Monday, 15 September 2014

निरर्थक चर्चा में खर्च न करें समय

भगवान बुद्ध, अनमोल समय के सदुपयोग के पक्षधर थे। निकम्मी बातों में समय गंवाने का सदा विरोध किया करते थे। कोई आदमी उनके पास आया और बोला, भगवन् आप बार-बार दुख और विमुक्ति पर ही बोलते हैं। कृप्या यह तो बताइए यह दुख होता किसको है? और दुखों से विमुक्ति होती किसको है?

प्रश्न करने वाले का प्रश्न निरर्थक था। पर बुद्ध कहां ऐसी निरर्थक चर्चा में उलझने वाले थे। वह प्रेमपूर्वक बोले भाई तुम्हें प्रश्न करना ही नहीं आता है। प्रश्न यह नहीं करना चाहिए था कि दुख किसे होता है । तुम्हें प्रश्न करना चाहिए था कि दुख क्यों होता है?और विमुक्ति कैसे होती है?

सार्थक बात यह है कि दुख से छुटकारा पाएं और इसके लिए यह जानना आवश्यक है कि दुख का कारण क्या है? और उसका निवारण क्या है? और उसका निवारण क्या है? इसे छोड़ सभी चर्चाएं व्यर्थ होतीं हैं। यह सब निरर्थक नहीं तो और क्या हैं।

तभी बुद्ध से कोई पूछता है कि भगवन् यह बताएं कि संसार को किसने बनाया है? तो फिर वह प्यार से समझते हैं कि किसी विष बुझे तीर से घायल व्यक्ति कभी नहीं पूछता कि उसे किसने बनाया है। बेहतर है कि उस तीर को निकाल लिया जाए तो पीड़ा से मुक्त होकर इलाज कराया जाए। तभी वह दुख मुक्त हो सकता है।

सार यह कि ----  मनुष्य  के पास जिंदगी में बहुत कम समय है अगर वह फिजूल की बातों में यू ही गंवा देगा तो कुछ हासिल नहीं कर सकता। इसलिए निरर्थक बातों से बचना चाहिए। इसी में समझदारी है।

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