श्रमिकों का सम्मान; उनके हितों की रक्षा करें
कितनी विचित्र विडंबना है, भव्य आवास,गगनचुम्बी अट्टालिकाएं बनाने वाला , उनको आधुनिकतम सुख-सुविधाओं से सज्जित करने वाला श्रमिक आजीवन अपने लिए एक छत की व्यवस्था नहीं कर पाता .शीत, आतप वर्षा ,आंधी तूफ़ान सभी में उसको प्राकृतिक छत का ही सहारा होता है,जहाँ खड़े होना भी आम सभी वर्गों के लिए असह्य होता है,उसी गंदगी,कीचड,कूड़े के ढेर के पास अपना टूटा फूटा छप्पर डाल कर रहता है वो,जिसके स्वयं व उसके परिवार की महिलाओं ,बच्चों के लिए शौचालय भी नहीं हैं ,स्नान के लिए सरकारी नल या नदी , नहरों रजवाहों ,तालाबों का सुख भी अब छीनता जा रहा है, रौशनी के नाम पर मोमबत्ती या लालटेन भी कठिनता से उपलब्ध हो पाता है।
मूल्यवान वस्त्र हाथ से या मशीनों से बनाने की समस्त प्रक्रियाएं जो मजदूर तैयार करता है,स्वयं फटे हाल रहता है, सबको छप्पन प्रकार के व्यंजन से तृप्त करने में जुटा मजदूर पेट पर पट्टी बाँधने को विवश रहता है. जो अपनी जान जोखिम में डालकर खदानों में काम करता है,पत्थर तोड़ता है, जिसकी आँखें बचपन में ही वेल्डिंग के कारण बेकार हो जाती हैं.,जिनके फेफड़े ,गुर्दे हाथ और पैर सब असमय ही जवाब देदेते हैं.बीमारी के आक्रमण करने पर भी जिसके लिए निजी चिकित्सकों के पास जाना बूते से बाहर की बात है,और सरकारी अस्पतालों में न चिकित्सक ,न औषधियां .सरकार ने विद्यालय तो इस वर्ग के लिए खोल दिए हैं,परन्तु उसमें शिक्षक नहीं ,पुस्तकें नहीं … आज की हमारी केंद्रीय सरकार ने श्रमिको के हितों की रक्षा के लिए `श्रमेव जयते' कानून बनाया है पर यह तभी कारगर होगा जब हम सब मिलजुल इस पर अमल करें। .
आज अंतर्राष्ट्रीय दिवस की महत्वपूर्ण अवसर पर आवश्यकता है कि हम सब सरकारों के साथ साथ, अपने मज़दूर एवं श्रमिक भाइयों, किसानों के हितों की रक्षा के लिए संकल्प लेकर उनको वो अवसर प्रदान करें जो आज देश के जान सामान्य नागरिकों को प्राप्त है।
कितनी विचित्र विडंबना है, भव्य आवास,गगनचुम्बी अट्टालिकाएं बनाने वाला , उनको आधुनिकतम सुख-सुविधाओं से सज्जित करने वाला श्रमिक आजीवन अपने लिए एक छत की व्यवस्था नहीं कर पाता .शीत, आतप वर्षा ,आंधी तूफ़ान सभी में उसको प्राकृतिक छत का ही सहारा होता है,जहाँ खड़े होना भी आम सभी वर्गों के लिए असह्य होता है,उसी गंदगी,कीचड,कूड़े के ढेर के पास अपना टूटा फूटा छप्पर डाल कर रहता है वो,जिसके स्वयं व उसके परिवार की महिलाओं ,बच्चों के लिए शौचालय भी नहीं हैं ,स्नान के लिए सरकारी नल या नदी , नहरों रजवाहों ,तालाबों का सुख भी अब छीनता जा रहा है, रौशनी के नाम पर मोमबत्ती या लालटेन भी कठिनता से उपलब्ध हो पाता है।
मूल्यवान वस्त्र हाथ से या मशीनों से बनाने की समस्त प्रक्रियाएं जो मजदूर तैयार करता है,स्वयं फटे हाल रहता है, सबको छप्पन प्रकार के व्यंजन से तृप्त करने में जुटा मजदूर पेट पर पट्टी बाँधने को विवश रहता है. जो अपनी जान जोखिम में डालकर खदानों में काम करता है,पत्थर तोड़ता है, जिसकी आँखें बचपन में ही वेल्डिंग के कारण बेकार हो जाती हैं.,जिनके फेफड़े ,गुर्दे हाथ और पैर सब असमय ही जवाब देदेते हैं.बीमारी के आक्रमण करने पर भी जिसके लिए निजी चिकित्सकों के पास जाना बूते से बाहर की बात है,और सरकारी अस्पतालों में न चिकित्सक ,न औषधियां .सरकार ने विद्यालय तो इस वर्ग के लिए खोल दिए हैं,परन्तु उसमें शिक्षक नहीं ,पुस्तकें नहीं … आज की हमारी केंद्रीय सरकार ने श्रमिको के हितों की रक्षा के लिए `श्रमेव जयते' कानून बनाया है पर यह तभी कारगर होगा जब हम सब मिलजुल इस पर अमल करें। .
आज अंतर्राष्ट्रीय दिवस की महत्वपूर्ण अवसर पर आवश्यकता है कि हम सब सरकारों के साथ साथ, अपने मज़दूर एवं श्रमिक भाइयों, किसानों के हितों की रक्षा के लिए संकल्प लेकर उनको वो अवसर प्रदान करें जो आज देश के जान सामान्य नागरिकों को प्राप्त है।
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