सिख धर्म के आठवें गुरू हरकिशन सिंह बाला पीर के नाम से भी जाने जाते हैं। उनका जन्म 7 जुलाई 1656 को सिखों के सातवें गुरू हर राय साहिब जी के यहां हुआ था। बचपन से ही कुशाग्र आध्यात्मिक प्रतिभा से सम्पन्न गुरू हरकिशन सिंह ने अपनी बौदि्धक प्रतिभा का परिचय देना शुरू कर दिया था।
मात्र सात वर्ष की अवस्था में ही उन्हें गुरू पद की उपाधि दे दी गई। अल्पायु में ही उन्हें गुरू पद देने से नाराज उनके बड़े भाई रामराय नाराज होकर मुगल सम्राट औरंगजेब की शरण में चले गए, जिन्होंने गुरू साहिब को दिल्ली बुलाया। दिल्ली जाने के पहले गुरू हरकिशन साहिब ने कई चमत्कार दिखाए जिससे समाज में उनका मान-सम्मान काफी बढ़ गया। दिल्ली जाने के बाद उन्होंने बिना किसी भेदभाव के जनता की सेवा की।
दिल्ली में हैजा और प्लेग महामारी फैलने के दौरान उन्होंने हिन्दू, मुस्लिम जनता की बिना किसी भेदभाव के समान रूप से सेवा की, इससे उनकी छवि एक पीर के रूप में बन गई। उन्हें बाला पीर के नाम से भी जाना जाने लगा। महामारी से ग्रस्त लोगों की सेवा करते करते वह स्वयं भी तीव्र ज्वर से पीडित हो गए। अल्पायु में ही अपने नश्वर शरीर को छोड़ दिया।
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