Saturday, 31 January 2015

जिंदगी में ऊँची उडान भरने के लिए संघर्ष आवश्यक

एक राहगीर को सड़क किनारे किसी झाड़ पर एक तितली का अधखुला कोकून(यह एक खोल होता है जिसमें से तितली का जन्म होता  है )  दिखा ।वहां बैठकर कुछ घंटे उस  तितली को देखता रहा जो छोटे से छिद्र से बहार निकलने के लिए जी-तोड़ कोशिश किये जा रही थी. पर उससे बाहर निकलते नहीं बन रहा था। ऐसा लग रहा था कि तितली का उससे बाहर निकलना सम्भव नहीं है।

उस आदमी ने सोचा कि तितली की मदद की जाए। उसने कहीं से एक कतरनी लाया  और तितली के निकलने के छेद को थोड़ा सा बड़ा कर दिया।अब  तितली उसमें से आराम से निकल सकती थी । लेकिन वह बेहद कमज़ोर लग रही थी और उसके पंख भी नहीं खुल रहे थे। आदमी बैठा-बैठा तितली के पंख खोलकर फडफडाने का इंतजार करता रहा।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ।तितली ककून में ही फड़-फड़ाती रही पर तितली कभी नहीं उड़ पाई, और एक दिन मर गयी .
उस व्यक्ति को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हुआ ?  उस आदमी ने मदद किया काम आसान की,फिर क्यों नहीं उड़  पायी ?
दरअसल उस राहगीर को यह नहीं मालुम था की तितली का यही संघर्ष उसे जिंदगी में उड़न भरने का मौका देता है. उससे  बाहर आने की प्रक्रिया में ही उस तितली के तंतु जैसे पंखों में पोषक द्रव्यों का संचार होता है , यह प्रकृति की व्यवस्था थी कि तितली  अथक प्रयास करने के बाद ही ककून  से  पुख्ता  होकर बाहर निकलती है .
इसी तरह हमें भी अपने जीवन में संघर्ष करने की ज़रूरत होती है। यदि प्रकृति और जीवन हमारी राह में किसी तरह की बाधाएं न आने दें तो हम सामर्थ्यवान कभी न बन सकेंगे। जीवन में यदि शक्तिशाली और सहनशील बनना हो तो कष्ट तो उठाने ही पड़ेंगे।
इस कथा का सार यह है कि  जिंदगी में ऊँची उडान भरने  के लिए अपने कठिन परिस्थितियों से संघर्ष  जरुरी है ,संघर्ष जितना लम्बा और कठिन होगा  आपकी उपलब्धि उतनी बड़ी और  पुख्ता होगी.

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Thursday, 29 January 2015

जीभ की भांति सरल एवं विनम्र बनें

ऋषिकेश के एक प्रसिद्द महात्मा बहुत वृद्ध हो चले थे और उनका अंत निकट था . एक दिन उन्होंने सभी शिष्यों को बुलाया और कहा , ” प्रिय शिष्यों मेरा शरीर जीर्ण हो चुका है और अब मेरी आत्मा बार -बार मुझे इसे त्यागने को कह रही है , और मैंने निश्चय किया है कि आज के दिन जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा तब मैं इहलोक त्याग दूंगा .”

गुरु की वाणी सुनते ही शिष्य घबड़ा गए , शोक -विलाप करने लगे , पर गुरु जी ने सबको शांत रहने और इस अटल सत्य को स्वीकारने के लिए कहा .
कुछ देर बाद जब सब चुप हो गए तो एक शिष्य ने पुछा , ” गुरु जी , क्या आप आज हमें कोई शिक्षा नहीं देंगे ?”
“अवश्य दूंगा “, गुरु जी बोले।  ” मेरे निकट आओ और मेरे मुख में देखो .” एक शिष्य निकट गया और देखने लगा।
“बताओ , मेरे मुख में क्या दिखता है , जीभ या दांत ?” “उसमे तो बस जीभ दिखाई दे रही है .”, शिष्य बोला
फिर गुरु जी ने पुछा , “अब बताओ दोनों में पहले कौन आया था ?” “पहले तो जीभ ही आई थी .”, एक शिष्य बोला
“अच्छा दोनों में कठोर कौन था ?”, गुरु जी ने पुनः एक प्रश्न किया ” जी , कठोर तो दांत ही था . ” , एक शिष्य बोला .
” दांत जीभ से कम आयु का और कठोर होते हुए भी उससे पहले ही चला गया , पर विनम्र व संवेदनशील जीभ अभी भी जीवित है … शिष्यों , इस जग का यही नियम है , जो क्रूर है , कठोर है और जिसे अपने ताकत या ज्ञान का घमंड है उसका जल्द ही विनाश हो जाता है अतः तुम सब जीभ की भांति सरल ,विनम्र व प्रेमपूर्ण बनो और इस धरा को अपने सत्कर्मों से सींचो , यही मेरा आखिरी सन्देश है .”, और इन्ही शब्दों के साथ गुरु जी परलोक सिधार गए।

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Sunday, 25 January 2015

Let’s save our daughters, celebrate their births



Notwithstanding steps  being taken at various levels to bridge  gender inequality, our country still needs to do a lot arrest declining  female sex ratio and encourage birth of girl child. As per the latest report, the male female, male sex   ration in our country stands at 943 females per 1,000 males.
 In states like Haryana which has the lowest sex  ratio in the country is more alarming as out of 1000 males there are only 877 females. The situation in Haryana has come to such a sorry pass that a large number of boys in that  state on account of lopsided sex ration either are being constrained to remain  bachelor or they have to depend upon girls of other states to get married.  

On  the other hand there are states like Puducherry and Kerala where the number of women has outnumbered men. According to last  population census, Kerala houses a number of 1084 females to that of 1000 males. Similarly states like Karnataka, Andhra Pradesh and Maharashtra have shown a considerable  sign of improvement in terms of male, female sex ratio.

But much more needs to be done to bring female population of the country at par with male population and for that matter we need to look into reasons like violent treatment  meted out to the girl child as well as biased attitude towards women, leading to declining female sex  ration in the country. In this regard, Prime Minister Narendra Modi’s move to kickstart `Beti Bachao, Beti Padhao’ campaign in the country is quiet commendable. This noble initiative will surely change our perceptive towards female children in the society and the days  will not be far away when each home  in the country will celebrate birth of girl child.

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ऐसा कोई काम ना करें जिससे देश की महानता को आघात पहुंचे

एक बार की बात है , मगध साम्राज्य के सेनापति किसी व्यक्तिगत काम से चाणक्य से मिलने पाटलिपुत्र पहुंचे । शाम ढल चुकी थी , चाणक्य गंगा तट पर अपनी कुटिया में, दीपक के प्रकाश में कुछ लिख रहे थे। कुछ देर बाद जब सेनापति भीतर दाखिल हुए, उनके प्रवेश करते ही चाणक्य ने सेवक को आवाज़ लगायी और कहा , ” आप कृपया इस दीपक को ले जाइए और दूसरा दीपक जला कर रख दीजिये।”
सेवक ने आज्ञा का पालन करते हुए ठीक वैसा ही किया।
जब चर्चा समाप्त हो गयी तब सेनापति ने उत्सुकतावश प्रश्न किया-“ हे महाराज मेरी एक बात समझ नही आई ! मेरे आगमन पर आपने एक दीपक बुझवाकर रखवा दिया और ठीक वैसा ही दूसरा दीपक जला कर रखने को कह दिया .. जब दोनों में कोई अंतर न था तो ऐसा करने का क्या औचित्य है ?”
इस पर चाणक्य ने मुस्कुराते हुए सेनापति से कहा- “भाई पहले जब आप आये तब मैं राज्य का काम कर रहा था, उसमे राजकोष का ख़रीदा गया तेल था , पर जब मैंने आपसे बात की तो अपना दीपक जलाया क्योंकि आपके साथ हुई बातचीत व्यक्तिगत थी मुझे राज्य के धन को व्यक्तिगत कार्य में खर्च करने का कोई अधिकार नही, इसीलिए मैंने ऐसा किया। ”

उन्होंने कहना जारी रखा-“ स्वदेश से प्रेम का अर्थ है अपने देश की वस्तु को अपनी वस्तु समझकर उसकी रक्षा करना..ऐसा कोई काम मत करो जिससे देश की महानता को आघात पहुचे, प्रत्येक देश की अपनी संस्कृति और आदर्श होते हैं.. उन आदर्शों के अनुरूप काम करने से ही देश के स्वाभिमान की रक्षा होती है। ”

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Wednesday, 21 January 2015

ज्ञान और विवेक को जीवन में नियम पूर्वक लाना होगा



एक व्यक्ति एक प्रसिद्ध संत के पास गया और बोला गुरुदेव मुझे जीवन के सत्य का पूर्ण ज्ञान है | मैंने शास्त्रों का काफी ध्यान से अध्ययन किया है | फिर भी मेरा मन किसी काम में नही लगता | जब भी कोई काम करने के लिए बैठता हूँ तो मन भटकने लगता है तो मै उस काम को छोड़ देता हूँ | इस अस्थिरता का क्या कारण है ? कृपया मेरी इस समस्या का समाधान कीजिये |

संत ने उसे रात तक इंतज़ार करने के लिए कहा रात होने पर वह उसे एक झील के पास ले गया और झील के अन्दर चाँद का प्रतिविम्ब को दिखा कर बोले एक चाँद आकाश में और एक झील में, तुमारा मन इस झील की तरह है तुम्हारे पास ज्ञान तो है लेकिन तुम उसको इस्तेमाल करने की बजाये सिर्फ उसे अपने मन में लाकर बैठे हो, ठीक उसी तरह जैसे झील असली चाँद का प्रतिविम्ब लेकर बैठी है |

तुमारा ज्ञान तभी सार्थक हो सकता है जब तुम उसे व्यहार में एकाग्रता और संयम के साथ अपनाने की कोशिश करो | झील का चाँद तो मात्र एक भ्रम है तुम्हे अपने कम में मन लगाने के लिए आकाश के चन्द्रमा की तरह बनाना है, झील का चाँद तो पानी में पत्थर गिराने पर हिलाने लगता है जिस तरह तुमारा मन जरा-जरा से बात पर डोलने लगता है | 

तुम्हे अपने ज्ञान और विवेक को जीवन में नियम पूर्वक लाना होगा और अपने जीवन को जितना सार्थक और लक्ष्य हासिल करने में लगाना होगा खुद को आकाश के चाँद के बराबर बनाओ शुरू में थोड़ी परेशानी आयेगी पर कुछ समय बात ही तुम्हे इसकी आदत हो जायेगी।

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Saturday, 17 January 2015

कर्म की महानता



एक बार बुद्ध एक गांव में अपने किसान भक्त के यहां गए। शाम को किसान ने उनके प्रवचन का आयोजन किया। बुद्ध का प्रवचन सुनने के लिए गांव के सभी लोग उपस्थित थे, लेकिन वह भक्त ही कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। गांव के लोगों में कानाफूसी होने लगी कि कैसा भक्त है कि प्रवचन का आयोजन करके स्वयं गायब हो गया। प्रवचन खत्म होने के बाद सब लोग घर चले गए। रात में किसान घर लौटा। बुद्ध ने पूछा, कहां चले गए थे? गांव के सभी लोग तुम्हें पूछ रहे थे।

किसान ने कहा, दरअसल प्रवचन की सारी व्यवस्था हो गई थी, पर तभी अचानक मेरा बैल बीमार हो गया। पहले तो मैंने घरेलू उपचार करके उसे ठीक करने की कोशिश की, लेकिन जब उसकी तबीयत ज्यादा खराब होने लगी तो मुझे उसे लेकर पशु चिकित्सक के पास जाना पड़ा। अगर नहीं ले जाता तो वह नहीं बचता। आपका प्रवचन तो मैं बाद में भी सुन लूंगा। अगले दिन सुबह जब गांव वाले पुन: बुद्ध के पास आए तो उन्होंने किसान की शिकायत करते हुए कहा, यह तो आपका भक्त होने का दिखावा करता है। प्रवचन का आयोजन कर स्वयं ही गायब हो जाता है।

बुद्ध ने उन्हें पूरी घटना सुनाई और फिर समझाया, उसने प्रवचन सुनने की जगह कर्म को महत्व देकर यह सिद्ध कर दिया कि मेरी शिक्षा को उसने बिल्कुल ठीक ढंग से समझा है। उसे अब मेरे प्रवचन की आवश्यकता नहीं है। मैं यही तो समझाता हूं कि अपने विवेक और बुद्धि से सोचो कि कौन सा काम पहले किया जाना जरूरी है। यदि किसान बीमार बैल को छोड़ कर मेरा प्रवचन सुनने को प्राथमिकता देता तो दवा के बगैर बैल के प्राण निकल जाते। उसके बाद तो मेरा प्रवचन देना ही व्यर्थ हो जाता। मेरे प्रवचन का सार यही है कि सब कुछ त्यागकर प्राणी मात्र की रक्षा करो। इस घटना के माध्यम से गांव वालों ने भी उनके प्रवचन का भाव समझ लिया।

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Thursday, 15 January 2015

Let’s make our journey a `Happy Journey’; Let’s drive safely!



Road safety is one issue that needs special attention as there's one death reported every 4 minutes on the streets of India. India holds the highest number of deaths due to road accidents. According to the World Health Organization report, India suffers from the highest number of deaths - around 1,05,000 in absolute terms annually- due to road accidents in the world owing to poor infrastructure and dangerous driving habits.

Road traffic crashes take the lives of nearly 1.3 million every year, and injure 20-50 million more
in the world, India along with China are listed among countries with the highest number of deaths.

Poor road infrastructure, failure to comply with speed limits, growing drinking and driving habits, and refusal to use proper motorcycle helmets and use child car seats, are
among the main factors contributing to deaths from road
crashes.

As Road Safety week is currently being observed across the country, everybody who drives on the roads should essentially take a unanimous pledge to comply with traffic rules, speed limits, wear helmets and must not drive while drunk. These are the only ways we can reduce number of road casualties in India. Let’s make all our `yatra’ as `shubh yatra’ and journey and `Happy Journey’

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Wednesday, 14 January 2015

निंदा करने की प्रवृत्ति का त्याग करें !!


एक विदेशी को अपराधी समझ जब राजा ने फांसी का हुक्म सुनाया तो उसने अपशब्द कहते हुए राजा के विनाश की कामना की। राजा ने अपने मंत्री से, जो कई भाषाओं का जानकार था, पूछा- यह क्या कह रहा है? मंत्री ने विदेशी की गालियां सुन ली थीं, किंतु उसने कहा - महाराज! यह आपको दुआएं देते हुए कह रहा है- आप हजार साल तक जिएं। राजा यह सुनकर बहुत खुश हुआ, लेकिन एक अन्य मंत्री ने जो पहले मंत्री से ईष्र्या रखता था, आपत्ति उठाई- महाराज! यह आपको दुआ नहीं गालियां दे रहा है।

वह दूसरा मंत्री भी बहुभाषी था। उसने पहले मंत्री की निंदा करते हुए कहा- ये मंत्री जिन्हें आप अपना विश्वासपात्र समझते हैं, असत्य बोल रहे हैं। राजा ने पहले मंत्री से बात कर सत्यता जाननी चाही, तो वह बोला- हां महाराज! यह सत्य है कि इस अपराधी ने आपको गालियां दीं और मैंने आपसे असत्य कहा। पहले मंत्री की बात सुनकर राजा ने कहा- तुमने इसे बचाने की भावना से अपने राजा से झूठ बोला।

मानव धर्म को सर्वोपरि मानकर तुमने राजधर्म को पीछे रखा। मैं तुमसे बेहद खुश हुआ। फिर राजा ने विदेशी और दूसरे मंत्री की ओर देखकर कहा- मैं तुम्हें मुक्त करता हूं। निर्दोष होने के कारण ही तुम्हें इतना क्रोध आया कि तुमने राजा को गाली दी और मंत्री महोदय तुमने सच इसलिए कहा- क्योंकि तुम पहले मंत्री से ईष्र्या रखते हो। ऐसे लोग मेरे राज्य में रहने योग्य नहीं। तुम इस राज्य से चले जाओ।

वस्तुत: दूसरों की निंदा करने की प्रवृत्ति से अन्य की हानि होने के साथ-साथ स्वयं को भी नुकसान ही होता है।

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Tuesday, 13 January 2015

मालिक (God) पर आतंक का हमला...?

हँसता ,खेलता , बचपन मासूमियत से भरा ये  जीवन
क्या क्या सपने देखता ये जीवन  जीना  चाहता हे ये जीवन
 कभी हसना चाहता  ये जीवन कभी रोना चाहता  ये जीवन
 सरारत भरा जीवन  मुश्किलो भरा जीवन
  फ़िक्र चिंता सिखवा शिकायते भरा जीवन
कही पिता के कंदे पर  बैठा हुआ जीवन
कही माँ के आँचल में छुपा हुआ जीवन
 कभी दोस्तों के साथ मस्ती में डूबा हुआ जीवन
हर गम में बेगाना जीवन कभी हर रगं  से भरा ये जीवन
वो जीवन जीने के लिए देव भी पृथवी पर  आता हे  कान्हा बनकर सबका मन बहलाता हे
यु ही बचपन और बचपन ही देव तो क्या तुमने देव को को मरने का अपराध नही किया
किसी माँ के आँचल का श्राप नही लिया
 या किसी पिता के अश्रु की हायतुम्हे  नही लगी
 या किसी बहन  के धर्द को तूने महसूस नही हुआ 
या कोई भाई की   निराश नज़रो ने तुम्हे बेचैन नही किया
हेवनिययत हे! हेवनिययत हे!  हेवनिययत में तुम माँ पिता भाई बहन  को भूल गए

आतंकवाद के नाम पर इतने हैवान  हो गए की इंसानियत  को ही मार  गए

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Monday, 12 January 2015

सत्य का साथ कभी न छोड़े !!

आज स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर में आप सबको उनके जीवन से सम्बंधित एक प्रेरक प्रसंग सुनाता हूँ और उम्मीद करता हूँ आप सब उनकी जीवनी के इस प्रसंग से प्रेरणा लेकर सत्य को अपने जीवन में आत्मसात कर उसका सदैव अनुसरण करेंगे।

जैसा कि आप सभी जानते हैं - स्वामी विवेकानंद प्रारंभ से ही एक मेधावी छात्र थे और सभी लोग उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे। जब वो अपने साथी छात्रों से कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें सुनते थे। एक दिन कक्षा में वो कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे की उन्हें पता ही नहीं चला की कब मास्टर जी कक्षा में आए और पढ़ाना शुरू कर दिया। मास्टर जी ने अभी पढऩा शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी।कौन बात कर रहा है? मास्टर जी ने तेज आवाज़ में पूछा। सभी छात्रों ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों की तरफ इशारा कर दिया। मास्टर जी क्रोधित हो गए।

उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और पाठ से संबधित प्रश्न पूछने लगे। जब कोई भी उत्तर नहीं दे पाया। तब अंत में मास्टर जी ने स्वामी जी से भी वही प्रश्न किया, स्वामी जी तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हों , उन्होंने आसानी से उस प्रश्न का उत्तर दे दिया। यह देख मास्टर जी को यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बात-चीत में लगे हुए थे।फिर क्या था।

उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी। सभी छात्र एक-एक कर बेच पर खड़े होने लगे, स्वामी जी ने भी यही किया। मास्टर जी बोले - नरेन्द्र तुम बैठ जाओ!नहीं सर, मुझे भी खड़ा होना होगा क्योंकि वो मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था। स्वामी जी ने आग्रह किया। सभी उनकी सच बोलने की हिम्मत देख बहुत प्रभावित हुए।

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Sunday, 11 January 2015

`देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है'

भ्रमण एवं भाषणों से थके हुए स्वामी विवेकानंद अपने निवास स्थान पर लौटे। उन दिनों वे अमेरिका में एक महिला के यहां ठहरे हुए थे। वे अपने हाथों से भोजन बनाते थे। एक दिन वे भोजन की तैयारी कर रहे थे कि कुछ बच्चे पास आकर खड़े हो गए।

उनके पास सामान्यतया बच्चों का आना-जाना लगा ही रहता था। बच्चे भूखे थे। स्वामीजी ने अपनी सारी रोटियां एक-एक कर बच्चों में बांट दी। महिला वहीं बैठी सब देख रही थी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने स्वामीजी से पूछ ही लिया- 'आपने सारी रोटियां उन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?'

स्वामीजी के अधरों पर मुस्कान दौड़ गई। उन्होंने प्रसन्न होकर कहा- 'मां, रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है। इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही।' देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है।

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Thursday, 8 January 2015

India needs to increase spending on research & developme

Research and development (R&D) forms the basis of future competitiveness of any country, as it’s critical for innovation, and India is no exception. Ironically, despite India having better scientific research institutions, R&D and innovation capabilities are lower than other BRICS countries.
According to last Economic Survey, India accounts about 3 per cent of USD 1.6 trillion of global gross expenditure on research and development (GERD) in Power Purchase Parity, which is around five times lower than that of its neighbour China. 
Though, India scores better than China, Brazil and Russia on quality of scientific research institutions, the research undertaken in such institutions is not percolating down for commercial usage.
If we want India to be in the league of the most technologically developed nations, we essentially need to increase our budgetary provisions on the research and development works, unshackle our academic institutions from government control and give more autonomy to both the government and private institutions so as to enable them to carry out research and innovation works uninterruptedly..

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Wednesday, 7 January 2015

India needs to increase spending on R&D

Research and development (R&D) forms the basis of future competitiveness of any country, as it’s critical for innovation, and India is no exception. Ironicaally, despite India having better scientific research institutions, R&D and innovation capabilities are lower than other BRICS countries.
According to last Economic Survey, India accounts about 3 per cent of USD 1.6 trillion of global gross expenditure on research and development (GERD) in Ppwer Purchase Parity, which is around five times lower than that of its neighbour China. 
Though, India scores better than China, Brazil and Russia on quality of scientific research institutions, the research undertaken in such institutions is not percolating down for commercial usage.
However, according to a recently released report by Zinnov Management Consulting, “Global R&D Service Providers (GSPR) Rating 2014”, India’s R&D globalisation and services market is set to double by 2020 to US$ 38 billion.
If we want India to be in the league of the most technologically developed nations, we essentially need to increase our budgetary provisions on the research and development works, unshackle our academic institutions from government control and give more autonomy to both the government and private institutions so as to enable them to carry out research and innovation works uninterruptedly .

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Monday, 5 January 2015

इर्ष्या , क्रोध और अपमान

टोकियो के निकट एक महान ज़ेन मास्टर रहते थे , वो अब वृद्ध हो चुके थे और अपने आश्रम में ज़ेन बुद्धिज़्म की शिक्षा देते थे . एक नौजवान योद्धा , जिसने कभी कोई युद्ध नहीं हारा था ने सोचा की अगर मैं मास्टर को लड़ने के लिए उकसा कर उन्हें लड़ाई में हरा दूँ तो मेरी ख्याति और भी फ़ैल जायेगी और इसी विचार के साथ वो एक दिन आश्रम पहुंचा .
“ कहाँ है वो मास्टर , हिम्मत है तो सामने आये और मेरा सामना करे .”; योद्धा की क्रोध भरी आवाज़ पूरे आश्रम में गूंजने लगी .
देखते -देखते सभी शिष्य वहां इकठ्ठा हो गए और अंत में मास्टर भी वहीँ पहुँच गए . उन्हें देखते ही योद्धा उन्हें अपमानित करने लगा , उसने जितना हो सके उतनी गालियाँ और अपशब्द मास्टर को कहे . पर मास्टर फिर भी चुप रहे और शांती से वहां खड़े रहे .
बहुत देर तक अपमानित करने के बाद भी जब मास्टर कुछ नहीं बोले तो योद्धा कुछ घबराने लगा , उसने सोचा ही नहीं था की इतना सब कुछ सुनने के बाद भी मास्टर उसे कुछ नहीं कहेंगे …उसने अपशब्द कहना जारी रखा , और मास्टर के पूर्वजों तक को भला-बुरा कहने लगा …पर मास्टर तो मानो बहरे हो चुके थे , वो उसी शांती के साथ वहां खड़े रहे और अंततः योद्धा थक कर खुद ही वहां से चला गया .

उसके जाने के बाद वहां खड़े शिष्य मास्टर से नाराज हो गए , “ भला आप इतने कायर  कैसे हो सकते हैं, आपने उस दुष्ट को दण्डित क्यों नहीं किया , अगर आप लड़ने से डरते थे , तो हमें आदेश दिया होता हम उसे छोड़ते नहीं !!”, शिष्यों ने एक स्वर में कहा .
मास्टर मुस्कुराये और बोले , “ यदि तुम्हारे पास कोई कुछ सामान लेकर आता है और तुम उसे नहीं लेते हो तो उस सामान का क्या होता है ?”
“ वो उसी के पास रह जाता है जो उसे लाया था .”, किसी शिष्य ने उत्तर दिया.

“ यही बात इर्ष्या , क्रोध और अपमान के लिए भी लागू होती है .”- मास्टर बोले . “ जब इन्हें स्वीकार नहीं किया जाता तो वे उसी के पास रह जाती हैं जो उन्हें लेकर आया था .”

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Saturday, 3 January 2015

मार्मिक कहानी एक बच्चे और उसके गुड़िया की

 यह कहानी उन लोगो के लिए है जो रफ़्तार को शान समझते है, जो ड्राइविंग के नियमो का पालन करना कमजोर लोगो का काम समझते है, यह कहानी है एक ऐसे बच्चे की कि किस तरह वो शराब के नशे में बहके एक युवक की उदण्डता से अपनी माँ एवं बहन को सड़क दुर्घटना में खोकर अनाथ हो गया। आश्वस्त हूँ यह कहानी अवश्य ही आपको प्रेरित करेगी इस नए साल 2015  में एक `संकल्प' लेने  के लिए।  आपसे विनम्र आग्रह है अपने संकल्प से हमें अवश्य अवगत कराएं। 

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कहानी कुछ यूं है -- एक छोटा सा लड़का जिस की उम्र कोई 6 या 7 साल थी. एक खिलोने की दूकान पर खड़ा दुकानदार से कुछ बात कर रहा था, दुकानदार ने न जाने उससे क्या कहा की वो वह से थोडा सा दूर हट गया और वहां से खड़े खड़े वो कभी दुकान पर रखी एक सुन्दर सी गुडिया को देखता और कभी अपनी जेब में हाथ डालता. वो फिर आँख बंद करके कुछ सोचता और फिर दुबारा गुडिया को देखने और अपनी जेब टटोलने का क्रम दुहराने लगता.
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वही कुछ दूर पर खड़ा एक आदमी बहुत देर से उसकी ओर देख रहा था. वो आदमी जैसे ही आगे को बढ़ा वो बच्चा दुकानदार के पास गया और कुछ बोला फिर दुकानदार की आवाज सुनाई पड़ी की नहीं ? तुम ये गुडिया नहीं खरीद सकते क्योकि तुम्हारे पास जो पैसे है वो काफी कम है.
वो बच्चा उस आदमी की और मुड़ा और उसने उस आदमी से पूछा अंकल क्या आपको लगता है की मेरे पास वास्तव में कम पैसे है. उस आदमी ने पैसे गिने और बोला हाँ बेटा ये वास्तव में कम है. तुम इतने पैसो से वो गुडिया नहीं खरीद सकते. उस लड़के ने आह भरी और फिर उदास मन से उस गुडिया को घूरने लगा.
अब उस आदमी ने उस लड़के से पूछा ” तुम ये गुडिया ही क्यों लेना चाहते हो”. लड़के ने उत्तर दिया ये गुडिया मेरी बहन को बहुत पसंद है. और मैं ये गुडिया उसको उसके जन्मदिन पर गिफ्ट करना चाहता हूँ . मुझे ये गुडिया अपनी माँ को देनी है, ताकि वो ये गुडिया मेरे बहन को दे दें जब वो उसके पास जाये.
.उस आदमी ने पूछा कहाँ रहती है तुम्हारी बहन . छोटा लड़का बोला मेरी बहन भगवान के पास चली गयी है और पापा कहते है जल्दी ही मेरी माँ भी उससे मिलने भगवान के पास जाने वाली है। मैं  चाहता हूँ  की मेरी माँ जब भगवान के पास जाये तो वो ये गुडिया मेरी बहन के लिए ले जाये. उस व्यक्ति की आखों से आँसूं छलकने लगे थे. पर लड़का अभी बोल ही रहा था. `मैं पापा से कहूँगा कि वो माँ को कहे की कुछ और तक दिन भगवान के पास न जाये. ताकि मै कुछ और पैसे जमा कर लूँ और ये गुडिया लेकर अपनी  बहन के लिए भेज दूँ।  फिर उसने अपनी एक फोटो जेब से निकली इस फोटो में वो हँसता हुआ बहुत सुन्दर दिख रहा था.
.फोटो दिखाकर वो बोला ये फोटो भी मै अपनी माँ को दे दूंगा, ताकि वो इसे भी मेरी बहिन को दे ताकि वो हमेशा मुझे याद रख सके…………. मै जानता हूँ कि मेरी माँ इतनी जल्दी मुझे छोड़ कर मेरी बहन से मिलने नहीं जाएगी. लेकिन पापा कहते है की वो 2 -1 दिन में चली जाएगी.
उस आदमी ने झट से अपनी जेब से पर्स निकला और उसमे से एक 100 रुपए का नोट निकल कर कहा……….. लाओ अपने पैसे दो मैं दुकानदार से कहता हु शायद वो इतने पैसे में ही दे दे. और उसने उस लड़के के सामने रुपये गिनने का अभिनय किया और बोला…….. अरे तुम्हारे पास तो उस गुडिया की कीमत से अधिक पैसे हैं।  उस लड़के ने आकाश की ओर देख कर कहा भगवान तेरा धन्यवाद….
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अब वो लड़का उस आदमी से बोला कल रात को मैंने भगवान से कहा था कि  हे भगवान मुझे इतने पैसे दे देना की मैं वो गुडिया ले सकूँ।  वैसे मै एक सफ़ेद गुलाब भी लेना चाहता था किन्तु भगवान से ज्यादा माँगना मुझे ठीक नहीं लगा. पर उसने मुझे खुद ही इतना दे दिया की मैं  गुडिया और गुलाब दोनों ले सकता हूँ . मेरी माँ को सफ़ेद गुलाब बहुत पसंद है.
.उस व्यक्ति की आँखों से आँसूं नीचे गिरने लगे. अपने आँसूं को पोंछते  हुए उसने हुए उस लड़के से कहा ठीक है बच्चे अपना ख्याल रखना. और वो वहाँ  से चला गया. रस्ते भर उस व्यक्ति के मानस पटल पर उस छोटे से बच्चे  की यादें घुमरती रही। फिर अचानक उसे दो  दिन पहले अख़बार में छपी खबर याद आयी जिसमें एक सडक हादसे की समाचार छपी  थी की किस   तरह शराब के नशे में एक युवक ने एक दूसरी गाड़ी को टक्कर मार दी.
गाड़ी में सवार एक लडकी की मौके पर ही मृत्यु हो गयी और महिला गंभीर रूप से घायल थी।  उसके मन में ख्याल आया कहिं इस सड़क हादसे का सम्बन्ध उस छोटे से बच्चे  से  तो नहीं, कहिं मृतक उसकी  बहन तो नहीं थी ?

अगले दिन अख़बार में खबर आयी की उस महिला की भी मृत्यु  हो गयी है।  समाचार पढ़ते ही वह  व्यक्ति उस मृतक महिला के घर सफ़ेद गुलाब के फूल ले कर गया. उस महिला का शव आँगन में रखा था।  उसके मृत शरीर पर वो सुन्दर सी गुडिया थी जो उस लड़के ने ली थी और उस महिला के एक हाथ में उस लड़के की वो फोटो थी और दुसरे में वो सफ़ेद गुलाब का फूल था.
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वो आदमी रोता हुआ बाहर निकला. उसके मन में एक ही बात थी कि किस तरह शराब के नशे में  चूर एक युवक के कारण  एक छोटा सा बच्चा अपनी माँ और बहन से दूर हो गया, जिन्हें वो बहुत प्यार करता था। 
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इस कहानी को कहते हुए मेरी आँखें नम हो गई  हैं और शायद आपकी भी यह जानकर कि  किस तरह शराब का नशा एक हँसते-खेलते परिवार को तहस- नहस  कर सकता है।  शराब पी कर,  कानों में ईयर फ़ोन लगा  कर गाडी चलाना, ना  सिर्फ  एक अपराध है बल्कि देश में बढ़ते सड़क दुर्घटनाओं से होने वाले असामयिक  मृत्यु का सबसे  बड़ा कारण भी ।  आवश्यकता है हम सब इस कहानी  सीख लें। 

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