” कहते हैं , जब कभी समय देने के बावजूद परिणाम ना मिले तो इस कीमती मोती को धारण कर लेना , याद रखना जिसके पास यह मोती है, वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर सकता है। “
युवक ने गम्भीरता से साधु की बातों पर विचार करते हुए निश्चय किया कि आज से वह कभी अपना समय बर्वाद नहीं करेगा और हमेशा धैर्य से काम लेगा। इस विचार को अपने अंदर आत्मसात करते हुए उसने हीरों के एक बहुत बड़े व्यापारी के यहाँ काम शुरू  किया और फिर अपनी मेहनत  एवं  ईमानदारी के बल पर एक दिन खुद भी हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बन गया ।
मित्रों, इस कथा का सार यह है कि ‘समय’ और ‘धैर्य’ वह दो हीरे-मोती हैं जिनके बल पर हम बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। अतः ज़रूरी है कि हम अपने कीमती समय को बर्वाद ना करें और अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए धैर्य से काम लें।

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Saturday, 7 November 2015

Struggles of life

Once upon a time a daughter complained to her father that her life was miserable and that she didn’t know how she was going to make it. She was tired of fighting and struggling all the time. It seemed just as one problem was solved, another one soon followed. Her father, a chef, took her to the kitchen. He filled three pots with water and placed each on a high fire.
Once the three pots began to boil, he placed potatoes in one pot, eggs in the second pot and ground coffee beans in the third pot. He then let them sit and boil, without saying a word to his daughter. The daughter, moaned and impatiently waited, wondering what he was doing. After twenty minutes he turned off the burners. He took the potatoes out of the pot and placed them in a bowl. He pulled the eggs out and placed them in a bowl. He then ladled the coffee out and placed it in a cup.
Turning to her, he asked. “Daughter, what do you see?” “Potatoes, eggs and coffee,” she hastily replied. “Look closer”, he said, “and touch the potatoes.” She did and noted that they were soft. He then asked her to take an egg and break it. After pulling off the shell, she observed the hard-boiled egg.
Finally, he asked her to sip the coffee. Its rich aroma brought a smile to her face. “Father, what does this mean?” she asked.
He then explained that the potatoes, the eggs and coffee beans had each faced the same adversity-the boiling water. However, each one reacted differently. The potato went in strong, hard and unrelenting, but in boiling water, it became soft and weak. The egg was fragile, with the thin outer shell protecting its liquid interior until it was put in the boiling water. Then the inside of the egg became hard. However, the ground coffee beans were unique. After they were exposed to the boiling water, they changed the water and created something new. “Which one are you?” he asked his daughter. “When adversity knocks on your door, how do you respond? Are you a potato, an egg, or a coffee bean?”
Moral of the story:  In life, things happen around us, things happen to us. but the only thing that truly matter is how you choose to react to it and when you make out of it. Life is all about learning, adopting and converting all the struggle that we experience into something positive.

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