Monday, 29 December 2014

सिर्फ अच्छाईयों पर अपना ध्यान केंद्रित रखें

बहुत समय पहले की बात है. एक बार एक गुरु जी गंगा किनारे स्थित किसी गाँव में अपने शिष्यों के साथ स्नान कर रहे थे .

तभी एक राहगीर आया और उनसे पूछा , ” महाराज, इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं, दरअसल मैं अपने मौजूदा निवास स्थान से कहीं और जाना चाहता हूँ ?” गुरु जी बोले, ” जहाँ तुम अभी रहते हो वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं ?”
” मत पूछिए महाराज , वहां तो एक से एक कपटी, दुष्ट और बुरे लोग बसे हुए हैं.”, राहगीर बोला.
गुरु जी बोले, ” इस गाँव में भी बिलकुल उसी तरह के लोग रहते हैं…कपटी, दुष्ट, बुरे…” और इतना सुनकर राहगीर आगे बढ़ गया.
कुछ समय बाद एक दूसरा राहगीर वहां से गुजरा. उसने भी गुरु जी से वही प्रश्न पूछा , ”
मुझे किसी नयी जगह जाना है, क्या आप बता सकते हैं कि इस गाँव में कैसे लोग रहते हैं ?”

” जहाँ तुम अभी निवास करते हो वहां किस प्रकार के लोग रहते हैं?”, गुरु जी ने इस राहगीर से भी वही प्रश्न पूछा.
” जी वहां तो बड़े सभ्य , सुलझे और अच्छे लोग रहते हैं.”, राहगीर बोला.
” तुम्हे बिलकुल उसी प्रकार के लोग यहाँ भी मिलेंगे…सभ्य, सुलझे और अच्छे ….”, गुरु जी ने अपनी बात पूर्ण की और दैनिक कार्यों में लग गए. पर उनके शिष्य ये सब देख रहे थे और राहगीर के जाते ही उन्होंने पूछा , ” क्षमा कीजियेगा गुरु जी पर आपने दोनों राहगीरों को एक ही स्थान के बारे में अलग-अलग बातें क्यों बतायी.
गुरु जी गंभीरता से बोले, ” शिष्यों आमतौर पर हम चीजों को वैसे नहीं दखते जैसी वे हैं, बल्कि उन्हें हम ऐसे देखते हैं जैसे कि हम खुद हैं. हर जगह हर प्रकार के लोग होते हैं यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह के लोगों को देखना चाहते हैं.”
शिष्य उनके बात समझ चुके थे और आगे से उन्होंने जीवन में सिर्फ अच्छाइयों पर ही ध्यान केन्द्रित करने का निश्चय किया.

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देश तभी बदलेगा जब हम बदलेंगे


अंग्रेजी वर्ष 2014  समाप्ति की ओर अग्रसर है।  महज कुछ दिनों  में हम नए साल में प्रवेश  कर जाएंगे। इस गुजरते साल की बहुत सी खट्टी मीठी  यादें हमारे साथ रहेंगी पर अच्छा  होगा यदि हम  वर्तमान साल के अपने कटु अनुभवों, नैराश्य  एवं दुःख के क्षणों को त्याग कर, नव वर्ष  में नई ऊर्जा एवं नए संकल्प  के साथ प्रवेश करें। इस  वर्ष  हमारे देश में   बहुत कुछ  ऐसा  हुआ जो दुखद  दुर्भाग्यपूर्ण है।  यदि हमारे देश  के सुदूर उत्तरीय राज्य जम्मू  काश्मीर में इस  दशक की  भीषणतम  बाढ़ ने तबाही मचाई,   तो दूसरी तरफ देश के पूर्वी राज्य आसाम  में बोडो  आतंकवादियों द्वारा किये गए नरसंहार में 80 से   अधिक लोगों को  अपने जाने  गँवानी पड़ी। 

हाँ इस वर्ष हमारे देश के राजनितिक परिदृश्य ने एक बड़ा सकारात्मक बदलाव देखा।  भ्रष्ट  राजनिति  तंत्र से  नाउम्मीद हो चुके हमारे देश के युवाओं ने  नए एवं एवं सशक्त सरकार का निर्वाचन कर यह इंगित कर दिया है कि उनकी शक्ति को कोई अनदेखा  नहीं कर सकता।  उम्मीद  की जानी चाहिए कि हमारे देश की नव निर्वाचित सरकार आने  वाले सालों देश के करोड़ों लोगो की आकांक्षाओं  पर खड़ा उतरेगी। 

पर देश को  विकास  के राह पर लाना, अपराध, भय  एवं आतंकवाद  मुक्त करना सिर्फ सरकार की जिम्मेवारी नहीं  होनी चाहिए।  देश तभी बदलेगा जब हम सब  बदलेंगे। देश एवं समाज को भय, अपराध  मुक्त करने  के लिए हमें अपने  स्वयं के आचरण, चरित्र में सकारात्मक बदलाव लाना होगा, अपने अंदर के बुराइयों को मिटाना होगा और अपने अंदर छुपे `रावण' को नष्ट करना होगा।     

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Saturday, 27 December 2014

श्रेष्ठता का अहंकार

रामकृष्ण परमहंस को अध्यात्म पर चर्चा करना बहुत अच्छा लगता था। अक्सर वे विभिन्न संप्रदायों के संतों से मिलते और गंभीर चर्चा शुरू कर देते थे। एक बार वे नागा गुरु तोतापुरी के साथ बैठे थे। माघ का महीना था और धूनी जल रही थी। ज्ञान की बातें हो रही थीं। तभी एक माली वहां से गुजरा और उसने धूनी से अपनी चिलम में भरने के लिए कुछ कोयले ले लिए। तोतापुरी जी को माली का इस तरह आना और बिना पूछे पवित्र धूनी छूना बहुत बुरा लगा। उन्होंने न केवल माली को भला-बुरा कहा, बल्कि दो-तीन चांटे भी मार दिए। माली बेचारा हक्का-बक्का रह गया।

परमहंस की धूनी से वह हमेशा ही कोयले लेकर चिलम भरा करता था। इस घटना पर रामकृष्ण परमहंस जोर-जोर से हंसने लगे। तब नागा गुरु ने उनसे सवाल किया, 'इस अस्पृश्य माली ने पवित्र अग्नि को छूकर अपवित्र कर दिया। तुम्हें भी इसे दो हाथ लगाने चाहिए थे, पर तुम तो हंस रहे हो।'

परमहंस ने जवाब दिया, 'मुझे नहीं पता था कि किसी के छूने भर से कोई वस्तु अपवित्र हो जाती है। अभी तक आप 'एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति' कह कर मुझे ज्ञान दे रहे थे कि समस्त विश्व एक ही परब्रह्म के प्रकाश से प्रकाशमान है। लेकिन आपका यह ज्ञान तब कहां चला गया, जब आपने मात्र धूनी की अग्नि छूने के बाद माली को भला-बुरा कहा और पीट दिया। आप जैसे आत्मज्ञानी को देखकर सिर्फ हंसी ही आ सकती है। यह सुनकर नागा गुरु बहुत लज्जित हुए। उन्होंने माली से क्षमा मांगी और परमहंस के सामने प्रतिज्ञा की कि आगे ऐसी गलती कभी नहीं करेंगे।

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Friday, 26 December 2014

tsunami 10th anniversary today

Tsunami which wrecked havoc in the eastern coastal states of our country 10 years back on December 26, 2004, claiming thousands of lives and leaving several  thousands marooned, is still vivid in our memories.

Let's pray in silence for tsunami victims

Apart from India, it (tsunami)   had struck a dozen countries around the Indian Ocean rim, eradicated entire coastal communities, decimated families and crashed over tourist-filled beaches the morning after Christmas. Survivors waded through a horror show of corpse-filled waters.

In the past 10 years since this tragedy struck India, though life has come back to normalcy in the coastal regions of Tamil Nadu which suffered maximum out of this devastating tragedy, there are still thousands who are living in miserable conditions. Moreover, no help and support can be a substitute for the enormous loss of lives caused by this tragedy.

On 10th anniversary of tsunami today, we must pray in silence for the victims who lost their lives and must commit our unflinching support for the survivors.

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Monday, 22 December 2014

सब्र का फल मीठा होता है !

एक गरीब युवक, अपनी गरीबी से परेशान होकर, अपना जीवन समाप्त करने नदी पर गया, वहां एक साधू ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। साधू ने, युवक की परेशानी को सुन कर कहा, कि मेरे पास एक विद्द्या है, जिससे ऐसा जादुई घड़ा बन जायेगा जो भी इस घड़े से मांगोगे, ये जादुई घड़ा पूरी कर देगा, पर जिस दिन ये घड़ा फूट गया, उसी समय, जो कुछ भी इस घड़े ने दिया है, वह सब गायब हो जायेगा। अगर तुम मेरी 2 साल तक सेवा करो, तो ये घड़ा, मैं तुम्हे दे सकता हूँ और, अगर 5 साल तक तुम मेरी सेवा करो, तो मैं, ये घड़ा बनाने की विद्द्या तुम्हे सिखा दूंगा।

बोलो तुम क्या चाहते हो? युवक ने कहा, महाराज मैं तो 2 साल ही आप की सेवा करना चाहूँगा, मुझे तो जल्द से जल्द, बस ये घड़ा ही चाहिए, मैं इसे बहुत संभाल कर रखूँगा, कभी फूटने ही नहीं दूंगा। इस तरह 2 साल सेवा करने के बाद, युवक ने वो जादुई घड़ा प्राप्त कर लिया, और अपने घर पहुँच गया। उसने घड़े से अपनी हर इच्छा पूरी करवानी शुरू कर दी, महल बनवाया, नौकर चाकर मांगे, सभी को अपनी शान शौकत दिखाने लगा, सभी को बुला-बुला कर दावतें देने लगा और बहुत ही विलासिता का जीवन जीने लगा, उसने शराब भी पीनी शुरू कर दी और एक दिन नशें में, घड़ा सर पर रख नाचने लगा और ठोकर लगने से घड़ा गिर गया और फूट गया. घड़ा फूटते ही सभी कुछ गायब हो गया, 
अब युवक सोचने लगा कि काश मैंने जल्दबाजी न की होती और घड़ा बनाने की विद्द्या सीख ली होती, तो आज मैं, फिर से कंगाल न होता।

“ईश्वर हमें हमेशा 2 रास्ते पर रखता है एक आसान – जल्दी वाला और दूसरा थोडा लम्बे समय वाला, पर गहरे ज्ञान वाला, ये हमें चुनना होता है की हम किस रास्ते पर चलें” .  इस कथा का सार यह है है कि   ” कोई भी काम जल्दी में करना अच्छा नहीं होता, बल्कि उसके विषय में गहरा ज्ञान आपको अनुभवी बनाता है “

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अंग दान महादान : क्योंकि मृत्यु के पश्चात भी जीवन है ?



मृत्य के बाद भी हम किसी को जीवन दे सकते हैं, अपने आवश्यक अंगों को किसी  जरूरतमंद को दान कर । हमारे समक्ष ऐसे कई उदाहरण हैं जब किसी मृत व्यक्ति के शरीर के अंगों को किसी दूसरे बीमार, रुग्ण व्यक्ति के शरीर में समय रहते प्रत्यारोपण कर उन्हें नया जीवन मिला है। बेंगलुरु का ढाई-वर्षीय बालक जिसे काल ने समय से पहले ही अपना ग्रास बना लिया , आज  हम सभी देशवासियों  के लिए आदर्श बन चूका है। धन्य हैं उसके माता-पिता जिन्होंने अपने मासूम बच्चे के असामयिक मृत्यु की वेदना से आहत होने के पश्चात भी संयम रख उसके अत्यावश्यक शरीर के अंगों को दान कर किसी दूसरे माँ-बाप के लाडले को नया जीवन दिया। 

ज्ञात हो इस ढाई-वर्षीय बच्चे के असामयिक मृत्यु के पश्चात, उसके  हृदय को चेन्नई के एक  अस्पताल में भर्ती  एक रुसी बच्चे के शरीर  में प्रत्यारोपण कर नया जीवन प्रदान किया है। ह्रदय के अलावा, इस बच्चे के कॉर्निया, लीवर, आँख एवं गुर्दे को भी विभिन्न अस्पतालों को दान कर, उसके माता-पिता ने  मानवता का अद्भुत उदाहरण  स्थापित किया है।  ऐसे सराहनीय प्रयास की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। 

आवश्यकता है,  देशवासियों को ऐसे उत्कृष्ट आदर्शों से सिख लेने की।  आइये हम सब अपने एवं अपने कुटुम्बों के मृत्यु के पश्चात अंग दान का संकल्प लें और मृत्यु के चौखट पर खड़े लोगों को अंग प्रत्यारोपण से नया जीवन दें। मृत्योपरांत  हमारा अंग दान उन हज़ारो, लाखों लोगों को अंग प्रत्यारोपण के द्वारा  उनके असामयिक मृत्यु को रोकने में कारगर होगा। 

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Friday, 19 December 2014

श्रम का पुरस्कार

बहुत दिनों पहले की बात है, गिलहरी पूरी तरह काली हुआ करती थी। छोटी-छोटी झाड़ियों के बीच, घास के मैदानों में, ऊँचे बड़े पेड़ों पर रेंगती फिरती कूदती फाँदती लेकिन लोग उसे सुंदर प्राणी नहीं समझते थे। गिलहरी को गाँव के परिवारों के साथ रहना पसंद था लेकिन गाँव वाले उसे पसंद नहीं करते थे। वह घरों में पहुँच जाती तो बच्चे डर जाते और लोग उसे भगाने लगते। 

गाँव में एक आश्रम था जिसमें साधू बाबा रहते थे। गिलहरी उनके पास रहने लगी। जो बाबा खाते वह गिलहरी खाती, जो वे यज्ञ हवन करते उसकी साक्षी बनती और जो वे जप मंत्र पढ़ते उसके पुण्य का लाभ उठाती। धीरे धीरे गिलहरी बीज, कंद और मूल खाने वाली साध्वी बन गई। कुछ समय बाद बाबा रामेश्वरम की तीर्थयात्रा पर निकले तो वह गिलहरी भी उनके साथ हो ली। रामेश्वरम के समुद्र तट पर बाबा ने जहाँ डेरा डाला वहीं किसी पेड़ पर एक कोटर में गिलहरी ने भी अपना घर बना लिया। 

रामेश्वरम में थोड़ा ही समय बीता था कि राम और रावण का युद्ध छिड़ गया और राम जी ने सिंधु में सेतु निर्माण का कार्य प्रारम्भ कर दिया। नल और नील के नेतृत्व में बन्दर और भालू समुद्र में पत्थर डालकर सेतु बनाने लगे। यह देखकर गिलहरी भी रेत के कण उठाकर समुद्र में डालने लगी। यह छोटा सा काम था लेकिन बड़े निर्माण में छोटे से छोटे काम का महत्व होता है, यह समझकर नल नील ने उसे टोका नहीं और वह अपना काम करती रही। भगवान राम भी उसे चुपचाप काम करते देखते। जिस दिन पुल का निर्माण पूरा हुआ, उस दिन, नन्हीं सी गिलहरी द्वारा प्रदर्शित उत्तरदायित्व, लगन और श्रम की भावना को पुरस्कृत करने के लिये भगवान राम ने उसे अपने हाथों में उठाया और आशीर्वाद से भरी अपनी अँगुलियों को उस पर फेरा।

आश्चर्य ! भगवान राम के हाथ और ऊँगलियों के निशान जहाँ लगे वहाँ का रंग भगवान की त्वचा जैसा साँवला हो गया और वह अत्यंत आकर्षक दिखाई देने लगी। कहते हैं तभी से गिलहरी की गणना सुंदर प्राणियों में होने लगी। गाँव के बच्चे उसे देखकर खुश हो जाते, उसे बगीचों से कोई नहीं भगाता और लोग उससे खूब प्रेम करते। गिलहरी को मिले इस वरदान से उसके आगे की संतति भी सुंदर हुई। अंत में जब सेतु निर्माण का इतिहास लिखा गया तब हर कवि और रचनाकार ने उस नन्हीं गिलहरी का उल्लेख अपनी रचना में किया।

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Saturday, 13 December 2014

हतोत्साहित नहीं प्रोत्साहित करें

एक दिन एक किसान का गधा कुएं में गिर गया। वह गधा घंटों जोर-जोर से रेंकता (गधे के बोलने की आवाज) रहा से और किसान सुनता रहा और विचार करता रहा कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। आखिर उसने निर्णय लिया कि गधा काफी बूढा हो चूका था, उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था इसलिए उसे कुएं में ही दफना देना चाहिए।

किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएं में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है, वह और जोर से चीख कर रोने लगा। और फिर, अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।

सब लोग चुपचाप कुएं में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएं में झांका तो वह हैरान रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।

जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे वह हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एस सीढी ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएं के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।

इस प्रेरक प्रसंग  है कि आपके जीवन में भी बहुत तरह कि मिट्टी फेंकी जाएगी, बहुत तरह कि गंदगी आप पर गिरेगी। जैसे कि, आपको आगे बढ़ने से रोकने के लिए कोई बेकार में ही आपकी आलोचना करेगा, कोई आपकी सफलता से ईर्ष्या के कारण तुम्हे बेकार में ही भला बुरा कहेगा ।

कोई आगे निकलने के लिए ऐसे रास्ते अपनाता हुआ दिखेगा जो आपके आदर्शों के विरुद्ध होंगे। ऐसे में आपको हतोत्साहित होकर कुएं में ही नहीं पड़े रहना है बल्कि साहस के साथ हिल-हिल कर हर तरह कि गंदगी को गिरा देना है और उससे सीख लेकर,उसे सीढ़ी बनाकर,बिना अपने आदर्शों का त्याग किए अपने कदमों को आगे बढ़ाते जाना है।

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Wednesday, 10 December 2014


मानवाधिकार मनुष्य के वे मूलभूत सार्वभौमिक अधिकार हैं, जिनसे मनुष्य को नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि किसी भी दूसरे कारक के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता। इंसानी अधिकारों को पहचान देने और वजूद को अस्तित्व में लाने के लिए, अधिकारों के लिए जारी हर लड़ाई को ताकत देने के लिए हर साल 10 दिसंबर को अंतरराष्‍ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।  पूरी दुनिया में मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्मों को रोकने, उसके खिलाफ संघर्ष को नई परवाज देने में इस दिवस की महत्वूपूर्ण भूमिका है। हमारे देश में व्यक्तिगत जीवन के लिए मानवाधिकार की महत्ता को समझते हुए भारत सरकार द्वारा 12 अक्टूबर, 1993 में मानवाधिकार आयोग नामक एक स्वायत्त संस्था का गठन मनुष्य को उपलब्ध मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए किया गया। परन्तु दुर्भाग्यवश हमारे देश में इन संस्थाओं के बावजूद, मानव अधिकारों के हनन की अनगिनत घटनाएँ देखने को मिलती हैं।  आजके इस महत्वपूर्ण अवसर पर, आइये हम सब मानव आधिकारों को अक्षुण रखने का संकल्प लें जिससे कि देश का हर व्यक्ति प्रदत्त मानवीय अधिकारों से वंचित ना रह पाये। 

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Monday, 8 December 2014

मार्मिक कहानी कहानी एक गलती की

एक बार कुछ विद्यार्थी रसायन विज्ञानं प्रयोगशाला में कुछ प्रयोग कर रहे थे. सभी विद्यार्थी अपने अपने प्रयोगों में व्यस्त थे कि अचानक एक लड़के की परखनली से तेज बुलबुला उठा और उसकी छिट्कियाँ सामने प्रयोग कर रही लड़की की आँखों में चला गया.
पूरी प्रयोगशाला में हाहाकार मच गया, सभी खूब परेशांन हुए, आनन फानन में उस लड़की को अस्पताल पहुँचाया गया, वहाँ डाक्टरों ने बताया कि वो अपनी आँखें खो चुकी है. ये सुन कर उस लड़की के घर वालों ने उस लड़के को कोसना शुरू कर दिया और स्कूल वालों ने उस लड़के को स्कूल से निकाल दिया.
अब वो अंधी लड़की अपनी नीरस ज़िन्दगी बिता रही थी, जो शायद किसी की लापरवाही की वजह से वीरान सी हो गयी थी, अब उस लड़की की ज़िन्दगी में कोई भी रंग कोई मायने नहीं रखता था. घर वाले भी वक़्त बेवक्त उस लड़के को कोसते रहते थे जिसने उनकी लड़की की ज़िन्दगी खराब कर दी थी. आज कल के ज़माने में तो किसी के सामने हूर परी भी बैठा दो तो भी लड़के वालों को उससे भी ज्यादा खूबसूरत चाहिए होती है. फिर उस बिचारी की वीरान ज़िन्दगी में रंग भरने की बात सोच पाना भी असंभव सा था. खैर वक़्त बीतता गया और उस लड़की को उस वीराने की आदत हो गयी. क्योंकि अब उसकी ज़िन्दगी में कही से भी उजाला आने की कोई गुंजाइश नहीं थी.
अचानक एक दिन एक बड़े इंजीनियर का रिश्ता उस अंधी लड़की के घर आया. यही नहीं लड़का खुद उसके घरवालों से उसका हाथ मांगने अपने माँ बाप के साथ आया था. घर वाले मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे कि बैठे बिठाये उन्हें अपनी अंधी लड़की के लिए लड़का मिल गया लेकिन लड़की इस बात से काफी दुखी थी. शायद इसलिए कि वो किसी की ज़िन्दगी खराब नहीं करना चाहती थी. इसलिए उसने लड़के को अन्दर बुलाया और बोली कि मैं अंधी हूँ आपके घर का कोई काम मैं नहीं कर पाउंगी, आपको मुझसे कोई सुख नहीं मिल पायेगा, आप एक इंजीनियर हैं इसलिये आपको तो एक से बढ़कर एक लड़कियां मिल जायेंगी. आप प्लीज़ अपनी ज़िन्दगी खराब मत कीजिये. इस पर वो लड़का आगे बढ़ा और घुटनों के बल बैठकर लड़की का हाथ पकड़कर बोला :
प्लीज़ तुम इस शादी के लिए हाँ कहके मुझे मेरा प्रायश्चित कर लेने दो, मैं वही हूँ जिसने तुम्हारी ज़िन्दगी वीरान की है और आज मैं प्रायश्चित करना चाहता हूँ. प्लीज़ मना मत करना. ये सुन कर वो लड़की रोने लगती है, ये सोच कर नहीं कि उसकी ज़िन्दगी खराब करने वाला उससे शादी करना चाहता है. बल्कि ये सोच कर कि इस दुनिया में ऐसे लोग भी है जो अपनी गलती को स्वीकारना जानते हैं ।

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Wednesday, 3 December 2014

ज़िन्दगी का कड़वा सच

एक भिखारी था| वह न ठीक से खाता था, न पीता था, जिस वजह से उसका बूढ़ा शरीर सूखकर कांटा हो गया था| उसकी एक-एक हड्डी गिनी जा सकती थी| उसकी आंखों की ज्योति चली गई थी| उसे कोढ़ हो गया था| बेचारा रास्ते के एक ओर बैठकर गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगा करता था| एक युवक उस रास्ते से रोज निकलता था| भिखारी को देखकर उसे बड़ा बुरा लगता| उसका मन बहुत ही दुखी होता| वह सोचता, वह क्यों भीख मांगता है? जीने से उसे मोह क्यों है? भगवान उसे उठा क्यों नहीं लेते? एक दिन उससे न रहा गया| वह भिखारी के पास गया और बोला - "बाबा, तुम्हारी ऐसी हालत हो गई है फिर भी तुम जीना चाहते हो? तुम भीख मांगते हो, पर ईश्वर से यह प्रार्थना क्यों नहीं करते कि वह तुम्हें अपने पास बुला ले?"

भिखारी ने मुंह खोला - "भैया तुम जो कह रहे हो, वही बात मेरे मन में भी उठती है| मैं भगवान से बराबर प्रार्थना करता हूं, पर वह मेरी सुनता ही नहीं| शायद वह चाहता है कि मैं इस धरती पर रहूं, जिससे दुनिया के लोग मुझे देखें और समझें कि एक दिन मैं भी उनकी ही तरह था, लेकिन वह दिन भी आ सकता है, जबकि वे मेरी तरह हो सकते हैं| इसलिए किसी को घमंड नहीं करना चाहिए|"

लड़का भिखारी की ओर देखता रह गया| उसने जो कहा था, उसमें कितनी बड़ी सच्चाई समाई हुई थी| यह जिंदगी का एक कड़वा सच था, जिसे मानने वाले प्रभु की सीख भी मानते हैं|

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Tuesday, 2 December 2014

AIDS Day

AIDS Day: Let us show our love to those without hope
India has the third-highest number of people living with HIV in the world with 2.1 million Indians accounting for about four out of 10 people infected with the deadly virus in the Asia—Pacific region, according to a UN report. According to  UNAIDS,  19 million of the 35 million people living with the virus globally do not know their HIV—positive status and so ending the AIDS epidemic by 2030 will require smart scale—up to close the gap. At the end of 2013, there were an estimated 4.8 million people living with HIV across the region. Six countries - China, India, Indonesia, Myanmar, Thailand, and Vietnam - account for more than 90 per cent of the people living with HIV in the region.
On World AIDS Day today let each of us take a pledge to create an awareness among people about this deadly disease and show our love to those without hope and protect the generation of tomorrow.

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Sunday, 30 November 2014

समय का सदुपयोग करें।



बात साबरमती आश्रम में गांधी जी के प्रवास के दिनों की है। एक दिन एक गाँव के कुछ लोग बापू के पास आए और उनसे कहने लगे, "बापू कल हमारे गाँव में एक सभा हो रही है, यदि आप समय निकाल कर जनता को देश की स्थिति व स्वाधीनता के प्रति कुछ शब्द कहें तो आपकी कृपा होगी।" गांधी जी ने अपना कल का कार्यक्रम देखा और गाँव के लोगों के मुखिया से पूछा, "सभा के कार्यक्रम का समय कब है?"

मुखिया ने कहा, "हमने चार बजे निश्चित कर रखा है।" गांधी जी ने आने की अपनी अनुमति दे दी। मुखिया बोला, "बापू मैं गाड़ी से एक व्यक्ति को भेज दूँगा, जो आपको ले आएगा। आपको अधिक कष्ट नहीं होगा।  गांधी जी मुस्कराते हुए बोले, "अच्छी बात है, कल निश्चित समय मैं तैयार रहूँगा।"
अगले दिन जब पौने चार बजे तक मुखिया का आदमी नहीं पहुँचा तो गांधी जी चिंतित हो गए। उन्होंने सोचा अगर मैं समय से नहीं पहुँचा तो लोग क्या कहेंगे। उनका समय व्यर्थ नष्ट होगा।

गांधी जी ने एक तरीक़ा सोचा और उसी के अनुसार अमल किया। कुछ समय पश्चात मुखिया गांधी जी को लेने आश्रम पहुँचा तो गांधी जी को वहाँ नहीं पाकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। लेकिन वह क्या कर सकते थे। मुखिया सभा स्थल पर पहुँचा तो उन्हें यह देख कर और अधिक आश्चर्य हुआ कि गांधी जी भाषण दे रहे हैं और सभी लोग तन्मयता से उन्हें सुन रहे हैं।

भाषण के उपरांत मुखिया गांधी जी से मिला और उनसे पूछने लगा, "मैं आपको लेने आश्रम गया था लेकिन आप वहाँ नहीं मिले फिर आप यहाँ तक कैसे पहुँचे?" गांधी जी ने कहा, "जब आप पौने चार बजे तक नहीं पहुँचे तो मुझे चिंता हुई कि मेरे कारण इतने लोगों का समय नष्ट हो सकता है इसलिए मैंने साइकिल उठाई और तेज़ी से चलाते हुए यहाँ पहुँचा।" मुखिया बहुत शर्मिंदा हुआ। गांधी जी ने कहा, "समय बहुत मूल्यवान होता है। हमें प्रतिदिन समय का सदुपयोग करना चाहिए। किसी भी प्रगति में समय महत्वपूर्ण होता है।"

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Monday, 24 November 2014

ज्ञान और विवेक को अपने जीवन में नियमपूर्वक लाना होगा




एक व्यक्ति एक प्रसिद्ध संत के पास गया और बोला गुरुदेव मुझे जीवन के सत्य का पूर्ण ज्ञान है | मैंने शास्त्रों का काफी ध्यान से अध्ययन किया है | फिर भी मेरा मन किसी काम में नही लगता | जब भी कोई काम करने के लिए बैठता हूँ तो मन भटकने लगता है तो मै उस काम को छोड़ देता हूँ | इस अस्थिरता का क्या कारण है ? कृपया मेरी इस समस्या का समाधान कीजिये |

संत ने उसे रात तक इंतज़ार करने के लिए कहा रात होने पर वह उसे एक झील के पास ले गया और झील के अन्दर चाँद का प्रतिविम्ब को दिखा कर बोले एक चाँद आकाश में और एक झील में, तुमारा मन इस झील की तरह है तुम्हारे पास ज्ञान तो है लेकिन तुम उसको इस्तेमाल करने की बजाये सिर्फ उसे अपने मन में लाकर बैठे हो, ठीक उसी तरह जैसे झील असली चाँद का प्रतिविम्ब लेकर बैठी है |

तुमारा ज्ञान तभी सार्थक हो सकता है जब तुम उसे व्यहार में एकाग्रता और संयम के साथ अपनाने की कोशिश करो | झील का चाँद तो मात्र एक भ्रम है तुम्हे अपने कम में मन लगाने के लिए आकाश के चन्द्रमा की तरह बनाना है, झील का चाँद तो पानी में पत्थर गिराने पर हिलाने लगता है जिस तरह तुमारा मन जरा-जरा से बात पर डोलने लगता है | 

तुम्हे अपने ज्ञान और विवेक को जीवन में नियम पूर्वक लाना होगा और अपने जीवन को जितना सार्थक और लक्ष्य हासिल करने में लगाना होगा खुद को आकाश के चाँद के बराबर बनाओ शुरू में थोड़ी परेशानी आयेगी पर कुछ समय बात ही तुम्हे इसकी आदत हो जायेगी।

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Sunday, 23 November 2014

मनुष्य अपने उत्कृष्ट कर्मों, आचरण से महान बनता है

 

एक बालक नित्य विद्यालय पढ़ने जाता था। घर में उसकी माता थी। माँ अपने बेटे पर प्राण न्योछावर किए रहती थी, उसकी हर माँग पूरी करने में आनंद का अनुभव करती। पुत्र भी पढ़ने-लिखने में बड़ा तेज़ और परिश्रमी था। खेल के समय खेलता, लेकिन पढ़ने के समय का ध्यान रखता। 
एक दिन दरवाज़े पर किसी ने - 'माई! ओ माई!' पुकारते हुए आवाज़ लगाई तो बालक हाथ में पुस्तक पकड़े हुए द्वार पर गया, देखा कि एक फटेहाल बुढ़िया काँपते हाथ फैलाए खड़ी थी।

उसने कहा, 'बेटा! कुछ भीख दे दे।' 
बुढ़िया के मुँह से बेटा सुनकर वह भावुक हो गया और माँ से आकर कहने लगा, 'माँ! एक बेचारी गरीब माँ मुझे बेटा कहकर कुछ माँग रही है।' 
उस समय घर में कुछ खाने की चीज़ थी नहीं, इसलिए माँ ने कहा, 'बेटा! रोटी-भात तो कुछ बचा नहीं है, चाहे तो चावल दे दो।' 
पर बालक ने हठ करते हुए कहा - 'माँ! चावल से क्या होगा? तुम जो अपने हाथ में सोने का कंगन पहने हो, वही दे दो न उस बेचारी को। मैं जब बड़ा होकर कमाऊँगा तो तुम्हें दो कंगन बनवा दूँगा।' 
माँ ने बालक का मन रखने के लिए सच में ही सोने का अपना वह कंगन कलाई से उतारा और कहा, 'लो, दे दो।'
बालक खुशी-खुशी वह कंगन उस भिखारिन को दे आया। भिखारिन को तो मानो एक ख़ज़ाना ही मिल गया। कंगन बेचकर उसने परिवार के बच्चों के लिए अनाज, कपड़े आदि जुटा लिए। उसका पति अंधा था। 

उधर वह बालक पढ़-लिखकर बड़ा विद्वान हुआ और काफी नाम कमाया। एक दिन वह माँ से बोला, 'माँ! तुम अपने हाथ का नाप दे दो, मैं कंगन बनवा दूँ।' उसे बचपन का अपना वचन याद था। 
पर माता ने कहा, 'उसकी चिंता छोड़। मैं इतनी बूढ़ी हो गई हूँ कि अब मुझे कंगन शोभा नहीं देंगे। हाँ, कलकत्ते के तमाम ग़रीब बालक विद्यालय और चिकित्सा के लिए मारे-मारे फिरते हैं, उनके लिए तू एक विद्यालय और एक चिकित्सालय खुलवा दे जहाँ निशुल्क पढ़ाई और चिकित्सा की व्यवस्था हो।' माँ के उस पुत्र का नाम ईश्वरचंद्र विद्यासागर था। 
 इस कथा का सार यह है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता, बल्कि उसके कर्म, आचरण, व्यवहार, नियति एवं  चरित्र उसे महान बनाते हैं। 

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Friday, 21 November 2014

Universal Children’s Day: It is time to wake up to children’s woes!!

As India races towards achieving superpowerdom, our children are still far behind in terms of healthcare, education and other facilities. Children especially girls are faced with lack of educational opportunities, malnourishment, infant mortality and early marriages. The government spends less than one percent of its total expenditure on child protection and over 170 million children and adolescents continue to live in difficult circumstances in the country. Despite the country making major strides towards improving legal and administrative frameworks to protect and promote child and adolescent rights, total government expenditure on child protection remains low at only .034 percent, according to report.

As the world is observing Universal Children’s Day, it is time the authorities concerned must fulfill its promises that they would be doing everything to protect and promote children’s rights to survive and thrive, to learn and grow, to make their voices heard and to reach their full potential.

The statistics below makes a telling commentary on the condition of children in India and a concerted efforts need to be made both at multiple levels to improve their lot.

Indian children: Ground realities:

To meet these challenges, and to reach those children who are hardest to reach, we need new ways of thinking and new ways of doing - for adults and children.

- With more than one-third of its population below 18 years, India has the largest young population in the world.

- Only 35% of births are registered, impacting name and nationality.

- One out of 16 children die before they attain the age of 1, and one out of 11 die before they are 5 years old.

- 35% of the developing world’s low-birth-weight babies are born in India.
- 40% of child malnutrition in the developing world is in India.

- The declining number of girls in the 0-6 age-group is cause for alarm. For every 1,000 boys there are only 927 females -- even less in some places.

- Out of every 100 children, 19 continue to be out of school.

- Of every 100 children who enroll, 70 drop out by the time they reach the secondary level.

- Of every 100 children who drop out of school, 66 are girls.

- 65% of girls in India are married by the age of 18 and become mothers soon after.

- India is home to the highest number of child labourers in the world.

- India has the world’s largest number of sexually abused children, with a child below 16 raped every 155th minute, a child below 10 every 13th hour, and at least one in every 10 children sexually abused at any point in time.

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Wednesday, 19 November 2014

World Toilet Day (Nov 19)

A daunting task to achieve total sanitation in India by 2019 !
In a world in which 14 percent of the population in the 21st century still defecate outdoors, children remain among the most vulnerable to a lack of toilets, contamination from human waste and dirty water.
The young are suffering the brunt of a health and development crisis that has claimed the lives of at least 10 million children under the age of five since 2000 because they have no access to a basic toilet, according to a new report from the international development organization WaterAid.
The United Nations, which designated November 19  as World Toilet Day to highlight sanitation as a developmental priority, says about 35 percent -- 2.5 billion of the planet’s 7 billion people -- live without basic sanitation facilities such as toilets and latrines. That’s at a time when more people have mobile phones on Earth than a toilet. Globally, an estimated 1.8 billion drink fouled water that’s faecally contaminated, according to World Health Organization/UNICEF.
India accounts for about 60 percent of Earth’s residents without toilets, highest in the world, with human excrement that goes into a field polluting groundwater, crops and waterways, causing illnesses such as diarrhea and cholera.
Prime Minister Narendra Modi has  a challenging task ahead in combating India's sanitation problem, one that costs India 600,000 lives annually from diarrhea. An estimated 1.1 million liters (290,000 gallons) of human excrement enters the Ganges River every minute, the revered waterway that Prime Minister has promised to clean.
Lack of toilets for vast majority of our population is also a major threat to our womenfolk living in the countryside. According to report,  a third of country's  women are vulnerable to the risk of rape or sexual assault, a danger that gained worldwide attention in May when two girls from a village in Uttar Pradesh were raped and hanged from a mango tree after they went outdoors to defecate.
India’s 50 percent open defecation rate in contrast trails a 3 percent rate in Bangladesh and 1 percent in China, according to a May report by WHO and Unicef.
One hopes India meets its target of total sanitation by 2019 coinciding with 150th birth anniversary of Mahatma Gandhi as announced by our Prime Minister Narendra Modi. From the fringe side, it appears to be a daunting task and one can only hope that our government is able to enable country's 1.2 billion residents access to  toilets by 2019.

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Monday, 17 November 2014

आत्मविश्वास है तो विजय निश्चित है।



घटना है वर्ष १९६० की। स्थान था यूरोप का भव्य ऐतिहासिक नगर तथा इटली की राजधानी रोम। सारे विश्व की निगाहें २५ अगस्त से ११ सितंबर तक होने वाले ओलंपिक खेलों पर टिकी हुई थीं। इन्हीं ओलंपिक खेलों में एक बीस वर्षीय अश्वेत बालिका भी भाग ले रही थी। वह इतनी तेज़ दौड़ी, इतनी तेज़ दौड़ी कि १९६० के ओलंपिक मुक़ाबलों में तीन स्वर्ण पदक जीत कर दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बन गई।

रोम ओलंपिक में लोग ८३ देशों के ५३४६ खिलाड़ियों में इस बीस वर्षीय बालिका का असाधारण पराक्रम देखने के लिए इसलिए उत्सुक नहीं थे कि विल्मा रुडोल्फ नामक यह बालिका अश्वेत थी अपितु यह वह बालिका थी जिसे चार वर्ष की आयु में डबल निमोनिया और काला बुखार होने से पोलियो हो गया और फलस्वरूप उसे पैरों में ब्रेस पहननी पड़ी। विल्मा रुडोल्फ़ ग्यारह वर्ष की उम्र तक चल-फिर भी नहीं सकती थी लेकिन उसने एक सपना पाल रखा था कि उसे दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बनना है। उस सपने को यथार्थ में परिवर्तित होता देखने वे लिए ही इतने उत्सुक थे पूरी दुनिया वे लोग और खेल-प्रेमी।

डॉक्टर के मना करने के बावजूद विल्मा रुडोल्फ़ ने अपने पैरों की ब्रेस उतार फेंकी और स्वयं को मानसिक रूप से तैयार कर अभ्यास में जुट गई। अपने सपने को मन में प्रगाढ़ किए हुए वह निरंतर अभ्यास करती रही। उसने अपने आत्मविश्वास को इतना ऊँचा कर लिया कि असंभव-सी बात पूरी कर दिखलाई। एक साथ तीन स्वर्ण पदक हासिल कर दिखाए। 

इस कथा का सार यह कि सच यदि व्यक्ति में पूर्ण आत्मविश्वास है तो शारीरिक विकलांगता भी उसकी राह में बाधा नहीं बन सकती।

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Sunday, 16 November 2014

आपके पास सबसे कीमती चीज़ है आपका जीवन


एक जाने-माने स्पीकर ने हाथ में पांच सौ का नोट लहराते हुए अपनी सेमीनार शुरू की. हाल में बैठे सैकड़ों लोगों से उसने पूछा ,” ये पांच सौ का नोट कौन लेना चाहता है?” हाथ उठना शुरू हो गए.  फिर उसने कहा ,” मैं इस नोट को आपमें से किसी एक को दूंगा पर  उससे पहले मुझे ये कर लेने दीजिये .” और उसने नोट को अपनी मुट्ठी में चिमोड़ना शुरू कर दिया. और  फिर उसने पूछा,” कौन है जो अब भी यह नोट लेना चाहता है?” अभी भी लोगों के हाथ उठने शुरू हो गए.

“अच्छा” उसने कहा,” अगर मैं ये कर दूं ? ” और उसने नोट को नीचे गिराकर पैरों से कुचलना शुरू कर दिया. उसने नोट उठाई , वह बिल्कुल चिमुड़ी और गन्दी हो गयी थी.” क्या अभी भी कोई है जो इसे लेना चाहता है?”. और एक  बार  फिर हाथ उठने शुरू हो गए. ” दोस्तों  , आप लोगों ने आज एक बहुत महत्त्वपूर्ण पाठ सीखा है. मैंने इस नोट के साथ इतना कुछ किया पर फिर भी आप इसे लेना चाहते थे क्योंकि ये सब होने के बावजूद नोट की कीमत घटी नहीं,उसका मूल्य अभी भी 500 था। 

जीवन में कई बार हम गिरते हैं, हारते हैं, हमारे लिए हुए निर्णय हमें मिटटी में मिला देते हैं. हमें ऐसा लगने लगता है कि हमारी कोई कीमत नहीं है. लेकिन आपके साथ चाहे जो हुआ हो या भविष्य में जो हो जाए , आपका मूल्य कम नहीं होता. आप  ख़ास हैं, इस बात को कभी मत भूलिए. कभी भी बीते हुए कल की निराशा को आने वाले कल के सपनो को बर्बाद मत करने दीजिये और याद रखिये आपके पास जो सबसे कीमती चीज है, वो है आपका जीवन.”

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Friday, 14 November 2014

world Diabetes day


देश में 6.7 करोड़ से ज्यादा लोग आज मधुमेह बीमारी की चपेट में हैं और लगभग 10.7 करोड़ लोग प्री-डायबिटीज की स्थिति में हैं।  यदि इसी तरह देश में मधुमेह के मरीज़ों की संख्या बढ़ती रही तो वर्ष 2030 तक भारत पुरे विश्व में सबसे अधिक डायबिटीज के मरीज़ों के संख्या वाला देश बन जाएगा। गलत खान-पान एवं लाइफस्टाइल, शारीरिक परिश्रम की कमी एवं तनाव हमारे शरीर में मधुमेह के खतरे को सबसे अधिक बढ़ता है। मधुमेह स्वयं  अपने आप में एक खतरनाक बीमारी है और अपने साथ यह कई अन्य बिमारियों को जन्म देता है। यदि हमें देश में मधुमेह के बढ़ते भयावकता को खत्म करना है तो हम सभी को अपने रहन-सहन, खान-पान की आदतों में बदलाव लाना होगा, शारीरिक श्रम करनी होगी एवं तनाव से दूर रहना होगा।  आइये हम सब आज विश्व मधुमेह दिवस पर अपनी दिनचर्या, रहन-सहन को बदलने का संकल्प लें और एक स्वस्थ जीवन की ओर अपना कदम बढ़ाएं।

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Monday, 10 November 2014

World Science Day


Today is World Science Day for Peace and Development. The very purpose of this day is to strengthen public awareness on the role of science for peaceful and sustainable societies,  promote national and international solidarity for a shared science between countries, renew national and international commitment for the use of science for the benefit of societies and draw attention to the challenges faced by science and raise support for the scientific endeavour. The theme this year’s ` World Science day for Peace and Development is `Promoting Quality Science Education: Ensuring a sustainable future for all. 
As science plays a very big   role in our daily lives, it is of utmost importance that we highlight the important   role of science in society and engaged more and more people on emerging scientific  issues.


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Sheer will power, dedication can turn odds in your favour


Make every obstacle an opportunity
Diagnosed with advanced testicular cancer at the age of 25, doctors gave Lance Armstrong less than a 40 percent chance of recovery. Tumors were discovered in his lungs and stomach along with multiple lesions on the brain.
His biking career was over or so everyone thought; but no one counted on the indomitable belief Armstrong had in himself and the lessons which his mother, Linda Walling had taught him.
One of the first things that he did was to acknowledge the disease that had captured him in its talons and learn everything he could about it. He devoured books, resources and found help in support groups with people going through similar difficulties.
Lance sought strength in three things his mother had instilled in him
Make every obstacle an opportunityAlways work hard and good things will happen and Don’t believe it when other people say you can’t”.
His first comeback after beating cancer was not a success and he finished fourteenth in the race. He even thought about retirement but constant support from his fiancée, mother and buddy Chris Carmichael soon had him training for his next race in the Appalachians.
He returned from his training a transformed man and never let the constant difficulties plough him down again.
True, the doping scandals have destroyed Lance’s reputation as a professional biker. But one cannot but admire his sheer will power and dedication through which he turned the odds in his favor at a time when everyone thought his life was over.

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Saturday, 8 November 2014

ज़िन्दगी में जूनून हो तो कुछ भी असंभव नहीं

जब जूलियो 10 साल का था तो उसका बस एक ही सपना था , अपने फेवरेट क्लब रियल मेड्रिड की ओर से फुटबाल खेलना ! वह दिन भर खेलता, प्रैक्टिस करता और धीरे-धीरे वह एक बहुत अच्छा गोलकीपर बन गया. 20 का होते-होते उसके बचपन का सपना हकीकत बनने के करीब पहुँच गया; उसे रियल मेड्रिड की तरफ से फुटबाल खेलने के लिए साइन कर लिया गया. खेल के धुरंधर जूलियो से बहुत प्रभावित थे और ये मान कर चल रहे थे कि बहुत जल्द वह स्पेन का नंबर 1 गोलकीपर बन जायेगा.

1963 की एक शाम , जूलियो और उसके दोस्त कार से कहीं घूमने निकले. पर दुर्भाग्यवश उस कार का एक भयानक एक्सीडेंट हो गया , और रियल मेड्रिड और स्पेन का नंबर 1 गोलकीपर बनने वाला जूलियो हॉस्पिटल में पड़ा हुआ था , उसके कमर के नीचे का हिस्सा पैरलाइज हो चुका था. डॉक्टर्स इस बात को लेकर भी आस्वस्थ नहीं थे कि जूलियो फिर कभी चल पायेगा, फ़ुटबाल खेलना तो दूर की बात थी.

वापस ठीक होना बहुत लम्बा और दर्दनाक अनुभव था. जूलियो बिलकुल निराश हो चुका था , वह बार-बार उस घटना को याद करता और क्रोध और मायूसी से भर जाता. अपना दर्द कम करने के लिए वह रात में गाने और कविताएँ लिखने लगा. धीरे-धीरे उसने गिटार पर भी अपना हाथ आजमाना शुरू किया और उसे बजाते हुए अपने लिखे गाने भी गाने लगा.

18 महीने तक बिस्तर पर रहने के बाद , जूलियो अपनी ज़िन्दगी को फिर से सामान्य बनाने लगा. एक्सीडेंट के पांच साल बाद उसने एक सिंगिंग कम्पटीशन में भाग लिया और ” लाइफ गोज ओन द सेम ” गाना गा कर फर्स्ट प्राइज जीता.

वह फिर कभी फ़ुटबाल नहीं खेल पाया पर अपने हाथों में गिटार और होंठों पे गाने लिए जूलियो इग्लेसियस संगीत की दुनिया में टॉप तेन सिंगर्स में शुमार हुआ ,और अब तक उनके 30 करोड़ से अधिक एल्बम बिक चुके हैं.

इस कथा का सार यह है कि यदि जिंदगी में किसी चीज़ को करने का जूनून हो तो कुछ भी असंभव नहीं।

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Friday, 7 November 2014

Cancer is preventable: Early diagnosis saves lives




Today is National Cancers Awareness Day. Given the fact cancers are the 2nd leading cause of death in India which is  likely to double by 2015 and triple by 2030, the awareness about   cancers is a must for everyone to checkmate its spread..

Though there are multiple reasons behind spread of this deadly disease in India, almost  70% cancer burden is related to life style factors, hence preventable. More than 1/3rd cancers (2 out of every 5) are tobacco related and other due to faulty diet habits and social habits.
The unhealthy lifestyle that increases risk of cancers is tobacco consumption. Besides increased consumption of animal fats & oils, refined foods, spicy and hot foods, hot boiling tea, sundried vegetables and smoked fish, sedentary life style, obesity, alcohol consumption, or un-necessary exposure to X-ray or toxic chemicals and some specific infections are other major cancer  risk factors.
The early the cancer is detected the better is the cure rate and prognosis. Most of the cancers are silent for long time and give no initial warning. Once cancer produces evident symptoms and signs, it is already in advanced stage and usually difficult to treat.  2/3rds of cancers are detected in advanced stage. Treatment of any cancer in advanced stage is difficult, prolonged and expensive.

On National Cancer Awareness Day today, let each of us take a collective pledge  to prevent cancers  by adopting healthy life style like regular use of fresh green leafy vegetables and fruits, regular exercise, plenty of fluids, consumption of dried fruits in small quantities, maintaining optimal weight, avoidance of tobacco in any form, excess consumption of red meat,  animal fats, hot and spicy foods, hot boiling salt tea, sun-dried vegetables, pickles, alcohol. In addition females should always prefer to Brest feed their babies..

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Monday, 3 November 2014

मनोबल को कभी परास्त ना होने दें। …


राज़ा सुकीर्ति के पास एक लौहश्रुन्घ नामक हाथी था ..राजा ने कई युद्ध में उसपर चढ़ाई करके विजय पायी थी ..बचपन से ही उसे इस प्रकार से तैयार किया गया था कि युद्ध में शत्रु सैनिको को देखकर वो उनपर इस तरह टूट पड़ता कि देखते ही देखते शत्रु के पाँव उखड जाते ... पर जब वो हाथी बुढा हो गया ..तो वह सिर्फ हाथी शाला की शोभा बन कर रह गया ..अब उसपर ध्यान नहीं देता था ...भोजन में भी कमी कर दी गयी ..एक बार वो प्यासा हो गया तो एक तालाब में पानी पिने गया पर वहा कीचड़ में उसका पैर फस गया और धीरे धीरे गर्दन तक कीचड़ में फस गया .. अब सबको लगा कि ये हाथी तो मर जाएगा .इसे हम बचा ही नहीं पायेंगे .
राज़ा को जब पता चला तो वे बहुत दुखी हो गए ..पूरी कोशिश की गयी पर सफलता ही नहीं मिल रही थी ... आखिर में एक चतुर सैनिक की सलाह से युद्ध का माहौल बनाया गया ..वाद्ययंत्र मंगवाए गए ....नगाड़े बजवाये गए और ऐसा माहौल बनाया गया कि शत्रु सैनिक लौहश्रुन्घ की ओर बढ़ रहे है .और फिर तो लौहश्रुन्घ में एक जोश आ गया ..गले तक कीचड़ में धस जाने के बावजूद वह जोर से चिंघाड़ लगाकर सैनिको की ओर दौड़ने लगा ..बड़ी मुश्किल से उसे संभाला गया .. ये है एक मनोबल बढ़ जाने से मिलने वाली ताकत का कमाल ..
इस कथा का सार यह है कि .जिसका मनोबल जाग जाता है वो असहाय और अशक्त होने के बावजूद भी असंभव काम कर जाता है ... अतः अपने मनोबल को कभी परास्त ना होने दें।

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Saturday, 1 November 2014

India's for observing International Yoga Day

If everything goes smoothly, the United Nations may adopt a resolution to observe International Yoga Day June 21 next year. Following our Prime Minister Shri Narendra Modi's speech at the United Nations last month and subsequent initiatives taken by the India's UN Mission,  International Day of Yoga. As many as 50 countries – US, Canada and China most recently — have signed up for co-sponsorship of a draft resolution.  The list of co-sponsors includes Asian heavyweights China, Japan, Indonesia and South Korea and also South Africa and Nigeria in Africa. Neighbours such as Bangladesh, Bhutan, Nepal and Sri Lanka were amongst the earliest to sign on. Latin American giants Brazil and Argentina too have committed support.








The resolution will be submitted soon to the UN secretariat with the government looking to aggressively push for its adoption before the end of this year. Perhaps India’s most significant export to the world, the ancient art of Yoga is fast taking centre-stage.

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Wednesday, 29 October 2014

India's standing as a place for doing business

In a quiet contrast to prevailing investment scenario in the country, while on the one hand, investments are pouring in into the country with the easing of investment procedures in the country by the new government, on the other hand, India has dropped two places to stand 142nd out of 189 countries ranked by the World Bank for ease of doing business.
In the ten metrics used to measure ease of doing business in the Bank's 2015 report, India stood a wretched 184th in the category "Dealing with Construction Permits," and 186th in "Enforcing Contracts."

On the flip side of it, India has immensely improved its rank to 7th, an improvement of 14 places, when it came to "Protecting Minority Investors." It is the only category in which India has shown an improvement from 2014, when it was ranked 21 in this category and 140 in the overall ease of doing business.
 One  hopes with easing out of business norms by the incumbent government at the centre, India's standing as a  lucrative   investment destination will improve drastically in the coming years.

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Tuesday, 28 October 2014

पूर्ण आत्मविश्वास से असंभव भी संभव बन सकता है

घटना है वर्ष १९६० की। स्थान था यूरोप का भव्य ऐतिहासिक नगर तथा इटली की राजधानी रोम। सारे विश्व की निगाहें २५ अगस्त से ११ सितंबर तक होने वाले ओलंपिक खेलों पर टिकी हुई थीं। इन्हीं ओलंपिक खेलों में एक बीस वर्षीय अश्वेत बालिका भी भाग ले रही थी। वह इतनी तेज़ दौड़ी, इतनी तेज़ दौड़ी कि १९६० के ओलंपिक मुक़ाबलों में तीन स्वर्ण पदक जीत कर दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बन गई।
 
रोम ओलंपिक में लोग ८३ देशों के ५३४६ खिलाड़ियों में इस बीस वर्षीय बालिका का असाधारण पराक्रम देखने के लिए इसलिए उत्सुक नहीं थे कि विल्मा रुडोल्फ नामक यह बालिका अश्वेत थी अपितु यह वह बालिका थी जिसे चार वर्ष की आयु में डबल निमोनिया और काला बुखार होने से पोलियो हो गया और फलस्वरूप उसे पैरों में ब्रेस पहननी पड़ी। विल्मा रुडोल्फ़ ग्यारह वर्ष की उम्र तक चल-फिर भी नहीं सकती थी लेकिन उसने एक सपना पाल रखा था कि उसे दुनिया की सबसे तेज़ धाविका बनना है। उस सपने को यथार्थ में परिवर्तित होता देखने वे लिए ही इतने उत्सुक थे पूरी दुनिया वे लोग और खेल-प्रेमी।

डॉक्टर के मना करने के बावजूद विल्मा रुडोल्फ़ ने अपने पैरों की ब्रेस उतार फेंकी और स्वयं को मानसिक रूप से तैयार कर अभ्यास में जुट गई। अपने सपने को मन में प्रगाढ़ किए हुए वह निरंतर अभ्यास करती रही। उसने अपने आत्मविश्वास को इतना ऊँचा कर लिया कि असंभव-सी बात पूरी कर दिखलाई। एक साथ तीन स्वर्ण पदक हासिल कर दिखाए। 

इस कथा का सार यह है कि  यदि व्यक्ति में पूर्ण आत्मविश्वास है तो शारीरिक विकलांगता भी उसकी राह में बाधा नहीं बन सकती।

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Monday, 20 October 2014

अपनी विनम्रता को मत त्यागें


 
बारह वर्षों के लिए राष्ट्रपति भवन राजेन्द्र प्रसाद का घर था। उसकी राजसी भव्यता और शान सुरूचिपूर्ण सादगी में बदल गई थी। राष्ट्रपति का एक पुराना नौकर था, तुलसी। एक दिन सुबह कमरे की झाड़पोंछ करते हुए उससे राजेन्द्र प्रसाद जी के डेस्क से एक हाथी दांत का पेन नीचे ज़मीन पर गिर गया। पेन टूट गया और स्याही कालीन पर फैल गई। राजेन्द्र प्रसाद बहुत गुस्सा हुए। यह पेन किसी की भेंट थी और उन्हें बहुत ही पसन्द थी। तुलसी आगे भी कई बार लापरवाही कर चुका था। उन्होंने अपना गुस्सा दिखाने के लिये तुरन्त तुलसी को अपनी निजी सेवा से हटा दिया।

उस दिन वह बहुत व्यस्त रहे। कई प्रतिष्ठित व्यक्ति और विदेशी पदाधिकारी उनसे मिलने आये। मगर सारा दिन काम करते हुए उनके दिल में एक कांटा सा चुभता रहा था। उन्हें लगता रहा कि उन्होंने तुलसी के साथ अन्याय किया है। जैसे ही उन्हें मिलने वालों से अवकाश मिला राजेन्द्र प्रसाद ने तुलसी को अपने कमरे में बुलाया। पुराना सेवक अपनी ग़लती पर डरता हुआ कमरे के भीतर आया। उसने देखा कि राष्ट्रपति सिर झुकाये और हाथ जोड़े उसके सामने खड़े हैं। उन्होंने धीमे स्वर में कहा,

"तुलसी मुझे माफ कर दो।"

तुलसी इतना चकित हुआ कि उससे कुछ बोला ही नहीं गया। राष्ट्रपति ने फिर नम्र स्वर में दोहराया,

"तुलसी, तुम क्षमा नहीं करोगे क्या?"

इस बार सेवक और स्वामी दोनों की आंखों में आंसू आ गये। 

इस लघु कथा का अभिप्राय यह है कि मनुष्य की विनम्रता ही उसे महानता  की ओर ले जाती है। अतः परिस्थिति कैसी भी हो अपने विनम्रता को मत छोड़िये। 

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Saturday, 18 October 2014

अपनी सोच हमेशा ऊँची रखें

एक बार एक आदमी ने देखा कि एक गरीब फटेहाल बच्चा बड़ी उत्सुकता से उसकी महंगी ऑडी कार को निहार रहा था। गरीब बच्चे पर तरस खा कर अमीर आदमी ने उसे अपनी कार में बैठा कर घुमाने ले गया।
लड़के ने कहा : साहब आपकी कार बहुत अच्छी है, यह तो बहुत कीमती होगी न...।
अमीर आदमी ने गर्व से कहा : हां, यह लाखों रुपए की है।
गरीब लड़का बोला : इसे खरीदने के लिए तो आपने बहुत मेहनत की होगी?
अमीर आदमी हंसकर बोला : यह कार मुझे मेरे भाई ने उपहार में दी है।
गरीब लड़के ने कुछ सोचते हुए कहा : वाह! आपके भाई कितने अच्छे हैं।
अमीर आदमी ने कहा : मुझे पता है कि तुम सोच रहे होंगे कि काश तुम्हारा भी कोई ऐसा भाई होता जो इतनी कीमती कार तुम्हे गिफ्ट देता!!
गरीब लड़के की आंखों में अनोखी चमक थी, उसने कहा : नहीं साहब, मैं तो आपके भाई की तरह बनना चाहता हूं...
कथा सार : अपनी सोच हमेशा ऊंची  रखें, दूसरों की अपेक्षाओं से कहीं अधिक ऊंची, तो आपको बड़ा बनने से कोई रोक नहीं सकता।

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Monday, 13 October 2014

Let us build disaster resilient communities



India like other natural disaster prone regions of the world every years suffer from huge loss of lives and property on account of periodic  natural calamities. Even as our natural disaster management policies are well in place and have a separate Natural Disaster Rescue Force to deal with such calamities, we have lost thousands of lives during the course of series of natural disasters which have hit the country over the years whether be it Tsunami or for that matter last year’s natural disaster in Uttarakhand ,  floods in Jammu and Kashmir or for that matter the recent Hudhud cyclone which rocked the east coast of country prominently coastal regions of Andhra and Orissa.
Today (Oct 13) The International Day for Disaster Reduction (IDDR) is being observed all-over the world  to encourage every citizen and government  to take part in building more disaster resilient communities and nations.  It is a day to celebrate how people and communities are reducing their risk to disasters and raising awareness about the importance of DRR.
As the world is ageing this year's IDDR Day highlights the need for a more inclusive approach for older people in disaster risk reduction and recognize the critical role they can play in resilience-building through their experience and knowledge.
Given frequent arrival of natural calamities in India which claim hundreds of lives every year , it is important  that our disaster management or disaster reduction mechanism must be  attached top priority so as to minimize or reduce  the impact of such disasters in terms of preventing loss of life and property.

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