Thursday, 19 November 2015

विश्व शौचालय दिवस

देश को खुले में शौच से मुक्त रखने का संकल्प लें
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों के करीब 2.5 अरब (36%) लोग खुले में शौच के लिये मजबूर हैं जबकि विश्व की जनसंख्या करीब 7 अरब है। खेद की बात यह है कि ऐसे खुले में शौच के लिये मजबूर लोगों में से 63.80 करोड़ (देश की कुल जनसंख्या के 53%) लोग भारतीय हैं। स्वाधीनता के 68 वर्ष बाद भी भारत की यह स्थिति सोचनीय है क्योंकि हमारा देश इस मामले में पडोसी देशों पाकिस्तान नेपाल से भी पिछड़ा हुआ है। चीन में तो शौचालय सुविधा रहित लोगों की जनसंख्या केवल 4% ही है।
खुले में शौच निवृति की मजबूरी असुविधाजनक तो होती ही है, किसी नागरिक, विशेषकर महिलाओं की निजता (privacy) का गंभीर उल्लंघन भी करती है। ऐसे मल त्याग से भू जल के प्रदूषित होने का भी ख़तरा बना ही रहता है जो वर्षा ऋतु में और भी गंभीर हो जाता है क्योंकि मल धूप से सूखने के पहले ही पानी के साथ बह निकलता है और रोगकारक कीटाणु फैलाता है। प्रदूषित पानी के कारण उल्टी-दस्त, हैजे जैसे संक्रामक रोग फैलते हैं।
इस गंभीर समस्या निजात पाने के लिए देश में खुले में शौच को रोकना परम आवश्यक है। यद्यपि वर्तमान में भारत सरकार प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की अगुवाई में स्वछता एवं शौचालय को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर कार्य कर रही है, आवश्यकता है इस कार्य को और गति देने कि यदि हम वास्तव में देशवासियों को सन 2019 तक खुले में शौच से मुक्त करना चाहते हैं। इसके लिए सरकार साथ देश की निजी क्षेत्र की औद्योगिक, कॉर्पोरेट घरानों एवं अन्य सामर्थ्यवान व्यक्तियों को आगे आना होगा। आज विश्व शौचालय दिवस पर हम सब अपने अपने स्तर घर, समाज, शहर देश को गंदगीमुक्त एवं खुले में शौच से मुक्त रखने का संकल्प लें।

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