Wednesday, 16 July 2014

वर्षा जल का करें संरक्षण; जल अपव्यय को रोकें

जल है  तो जीवन है, जल के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है। यह जानते हुए की जल हमारे लिए जीवनदायनी है, हम सब जल के अपव्यय के लिए किसी ना किसी रूप  में  जिम्मेदार हैं। जल की महत्ता को तब हम भूल जाते हैं जब अपनी टंकी के सामने मुंह धोते हुए पानी को बर्बाद करते रहते हैं और तब जब हम कई लीटर मूल्यवान पानी अपनी कीमती कार को नहलाने में बर्बाद कर देते हैं। किताबी दुनिया और किताबी ज्ञान को हममें से बहुत कम ही असल जिंदगी में उतार पाते हैं और इसी का नतीजा है कि आज भारत और विश्व के सामने पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है।

धरातल पर तीन चौथाई पानी होने के बाद भी पीने योग्य पानी एक सीमित मात्रा में ही है। उस सीमित मात्रा के पानी का इंसान ने अंधाधुध दोहन किया है। नदी, तालाबों और झरनों को पहले ही हम कैमिकल की भेंट चढ़ा चुके हैं, जो बचा खुचा है उसे अब हम अपनी अमानत समझ कर अंधाधुंध खर्च कर रहे हैं। और लोगों को पानी खर्च करने में कोई हर्ज भी नहीं क्यूंकि अगर घर के नल में पानी नहीं आता तो वह पानी का टैंकर मंगवा लेते हैं। सीधी सी बात है पानी की कीमत को आज भी आदमी नहीं समझ पाया है ।

हमारे देश में आज भी ऐसे बहुत सारे क्षेत्र हैं जहाँ पानी के लिए जिंदगी भी दांव पर लगा दी जाती है  और एक बाल्टी पानी के लिए लोग मरने  मारने पर उतारू  हैं।   देश के कुछ ऐसे राज्य भी हैं जहां आज तक जिंदगियां पानी की वजह से दम तोड़ती नजर आती हैं, चाहे वो राजस्थान का  जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी इलाका हो या महाराष्ट्र का मराठवाड़ा, मध्य प्रदेश  का निमाड़ और मालवा।  पीने का पानी इन इलाकों में बड़ी कठिनाई से मिलता है। कई कई किलोमीटर चल कर इन प्रदेशों की महिलाएं पीने का पानी लाती हैं। इनकी जिंदगी का एक अहम समय पानी की जद्दोजहद में ही बीत जाता है।

पानी की इसी जंग को खत्म करने और इसके प्रभाव को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 1992 के अपने अधिवेशन में 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रुप में मनाने का निश्चय किया। विश्व जल दिवस की अंतरराष्ट्रीय पहल 'रियो डि जेनेरियो' में 1992 में आयोजित पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCED) में की गई। जिस पर सर्वप्रथम 1993 को पहली बार 22 मार्च के दिन पूरे विश्व में जल दिवस के मौके पर जल के संरक्षण और रखरखाव पर जागरुकता फैलाने का कार्य किया गया।

पानी के बारे में एक नहीं, कई चौंकाने वाले तथ्य हैं। विश्व में और विशेष रुप से भारत में पानी किस प्रकार नष्ट होता है इस विषय में जो तथ्य सामने आए हैं उस पर जागरूकता से ध्यान देकर हम पानी के अपव्यय को रोक सकते हैं। अनेक तथ्य ऐसे हैं जो हमें आने वाले ख़तरे से तो सावधान करते ही हैं, दूसरों से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और पानी के महत्व व इसके अनजाने स्रोतों की जानकारी भी देते हैं।

वर्षा जल का संरक्षण एवं जल  अपव्यय किस तरह  रोका जाए इस सन्दर्भ में हमें इज़राइल जैसे  छोटे  देश से सिखने की जरुरत है, जहाँ साल में  औसतन मात्र 10 सेंटी मीटर वर्षा होती है, इस वर्षा से वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात कर सकता है। वहीँ दूसरी ओर भारत में औसतन 50 सेंटी मीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी बनी रहती है।

यह जानते हुए की मानसून इस वर्ष काफी  कमजोर है और देश में  अबतक  पिछले वर्ष की अपेक्षा लगभग 40 प्रतिशत से अधिक  वर्षा कम हुई है, हम सभी को वर्षा जल  के संरक्षण  के साथ-साथ, जल के अपव्यय को  रोकने  की  आवश्यकता है।

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