जीवन में अनुभवों से सीखकर स्वयं को बदलने की जरूरत होती है। अगर हम बदलना बंद कर देते हैं तो एक ही जगह रुक जाते हैं। जो बदलता है वही आगे बढ़ता है। जीवन को बदलाव की प्रक्रिया से गुजरना ही पड़ता है। अगर बदलाव आपका लक्ष्य नहीं है तो फिर जीवन ठहर जाएगा। बदलाव नहीं होगा तो जीवन की धारा रुक जाएगी। हर अनुभव हमें प्रेम, धैर्य और आनंद प्राप्त करना सिखाता है। अनुभव ही हमें बहुत सी चीजें सिखाते हैं। हमारे विकास में सहायक होते हैं। हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि हम ‘संसार’ को ‘निर्वाण’ में बदलें। या दूसरे शब्दों में कहें कि ‘बंधन’ को ‘मुक्ति’ में बदलें। ऐसा होने के लिए जरूरी है कि आत्म स्मरण या खुद को याद रखें।
अगर हम अपने भीतर के विचारों, निष्कर्ष क्षमता, भावनाओं, पसंद-नापसंद को लगातार बनाए या जगाए रखते हैं तो एक नई तरह का सत्य हमारे सामने खुलता है और हम अपनी ही कैद से मुक्त होते जाते हैं। दुनिया में दो तरह के डर होते हैं। एक सामने उपस्थित डर और एक सोचा हुआ डर। जब एक बाघ हमारे सामने आ जाए तो डर होगा वह वास्तविक डर होगा।
भविष्य को लेकर मन में पैदा होने वाला डर अवास्तविक या सोचा हुआ डर है। लेकिन भविष्य को लेकर जो डर हमारे भीतर होता है वह बहुत रोचक और रोमांचक होता है क्योंकि हम भविष्य के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। हम सिर्फ अनुमान लगाते हैं।
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