Sunday, 10 May 2015

माँ तो ममता का महाकाव्य है

माँ तो ममता का महाकाव्य है। माँ ही जीवन के हर दुःख दर्द का पड़ाव है और माँ ही अन्तिम शरण स्थली है।
जब दुनिया में कोई भी पनाह न दे पाए तब धरती पर अकेली माँ ही उसे षरण देती है। माँ राहत की सांस है। माँ तो अपने आप में जीवन का महाव्रत है। माँ तो घर के कुमकुम की रंगोली है। माँ तो हर रोज सूर्य भगवान् को दिया जाने वाला आस्था का अर्ध्य है। सभी देवी देवताओं के स्वतंत्र मन्दिर हैं पर माँ तो वह मन्दिर है जिसमें ब्रह्या, विष्णु, महेष कुदरती तौर पर प्रतिष्ठित हैं, जिसकी वाणी में सत्यम् है, जिसकी आँखों में शिवम है और जिसके हाथों में सुन्दरम् है। कहते हैं ब्रह्मा का कार्य सृजन करना है। 

हमारा सृजन माँ ने किया इसलिए माँ ब्रह्मा है। हमारा पालन-पोशण माँ करती है इसलिए माँ विष्णु है। माँ ही हमारा उद्धार करती है, माँ ही हमें संस्कार देती है और माँ ही हमें अपने पाँवों पर खड़ा करती है इसलिए माँ महादेव है। तीनों देवताओं की अगर एक साथ पूजा करनी है तो माँ को पूजिए। माँ पृथ्वी की तरह सहनषीला है, उसकी ममता सागर की अथाह है, उसके अहसान आकाश की तरह अन्तहीन हैं। माँ सचमुच धन्य है, वह यज्ञ की वेदी है, वह मन्दिर की प्रतिमा है, हर तीर्थ की देवी है। माँ के आंचल में ही कामधेनु का आशीर्वाद है। माँ के हाथों में जादुई स्पर्श है, जो देता है हमें एक अद्भुत सुख, सन्तुष्टि, तृप्ति और मुक्ति। इस दुनियाँ में हर वास्तु का विकल्प हो सकता है पर मातृभाषा, मातृभूमि एवं माँ का कोई विकल्प नहीं। माँ के इसी गौरवमय रुप को हम सब प्रणाम करते हैं ।



आज के दिन को  पुरे विश्व में मातृ दिवस के रूप में मनाया जाता है और यह दिवस हमें याद दिलाता है कि हम सभी को अपने माताओं का सम्मान करना चाहिए क्योंकि हमारे उत्थान में हमारी माताओं की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है।  हम सबका यह सामूहिक दायित्व होना चाहिए कि हमारी माताओं, हमारे पिताओं को उनके जीवन की गोधूलि वेला में उन्हें किसी भी प्रकार का शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक एवं आर्थिक क्लेश ना पहुँचे।

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