Monday, 6 October 2014

मत फेंकें घृणा का कचरा दूसरों पर !



एक दिन महात्मा बुद्ध सुबह हमेशा की तरह भिक्षा मांगने एक घर के सामने रुक गए ! तब पता नहीं उस घर की गृहिणी किस क्रोध में घर को बुहार रही थी, जब बुद्ध को घर के सामने भिक्षा मांगते देखा तो क्रोध के आवेश में सारे घर का कचरा बुद्ध पर फ़ेंक दिया ! इस अप्रत्याशित घटना से कुछ पल के लिए बुद्ध भी हतप्रभ रह गए ! उनकी समझ में नही आया की, क्या हुआ है ! जब सारा शरीर बदबूदार हो गया तो, बुद्ध जैसे  करुणावान मनुष्य का मन भी पलभर को आहत हुआ  होगा वेदना से, उस दिन उन्होंने फिर कोई भिक्षा नहीं मांगी ! और अपने स्थान पर जाकर वे ध्यानमग्न होकर बैठ गए ! जैसे कुछ हुआ ही नहीं !

 संध्या काल जब बुद्ध अपने भिक्षुओंको अपने अमृतमय प्रवचन सुना रहे थे तब वह गृहिणी  वहां आकर, बुद्ध के चरणों में सर रख कर रोते हुए माफ़ी मांगते हुए अपनी सुबह की भूल के लिए पछतावा करने लगी।  महात्मा बुद्ध ने महिला के मन की व्यथा को समझते हुए कहा कि वो तो सुबह की घटना को कब का भूल चुके हैं और उस महिला से भी उन्होंने सुबह की घटना को भूल जाने की सलाह दी, यह कहते हुए कि सुबह क्रोध करनेवाला वाला कोई और मन था और अब माफ़ी मांगने वाला कोई और है ! सब मन का खेल है! और इस तरह महात्मा बुद्ध ने उस गृहिणी को क्षमा कर दिया !

इस कथा का सार यह है कि हमारे आस-पास भी बहुत सारे ऐसे ही लोग अपने-अपने घृणा का कचरा लिए बैठे है ! जरा सा आपने अपने मन का द्वार खोला नहीं की, फ़ेंक देते है उस कचरे को, सारी घृणा उंडेल देते हैं आप पर ! कितना भी सहनशील,संवेदनशील मन क्यों न हो आखिर बिखर ही जाता है ! दुखी होता है ! जीवन का सारा उत्साह जैसे समाप्त होने लगता है ! 

पर रुग्ण  मानसिकता से भरे मनुष्यों के बीच रहकर भी हमें महात्मा बुद्ध जैसा असाधारण मन, उनके जैसी करुणा एवं क्षमा भाव अपने स्वयं के अंदर विकसित कर, क्रोध एवं घृणा के विकार को अपने व्यक्तित्व से हमेशा के लिए खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि इसी में हम सबका, मानवता का कल्याण निहित है। 

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