मृत्य के बाद भी हम किसी को जीवन दे सकते हैं, अपने आवश्यक अंगों को किसी जरूरतमंद को दान कर । हमारे समक्ष ऐसे कई उदाहरण हैं जब किसी मृत व्यक्ति के शरीर के अंगों को किसी दूसरे बीमार, रुग्ण व्यक्ति के शरीर में समय रहते प्रत्यारोपण कर उन्हें नया जीवन मिला है। बेंगलुरु का ढाई-वर्षीय बालक जिसे काल ने समय से पहले ही अपना ग्रास बना लिया , आज हम सभी देशवासियों के लिए आदर्श बन चूका है। धन्य हैं उसके माता-पिता जिन्होंने अपने मासूम बच्चे के असामयिक मृत्यु की वेदना से आहत होने के पश्चात भी संयम रख उसके अत्यावश्यक शरीर के अंगों को दान कर किसी दूसरे माँ-बाप के लाडले को नया जीवन दिया।
ज्ञात हो इस ढाई-वर्षीय बच्चे के असामयिक मृत्यु के पश्चात, उसके हृदय को चेन्नई के एक अस्पताल में भर्ती एक रुसी बच्चे के शरीर में प्रत्यारोपण कर नया जीवन प्रदान किया है। ह्रदय के अलावा, इस बच्चे के कॉर्निया, लीवर, आँख एवं गुर्दे को भी विभिन्न अस्पतालों को दान कर, उसके माता-पिता ने मानवता का अद्भुत उदाहरण स्थापित किया है। ऐसे सराहनीय प्रयास की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है।
आवश्यकता है, देशवासियों को ऐसे उत्कृष्ट आदर्शों से सिख लेने की। आइये हम सब अपने एवं अपने कुटुम्बों के मृत्यु के पश्चात अंग दान का संकल्प लें और मृत्यु के चौखट पर खड़े लोगों को अंग प्रत्यारोपण से नया जीवन दें। मृत्योपरांत हमारा अंग दान उन हज़ारो, लाखों लोगों को अंग प्रत्यारोपण के द्वारा उनके असामयिक मृत्यु को रोकने में कारगर होगा।
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