Monday, 30 March 2015

बुद्धि का बल

विश्व के महानतम दार्शनिकों में से एक सुकरात एक बार अपने शिष्यों के साथ बैठे कुछ चर्चा कर रहे थे। तभी वहां अजीबो-गरीब वस्त्र पहने एक ज्योतिषी आ पहुंचा। वह सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए बोला ,” मैं ज्ञानी हूँ ,मैं किसी का चेहरा देखकर उसका चरित्र बता सकता हूँ। बताओ तुममें से कौन मेरी इस विद्या को परखना चाहेगा?”

शिष्य सुकरात की तरफ देखने लगे। सुकरात ने उस ज्योतिषी से अपने बारे में बताने के लिए कहा।
अब वह ज्योतिषी उन्हें ध्यान से देखने लगा। सुकरात बहुत बड़े ज्ञानी तो थे लेकिन देखने में बड़े सामान्य थे , बल्कि उन्हें कुरूप कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी। ज्योतिषी उन्हें कुछ देर निहारने के बाद बोला, ” तुम्हारे चेहरे की बनावट बताती है कि तुम सत्ता के विरोधी हो , तुम्हारे अंदर द्रोह करने की भावना प्रबल है। तुम्हारी आँखों के बीच पड़ी सिकुड़न तुम्हारे अत्यंत क्रोधी होने का प्रमाण देती है ….”

ज्योतिषी ने अभी इतना ही कहा था कि वहां बैठे शिष्य अपने गुरु के बारे में ये बातें सुनकर गुस्से में आ गए और उस ज्योतिषी को तुरंत वहां से जाने के लिए कहा। पर सुकरात ने उन्हें शांत करते हुए ज्योतिषी को अपनी बात पूर्ण करने के लिए कहा।
ज्योतिषी बोला , ” तुम्हारा बेडौल सिर और माथे से पता चलता है कि तुम एक लालची ज्योतिषी हो , और तुम्हारी ठुड्डी की बनावट तुम्हारे सनकी होने के तरफ इशारा करती है।” इतना सुनकर शिष्य और भी क्रोधित हो गए पर इसके उलट सुकरात प्रसन्न हो गए और ज्योतिषी को इनाम देकर विदा किया। शिष्य सुकरात के इस व्यवहार से आश्चर्य में पड़ गए और उनसे पूछा , ” गुरूजी , आपने उस ज्योतिषी को इनाम क्यों दिया, जबकि उसने जो कुछ भी कहाँ वो सब गलत है ?”
” नहीं पुत्रों, ज्योतिषी ने जो कुछ भी कहा वो सब सच है , उसके बताये सारे दोष मुझमें हैं, मुझे लालच है , क्रोध है , और उसने जो कुछ भी कहा वो सब है , पर वह एक बहुत ज़रूरी बात बताना भूल गया , उसने सिर्फ बाहरी चीजें देखीं पर मेरे अंदर के विवेक को नही आंक पाया, जिसके बल पर मैं इन सारी बुराइयों को अपने वष में किये रहता हूँ , बस वह यहीं चूक गया, वह मेरे बुद्धि के बल को नहीं समझ पाया !” , सुकरात ने अपनी बात पूर्ण की।

मित्रों , यह प्रेरक प्रसंग बताता है कि बड़े से बड़े इंसान में भी कमियां हो सकती हैं, पर यदि हम अपनी बुद्धि का प्रयोग करें तो सुकरात की तरह ही उन कमियों से पार पा सकते हैं।

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Saturday, 28 March 2015

भगवान श्रीराम की गुरुसेवा से प्रेरणा लें

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम अपने शिक्षागुरु विश्वामित्रजी के पास बहुत संयम, विनय और विवेक से रहते थे। गुरु की सेवा में वे सदैव तत्पर रहते थे। उनकी सेवा के विषय में भक्त कवि तुलसीदासजी ने लिखा हैः

मुनिबर सयन कीन्हि तब जाई। लगे चरन चापन दोउ भाई।।
जिन्ह के चरन सरोरूह लागी। करत बिबिध जप जोग बिरागी।।
बार बार मुनि अग्या दीन्ही। रघुबर जाइ सयन तब कीन्ही।।
(श्रीरामचरित मानस, बालकांडः 225.2.3)
गुर तें पहिलेहिं जगतपति जागे रामु सुजान।।
(श्रीरामचरित मानस, बालकांडः 226)
सीता स्वयंवर में जब सब राजा एक-एक करके धनुष उठाने का प्रयत्न कर रहे थे, तब श्रीराम संयम से बैठे ही रहे। जब गुरु विश्वामित्र की आज्ञा हुई तभी वे खड़े हुए और उन्हें प्रणाम करके धनुष उठाया।
सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा। हरषु बिषादु न कछु उर आवा।।
(श्रीरामचरित मानस, बालकांडः 253.4)
गुरहि प्रनामु मनहिं मन कीन्हा। अति लावघवँ उठाइ धनु लीन्हा।।
(श्रीरामचरित मानस, बालकांडः 260.3)
श्री सदगुरुदेव के आदर और सत्कार में श्रीराम कितने विवेकी और सचेत थे इसका उदाहरण तब देखने को मिलता है, जब उनको राज्योचित शिक्षण देने के लिए उनके गुरु वसिष्ठजी महाराज महल में आते हैं। सदगुरु के आगमन का समाचार मिलते ही श्रीराम सीता जी सहित दरवाजे पर आकर गुरुदेव का सम्मान करते हैं-
गुरु आगमनु सुनत रघुनाथा। द्वार आइ पद नायउ माथा।।
सादर अरघ देइ घर आने। सोरह भाँति पूजि सनमाने।।
गहे चरन सिय सहित बहोरी। बोले रामु कमल कर जोरी।।
(श्रीरामचरित मानस, अयोध्याकांडः 8.1.2)
इसके उपरांत श्रीरामजी भक्तिभावपूर्वक कहते हैं- "नाथ ! आप भले पधारे। आपके आगमन से घर पवित्र हुआ। परंतु होना तो यह चाहिए था कि आप समाचार भेज देते तो यह दास स्वयं सेवा में उपस्थित हो जाता।"
इस प्रकार ऐसी विनम्र भक्ति से श्रीराम अपने गुरुदेव को संतुष्ट रखते थे।  इस कथा का  तात्पर्य यह कि हम सभी को भगवान श्री राम की गुरु भक्ति को अपने अंदर आत्मसात कर उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। 

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Switch off lights of your homes today at 8.30 pm


राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने कहा था कि `पृथ्वी हर मनुष्यों के इच्छाओं की पूर्ति करती है, उसके लालचों एवं लिप्साओं को नहीं' . आज के सन्दर्भ में भी गांधी जी का यह कथन उतना ही प्रासंगिक है। पृथ्वी पर मानव सभ्यता के प्रारम्भ से  ही, इसका निरंतर दोहन हम अपने हितों के लिए करते आ रहे हैं, पर दुर्भाग्यवश हम सब पृथ्वी को उसका हक़ लौटने के बारे में कभी नहीं सोचते, जिससे कि उसकी सुंदरता, प्राकृतिक छटा एवं पर्यावरण  संतुलन हमेशा अक्षुण बनी रहे।

आज  `अर्थ ऑवर; हमें अवसर दे रहा है  हमारी इस जननी रूपी धरा को इसका हक़ वापस लौटाने का।  आइये हम सब आज (28 मार्च, शनिवार ) को अपने अपने घरों  में संध्या 8.30 से 9.30  बजे तक बत्तियों एवं सभी बिजली उपकरणों को बंद रखें।  हमारा यह प्रयास ना सिर्फ हमारे देश की ऊर्जा को बचाने मददगार होगा बल्कि पृथ्वी के पर्यावरण संतुलन सुरक्षित रखने में सहायक सिद्ध होगा।     

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Tuesday, 24 March 2015

Time to up fight against Tuberculosis

Tuberculosis is a  hazardous disease which causes nearly 1.6 million deaths every year around the planet. The disease is a major barrier to social and economic development. An estimated 100 million workdays are lost due to illness. Society and the country also incur a huge cost due to TB.
 As far as India is concerned, it continues to be the highest TB burden country in the world. Every year, 1.8 million persons develop the disease, of which about 800,000 are infectious; and, until recently, 370,000 died of it annually —1,000 every day, two deaths every three minutes. But these deaths can be prevented.



Though fightagainst TB in India is still far from over notwithstanding sincere efforts being made by the government authorities to check prevalence of the disease, with proper care and treatment, TB patients can be cured and the battle against TB can be won. On World Tuberculosis Day today, let us join fight against TB so as to eliminate this disease from India and the world for once and all.

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Monday, 23 March 2015

क्षमा एवं सदभावना

हजरत मोहम्मद जब भी नमाज पढ़ने मस्जिद जाते तो उन्हें नित्य ही एक वृद्धा के घर के सामने से निकलना पड़ता था। वह वृद्धा अशिष्ट, कर्कश और क्रोधी स्वभाव की थी। जब भी मोहम्मद साहब उधर से निकलते, वह उन पर कूड़ा-करकट फेंक दिया करती थी। मोहम्मद साहब बगैर कुछ कहे अपने कपड़ों से कूड़ा झाड़कर आगे बढ़ जाते। प्रतिदिन की तरह जब वे एक दिन उधर से गुजरे तो उन पर कूड़ा आकर नहीं गिरा। उन्हें कुछ हैरानी हुई, किंतु वे आगे बढ़ गए।
अगले दिन फिर ऐसा ही हुआ तो मोहम्मद साहब से रहा नहीं गया। उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी। वृद्धा ने दरवाजा खोला। दो ही दिन में बीमारी के कारण वह अत्यंत दुर्बल हो गई थी। मोहम्मद साहब उसकी बीमारी की बात सुनकर हकीम को बुलाकर लाए और उसकी दवा आदि की व्यवस्था की। उनकी सेवा और देखभाल से वृद्धा शीघ्र ही स्वस्थ हो गई।
अंतिम दिन जब वह अपने बिस्तर से उठ बैठी तो मोहम्मद साहब ने कहा- अपनी दवाएं लेती रहना और मेरी जरूरत हो तो मुझे बुला लेना। वृद्धा रोने लगी। मोहम्मद साहब ने उससे रोने का कारण पूछा तो वह बोली, मेरे र्दुव्यवहार के लिए मुझे माफ कर दोगे? वे हंसते हुए कहने लगे- भूल जाओ सब कुछ और अपनी तबीयत सुधारो। वृद्धा बोली- मैं क्या सुधारूंगी तबीयत? तुमने तबीयत के साथ-साथ मुझे भी सुधार दिया है। तुमने अपने प्रेम और पवित्रता से मुझे सही मार्ग दिखाया है। मैं आजीवन तुम्हारी अहसानमंद रहूंगी।
घटना का संदेश है कि जिसने स्वयं को प्रेम,क्षमा व सद्भावनामें डुबोकर पवित्र कर लिया, उसने संत-महात्माओं से भी अधिक प्राप्त कर लिया।

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Sunday, 22 March 2015

जल ही जीवन है, इसे व्यर्थ ना गवाएँ


आज (22 मार्च) सम्पूर्ण  विश्व में जलसंरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है आज जल की महत्ता को समझते हुए जल को बचाने के संकल्प का दिन, जल संरक्षण के प्रति सचेत होने का दिन है आँकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नही मिल रहा है।
एक तथ्य के  अनुसार, 1 लीटर गाय का दूध प्राप्त करने के लिए हमें 800 लीटर पानी खर्च करना पड़ता है, एक किलो गेहूँ उगाने के लिए 1 हजार लीटर और एक किलो चावल उगाने के लिए 4 हजार लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इस प्रकार भारत में 83 प्रतिशत पानी खेती और सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है।  जल से जुड़े यदि कुछ और आंकड़ों पर गौर करें तो हमें ज्ञात होता है कि पिछले 50 वर्षों में पानी के लिए 37 भीषण हत्याकांड हुए हैं, प्रत्येक वर्ष पानीजन्य रोगों से विश्व में 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है और हमारे देश में ग्रामीण नारियों को पानी के लिए औसतन चार मील पैदल चलना पड़ता है
एक समय ऐसा था जब हमारे देश की गोदी में हज़ारों नदियाँ खेलती थी, आज वे नदियाँ हज़ारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। कहाँ गई वे नदियाँ, कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड़ दें आज हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं,  यह अलग  बात है कि हमारी सरकारें जल संकट के  मद्देनज़र इनके रख-रखाव और संरक्षण के प्रति सचेत हो गई हैं। 

प्रकृति जीवनदायी संपदा जल हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, हम भी इस चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चक्र को गतिमान रखना हमारी ज़िम्मेदारी है, चक्र के थमने का अर्थ है, हमारे जीवन का थम जाना। प्रकृति के ख़ज़ाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित होने दें और पानी को व्यर्थ गँवाएँ यह प्रण लेना आज के दिन बहुत आवश्यक है। समय गया है जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें। बारिश कीएक-एक बूँदकीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा।

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Saturday, 21 March 2015

समस्याएँ हैं तो समाधान भी होगा


भगवान बुद्ध अक्सर अपने शिष्यों को शिक्षा प्रदान किया करते थे। एक दिन प्रातः काल बहुत से भिक्षुक उनका प्रवचन सुनने के लिए बैठे थे बुद्ध समय पर सभा में पहुंचे, पर आज शिष्य उन्हें देखकर चकित थे क्योंकि आज पहली बार वे Interesting Hindi Storyअपने हाथ में कुछ लेकर आए थे। करीब आने पर शिष्यों ने देखा कि उनके हाथ में एक रस्सी थी। बुद्ध ने आसन ग्रहण किया और बिना किसी से कुछ कहे वे रस्सी में गांठें लगाने लगे

वहाँ उपस्थित सभी लोग यह देख सोच रहे थे कि अब बुद्ध आगे क्या करेंगे ; तभी बुद्ध ने सभी से एक प्रश्न किया, ‘ मैंने इस रस्सी में तीन गांठें लगा दी हैं , अब मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि क्या यह वही रस्सी है, जो गाँठें लगाने से पूर्व थी ?’ एक शिष्य ने उत्तर में कहा,” गुरूजी इसका उत्तर देना थोड़ा कठिन है, ये वास्तव में हमारे देखने के तरीके पर निर्भर है। एक दृष्टिकोण से देखें तो रस्सी वही है, इसमें कोई बदलाव नहीं आया है दूसरी तरह से देखें तो अब इसमें तीन गांठें लगी हुई हैं जो पहले नहीं थीं; अतः इसे बदला हुआ कह सकते हैं। पर ये बात भी ध्यान देने वाली है कि बाहर से देखने में भले ही ये बदली हुई प्रतीत हो पर अंदर से तो ये वही है जो पहले थी; इसका बुनियादी स्वरुप अपरिवर्तित है।
सत्य है !”, बुद्ध ने कहा ,” अब मैं इन गांठों को खोल देता हूँ।यह कहकर बुद्ध रस्सी के दोनों सिरों को एक दुसरे से दूर खींचने लगे। उन्होंने पुछा, “तुम्हें क्या लगता है, इस प्रकार इन्हें खींचने से क्या मैं इन गांठों को खोल सकता हूँ?” “नहीं-नहीं , ऐसा करने से तो या गांठें तो और भी कस जाएंगी और इन्हे खोलना और मुश्किल हो जाएगा। “, एक शिष्य ने शीघ्रता से उत्तर दिया।
बुद्ध ने कहा, ‘ ठीक है , अब एक आखिरी प्रश्न, बताओ इन गांठों को खोलने के लिए हमें क्या करना होगा ?’
शिष्य बोला ,’”इसके लिए हमें इन गांठों को गौर से देखना होगा , ताकि हम जान सकें कि इन्हे कैसे लगाया गया था , और फिर हम इन्हे खोलने का प्रयास कर सकते हैं। “ “मैं यही तो सुनना चाहता था। मूल प्रश्न यही है कि जिस समस्या में तुम फंसे हो, वास्तव में उसका कारण क्या है, बिना कारण जाने निवारण

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