Thursday, 28 May 2015

India must shun the tag of `Hunger capital’ of world

It is an irony of the fact that on one hand India has earned accolades for emerging as one of the fastest growing economies of the world, on the other hand a vast chunk of country’s population is still wallowing in poverty and even have no access to a square meals a day.
According to latest report on state of Food Security in the World 2015, released by the UN's Food and Agricultural Organization, India accounts for the highest estimated number of undernourished people in any single country, with an estimated 194.6 million, or about one in every four such people in the world. The report has categorically earned India the sobriquet of the Hunger capital of the world.
Globally, the number of undernourished people has fallen by 216 million between 1990-92 and 2015, from just over a billion to 795 million. However, India's contribution to this fall has been small, with its numbers down by just 15.5 million. The report makes a telling commentary on government’s inability to provide food to every citizen notwithstanding hordes of schemes launched by the past as well as the present governments for the benefits of the poor and the downtrodden.

Providing food to its citizens is the most basic and fundamental responsibilities of the government of any country. If the report on undernourished people in India is anything to go by, we as a nation has failed to feed a vast chunk of our population. The government and authorities concerned need to give a serious thought to remove undernourishment and hungry from our country which in fact have badly tainted image of India among the comity of nations in the world.
Bare Hunger Facts
1. Hunger remains the No.1 cause of death in the world. Aids, Cancer etc. follow.
2. There are 820 million chronically hungry people in the world.
3. 1/3rd of the world’s hungry live in India.
4. 836 million Indians survive on less than Rs. 20 (less than half-a-dollar) a day.
5. Over 20 crore Indians will sleep hungry tonight.
6. 10 million people die every year of chronic hunger and hunger-related diseases. Only eight percent are the victims of hunger caused by high-profile earthquakes, floods, droughts and wars.
7. India has 212 million undernourished people – only marginally below the 215 million estimated for 1990–92.
8. Over 7000 Indians die of hunger every day.
9. Over 25 lakh Indians die of hunger every year.

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Monday, 25 May 2015

अंत भला तो सब भला।

एक राजा वन भ्रमण के लिए गया। रास्ता भूल जाने पर भूख प्यास से पीड़ित वह एक वनवासी की झोपड़ी पर जा पहुँचा। वहाँ से आतिथ्य मिला जो जान बची।
चलते समय राजा ने उस वनवासी से कहा- हम इस राज्य के शासक हैं। तुम्हारी सज्जनता से प्रभावित होकर अमुख नगर का चन्दन बाग तुम्हें प्रदान करते हैं। उसके द्वारा जीवन आनन्दनमय बीतेगा।

वनवासी उस परवाने को लेकर नगर के अधिकारी के पास गया और बहुमूल्य चन्दन का उपवन उसे प्राप्त हो गया। चन्दन का क्या महत्व है और उससे किस प्रकार लाभ उठाया जा सकता है, उसकी जानकारी न होने से वनवासी चन्दन के वृक्ष काटकर उनका कोयला बनाकर शहर में बेचने लगा। इस प्रकार किसी तरह उसके गुजारे की व्यवस्था चलने लगी।

धीरे-धीरे सभी वृक्ष समाप्त हो गये। एक अन्तिम पेड़ बचा। वर्षा के कारण कोयला न बन सका तो उसने लकड़ी बेचने का निश्चय किया। लकड़ी का गठ्ठा जब बाजार में पहुँचा तो सुगन्ध से प्रभावित लोगों ने उसका भारी मूल्य चुकाया। आश्चर्यचकित वनवासी ने इसका कारण पूछा तो लोगों ने कहा- यह चन्दन काष्ठ है। बहुत मूल्यवान् है। यदि तुम्हारे पास ऐसी ही और लकड़ी हो तो उसका प्रचुर मूल्य प्राप्त कर सकते हो। वनवासी अपनी नासमझी पर पश्चाताप करने लगा कि उसे इतना बड़ा बहुमूल्य चन्दन वन कौड़ी मोल कोयले बनाकर बेच दिया। पछताते हुए नासमझ को सान्त्वना देते हुए एक विचारशील व्यक्ति ने कहा-मित्र, पछताओ मत, यह सारी दुनिया, तुम्हारी ही तरह नासमझ है। जीवन का एक-एक क्षण बहुमूल्य है पर लोग उसे वासना और तृष्णाओं के बदलें कौड़ी मोल में गँवाते रहते हैं। तुम्हारे पास जो एक वृक्ष बचा है उसी का सदुपयोग कर लो तो कम नहीं। बहुत गँवाकर भी कोई मनुष्य अन्त में सँभल जाता है तो वह भी बुद्धिमान ही माना जाता है।  कहते हैं ना कि -- अंत भला तो सब भला

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Saturday, 23 May 2015

गलती का अहसास

उन दिनों ईश्वरचंद्र विद्यासागर एक संस्कृत कॉलेज के आचार्य थे। एक बार उन्हें किसी काम से प्रेसीडेंसी कॉलेज के अंग्रेज आचार्य कैर से मिलने जाना पड़ा। कैर भारतीयों से घृणा करते थे। जिस समय ईश्वरचंद्र उनके पास पहुंचे, वह मेज पर जूते रख पैर फैलाकर बैठे हुए थे। ईश्वरचंद्र को देखकर भी न तो वह उनके सम्मान में खड़े हुए और न ही उनके अभिवादन का जवाब दिया।

ईश्वरचंद्र ने उस समय तो कुछ नहीं कहा। लेकिन तय कर लिया कि वक्त आने पर कैर को उसकी गलती का अहसास अवश्य कराएंगे। संयोगवश कुछ ही समय बाद कैर को ईश्वरचंद्र से एक काम पड़ गया। वह उनसे चर्चा करने उनके पास पहुंचे। जैसे ही कैर को उन्होंने अपने पास आते देखा, उन्होंने चप्पलें पहनीं और मेज पर पैर फैलाकर बैठ गए।

कैर एकदम सामने आ खड़े हुए, फिर भी ईश्वरचंद्र ने उन्हें बैठने के लिए नहीं कहा। यह देखकर कैर गुस्से से तिलमिला गए और उन्होंने इस दुर्व्यवहार की शिकायत लिखित में शिक्षा परिषद के सचिव डॉ. मुआट से कर दी। मुआट, ईश्वरचंद्र विद्यासागर को भली-भांति जानते थे। फिर भी उन्होंने इस सिलसिले में उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया और कैर की शिकायत का जिक्र किया। कैर वहीं सामने गर्व से सीना तान कर खड़े थे।

डॉ. मुआट की बात सुनकर ईश्वरचंद्र बोले,'हम भारतीय लोग तो अंग्रेजों से ही शिष्टाचार सीखते हैं। जब मैं कैर से मिलने गया तो ये जूते पहनकर आराम से मेज पर पैर फैलाकर बैठे थे और इन्होंने इसी अंदाज में मेरा स्वागत किया था। मुझे लगा कि शायद यूरोपीय शिष्टाचार ऐसा ही होता है।' यह सुनकर कैर बहुत शर्मिंदा हो गए और उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया।

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Friday, 22 May 2015

मानव जीवन के पोषण के लिए जैविक विविधताओं का संरक्षण आवश्यक


उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, हमने पिछले 40 सालों में प्रकृति के एक-तिहाई दोस्त खो दिए हैं। एशियाई बाघों की संख्या में 70 फीसदी गिरावट आई है। मीठे पानी पर रहने वाले पशु व पक्षी भी 70 फीसदी तक घटे हैं। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कई प्रजातियों की संख्या 60 फीसदी तक घट गई है। यह आंकड़ों की दुनिया है। हकीक़त इससे भी बुरी हो सकती है। जिस तरह से पुरे विश्व में जैविक प्रजातियों का क्षरण हुआ है उससे पूरी मानव सभ्यता का अस्तित्व खतरे में दिख रहा है।
जैवविविधता का संरक्षण और उसका निरंतर उपयोग करना भारत के लोकाचार का एक अंतरंग हिस्सा है। अभूतपूर्व भौगोलिक और सांस्कृतिक विशेषताओं ने मिलकर जीव जंतुओं की इस अद्भुत विविधता में योगदान दिया है जिससे हर स्तर पर अपार जैविक विविधता देखने को मिलती है। भारत में दुनिया का केवल 2.4 प्रतिशत भू-भाग है जिसके 7 से 8 प्रतिशत भू-भाग पर विश्व की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं। प्रजातियों की संवृधि के मामले में भारत स्तनधारियों में 7वें, पक्षियों में 9वें और सरीसृप में 5वें स्थान पर है। विश्व के 11 प्रतिशत के मुकाबले भारत में 44 प्रतिशत भू-भाग पर फसलें बोई जाती हैं। भारत के 23.39 प्रतिशत भू-भाग पर पेड़ और जंगल फैले हुए हैं।





पर्यावरण के अहम मुद्दों में से आज जैवविविधता का संरक्षण एक अहम मुद्दा है।  राष्ट्रों, सरकारी एजेंसियों और संगठनों तथा व्यक्तिगत स्तर पर जैविक विविधता के संवंर्धन और उसके संरक्षण की बड़ी चुनौती है।  उपरोक्त कथनों के मद्देनज़र जैविक विविधताओं को अक्षुण रखना अत्यावश्यक है क्योंकि
जैव विविधता फसलों से भोजन,  पशुओं, वानिकी और मछली प्रदान करता है। जैव विविधता उन्नत किस्में प्रजनन के लिए एक स्रोत सामग्री के रूप में और नए जैव निम्नीकरण कीटनाशकों के एक स्रोत के रूप में,  नई फसलों के एक स्रोत के रूप में आधुनिक कृषि के लिए उपयोग में आती है। जैव विविधता चिकित्सीय गुणों के साथ पदार्थों की एक समृद्ध स्रोत है। कई महत्वपूर्ण औषधि संयंत्र आधारित पदार्थों के रूप में में उत्पन्न होते हैं जिनकी उपयोगिता मानव स्वास्थ्य के लिए अमूल्य है।

आज विश्व जैविक विविधता दिवस पर हम सब हमारे देश में पसरी जैविक विविधताओं  के पोषण हेतु सामूहिक संकल्प लें क्योंकि इसके अभाव में मानव जीवन की कल्पना करना दुष्कर है।

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Monday, 18 May 2015

परमात्मा लोगों की निष्ठाओं में रमण करते हैं

!


शौरपुच्छ नामक बणिक ने एक बार भगवान बुद्ध से कहा-भगवन् मेरी सेवा स्वीकार करें। मेरे पास एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ हैं, वह सब आपके काम आयें। बुद्ध कुछ न बोले- चुपचाप चले गए?
कुछ दिन बाद वह पुनः तथागत की सेवा में उपस्थित हुआ ओर कहने लगा- देव! यह आभूषण और वस्त्र ले लें, दुःखियों के काम आयेंगे, मेरे पास अभी बहुत-सा द्रव्य शेष है। बुद्ध बिना कुछ कहे वहां से उठ गए। शौरपुच्छ बड़ा दुःखी था की वह गुरुदेव को किस तरह प्रसन्न करे?

वैशाली में उस दिन महाधर्म-सम्मेलन था, हजारों व्यक्ति आये थे। बड़ी व्यवस्था जुटानी थी। सैकड़ों शिष्य और भिक्षु काम में लगे थे। आज शौरपुच्छ ने किसी से कुछ न पूछा- काम में जुट गया। रात बीत गई, सब लोग चले गए पर शौरपुच्छ बेसुध कार्य-निमग्न रहा। बुद्ध उसके पास पहुँचें और बोले-शौरपुच्छ! तुमने प्रसाद पाया या नहीं? शौरपुच्छ का गला रुंध गया। भाव-विभोर होकर उसने तथागत को साष्टांग प्रणाम किया। बुद्ध ने कहा-वत्स परमात्मा किसी से धन और संपत्ति नहीं चाहता, वह तो निष्ठा का भूखा है। लोगों की निष्ठाओं में ही वह रमण किया करता है और तुमने स्वयं यह जान लिया।

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Friday, 15 May 2015

परिवार के रिश्ते की मिठास एवं गरिमा को बनाए रखें

     अनुव्रतः पितुः पुत्रो मात्रा भवतु संमनाः।
    जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शन्तिवाम्‌॥

अर्थात पिता के प्रति पुत्र निष्ठावान हो। माता के साथ पुत्र एकमन वाला हो। पत्नी पति से मधुर तथा कोमल शब्द बोले।
परिवार कुछ लोगों के साथ रहने से नहीं बन जाता। इसमें रिश्तों की एक मज़बूत डोर होती है, सहयोग के अटूट बंधन होते हैं, एक-दूसरे की सुरक्षा के वादे और इरादे होते हैं। किसी भी समाज का केंद्र परिवार ही होता है। परिवार के अभाव में मानव समाज के संचालन की कल्पना भी दुष्कर है। व्यक्ति के जीवन को स्थिर बनाए रखने में उसका परिवार बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।



आज 15 मई को समूचे संसार में लोगों के बीच परिवार की अहमियत बताने के लिए अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाता है। दुर्भाग्यवश समय के साथ साथ हमारे समाज में पारिवारिक  मूल्यों का ह्रास हो  रहा है एवं परिवारें, उसमे रहने वाले सदस्यों की स्वयं की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के चलते विघटित हो रही हैं।
वर्तमान परिदृश्य पर नजर डालें तो प्राय: यही देखा जाता है कि अपने काम को प्राथमिकता समझने वाले लोग परिवार के महत्व को पूरी तरह नजरअंदाज कर चुके हैं।

एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में वे ना तो अपने माता-पिता को समय दे पाते हैं और ना ही अपने वैवाहिक जीवन के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में सक्षम होते हैं।  अति व्यस्त जीवनशैली के कारण वह अपने छोटे से परिवार के लिए भी समय नहीं निकाल पाते। समाज में पसरी लैंगिक  असमानता भी आज परिवारों के विघटन का कारण बन रहा है।  आज के   दिन को जब पुरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस के  रूप में मनाया जा रहा है, हम सबका यह फ़र्ज़  होना चाहिए कि परिवार के रिश्ते की मिठास एवं गरिमा को बनाए रखें, लैंगिक असमानता एवं  बच्चों के अधिकारों के प्रति अपनी धारणा को बदलें ।

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Tuesday, 12 May 2015

आज विश्व नर्स दिवस पर विशेष विशेष

हमारी नर्सों को वो सम्मान मिले, जिनकी वो हकदार हैं 

कभी आपने सोचा अस्पताल में सफेद पोशाक पहन कर हमेशा मुस्कुराते और तत्परता से मरीजों की देखभाल करने वाली नर्सों क्या वो अपने स्वयं के जीवन इतनी खुस  एवं  मुस्कुराती रहती हैं ! शायद नहीं।  उस मुस्कुराते  चेहरे के पीछे कई दर्द छिपे हैं, पर वो  हमें इसका एहसास नहीं होने देती।  हाँ, उन्हें इस बात का दुःख अवश्य होता है कि उनके अथक परिश्रम करने के बावजूद उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता जिसकी वो हकदार हैं।
नर्सें अस्पताल का एक अभिन्न हिस्सा होती  हैं । सेवा भाव से मरीज की देखभाल करने वाली नर्सें कभी शिकायत नहीं करतीं कि उन पर काम का दबाव अधिक है या उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया गया। लेकिन सच यही है कि उन्हें इस तरह की कई प्रतिकूल स्थितियों का सामना पड़ता है।

सरकार द्वारा उठाये गये कई कदमों के कारण देश में प्रशिक्षित नर्सों की संख्या में कुछ सुधार हुआ है,  लेकिन हालात देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है। रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है पर देश में नर्सों की संख्या उस  अनुपात में अपर्याप्त हैं।  रोगियों की बढ़ती संख्या को  देखते प्रशिक्षित नर्सों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। साथ ही उनके वेतनमान और सुविधाओं में भी वृद्धि की जानी चाहिए।

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि अच्छे वेतनमान और सुविधाओं के लालच में आज भी विकासशील देशों से बड़ी संख्या में नर्सें विकसित देशों में नौकरी के लिए जाती है जिससे विकासशील देशों को प्रशिक्षित नर्सों की भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में अमीर और गरीब दोनों प्रकार के देशों में नर्सो की कमी चल रही है। विकसित देश अपने यहाँ की नर्सो की कमी को अन्य देशों से बुलाकर पूरा कर लेते है और उनको वहाँ पर अच्छा वेतन और सुविधाएँ देते है जिनके कारण वे विकसित देशों में जाने में देरी नहीं करती है। दूसरी ओर विकासशील देशों में नर्सो को अधिक वेतन और सुविधाओं की कमी रहती है और आगे का भविष्य भी अधिक उज्जवल नहीं दिखाई देता जिसके कारण वे विकसित देशों के बुलावे पर नौकरी के लिए चली जाती है।  आज आवश्यकता है हमारी नर्सों को  वो हर लाभ, सुविधाएँ देने की जिनकी वो हकदार हैं, अन्यथा  हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाएं ही नहीं मरीजों की चिकित्सा  भी प्रभावित होगी।  

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एक गिलास दूध की कीमत


एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था, एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी. उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा. दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजा खोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उसने पानी का एक गिलास माँगा. . लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वह एक……..बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया.” कितने पैसे दूं?” लड़के ने पूछा.” पैसे किस बात के?” लड़की ने जवाव में कहा.” माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए.”” तो फिर मैं आपको दिल से धन्यबाद देता हूँ.
”जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकीथी , बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था.
सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी। स्थानीय डॉक्टर ने उसे शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया। विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया। जैसे ही उसने लड़की के कस्वे का नाम सुना, उसकी आँखों में चमक आ गयी.. वह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया. उसने उस लड़की को देखा, उसे पहचान लिया। डॉक्टर ने तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देगा..उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी।
डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज का बिल लिया। उस बिल के कोने में उसने एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया। लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरा गयी, उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बच गयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान लेलेगी। फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कोने में पेन से लिखे नोट पर गयी, जहाँ लिखा था,” एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका है.” नीचे डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे। ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालों पर आंसू टपक पड़े। उसने ऊपर की और दोनों हाथ उठा कर कहा,” हे भगवान! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है।

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Sunday, 10 May 2015

माँ तो ममता का महाकाव्य है

माँ तो ममता का महाकाव्य है। माँ ही जीवन के हर दुःख दर्द का पड़ाव है और माँ ही अन्तिम शरण स्थली है।
जब दुनिया में कोई भी पनाह न दे पाए तब धरती पर अकेली माँ ही उसे षरण देती है। माँ राहत की सांस है। माँ तो अपने आप में जीवन का महाव्रत है। माँ तो घर के कुमकुम की रंगोली है। माँ तो हर रोज सूर्य भगवान् को दिया जाने वाला आस्था का अर्ध्य है। सभी देवी देवताओं के स्वतंत्र मन्दिर हैं पर माँ तो वह मन्दिर है जिसमें ब्रह्या, विष्णु, महेष कुदरती तौर पर प्रतिष्ठित हैं, जिसकी वाणी में सत्यम् है, जिसकी आँखों में शिवम है और जिसके हाथों में सुन्दरम् है। कहते हैं ब्रह्मा का कार्य सृजन करना है। 

हमारा सृजन माँ ने किया इसलिए माँ ब्रह्मा है। हमारा पालन-पोशण माँ करती है इसलिए माँ विष्णु है। माँ ही हमारा उद्धार करती है, माँ ही हमें संस्कार देती है और माँ ही हमें अपने पाँवों पर खड़ा करती है इसलिए माँ महादेव है। तीनों देवताओं की अगर एक साथ पूजा करनी है तो माँ को पूजिए। माँ पृथ्वी की तरह सहनषीला है, उसकी ममता सागर की अथाह है, उसके अहसान आकाश की तरह अन्तहीन हैं। माँ सचमुच धन्य है, वह यज्ञ की वेदी है, वह मन्दिर की प्रतिमा है, हर तीर्थ की देवी है। माँ के आंचल में ही कामधेनु का आशीर्वाद है। माँ के हाथों में जादुई स्पर्श है, जो देता है हमें एक अद्भुत सुख, सन्तुष्टि, तृप्ति और मुक्ति। इस दुनियाँ में हर वास्तु का विकल्प हो सकता है पर मातृभाषा, मातृभूमि एवं माँ का कोई विकल्प नहीं। माँ के इसी गौरवमय रुप को हम सब प्रणाम करते हैं ।



आज के दिन को  पुरे विश्व में मातृ दिवस के रूप में मनाया जाता है और यह दिवस हमें याद दिलाता है कि हम सभी को अपने माताओं का सम्मान करना चाहिए क्योंकि हमारे उत्थान में हमारी माताओं की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है।  हम सबका यह सामूहिक दायित्व होना चाहिए कि हमारी माताओं, हमारे पिताओं को उनके जीवन की गोधूलि वेला में उन्हें किसी भी प्रकार का शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक एवं आर्थिक क्लेश ना पहुँचे।

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Saturday, 9 May 2015

परतन्त्रता संसार का सबसे बड़ा अभिशाप है


एक सन्त के आश्रम में एक शिष्य कहीं से एक तोता ले आया और उसे पिंजरे में रख लिया। सन्त ने कई बार शिष्य से कहा कि “इसे यों कैद न करो। परतन्त्रता संसार का सबसे बड़ा अभिशाप है।” किन्तु शिष्य अपने बालसुलभ कौतूहल को न रोक सका और उसे अर्थात् पिंजरे में बन्द किये रहा।

तब सन्त ने सोचा कि “तोता को ही स्वतंत्र होने का पाठ पढ़ाना चाहिए” उन्होंने पिंजरा अपनी कुटी में मँगवा लिया और तोते को नित्य ही सिखाने लगे- ‘पिंजरा छोड़ दो, उड़ जाओ।’
कुछ दिन में तोते को वाक्य भली भाँति रट गया। तब एक दिन सफाई करते समय भूल से पिंजरा खुला रह गया। सन्त कुटी में आये तो देखा कि तोता बाहर निकल आया है और बड़े आराम से घूम रहा है साथ ही ऊँचे स्वर में कह भी रहा है- “पिंजरा छोड़ दो, उड़ जाओ।”
सन्त को आता देख वह पुनः पिंजरे के अन्दर चला गया और अपना पाठ बड़े जोर-जोर से दुहराने लगा। सन्त को यह देखकर बहुत ही आश्चर्य हुआ। साथ ही दुःख भी।
वे सोचते रहे “इसने केवल शब्द को ही याद किया! यदि यह इसका अर्थ भी जानता होता- तो यह इस समय इस पिंजरे से स्वतंत्र हो गया होता!


कहने का तात्पर्य यह कि - हम सब भी ज्ञान की बड़ी-बड़ी बातें सीखते और करते तो हैं किन्तु उनका मर्म नहीं समझ पाते और उचित समय तथा अवसर प्राप्त होने पर भी उसका लाभ नहीं उठा पाते और जहाँ के तहाँ रह जाते हैं।

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Monday, 4 May 2015

जीवन में ऊँचाइयाँ हासिल करने के लिए नम्र बनें


एक बार अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन नगर की स्थिति का जायजा लेने के लिए निकले। रास्ते में एक जगह भवन का निर्माण कार्य चल रहा था। वह कुछ देर के लिए वहीं रुक गए और वहां चल रहे कार्य को गौर से देखने लगे। कुछ देर में उन्होंने देखा कि कई मजदूर एक बड़ा-सा पत्थर उठा कर इमारत पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। किंतु पत्थर बहुत ही भारी था, इसलिए वह इतने मजदूरों के उठाने पर भी उठ नहीं आ रहा था। ठेकेदार उन मजदूरों को पत्थर न उठा पाने के कारण डांट रहा था पर खुद किसी भी तरह उन्हें मदद देने को तैयार नहीं था।

वॉशिंगटन यह देखकर उस ठेकेदार के पास आकर बोले, ‘इन मजदूरों की मदद करो। यदि एक आदमी और प्रयास करे तो यह पत्थर आसानी से उठ जाएगा।’ ठेकेदार वॉशिंगटन को पहचान नहीं पाया और रौब से बोला, ‘मैं दूसरों से काम लेता हूं, मैं मजदूरी नहीं करता।’ यह जवाब सुनकर वॉशिंगटन घोड़े से उतरे और पत्थर उठाने में मजदूरों की मदद करने लगे। उनके सहारा देते ही पत्थर उठ गया और आसानी से ऊपर चला गया। इसके बाद वह वापस अपने घोड़े पर आकर बैठ गए और बोले, ‘सलाम ठेकेदार साहब, भविष्य में कभी तुम्हें एक व्यक्ति की कमी मालूम पड़े तो राष्ट्रपति भवन में आकर जॉर्ज वॉशिंगटन को याद कर लेना।’
यह सुनते ही ठेकेदार उनके पैरों पर गिर पड़ा और अपने दुर्व्यवहार के लिए क्षमा मांगने लगा। ठेकेदार के माफी मांगने पर वॉशिंगटन बोले, ‘मेहनत करने से कोई छोटा नहीं हो जाता। मजदूरों की मदद करने से तुम उनका सम्मान हासिल करोगे। याद रखो, मदद के लिए सदैव तैयार रहने वाले को ही समाज में प्रतिष्ठा हासिल होती है। इसलिए जीवन में ऊंचाइयां हासिल करने के लिए व्यवहार में नम्रता का होना बेहद जरूरी है।’ उस दिन से ठेकेदार का व्यवहार बिल्कुल बदल गया और वह सभी के साथ अत्यंत नम्रता से पेश आने लगा।

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Sunday, 3 May 2015

देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए प्रेस की स्वतंत्रता आवश्यक


प्रेस किसी भी समाज का आइना होता है। प्रेस की आज़ादी से यह बात साबित होती है कि उस देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ अपनी दुनिया से बाहर निकल कर आसपास घटित होने वाली घटनाओं के बारे में जानने का अधिक वक्त हमारे पास नहीं होता। ऐसे में प्रेस और मीडिया हमारे लिए एक समाचार वाहक का काम करती हैं। पर इन समाचारों को हम तक पहुँचाने के लिए  कई बार हमारे पत्रकार साथियों को अपनी जानों को जोखिम में डालनी पड़ती है। 
शासक और सत्तासीन सरकारों का हमेशा यह प्रयत्न रहता है कि वह सूचना के उसी पहलू को जनता के सामने लाएं जो उनके पक्ष में हो ताकि उनके शासन को कोई चुनौती ना दे पाए. ऐसे में प्रेस की स्वतंत्रता पर खतरा होना लाजमी है।

प्रेस की स्वतंत्रता एवं पत्राकारों के अभिव्यक्ति की  आज़ादी की को अक्षुण बनाए रखने के लिए पिछले 21 सालों से प्रतिवर्ष 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। परन्तु दुर्भाग्यवश इन इक्कीस वर्षों में कई देशों में प्रेस की स्वतंत्रता बहुत मुश्किल दौर से गुज़रती रही है। कई देशों में उन पत्रकारों के लिए असुरक्षा का माहौल बना हुआ है जो सच्ची बात लिखने के अपने अधिकार की रक्षा करना चाहते हैं एवं कईयों को तो अपने जान से हाथ तक धोनी पड़ी है।

आम जनमानस को आसपास घटित होने वाली गतिविधियों की तह तक पहुंचाना और घटनाओं के प्रत्येक पक्ष को ईमानदारी से प्रदर्शित करने के लिए प्रेस की स्वतंत्रता बेहद जरूरी है क्योंकि प्रेस की आजादी से ही देश में अभिव्यक्ति की आजादी  को सुदृढ़ एवं मज़बूत बना सकता है।

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Saturday, 2 May 2015

जिन्दगी में बड़े अवसर अक्सर छोटे इशारो में छिप कर आते हैं

लखनऊ में छोटी उम्र में ही माता-पिता को खोने वाली पंकज भदौरिया ने भविष्य संवारने के लिए स्नातक पूरा होते ही सीएमएस अलीगंज शाखा में अंग्रेजी शिक्षिका की नौकरी कर ली, उन्हें हमेशा से तरह-तरह के व्यंजन पकाने का शौक था पर एक टेलीविजन शो ने उनके जिंदगी को बदलने की राह दिखाई और एक इशारा दिया उस शौक को अपना कैरियर बनाने का जिसको वो हमेशा चाहती थी पर हो न सका .

उन्होंने इस शो के लिए अपने स्कुल से छुट्टी भी मांगी पर उन्हें छुटी नहीं दी गयी और अपने सपनो को पूरा करने के खातिर उन्होंने सोलह साल पुरानी नौकरी को छोड़ दिया . ये कौन सोच सकता है की एक साधारण शिक्षिका उस रियलिटी शो में भाग लेने के लिए छुट्टी मांग रही थी जिस टेलीविजन शो का नाम “ मास्टरशेफ इंडिया” था और 25 दिसम्बर 2010 को इंडिया को पहला मास्टरशेफ मिला जिसका नाम “ पंकज भदौरिया “ था जो एक स्कुल टीचर थी .

जिन्दगी में बड़े अवसर तो अक्सर छोटे इशारो में ही छिप कर आते है. हिंदुस्तान की पहली मास्टर शेफ इंडिया का खिताब हासिल करने वाली लखनवी पंकज भदौरिया ने उस बात को साबित कर दिया कि अपने दिल की सुनो दिमाग की नहीं. पंकज के इस शौक और जूनून ने उनके काबिलियत को साबित करवाया और उनको देश ही नहीं विदेशो तक एक बहुचर्चित शेफ बना दिया .इस शो ने उन्हें एक करोड़ रूपये दिए साथ ही एक कुकरी शो के प्रसारण और बुक के कॉन्ट्रैक्ट के अधिकार भी .

एक मल्टीनेशनल कम्पनी एमवे इंडिया ने उन्हें अपने सबसे बढ़िया प्रोडक्ट ‘न्यूट्रीलाइट’ का ब्रांड अम्बेसडर बनाया है ,आज पंकज एक ब्रांड के रूप में स्थापित हो चुकी है और यह सब घटित केवल इसलिए हो सका कि पंकज ने उस अवसर के छोटे से इशारे को पहचान लिया था.
कहने का तात्पर्य यह कि  जीवन में अक्सर ऐसे मौके आ ही जाते है जहाँ हमे कुछ दुविधाओ और आशंकाओ के बीच चुनाव करना पड़ता है ऐसे मौको पर केवल दिल की सुनिए और आगे बढिये।

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Friday, 1 May 2015

आज अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस पर विशेष

श्रमिकों का सम्मान; उनके हितों की रक्षा करें 

कितनी विचित्र विडंबना है,  भव्य आवास,गगनचुम्बी अट्टालिकाएं  बनाने वाला , उनको आधुनिकतम सुख-सुविधाओं से सज्जित करने वाला श्रमिक आजीवन  अपने लिए एक छत की व्यवस्था नहीं कर पाता .शीत, आतप वर्षा ,आंधी तूफ़ान सभी में उसको प्राकृतिक छत का ही सहारा होता है,जहाँ खड़े होना भी आम  सभी वर्गों के लिए असह्य होता है,उसी गंदगी,कीचड,कूड़े के ढेर के पास अपना टूटा फूटा छप्पर डाल कर रहता है वो,जिसके स्वयं व उसके परिवार की महिलाओं ,बच्चों के लिए  शौचालय  भी नहीं हैं ,स्नान  के लिए सरकारी नल या  नदी , नहरों रजवाहों ,तालाबों का सुख भी अब छीनता जा रहा है, रौशनी के नाम पर मोमबत्ती या लालटेन भी कठिनता से उपलब्ध हो पाता है।
मूल्यवान वस्त्र हाथ से या मशीनों से बनाने की समस्त प्रक्रियाएं जो मजदूर तैयार करता है,स्वयं फटे हाल रहता है, सबको छप्पन प्रकार के व्यंजन से तृप्त करने में जुटा मजदूर पेट पर पट्टी बाँधने को विवश रहता है. जो अपनी जान जोखिम में डालकर खदानों  में काम करता है,पत्थर तोड़ता है, जिसकी आँखें बचपन में ही वेल्डिंग के कारण बेकार हो जाती हैं.,जिनके फेफड़े ,गुर्दे हाथ और पैर सब असमय ही जवाब देदेते हैं.बीमारी के आक्रमण करने पर भी जिसके लिए निजी चिकित्सकों के पास जाना बूते से बाहर की बात है,और सरकारी अस्पतालों में न चिकित्सक ,न औषधियां .सरकार ने विद्यालय तो इस वर्ग के लिए खोल दिए हैं,परन्तु उसमें शिक्षक नहीं  ,पुस्तकें नहीं … आज की हमारी केंद्रीय सरकार ने श्रमिको के हितों की रक्षा के लिए `श्रमेव  जयते' कानून  बनाया है पर यह तभी कारगर होगा जब हम सब मिलजुल इस पर  अमल करें।  .

आज  अंतर्राष्ट्रीय दिवस की महत्वपूर्ण अवसर पर आवश्यकता है कि हम सब सरकारों के साथ साथ, अपने मज़दूर एवं श्रमिक भाइयों, किसानों के हितों की रक्षा के लिए संकल्प लेकर उनको वो अवसर प्रदान करें जो आज देश के जान सामान्य नागरिकों को प्राप्त है।

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