एक राहगीर को सड़क किनारे किसी झाड़ पर एक तितली का अधखुला कोकून(यह एक खोल होता है जिसमें से तितली का जन्म होता है ) दिखा ।वहां बैठकर कुछ घंटे उस तितली को देखता रहा जो छोटे से छिद्र से बहार निकलने के लिए जी-तोड़ कोशिश किये जा रही थी. पर उससे बाहर निकलते नहीं बन रहा था। ऐसा लग रहा था कि तितली का उससे बाहर निकलना सम्भव नहीं है।
उस आदमी ने सोचा कि तितली की मदद की जाए। उसने कहीं से एक कतरनी लाया और तितली के निकलने के छेद को थोड़ा सा बड़ा कर दिया।अब तितली उसमें से आराम से निकल सकती थी । लेकिन वह बेहद कमज़ोर लग रही थी और उसके पंख भी नहीं खुल रहे थे। आदमी बैठा-बैठा तितली के पंख खोलकर फडफडाने का इंतजार करता रहा।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ।तितली ककून में ही फड़-फड़ाती रही पर तितली कभी नहीं उड़ पाई, और एक दिन मर गयी .
उस व्यक्ति को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हुआ ? उस आदमी ने मदद किया काम आसान की,फिर क्यों नहीं उड़ पायी ?
दरअसल उस राहगीर को यह नहीं मालुम था की तितली का यही संघर्ष उसे जिंदगी में उड़न भरने का मौका देता है. उससे बाहर आने की प्रक्रिया में ही उस तितली के तंतु जैसे पंखों में पोषक द्रव्यों का संचार होता है , यह प्रकृति की व्यवस्था थी कि तितली अथक प्रयास करने के बाद ही ककून से पुख्ता होकर बाहर निकलती है .
इसी तरह हमें भी अपने जीवन में संघर्ष करने की ज़रूरत होती है। यदि प्रकृति और जीवन हमारी राह में किसी तरह की बाधाएं न आने दें तो हम सामर्थ्यवान कभी न बन सकेंगे। जीवन में यदि शक्तिशाली और सहनशील बनना हो तो कष्ट तो उठाने ही पड़ेंगे।
इस कथा का सार यह है कि जिंदगी में ऊँची उडान भरने के लिए अपने कठिन परिस्थितियों से संघर्ष जरुरी है ,संघर्ष जितना लम्बा और कठिन होगा आपकी उपलब्धि उतनी बड़ी और पुख्ता होगी.
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