Tuesday, 13 January 2015

मालिक (God) पर आतंक का हमला...?

हँसता ,खेलता , बचपन मासूमियत से भरा ये  जीवन
क्या क्या सपने देखता ये जीवन  जीना  चाहता हे ये जीवन
 कभी हसना चाहता  ये जीवन कभी रोना चाहता  ये जीवन
 सरारत भरा जीवन  मुश्किलो भरा जीवन
  फ़िक्र चिंता सिखवा शिकायते भरा जीवन
कही पिता के कंदे पर  बैठा हुआ जीवन
कही माँ के आँचल में छुपा हुआ जीवन
 कभी दोस्तों के साथ मस्ती में डूबा हुआ जीवन
हर गम में बेगाना जीवन कभी हर रगं  से भरा ये जीवन
वो जीवन जीने के लिए देव भी पृथवी पर  आता हे  कान्हा बनकर सबका मन बहलाता हे
यु ही बचपन और बचपन ही देव तो क्या तुमने देव को को मरने का अपराध नही किया
किसी माँ के आँचल का श्राप नही लिया
 या किसी पिता के अश्रु की हायतुम्हे  नही लगी
 या किसी बहन  के धर्द को तूने महसूस नही हुआ 
या कोई भाई की   निराश नज़रो ने तुम्हे बेचैन नही किया
हेवनिययत हे! हेवनिययत हे!  हेवनिययत में तुम माँ पिता भाई बहन  को भूल गए

आतंकवाद के नाम पर इतने हैवान  हो गए की इंसानियत  को ही मार  गए

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