जो प्रयत्न करता
हे उसे यश प्राप्त होता है- भय्यूजी महाराज
जीवन में यश कीर्ति और जीवन स्वाभिमान पूर्वक हो, यही
व्यक्ति की कामना होती है। आने वाले दिन अच्छे हो, अच्छा सोचेंगे तो अच्छा होगा। मकर
संक्रांति इसी अच्छे सोचने का उत्सव है। सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। अंधकार
से प्रकाश की और ले जाने वाला पर्व मकर संक्रांति है। आज राष्ट्र में, समाज में, हमारे
अपने व्यवहार से ही अंधकार निर्माण हो रहा है। प्रकाश की और जाना जीवन है और अंधकार
में रहना पतन है।
अंधकार अनेक प्रकार का होता है। हमारी मानसिकता का अंधकार,
अपने आचरण में आया अंधकार, अपने व्यवहार में आया अंधकार, अपनी सेवा भाव में आया अंधकार,
समाज और मानवता के बीच आया अंधकार। इस अंधकार से ऊपर उठकर चिंतन करना और उस अनुरूप
कार्य करने का संकल्प लेना ही मकर संक्रांति है।
मनुष्य को अपने जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए।
लक्ष्य के अनुरूप की गई साधना से ही मुक्ति का मार्ग प्राप्त होता है। व्यक्ति के लक्ष्य
नहीं होने से भटकाव है। हम देखते है कि हर व्यक्ति दौड़ रहा है। कभी-कभी उसे यह भी पता
नहीं होता है कि वह क्यों दौड़ रहा है। कही शादी में जाना है, तो दौड़ रहा है। किसी से
मिलने जाना है, तो दौड़ रहा है। किसी के अंतिम संस्कार में जाना है, तो दौड़ रहा है।
बस वहाँ तक पहुँचने का ही लक्ष्य है। कई बार व्यक्ति के पास एक ही लक्ष्य होता है कि
दिन कैसे व्यतीत करना है। फिर वह अपने सायंकाल का समय कैसे व्यतीत करना है उसमे खो
जाता है। शाम कैसे बीतेगी इस कल्पना में रहना ही चिंता है। परिस्थितियाँ जब तक हमारे
सामने नहीं आती तब तक उसके बारे में सोचना व्यर्थ है। व्यक्ति को सार्थक योजनाओं का
चिंतन करना चाहिए। प्रयत्न से ही यश प्राप्त होता है। अपयश की कल्पना भी नहीं करनी
चाहिए।
व्यक्ति के जीवन में कई बार ऐसा भी समय आता है, जब उसे
अपना जीवन निरर्थक लगने लगता है। वह सोचता है कोई मुझसे प्रेम नहीं करता कोई मेरी बात
नहीं मानता। कोई मेरी और देखने को तैयार नहीं है परंतु यह मानसिकता ही व्यक्ति को घोर
अंधकार की और ले जाती है। मेरा जीवन कितना सार्थक है। परिस्थितियों को कैसे बदला जा
सकता है। उसके लिए संयम आवश्यक है। नौ दिन व्यक्ति कठिन उपवास करता है। ईश्वर को धन्यवाद
देता है कि मुझसे यह कठिन तप करवा लिया। आपकी कृपा मुझ पर रहे और स्वयं को धन्य समझता
है। वही व्यक्ति यदि ऑफिस से आने के बाद चाय मिलने में देर हो जाती है तो क्रोधित हो
जाता है। यह परिस्थिति वश होता है। व्यक्ति को जीवन की सार्थकता के लिए वैसी परिस्थिति
निर्मित करनी होगी। प्रत्येक परिस्थिति को पहचानने वाला व्यक्ति आज पत्थर का हो गया
है। इसलिए आज सारी विसंगतियां निर्माण हो रही है। पर पत्थर के भीतर भी जल का स्त्रोत
होता है, सुप्त पड़ी नदी में भी पानी का स्त्रोत है। परिस्थिति के कारण वह नदी सुख गई
है। आज परिस्थिति के कारणों से व्यक्ति एक दूसरे से छल कर रहा है। नकारात्मकता निर्माण
हो रही है। समाज की नकारात्मकता से राष्ट्र में भी नकारात्मकता निर्माण हो गई है। हम
कहते है राष्ट्र में कुछ सही नहीं हो रहा है। यह नकारात्मकता तब खत्म होगी जब व्यक्ति
अपने चिंतन की सकारात्मकता देगा। सकारात्मक व्यवहार करेगा। व्यक्ति सामान्य जनो में
सामान्य सा आचरण करेगा।
श्रीकृष्ण यदि सिंहासन पर बैठकर राज्य करते और सिर्फ
आदेश ही देते तो वे हमें अपने नहीं लगते। परंतु वे सामान्य व्यक्ति की तरह सामान्य
से ग्वाल बालों में रहे, गौएँ चराने जाते थे। श्रीराम ने वनवासी जीवन को अपनाकर रीछ
और वानरों को अपने साथ रखा। उनके गुणों का विस्तार करके लंका में राक्षसी प्रवत्तियों
को खत्म करने के लिए वानरों की सहायता ली। यह हमारे संस्कृति का गौरव है इसलिए श्रीराम
मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजे जाते है। आज शिक्षा अर्थ के आधार पर हो गई है।
इसलिए व्यक्ति संवेदनाओं से दूर होता जा रहा है। समाज में वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम बढ़
रहे है, जो स्वस्थ समाज का लक्षण नहीं है। ऐसी नकारात्मक वृत्ति को हमें हटाना होगा।
नकारात्मकता के कारण ही समाज में एक दुसरो को निचा दिखाने की प्रवत्ति व्याप्त हो गई
है। कई बार दिल्ली में हुई घटना के बारे में लोग मुझसे पूछते है कि इस बारे में आपकी
क्या राय है? यह भी कहते है कि महिलाओं का पहनावा इसके लिए जिम्मेदार है। उस समय उन्हें
एक उदाहरण देता हूँ वह यह है कि हमारी संस्कृति में प्रत्येक का सम्मान करने की परंपरा
है। संस्कृति की विशेषता है - सम्मान।
सम्मान को दर्शाने के लिए ही स्वयं भगवान ने अर्धनारी
नटेश्वर का अवतार लिया। अर्थात प्रेम और पुरुषार्थ। यदि तुमने नारी से बोलते समय मातृत्व
शक्ति का भाव जाग्रत कर लिया तो वासना कभी निर्माण होगी ही नहीं। मातृत्व शक्ति का
सम्मान हो, हमारे मन में यही विचार होना चाहिए तभी हम नारी का सम्मान कर सकते है। आरोप
लगाने की शैली हमारे जीवन में अधिक दिखायी देती है।
पहले भी षड़यंत्र होता था। परंतु अब षड़यंत्र घर से प्रारंभ
होकर राष्ट्र तक है। संगठन से लेकर व्यक्ति तक चल रहा है। एक दूसरे को नीचा दिखाने
की होड़ लगी है। अपनी चिंता उसी में है कि सामने वाले व्यक्ति को नीचा कैसे दिखाएँ।
कई बार व्यक्ति मुझसे प्रश्न पूछते है, परन्तु प्रश्न वह अपनी आध्यात्मिक जिज्ञासा
को शांत करने के लिए नहीं पूछते बल्कि वे अपने अहंकार स्वरुप पूछते है। प्रश्न पूछने
से तुम्हारे भीतर का विवेकानंद यदि जाग्रत होता है, तुम्हारी जिज्ञासा शांत होती है
तो वह प्रश्न पूछना भी सार्थक होता है। प्रश्न पूछकर सामने वाले व्यक्ति को नीचा मत
दिखाओ, उसे पीड़ा मत दो।
हम एक दूसरे की हैसियत दिखाते है चाहे वह अर्थ के धरातल
पर हो, चाहे धर्म क्षेत्र में हो, चाहे राजनीति के क्षेत्र मे। घर में है तो अस्तित्व
की हैसियत एक दूसरे के सम्मान की हैसियत दिखाते है। क्या यही है हमारी स्वतंत्रता?
क्या हमारे राष्ट्रवीरों ने धर्मवीरों ने इसी समाज की कल्पना की थी? हमारे राष्ट्रवीरों
ने तो कुछ अलग राष्ट्र की कल्पना की थी। हमारे स्वार्थो ने इस समाज को राष्ट्र को विषम
परिस्थितियों में पुनः लाकर खड़ा कर दिया है। हमें परिस्थितियों को बदलना होगा।
जो मानवीयता का विचार करके परिस्थितियों के अनुकूल आचरण
करता है, वही धर्म के अनुकूल आचरण करता है। धर्म जीवन जीने की पद्धति है इस पद्धति
को अधिक सुन्दर अधिक उपयोगी बनाएँ, इसका विचार हमें करना होगा। क्योंकि प्रयत्न करने
पर ही सफलता प्राप्त होती है। प्रयत्न नहीं करेंगे, केवल चिंता करेंगे तो उससे न हम
अपना भला कर सकेंगे न दूसरों का। अतः लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सही चिंतन की धारा
अपनाकर प्रयत्न करने ही होंगे, यही संकल्प अनेक मानसिक अंधकारों से हमें दूर रखेगा
और हम सूर्य की तेजस्वी किरणों में स्वयं को सकारात्मक चिंतन देने वाले इस देश के नागरिक
होंगे।
जयहिंद, जय भारत
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