Monday, 27 April 2015

माँ के चरणों में स्वर्ग है, उसे कभी दुखी ना करें।



एक गाँव में 10 साल का लड़का अपनी माँ के साथ रहता था। माँ ने सोचा कल मेरा बेटा मेले में जाएगा, उसके पास 10 रुपए तो हो,
ये सोचकर माँ ने खेतो में काम करके शाम तक पैसे ले आई।
बेटा स्कूल से आकर बोला खाना खाकर जल्दी सो जाता हूँ, कल मेले में जाना है। सुबह माँ से बोला – मैं नहाने जाता हूँ, नाश्ता तैयार रखना, माँ ने रोटी बनाई, दूध अभी चूल्हे पर था, माँ ने देखा बरतन पकडने के लिए कुछ नहीं है, उसने गर्म पतीला हाथ से उठा लिया, माँ का हाथ जल गया।
बेटे ने गर्दन झुकाकर दूध रोटी खाई और मेले में चला गया। शाम को घर आया, तो माँ ने पूछा- मेले में क्या देखा, 10 रुपए का कुछ खाया कि नहीं..!!
बेटा बोला – माँ आँखें बंद कर, तेरे लिए कुछ लाया हूँ। माँ ने आँखें बंद की, तो बेटे ने उसके हाथ में गर्म बरतन उठाने के लिए लाई सांडसी रख दी।
अब माँ तेरे हाथ नहीं जलेंगे।
माँ की आँखों से आँसू बहने लगे।
मित्रों, माँ के चरणों मे स्वर्ग है, अपनी माँ को कभी दुखी मत करें। सब कुछ मिल जाता है, पर माँ दुबारा नहीं मिलती।

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Saturday, 25 April 2015

आज विश्व मलेरिया दिवस पर विशेष


मच्छर से हो रही मौतों को रोकने के लिए और अधिक प्रयास की आवश्यकता

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1955 में घोषणा की थी कि मलेरिया पर मनुष्य की विजय का समय आ गया है और जल्दी ही यह रोग नेस्तनाबूद हो जाएगा। मगर, मलेरिया ने पलट कर हमला किया और आज यह दुनिया भर में हर साल करीब 22-50 करोड़ लोगों पर हमला करके 7-8 लाख लोगों की जान ले रहा है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने विश्व मलेरिया दिवस पर एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार हर साल लगभग 8.5 लाख लोग मच्छर की मार से मारे जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2013 में विश्व भर में करीब 19 करोड़ 80 लाख लोग मलेरिया से पीड़ित हुए और लगभग 5 लाख 84 हजार मरीजों की मृत्यु हो चुकी है। इनमें से 90 प्रतिशत लोग अफ्रीका के सहारा क्षेत्र में मलेरिया से मारे जाते हैं। 

विश्व की करीब सवा अरब आवादी को मलेरिया होने का खतरा है। वर्ष 2014 में करीबन 97 देशों में मलेरिया का प्रभाव देखा गया। मलेरिया से होने वाली मौतों में से कुल 80 प्रतिशत मौतें मलेरिया से सबसे अधिक प्रभावित 18 देशों में हुई। प्रत्यक्ष तौर पर मलेरिया के कारण वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 12 अरब अमेरिकी डॉलर की हानि होती है।

जहाँ  भारत का प्रश्न है, उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, हमारे देश में हर साल मलेरिया से करीब 20 लाख लोग प्रभावित होते हैं। जिनमें से प्रत्येक वर्ष एक हजार लोगों की मौत मलेरिया के कारण हो जाती है। आंध्रपद्रेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीगढ़, गुजरात, झारखंड एवं उड़ीसा राज्य सर्वाधिक मलेरिया प्रभावित राज्यों में शामिल हैं।
इस घातक रोग पर काबू पाने के लिए भारत सरकार ने 1953 में ‘राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम’ लागू किया। यह कार्यक्रम काफी सफल रहा और इससे मलेरिया के रोगियों की संख्या में काफी कमी आई। इस कार्यक्रम की सफलता से उत्साहित होकर सरकार ने 1958 में ‘राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन’ कार्यक्रम शुरू किया। मलेरिया की रोकथाम के तमाम प्रयासों के कारण रोगियों की संख्या काफी घट गई लेकिन 1990 के दशक में यह रोग नई ताकत के साथ वापस लौट आया  और इसका प्रमुख कारण है कीटनाशकों के लिए मच्छरों की प्रतिरोधिता, खुले स्थानों में मच्छरों की बढ़ती तादाद,  जल परियोजनाओं, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, मलेरिया परजीवी के रूप बदलने और क्लोरोक्विन तथा मलेरिया की अन्य दवाइयों के लिए प्लाज्मोडियम फैल्सिपेरम की प्रतिरोधिता।


मलेरिया और इसकी विभीषिका के  जागरूकता लाएंगे के लिए प्रति  वर्ष 25 अप्रैल को विश्व मलेरिया दिवस मनाया जाता है।
यद्द्यपि इस बीमारी की रोकथाम के लिए हमारे देश में मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम सतत चलाए जा  रहे हैं, मच्छर के कारण हो रही मौतों को रोकने के लिए  अधिक प्रयास होंगे।  इसके आलावा   गरीब  एवं  ग्रामीण  लोगों   वाले ऐसे क्षेत्रों  तक ज्यादा पहुँच बढ़ानी होगी जहाँ मलेरिया एक बड़े खतरे का  रूप ले चूका है।

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बोले हुए शब्द वापस नहीं आते

एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया.उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा.
संत ने किसान से कहा , ” तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो .” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया. तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”
किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है,तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते.
इस कथा का सार यह है कि कुछ `कड़वा' एवं  आपत्तिजनक शब्द  बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद, कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी चाहिए, पर मानवीय स्वाभाव  कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये मनुष्य कहीं ना कहीं व्यथित एवं दुखी  हो ही जाता है.

जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है।  स्वयं को कष्ट देने से क्या लाभ। अतः जब भी बोले संयमित होकर मधुर बोलें अन्यथा चुप ही रहना बेहतर है।

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Wednesday, 22 April 2015

आज विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष



 सुजलाम सुफलाम शस्य श्यामलाम 


वर्षों पहले रष्ट्र गीत के माध्यम से हमने `सुजलाम सुफलाम शस्य श्यामलाम' भारत एवं इसकी धरा की परिकल्पना की थी। दुर्भाग्यवश अंधाधुंध औद्योगीकरण, आधुनिकीकरण एवं शहरीकरण ने हमारी इस पवित्र धरा को ना सिर्फ `दूषित, प्रदूषित एवं कलंकित' कर दिया है बल्कि इसे रहने हेतु सर्वथा    अनुपयुक्त बना दिया है।  आज हमें साँस लेने के लिए स्वच्छ हवा तक नसीब नहीं है। 
बहुत साल पहले राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी ने देशवासियोँ  से आधुनिक तकनीकों का अन्धानुकरण करने के विरुद्ध सचेत किया था। गाँधीजी मानते थे कि पृथ्वी, वायु, जल तथा भूमि हमारे पूर्वजों से मिली सम्पत्ति नहीं है। वे हमारे बच्चों तथा आगामी पीढ़ियों की धरोहरें हैं। हम उनके ट्रस्टी भर हैं। हमें वे जैसी मिली हैं उन्हें उसी रूप में भावी पीढ़ी को सौंपना होगा।
गाँधी जी का यह भी मानना था कि पृथ्वी लोगों की आवश्यकता की पूर्ति के लिये पर्याप्त है किन्तु लालच की पूर्ति के लिये नहीं। उनका मानना था कि विकास के त्रुटिपूर्ण ढाँचे को अपनाने से असन्तुलित विकास पनपता है। यदि असन्तुलित विकास को अपनाया गया तो धरती के समूचे प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो जाएँगे। वह जीवन के समाप्त होने तथा महाप्रलय का दिन होगा।
असंतुलित विकास, औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण आज सम्पूर्ण प्रकृति संकट के दौर से गुजर रही है। उसे पृथ्वी के प्रत्येक नागरिक के योगदान की आवश्यकता है। प्रातःकाल से लेकर सायं तक प्रकृति का किसी न किसी रूप में दोहन हो रहा है, पर उसकी भरपाई हेतु किए जाने वाले कार्य नगन्य ही हैं।
आज विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर हम में से हर किसी को हमारी पवित्र धरा को  हरा भरा बनाने के लिए एवं अनगिनत मनुष्य एवं  आधुनिकता प्रदत्त विकारों से मुक्त करने के लिए, इसके पर्यावरण को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए, इसे स्वस्थ जीवन जीने के योग्य बनाने के लिए, संकल्प लेकर  ठोस एवं सकारात्मक प्रयास करने की जरुरत है, अन्यथा प्रकृति अपना बदला तो लेगी ही।

पृथ्वी दिवस की कल्पना में हम उस दुनिया का स्वप्न साकार होना देखते हैं जिसमें दुनिया भर का हवा का पानी प्रदूषण मुक्त होगा। समाज स्वस्थ और खुशहाल होगा। नदियाँ अस्मिता बहाली के लिये मोहताज नहीं होगी। धरती रहने के काबिल होगी। मिट्टी, बीमारियाँ नहीं वरन सोना उगलेगी।

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Tuesday, 21 April 2015

कठिन डगर पर सही राह दिखाते है पिता


हम सभी को बचपन में अनुशासनप्रियता व सख्ती के चलते पिता हमें क्रूर नजर आते हैं। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है और हम जीवन की कठिन डगर पर चलने की तैयारी करने लगते हैं, हमें अनुभव होता है कि पिता की वो डांट और सख्ती हमारे भले के लिए ही थी।
उनकी हर एक सीख जब हमें अपनी मंजिल की ओर बढ़ने में मदद करती है, तब हमें मालूम पड़ता है कि पिता हमारे लिए कितने खास थे और हैं।
एक शोध के मुताबिक आज भी दुनिया भर में बच्चे सर्वप्रथम आदर्श के रूप में अपने पिता को ही देखते हैं। मां उनकी पहली पाठशाला है तो पिता पहला आदर्श। वे अपने पिता से ही सीखते हैं और उनके जैसा ही बनना चाहते हैं। इसलिए जीवन में जीतना मां महत्व होता है, उतना ही पिता का भी है।




आज मेरे पिता श्री विश्वासरावजी देशमुख, जिन्हें हम सब प्यार से बापू  कहा करते थे, को उनके देहलोकागमन की प्रथम वर्षगांठ पर उनका पुण्य स्मरण करते हुए यही कामना करता हूँ कि उनके सद्कर्मों, आदर्शों पर चल कर, उनके प्रेरणादायी जीवन से कुछ सीख कर, मैं भी एक आदर्श पुत्र एवं एक आदर्श पिता  बन पाऊँ और शायद यही मेरी मेरे बापू के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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Monday, 20 April 2015

स्वास्थ्य सबसे बड़ी पूंजी है


एक शहर में एक अमीर व्यक्ति रहता था वह पैसे से तो बहुत धनी था लेकिन शरीर और सेहत से बहुत ही गरीब दरअसल वह हमेशा पैसा कमाने की सोचता रहता , दिन रात पैसा कमाने के लिए मेहनत करता लेकिन अपने शरीर के लिए उसके पास बिल्कुल समय नहीं था फलस्वरूप अमीर होने के वाबजूद उसे कई नई नई प्रकार की बिमारियों ने घेर लिया और शरीर भी धीरे धीरे कमजोर होता जा रहा था , लेकिन वह इस सब पर ध्यान नहीं देता और हमेशा पैसे कमाने में लगा रहता

एक दिन वह थकाहारा शाम को घर लौटा और जाकर सीधा बिस्तर पे लेट गया धर्मपत्नी जी ने खाना लगाया लेकिन अत्यधिक थके होने के कारण उसने खाना खाने से मना कर दिया और भूखा ही सो गया आधी रात को उसके शरीर में बहुत तेज दर्द हुआ , वह कुछ समझ नहीं पाया कि ये क्या हो रहा है अचानक उसके सामने एक विचित्र सी आकृति आकर खड़ी हो गयी और बोलीहे मानव मैं तुम्हारी आत्मा हूँ और आज मैं ये तुम्हारा शरीर छोड़ कर जा रही हूँ

वह व्यक्ति घबराया सा बोलाआप मेरा शरीर छोड़ कर क्यों जाना चाहती हो मैंने इतनी मेहनत से इतना पैसा और वैभव कमाया है , इतना आलिशान बंगला बनवाया है यहाँ तुम्हें रहने में क्या दिक्कत है आत्मा बोलीहे मानव सुनो मेरा घर ये आलिशान बंगला नहीं तुम्हारा शरीर है जो बहुत दुर्बल हो गया है जिसे अनेकों बिमारियों ने घेर लिया है सोचो अगर तुम्हें बंगले की बजाए किसी टूटी झोपड़ी में रहना पड़े तो कितना दुःख होगा उसकी प्रकार तुमने अपने शरीर यानि मेरे घर को भी टुटा फूटा और खण्डार बना लिया है जिसमें मैं नहीं रह सकती

मित्रों ये सिर्फ एक कहानी होकर एक जीवन की सच्चाई है दुनिया में बहुत सारे लोग पैसा कमाने के चक्कर में अपना स्वास्थ्य गवां देते हैं , वे लोग ये नहीं सोचते की हमारी आत्मा और प्राण को किसी आलिशान बंगले या पैसे की जरुरत नहीं बल्कि एक स्वस्थ शरीर की आवश्यकता है। तो ,मित्रों पैसा ही सबकुछ नहीं है, स्वास्थ्य सबसे बड़ी पूंजी है।

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