हम सभी को बचपन में अनुशासनप्रियता व सख्ती के चलते पिता हमें क्रूर नजर आते हैं। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है और हम जीवन की कठिन डगर पर चलने की तैयारी करने लगते हैं, हमें अनुभव होता है कि पिता की वो डांट और सख्ती हमारे भले के लिए ही थी।
उनकी हर एक सीख जब हमें अपनी मंजिल की ओर बढ़ने में मदद करती है, तब हमें मालूम पड़ता है कि पिता हमारे लिए कितने खास थे और हैं।
एक शोध के मुताबिक आज भी दुनिया भर में बच्चे सर्वप्रथम आदर्श के रूप में अपने पिता को ही देखते हैं। मां उनकी पहली पाठशाला है तो पिता पहला आदर्श। वे अपने पिता से ही सीखते हैं और उनके जैसा ही बनना चाहते हैं। इसलिए जीवन में जीतना मां महत्व होता है, उतना ही पिता का भी है।
आज मेरे पिता श्री विश्वासरावजी देशमुख, जिन्हें हम सब प्यार से बापू कहा करते थे, को उनके देहलोकागमन की प्रथम वर्षगांठ पर उनका पुण्य स्मरण करते हुए यही कामना करता हूँ कि उनके सद्कर्मों, आदर्शों पर चल कर, उनके प्रेरणादायी जीवन से कुछ सीख कर, मैं भी एक आदर्श पुत्र एवं एक आदर्श पिता बन पाऊँ और शायद यही मेरी मेरे बापू के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
0 comments:
Post a Comment